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tera yu jana

तेरा यूँ जाना 

tera yu jana


कभी दिल की  गहराइयों में उतर के देखो 
तेरी ही याद बहती है 
तू नहीं है फिर भी 
तेरी ही बात रहती है 
अकेला हूँ तेरे बिन अब तो,बस यही फ़रियाद रहती है 
उसी जन्नत में चला आऊं 
जहाँ तूं मेरा इन्तजार करती है 

तुझ संग दिए दिवाली के, तुझ संग होली की रंगत 
तुझ संग पीड़ा दिल की बाँटू, तुझ संग सुन्दर ये जगत 

बिन तेरे सुना दिल का झरोखा ,तेरे बिन  सुनी दिल की गलियां 

सुना पड़ा है दिल का बागीचा ,खिलने से मना  करती है बिन तेरे कलियाँ 

लाख तसल्ली देता हूँ, इस दिल को लेकिन 
बिन तेरे इसको अब चैन कहाँ 
क्या खुद को तसल्ली दे पाउँगा 
हर पल भींगे है नैन यहाँ 

है लाख समंदर गहरा तो क्या 
बुझा  पाता  प्यास नहीं 
है सारा जग कहने को अपना 
बिन तेरे किसी से अब आस  नहीं 

मैं तो तेरे बिन अधूरा 

खुद को जिन्दा कह पाता नहीं 
कोई कितना भी समझाये 
तुझ बिन रह पाता नहीं 

चल रही है धड़कन न जाने क्यूँ बेवजह  
अब तूँ ही बतला तू  मिलेगी किस जगह  


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tera intjaar

तेरा इन्तजार 

tera intjaar



बड़ी हसरत से तुझे देखे जा रहा था
वो बाजार में चूड़ियों को पहनते हुए तेरी खिलखिलाहट भरी हंसी
एक अजीब सी चुलबुली ख़ुशी मेरे दिल ने महसूस की
लगा की बस तू ही तू है इस जहाँ में मेरा सबकुछ

सोचा कदम बढ़ाऊ तो कैसे
मुहब्बत का पंछी उड़ाउँ तो कैसे
चारो और गिद्ध रूपी पहरेदार जो थे
पर साथ में मेरे कुछ वफादार भी थे

पैगाम पहुंचा जब मेरा  तुझतक
यकीन तो तेरी नजरो ने ही दिला दिया था
आता संदेशा तेरा जबतक
कभी तो अपने होंठो को हिला दिया होता
अपने लबो से भी कुछ फरमा दिया होता


हम तो तसल्ली कर लिए होते
कम से कम इस दिल को तो थोड़ा फुसला दिया होता
ये इश्क़  का रोग लाइलाज नहीं होता मेरी जान
बस तूने एक बार आवाज तो दिया होता

कुछ वक़्त बदला, कुछ बदले तेरे तेवर
कुछ हमने भी खुद को बदला
ना बदल सके तो इस दिल में तेरे कलेवर 


अभी भी इन्तजार तेरा करते है 

इश्क़ की गली में लोग ऐतबार मेरा करते है 
तू डरती है ज़माने से तो डरा कर 
अभी भी तेरे नाम पर पैमाने भरा करते है 

बड़ी कातिल थी तेरी निगाहें 
कम्बख्त दिल को भी ना छोड़ा 

तेरे इन्तजार में निकली दिल से आंहे 

दौड़ा न सका अपनी मुहब्बत का घोडा 



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                    जाने तू या जाने ना                                         इश्क़ ना करना 

                   तेरी मेरी कहानी                                               इश्क़ में 

biwi ki tarkari

biwi ki tarkari

बीवी की तरकारी -


हर दुसरे दिन करेले की सब्जी मत बनाया करो , बी पी लो हो जाता है 
और इसी चक्कर में वो हो जाता है 

चना खिलाके घोडा बना दिया 
माँगा था प्यार पूरा पर थोड़ा ही दिया 

डूब जाते तुम्हारी झील सी  आँखों में 
फिर ध्यान आया ठंड बहुत है  

आलू के कोफ्ता से तो कुफत हो गई 
पड़ोसन थोड़ा सा प्यार मुफ्त में ले गई 

आज खीर में चीनी कम है 
पर तुम्हारे प्यार में बड़ा दम है 

इन कजरारी आँखों से घूरा ना करो 
बड़ा मुश्किल होता है इन्हे देखकर मुस्कुराना  

रायता लौकी का अच्छा था 
बेलन जब मारा तो बचाव में वो चौकी भी अच्छा था 

कभी पालक पनीर भी बनाया करो 
हमें देखकर थोड़ा सा तो मुस्कुराया करो 

तुम सांभर हो तो मैं हूँ डोसा 
बस कायम रहे मुझ पर तुम्हारा भरोसा 
नहीं तो मुझे बना दोगी चटनी बिन समोसा 

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aashiq



आशिक़ 

aashiq


जबसे बगल वाली पर गाना बना
तबसे बगल में जाना हो गया मना
जहर तो तब कोई बो  गया
जब सामने वाली पर भी एक ठो हो  गया


अखियां चार कहा से करे अब
जब जमाना ही बेवफा हो गया
पड़ोसन को आँख मारी तो 
तो बुढऊ खफा हो गया 

नैना के नैनो से घायल हुए
काजल की अँखियो के कायल हुए
खुशबू की खुशबू जब तक आती
पूजा के पैरो के पायल हुए

किस्से बहुत हुए , कहानियाँ बहुत बनी

गलियों के आशिको से इस आशिकी में बहुत ठनी


कभी लोगो  ने बदनाम किया ,कभी अपने हुनर ने नाम किया

कभी किसी ने दिलफेंक आशिक कहा

कभी किसी ने बहता हुआ साहिल कहा
अब किस - किस को समझाते की, लोगो ने किस्सा क्यों आम किया

हमने तो इश्क़ को खुदा मानके, हर चेहरे से प्यार किया
तुमने मुहब्बत की तंग गलियों से, गुजरने से इंकार किया
और जब हम गुजरे तो कहते हो
गली में रहने वाले दिलो को बेकरार किया

हमने तो मुहब्बत का शहर बसा दिया 
इस नफरत भरी दुनियां को जीना सीखा दिया 
तभी तो इस दुनियां ने हमें आशिक़ बना दिया 


कभी आओ गली में हमारी ,और यकीं  करो हमारा 
बनालोगे आशियाना , देखके इस गली का नजारा 


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nand ka lala


नन्द का लाला - 

nand ka lala


जग ने जब तुझे पुकारा ,ओ नन्द के नंद लाला
 है रूप धर तूं आया , जग में सबसे निराला 

उतावली हुई सरिता भी पग छूने को 
शेषनाग ने अपना छत्र फैलाया 
गोकुल में मिली यशोदा मैया 
नन्द ने अपना लाल बताया 

बन बैठा वृन्दावन का तूं कन्हैया 

गोपियों संग रास रचाया 
बड़ी अनोखी लीला तेरी 
मुख में सारा ब्रम्हाण्ड दिखालाया 

दानव , दैत्य पर पड़े तूँ भारी
गरीब सुदामा से तेरी यारी 
इंद्र ने जब गुरुर दिखलाया  
कनिष्ठा पे गोवर्धन उठाया 

जननी तेरी देवकी मैया 
कंस का वध कर उसे छुड़ाया 
महाभारत के युद्ध में 
तूने रिश्तो का मोल बताया 

अपनों से अपनों के इस युद्ध में 
जब सारे जग ने नीर बहाया 
विचलित देख अर्जुन को तूने 
भगवद गीता का पाठ पढ़ाया 

प्रेम की भाषा जग ने तुझसे सीखी 
कर्मयोग को तुझसे जाना 

राधा - कृष्ण के अमर प्रेम को 

हर एक प्रेमी ने माना  


है शुरू तेरे ही अंत से ये कलियुग 
हो रहा अंत अब धर्म का भी 
है तेरी ही आस अब तो 
जब तूने कहा था
सम्भवामि युगे युगे 


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ए  खुदा तू ही बता


takrar

तकरार 

takrar
तकरार 

अरे रुको
ऐसा न कहो
वो तो बावली थी तेरे प्यार में
समझा करो

मान भी जाओ

पथराई अंखिया ढूंढे तुझे ,सारे जवार में

कुछ तो बोलो

जाने भी दो
ऐसा नहीं करते ,सच्चे प्यार में 
बोल भी दो 
यूँ ना रूठो 

कबसे खड़ी है ,तेरे इन्तजार में 

अच्छा किया 
मान गए 

कुछ नहीं रखा , इस तकरार में 

क्योंकि 
मिलते नहीं अब 
सच्चे  हमसफ़र 
इस झूठे संसार में 


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kavi



कवि 



kavi



कवि हूँ , मैं देश दुनिया की छवि हूँ मैं
 हर युग को गाता हूँ मै , हर युग में जाता हूँ मैं
मुहब्बत का पैगाम देता,रवि हूँ मै

मैंने देखे है खून से सने मैदानों को
मैंने देखे है मरते वीर जवानो को
मैंने देखा है बिलखती माँओं को
मैंने देखा है विपदा की घनघोर घटाओ को
कविता में जब इन छणो को पिरोता हूँ
मैंने देखा है रोते श्रोताओ को


त्रेता से लेकर कलियुग तक

और राम के उस सतयुग तक
स्त्री को बिलखते देखा है
उस युग की द्रोपती से लेकर
इस युग की निर्भया तक को तड़पते देखा है

मैंने देखा है राजाओ के अहंकारो को 
और उन्ही राजाओ की जलती चिताओ को 
मैंने देखा है आम्भी और जयचंद जैसे गद्दारो को 
और प्रताप से लेकर भगत सिंह जैसे शूरमाओं को 

अग्नि में समाहित सती को भी देखा है 
और सावित्री जैसी हठी को भी देखा है 
मैंने देखा है झाँसी की मर्दानी को 
और सिंघनी जैसी दुर्गावती रानी को 


हर युग की अपनी एक कहानी है 


कभी गाँधी कभी जयप्रकाश की आंधी है 
तस्वीरें बनती है और बिगड़ती 
सब कवि की कविता में झलकती है 

लिखता वही हूँ जो सही होता है 
हर काल को 
चंद पंक्तियों में 
पिरोने वाला ही कवि होता है। ..... 





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mulk


मुल्क 


वे कहते है की मुल्क उनका है ये कहते है की मुल्क इनका है 
 चले जाएँ सरहदों पर कहने वाले ये मुल्क जिनका है 

मेरे मुल्क से मेरी वफादारी के सबूत मांगते है वो 

जिनके महलो में लगने वाले पत्थर भी विलायती है 

mulk


कुछ शोर सा उठता है इस अहदे -  वतन में 
सत्ता के लिए सब कुछ जायज है इस चमन में 
कुछ काटेंगे कुछ चाटेंगे ,
कुर्सी के पीछे सारे भागेंगे 
मुल्क के लिए कौन करता है कुछ 
यहाँ दंगे भी होते है सत्ता के लिए और  मत पूछ 

मुल्क के लिए हँसते हुए जान दे देते है वो 
जिनके लिए मुल्क और माँ एक होती है 
चंद अल्फाज ही निकलते है इन हुक्मरानो के मुखड़े से 

जिसमे शहीद को भारत माँ का वीर सपूत बतलाते   है 

और अगले ही दिन उस उस बेचारी माँ को भी नहीं पहचान पाते है 
वो कहते है की वो मुल्क के रखवाले है 
मैं कहता हूँ वे देश को लूटने वाले है 


कोई देशभक्ति का ओढ़े चोला 
उसके अंदर बम का गोला 
कोई विदेशी सरकार चलावे 
क्या वो देश का हो पावे 
कोई बांटे हिन्दू -  मुस्लिम 
कोई बाँटे माटी - जाति 
मैं तो खड़ा मौन मेरे मौला  
जबसे सियासत ने ओढ़ा धर्म का चोला 


गुलाम हुआ अपनों से ही मुल्क मेरा 
अब तो होगी क्रांति 
मेरा रंग दे बसंती चोला। 



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sawan


सावन

                                                                      
sawan

भीगे - भीगे से दिन है
भीगी सी राते
बाहर आने को है कुछ जज्बाते
बरखा है  उमंग है
जब तू मेरे संग है

वो पहले सावन का झूला

अबकी बार भी ना मन भूला
तुझे याद है वो चुपके से लहलहाते हुए
धान के खेतो को देखना
उन नन्हे पौधो की हरियाली में जिंदगी को ढूंढना 
वो मेले में  हरी चूड़ियों को खरीदने की ललक
और उस लम्बी टोपी वाले  जादूगर की एक झलक 
शिवालय में शिव भक्तो की लम्बी कतार 
उस पर से नागपंचमी का त्यौहार 
हर सावन ऐसेा ही हो मन भावन 
हर झूले पर हो तेरा साथ 
मुश्किलें चाहे कितनी भी आये 

तुम रहना हमेशा साथ 




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tufan


तूफ़ान 

tufan














खुद को रोक पाते हो तो रोक लो
जो तूफ़ान सा उठ रहा है सीने में तुम्हारे
वो दुनियां की ही तो देन है
हो सके तो बदल लो खुद को ज़माने के लिए
माना की खून गर्म है तुम्हारा
पर थोड़ा सा निकालो दिखाने के लिए

युग आये और युग चले गए
कुछ इतिहास बनाके गए कुछ खास बना के गए
जाना तो सबको है एक दिन
परंतु कुछ आस बनाके गए कुछ उदास बनाके गए

 तुमको लगता है की व्यवस्था ही ख़राब है
अरे ये जवानी की अवस्था ही ख़राब है
इसीलिए तो वो तुमको बहकाते है 
अगर ना बहके तो बहका हुआ बताते है

युवा शक्ति से ही राष्ट्र गतिमान होता है
पर गति की राह में कभी - कभी अभिमान होता है
तभी तो हर जगह
 तजुर्बा प्रधान होता है

चलो माना  की तुम और हम आजाद है
तुम व्यवस्था के मारे हो
हम अवस्था के मारे है

फिर ये जाति ,धर्म ,क्षेत्र के कैसे नारे है
हमको और तुमको मझधार में फंसा के
 हँसते वे किनारे है

लगता है एक तूफ़ान मेरे सीने में भी है
उठते हुए कहता है
क्या मजा....  ऐसे जीने में भी है  ?






लेखक की प्रतिलिपि पर प्रकाशित एक रचना 

https://hindi.pratilipi.com/read?id=6755373518941614


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kaliyug



कलियुग 

kaliyug


कलियुग शुरू हो गया है क्या  ?
लोगो की मति तो मारी ही जा रही है 
भीड़ भी बढ़ते ही जा रही है 
बेटा बाप को काट रहा है 
और बीवी के तलवे चाट रहा है 
रिश्तो की जगह कब धन ने ले ली पता ही ना चला  
हकीकत की जगह कब दिखावे ने ले ली पता ही ना चला 
राह चलते छोटी बात बड़ी बन जाती है 
अब तो यूरिया से भी रबड़ी बन जाती है 

दिमाग में भूसा और गुस्सा दोनों ही ज्यादा है 
आम आदमी मार - काट पे आमदा है 
कंक्रीट के जाल बिछते जा रहे है 
पेड़ और पहाड़ कटते जा रहे है 

विकास यही है क्या ?

आज का सभ्य समाज यही है क्या  ?
राजा खुद को भगवान कहने लगा है 
अब तो सुना है पहरेदारो के साथ , महलों में रहने लगा है 

खाली पेट बच्चे बड़े हो रहे है 
और वे करोडो खर्च करके चुनाव में खड़े हो रहे है 
बाप नौकरी की तलाश में भटक रहे है 
नए लड़के ढाढ़ी और बाल बढ़ा के मटक रहे है 
संत व्यापार और व्यभिचार में लिप्त है 
यह देख के जनता विक्षिप्त है 
स्त्री अपने अस्तित्व की लड़ाई में हार रही है 
और सफेदपोशो के कपडे फाड़ रही है 

रोज घट रही हजारो दुर्घटना है 
जान हुई सस्ती अब, गुलामो की तरह रोज खटना है 
सुना है इंसानो ने भी, आपस में नस्लों का बंटवारा कर लिया है 
खून तो एक ही है सबमे , शायद जमीर से किनारा कर लिया है 


अब क्या बचा है दाता के इस संसार में 

शायद वही प्रकट हो इस कलियुग में, अपने नए अवतार में 



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baat



बात 

                                                                        
baat

बात करते करते बात बन जाए तो क्या बात है 
और अगर बात करनी इतनी ही जरूरी थी तो बात की क्यों नहीं 
फिर बात बताते हो की बात हुई 
पर बात बताई नहीं उसको 
बात बताओगे नहीं तो उसकी बात पता कैसे चलेगी 

बात रखे रहने में भी कोई बात नहीं है 

बात बताने से ही बात बढ़ेगी 
फिर कुछ बात उधर से होगी 
हो सके बात ना बन पाए 
हो सके बातों का सिलसिला शुरू हो जाये 
पर बात बताना अदब से 
यही बात की कलाकारी है 
बातों से  ही तो आजकल जंग लड़ी जाती है 
बातों में ही तो सम्मोहन है 

अगर बात बन गई तो क्या बात है 

कुछ बात तुम्हारी होगी कुछ बात उनकी होगी 
औरो की बातों पर ध्यान मत देना 
उनको केवल बातो में मजा लेना है 
पर तुमको बातो से ही जीवन चलाना है 
यही बात है मेरी 
कुछ और बात है तो आओ बातें करे 





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inklaab jaruri hai


इंकलाब जरुरी है

inklaab jaruri hai


मर रहा किसान है देखो
कैसी उसकी मजबूरी है

कहता है रोम - रोम मेरा अब तो

इंकलाब जरुरी है

तब देश उन्होंने लूटा
अब देश इन्होने लूटा
कैसी जनता की मजबूरी है
अब तो इंकलाब जरुरी है

वे गोरे  थे  ये क्या काले है
दोनों ही देश को लूटने वाले है

तब लाठी का जोर यहाँ था
अब लालच का शोर यहाँ है
तब भी दंगे यहाँ हुए थे
अब भी दंगे कहाँ रुके है

कहने को है देश के बेटा

पर भरे स्विस बैंक की तिजोरी है
अब तो  इंकलाब जरुरी है

ना गई अपनी गरीबी देखो
हुए अमीर इनके करीबी देखो
वे विदेशी थे ये देशी है
पर नीयत एक जैसी है

भगत और  चंद्रशेखर को खोकर जो आजादी पाई थी
लगता है  शायद उसकी ज्यादा कीमत चुकाई थी
चेहरे शायद बदले है , जालिमो की नई जमात आई है
है तरीका अलग पर आपस में  मौसेरे भाई है


कितना रोकेंगे खुद को हम
छलियो और लुटेरों से

है देशभक्ति का खून भरा

रुकेगा ना ये रोके से


भगत सिंह और चंद्रशेखर बनना

हालात की मजबूरी है
वो क्रांति तब भी जरुरी थी
एक क्रांति अब भी जरुरी है



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तुमसे 

tumse



तुम कहते हो की सावन की रिमझिम बुँदे

मेरी याद दिलाती है
तुम कहते हो की घनघोर घटा
राग मल्हारी गाती है

तुम कहते हो की मेरी पैजनिया की आहट
तुम्हे प्रफ्फुलित कर जाती है
मैं कहती हूँ तुम सावन के इंद्र धनुष जैसे
जीवन में खुशियों के रंग भर जाते हो

तुम एक मधुर साज मैं जीवन गीत तुम्हारी प्रियतम
है साँस तुम्हारी इस धड़कन  में
रहे साथ जीवन में हरदम

तुम कहते हो की दुःख की काली  रातो में
मैं उजियारी सुबह लाती हूँ
मैं कहती हूँ इन स्याह रातों में
तुमसे मिलने चली आती हूँ

अपने बगियाँ में सावन के झूले
उस पर मंद - मंद बर्षा  की बुँदे
मैं क्या झुलू सब कुछ भूलूँ
जब प्रतिक्षण साथ तुम्हारा हो

तुम ही बसंत तुम ही सावन
तुम प्रेम की सुगन्धित फुलवारी हो

सब कुछ तुमसे , तुममे सबकुछ

मैं कहती हो तुम मेरे कृष्ण मुरारी हो



 इन्हे भी पढ़े - मेरी मुहब्बत 

sang tere


संग तेरे 



तेरी  तन्हाईया अब भी ये सवाल करती है
मरता था तू जिस पे वही ये हाल करती है

बड़ी नाजुक थी तेरी मुहब्बत
जो दर्दे - खास  देती है
की तेरी हर एक  याद
जिस्म को सांस देती है

हुआ करते थे, हम भी कभी रांझा
की उसको हीर कहते थे
की बदल सके न जिसको हम
उसे तकदीर कहते थे

जमाना है ये बड़ा कातिल
जो दिलो को तोड़ देता है
जो चल सके न संग इसके
उसे ये छोड़ देता है

हमने देखे थे जो सपने, संग साथ जीने के
टूटे गए वो सपने  तेरे मेरे सीने के

सोचे ये दिल अब  मेरा
मेरी जान जरा सुन ले
बहुत हुआ जीना अब तो,  मौत ही चुन ले

तू धड़कन में  था  यूँ  समाया
जैसे सीप में मोती
अगर संग तेरा जो होता, तो क्या जिंदगी होती

तेरी जुल्फों में  शाम होती
तेरी आँखों में सुबह होती
कभी तू मुझमे खो जाती
कभी मैं तुझमे खो जाता। ...




लेखक की स्टोरी मिरर पर प्रकाशित एक कविता -
https://storymirror.com/read/poem/hindi/axibfjtu/sng-tere


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barsaat

बरसात 



आज बेमुरौवत बरसात हो गई
घर से निकले थे तभी रात हो गई
कदम लड़खड़ाये  अँधेरे में
संभलते ही उनसे मुलाकात हो गई
संभलना याद ना रहा
फिर से वही वारदात हो गई

भीगे सारी रात हम

इश्क़ के दरिया  में

बरसात तो अब पुरानी बात हो गई

बादलो से   चाँद आज  जमीं पर उतर आया था 
पूर्णिमा की रात तो मेरी थी 
ना जाने कितने घरो में  अँधेरा छाया था 

वो बेपनाह खूबसूरत सी इश्क़ की एक मूरत थी 
और मेरी वीरान दुनिया की  जरुरत थी 
इश्क़ में आज फरमा बहुत रहे थे हम 
पर चुपके से शरमा भी बहुत रहे थे हम 


सावन और मुहब्बत दोनों की शुरुआत हो चुकी थी 


उम्र भर साथ चलने की बात हो चुकी थी 
सोचा कही ये ख्वाब तो नहीं 
पर गालो पर सुर्ख गुलाबी मखमली अहसास हो  चुकी थी 

शायद ये निश्छल प्यार था मेरा 
और उसको समझने वाला यार था मेरा 
बारिश  ने भी आज सारी  रात जगा दिया 
और दो प्यार करने वालो की कश्ती को किनारे लगा दिया ....... 

लेखक की स्टोरी मिरर पर प्रकाशित एक कविता -
https://storymirror.com/read/poem/hindi/4kafvoxj/brsaat

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ishq me

इश्क़ में 

ishq me


तड़प ,जूनून ,दर्द ,दिल्लगी
सिर्फ इश्क़ में ही मिलेगी
 गर इश्क़ ना मिला तो तूं
और मिल गया तो दुनिया जलेगी


निकम्मा बनाता इश्क़ नहीं हैइश्क़ करने वाले होते ही निकम्मे है

इश्क़ की छुरियाँ चलती है जब दिल पर
आह तो नहीं निकलती
पर जाने क्या - क्या  निकल जाता  है

एक चेहरे के पीछे भागे हम बहुत है
सारी -  सारी  रात जागे हम बहुत  है
सोये तो पुरे दिन भर थे हम

पर उस बेवफा के लिए रोये बहुत है


इश्क़ करना तो पूरी हिफाजत के साथ
दिल को थोड़ा संभाल के पूरी इनायत के साथ
टूटे हैं दिल बहुत यहाँ
बचे है थोड़े - थोड़ी मिलावट के साथ


इन्हे भी पढ़े - 
इश्क़  

sir jhukau tere dar pe


ए  खुदा तू ही बता 

sir jhukau tere dar pe

सिर झुकाऊँ तेरे दर पे  तू है दयालु - दाता मेरा
जाने क्यों रूठा है  मुझसे

तू परमेश्वर  विधाता मेरा


 क्या खता मेरी हुई है
हुई कौन सी नादानियाँ
तेरा ही सजदा हूँ करता
तेरी ही राह धरता  सदा

है ह्रदय विशाल अम्बर
जिसमे सारा जग भरा
मैं हूँ एक कण के बराबर
हो जाऊं समाहित तुझमे सदा

तूं ही शक्ति तूँ ही भक्ति
हर धर्म तुझसे जुड़ा
हैं पथ अलग - अलग
 पर तूँ ही हर पथ पे खड़ा

हैं अज्ञानी जग सारा ये
बाँट जो तुझको रहा
तूँ ही अल्लाह तूँ ही शम्भू
ईसा जग ने तुझको कहा

तूँ ही थल में तूँ ही नभ में
मैं भला मैं  हूँ कहाँ
तुझसे निकला तुझमे समाया
और भला जाऊँ कहाँ

राख का एक कण हूँ मैं तो
ना अहम् मुझमे भरा
है तेरी लीला मैं जानू
तुझसे ही ये जग चला


चल रहा जिस राह पर जग
उस पर मानव चलते कहाँ
कर प्रकाशित राह सत्य का जिसपे सारा जग चले........



इन्हे भी पढ़े - 
माँ 

likhta hu2

लिखता हूँ -२ 


लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नही आती
चाहे कुछ भी कर लो पर ए जात नही जाती

खाने को रोटी नही ना पहनने को वस्त्र है
महंगाई की मार पड़ी है बचने का ना कोई अस्त्र है
सूखे खेते से भी अब कोई फरियाद नही आती
की लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नही आती

गृहस्थ जीवन पड़े है भारी
जिसमे भरे है सरकार ने अनेको दुश्वारी
कैसे चलाऊँ मैं अपनी गाड़ी
अब तो पूरी तनख्वाह भी काम नही आती
की लिखता हूँ मैं थोड़ा - थोड़ा पर वो बात नही आती

जम्मू मे दंगल हुआ बिहार मे थोड़ा मंगल हुआ
बंगाल की लड़ाई मे, सभा मे अमंगल हुआ
गोरखपुर की हार भी अब कोई सबक नही सीखलाती
जनता की तकलीफे अब कोई चिट्ठी कैसे बतलाती
लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नही आती

डरी हुई नारी है देखो, बच्ची भी अब नही बच पाती   अजब तेरा संसार है विधाता क्या कोई खबर नही आती

राजा को सुध नही जनता की अब
उसे जुमलेबाजी है खूब भाती
था विपक्ष मे तो खूब मुखर था
सत्ता पाते ही हवा बदल जाती
इसीलिये लिखता हूँ मैं थोड़ा - थोड़ा पर वो बात नही आती
कभी सुकून से गुजरे अब वो रात नही आती

तू मुस्लिम है मैं हिन्दू हूँ  , मैं ही राजनीति का केन्द्र बिंदु हूँ

तेरी मेरी इस लड़ाई मे किसी एक की हार है
यही जीत हार उनकी किस्मत है चमकाती
सब समझ समझ की बात हैं मेरी समझ कितना समझाती

इसीलिये लिखता हूँ में थोड़ा थोड़ा पर वो बात नही आती
ईश्वर अल्लाह एक सारे
अलग इन्हे सिर्फ राजनीति बतलाती ..

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uff ye berojgaari

उफ्फ ये बेरोजगारी  - uff ye berojgari  कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमें...