ishq na karna


  इश्क़ ना करना 



यार बात ना  कर इश्क़ की अब
आदत पड़  गई है बेवफाई की अब  


यार दिल में अब कुछ होता नहीं 
जरुरत है सफाई की अब 

रुक सुन के जा आलम - ए - बेवफाई 
बात न करेगा फिर इश्क़ - ए - खुदाई की अब 

हम थे एक मुक्त पक्षी गगन में 
उड़ते थे सारे चमन में 

देखा उड़ते हुए उनको 
भूल गए उड़ना आ गए जमीं  पे 
वे हसने लगी ये  देख के 
शायद ध्यान न रही उनको हमारी ऊंचाई की अब 

हम खुश थे उनकी हंसी देखकर 
शायद तेरा वाला इश्क़ हो चला था हमें 
देखते रहे बेधड़क उन्हें 
अपने जख्मो का ख्याल न रहा 

वे आये करीब हमारे मरहम लेकर 
और मर हम गए घायल होकर नजरो के तीर से 
शायद तेरे वाले इश्क़ में जान गँवा बैठे थे हम 


                                                                                     आगे क्या सुनेगा दास्ताँ बेवफाई की 
                                                                                     जा और जाकर इश्क़ कर 


बेवफाई तो अपने आप हो जाएगी 



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प्यार और सियासत 




कल ही देखा था उसको ....हरी साड़ी पहनकर बजार मे गोलगप्पे खाते हुए ..
अभी पिछले बरस की ही बात है जब वो हमारे पड़ोस मे दो मकान छोड़ मिश्रा जी के घर किरायेदार बनकर आई थी , उसके साथ उसका पूरा कुनबा था जिसके मुखिया उसके पिता जी थे जो की शहर मे दरोगा थे.
परिवार मे मां के अलावा एक छोटी बहन और दो बड़े भाई भी थे , भाइयो मे एक की शादी हो चुकी थी और भाभी की गोद मे एक साल भर की लड़की थी नाम था अर्पिता .
गोलगप्पा खाने के दौरान ही उसने मुझे देख लिया था पर देखकर अनदेखा करना शायद नियती की मजबूरी थी ऐसी मजबूरी जिसे पति कहते है जो की उसके साथ मे ही खड़ा था . गोलगाप्पे का स्वाद जो भी हो पर इस मुलाकात ने उन यादों और उन जख्मो को हरा कर दिया था जो वक़्त ने दिये थे .

नये किरायेदार के बारे मे उत्सुकता तब और बढ जाती है जब परिवार की कोई सदस्या अपनी खूबसूरती की छाप आते ही छोड़ देती है , मुहल्लो के लौंडो के बीच चर्चा का विषय राजनीति से बदलकर अचानक ही प्रेमनीति हो जाती है और जिन्होने आजतक प्रेम का ककहरा भी ना सीखा हो वे अपने ज्ञान का प्रदर्शन ऐसे करते है जैसे प्रेमशास्त्र की रचना उन्ही के द्वारा की गई हो .....उसपर से आजकल के नये लौंडे जिनके सिर् पर चारो तरफ रेगिस्तान नजर आता है और बीच मे कपास की फसल उनकी शुरुआत प्रेमशास्त्र के आखिरी पन्ने से होते हुये सीधे रिज़ल्ट तक पहुंच जाती है


मुझे कभी भी अपने मुहल्ले की इस तरह के समुदाय पसंद नही आए थे , मेरी दिनचर्या सीधा यूनिवर्सिटी से घर और घर से यूनिवर्सिटी बस यहीं तक सीमित थी . बीच मे मित्र आसिफ़ के घर पर जरूर कुछ ज्ञान की बाते हो जाया करती थी .
उसका पति पुलिस विभाग मे ही कांस्टेबल था . तथा उसके पिता जी उसके सीनियर हुआ करते थे . मुहल्ले मे अब बात के अलावा आगे की रणनीति पर विचार किया जाने लगा पहली छोटी सी समस्या उसके बाप के आगे सिर् झुकाने की थी जिससे आगे का पथ सुलभ हो जाता.

पर समस्या यह थी की आखिर बिल्ली के गले मे घंटी बांधेगा कौन . शाम के समय अक्सर ही चर्चा करते करते देर हो जाया करती थी ऐसे ही एक शाम मे पैदल ही आसिफ़ के घर से लौट रहा था तभी रास्ते मे लोगो का झुंड एक आदमी को दौड़ाते हुए चला आ रहा था भीड़ के पास आने पर पता चला की वो कोई पत्रकार था जिसने किसी समुदाय विशेष के खिलाफ अपने अखबार मे कुछ लिख दिया था इससे पहले की भीड़ एक ग़ली के घुमावदार रास्ते मे घूमति मैने उस पत्रकार को इशारे से एक घर के अंदर जाने को कहा . वो घर आसिफ़ का था .गजब का खून सवार था उस भीड़ पर जैसे कानून नाम की वस्तु उनके लिये कोई मायने नही रखती उसमे से कुछ लडको को में जानता था जो की पैसे के लिये कुछ भी करने को तैयार रहते थे , उनका सारे राजनीतिक दलो के साथ उतना बैठना था , खैर भीड़ अपने मंसूबो मे नाकाम रही और उसके हाने के बाद मैने पत्रकार जी से पूरी जानकारी ली , पता चला की उनके लेख मे कुछ ऐसा नही था जिससे तनाव का बीज अंकुरित होता , वे  मेरे साथ ही थाने गये और उन्होने पुलिस को सारी बात बताई वही मेरी मुलाकात शेखर अंकल से हुई .... यही नाम था उसके पिता जी का उनसे मिलने पर पता चला की पुलिस मे होते हुए भी उनके अंदर कितनी सौम्यता थी बस उनका चेहरा ही अमरीश पुरी की तरह था पर दिल अंदर से एकदम मुलायम . यही से उनके घर आने जाने का सिलसिला चालू हो गया जिसने धीरे - धीरे  परिवारिक मित्रता का रूप ले लिया . और यही से उससे पहली मुलाकात हुई ....झुकी नजरे, सरल स्वभाव और गुड़ से भी ज्यादा मीठी बोली जो की सामने वाले को मन्त्र मुग्ध कर देती थी .

उसकी नजरे भी सभा से कुछ वक़्त निकाल कर हमारी नजरो को अपने होने का अहसास करा देती थी . बातों मे पता चला की उसकी गणित बहुत ही कमजोर है और मैं  ठहरा गणित से बीससी बस मिल गया हमको भी मौका अपनी काबिलियत दिखाने का हर रोज शम को बस दिक्कत यही थी की आसिफ़ भाई का साथ जरूर छूट गया . इधर आसिफ़ भाई का साथ छूटा उधर हर शाम नये नये पकवानो से रिश्ता जुड़ गया , उसकी भाभी पाककला मे निपुण थी और उन्हे नित नये - नये पकवान बनाने का शौक था हमने भी सोच लिया की दामाद बनेंगे तो इसी घर के.

इधर आती रुझानो ने संकेत देना शुरु कर दिया की अब सही वक़्त आ गया है अपने अंदर के ज़ज्बातो को बाहर निकलने का बस हमने भी एक अच्छा सा मुहूरत देखकर बोल ही दिया जवाब तो पहले से नही मालूम था पर जो कुछ आया उसकी हमने कल्पना भी नही की थी पता चला की उसने दो दिन पहले ही हमारी पुस्तक मे एक पन्ने पर अपना इजहार कर दिया था यहा भी हम पीछे रह गये .

यूनिवर्सिटी मे अभी कक्षाये प्रारंभ ही हुई थी की बाहर शोरगुल मचने लगा पता चला की शहर मे दंगे शुरु हो चुके है . सब अपनी अपनी जान बचाने को भागने लगे . मैं  भी अपने घर तेजी से साइकल चलता हुआ निकल पड़ा रास्ते का नजारा वर्णन करने लायक नही था घर पहुचने से कुछ दूर पहले ही दो लोग मेरी तरफ तलवार लेकर आते हुए दिखाई दिये अचानक उनमे से एक के कदम दौड़ते दौड़ते रुक गये .... आसिफ़ मियां थे वो ............

घर पर सबकी निगाहे मुझे ही ढूंढ रही थी , मुहल्ले के लौंडो ने अपनी अलग टीम बना ली थी जो की 24 घंटे पहरा देते थे . कुछ सियासतदारो ने अपने स्वार्थ के लिये पूरा शहर ही जला दिया और हम सोचते रहे की ये धुंआ सा क्यो है . अगले दिन मुहल्ले मे बड़ी शान्ती थी कुछ के चेहरे बता रहे थे की ए बिजली अपने आस पास ही गिरि है . चढ़ा दी थी बलि सियासत के हकुमराणो ने कुछ ईमानदार पुलिसवालो और निर्दोष इंसानो की .
बस वो आखिरी सुबह थी उसको देखे हुए कुछ अरमान थे जल गये चिता मे कुछ अरमान थे चिता मे जलने वाले के उन्हे पूरा करने के लिये .........ना हमे कुछ मिला ना तुम्हे कुछ मिला फिर भी ना जाने आपस मे कितना है गिला ...सत्ता के जादूगर है वो इस जादू ने जाने कितनो को लीला ....

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desh ko kranti ki jarurat



देश को क्रांति की जरुरत



देश के मौजूदा हालात कुछ ऐसे हो चुके है जहाँ लोग अपने ही पैरो पर कुल्हाड़ी मारने को तैयार है।  यहाँ कोई  देशवासी से ज्यादा भाजपाई , कांग्रेसी  और अन्य पार्टियों के नाम से अपनी पहचान पहले बना चुका है , बहुत ही कम लोग ऐसे होंगे जो धैर्य पूर्वक सत्य को ग्रहण कर सके ,लोग सिर्फ दूसरी पार्टियों से खुद की पार्टी का तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्यादा जोर देने लगे है ,अगर पिछली सरकार ने एक लाख करोड़ का घोटाला किया है तो इनका तर्क रहता है की हमारी सरकार  में मात्र चंद करोड़ का घोटाला ही हुआ है ऐसे ही यदि कोई बड़ी दुर्घटना, दुराचार तथा जघन्य अपराध  हो जाती या उनका ग्राफ बढ़ जाता  है तो उसके तार भी ऐसे ही जोड़े जाते है  , की पिछली सरकर में सिर्फ इतनी हत्याएं हुई और हमारी सरकार में उससे कुछ कम हुई।
desh ko kranti ki jarurat

कुछ तो हमको भी आदत डाल  दी गई है की सरकार को थोड़ा वक़्त देना चाहिए। इसी आदत को जब तक हम समझते है तब तक ट्रेन छूट चुकी होती है।  एक शख्स ईमानदारी से बता सके की अमुक सरकार सिर्फ जनता की भलाई के लिए सत्ता प्राप्त करना चाहती है।  इस हमाम में सब नंगे हो चुके है सारे एक ही थाली के चट्टे  बट्टे है। आम आदमी कल भी त्रस्त  था और आज भी त्रस्त  है , सीमा पर आज भी जवान मर रहे है  और कल भी, कई खबरे तो आप और हम तक न पहुँच पाती  है और न पहुँचने दिया जाता है। 


नेता एक ऐसी बिरादरी है जो कभी भी आपस में गंभीर होकर नहीं लड़ते उनकी लड़ाई कभी भी वास्तविक नहीं होती है। सिर्फ आम जनता को दिखाने के लिए होती है लड़ते तो हम है उनके अनुयायी बनकर उनकी ताकत उनके समर्थको से होती है। प्रत्येक नेता अपनी अपनी जरूरतों के अनुसार समर्थक वर्ग खड़ा करता है , आजकल तो इस खेल में मीडिया का भी समर्थन हासिल है जो की स्वार्थ और सत्ता में हिस्सेदारी पाने हेतु उन्हें प्रमोट करता है। बदलते समय के साथ जनता को गुमराह किये जाने वाले शब्द रूपी बाणो में भी बदलाव आया है जिनमे कही भी विकास की बाते न होकर जातीय वैमनस्य , धार्मिक उन्माद रूपी  जहर से बुझे तीर होते है। 


देश इस समय एक बार फिर अपनी दिशा खोते दिख रहा है अगर इसमें किसी को विकास दिखता हो तो उसकी संतुष्टि के लिए मैं कुछ नहीं कर सकता।  आज कोई भी पार्टी अपनी कथनी के अनुरूप करनी करने में सक्षम नहीं है।  आज जरुरत इस देश की मूल व्यवस्था बदलने की है जिसके लिए आवश्यक है की इस देश का युवा वर्ग नए क्रांतिकारी विचारो को जन्म दे और उनपर अमल करे। भ्रष्टाचार  रूपी व्यवहार के हम इतने आदि हो चुके है की प्रत्येक सरकारों में इसको ख़त्म करने की बात की जाती है परन्तु सरकार ही इसके दलदल में फंसती दिखती है। 

मंत्री , विधायक , सांसद  जैसे माननीयो का मूल उद्देश्य जनसेवा न होकर धनसेवा बन चुका है , अधिकारी वर्ग अपनी राजनीतिक पहुंच से मलाईदार पदों पर काबिज है और जो थोड़े बहुत ईमानदार है वे राजनीतिक प्रताड़ना का शिकार है। समाचारो में दिखाई जाने वाली खबरे पूरी तरह से नाप तौल कर दिखाई जाती है , पूर्व निर्धारित डिबेट होते है ,चंद  उद्योगपतियों के हाथो में अधिकाँश संसाधनों की हिस्सेदारी है ,
 आखिर क्रांति क्यों ना हो। ........   


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mandiro me bhagwan nahi milte ab


मंदिरो में भगवान् नहीं मिलते अब (कविता )


शंकर जी बसे  हिमालय  पर 
ना जाने दूध किसे पिलाते हो 
बछड़ा भी ना पी पाया जिसे 
उसे नाली  में क्यों बहाते हो 

जो जग के दाता  राम है 

अयोध्या जिनका धाम है 
उस धाम में क्यों आग लगाते हो 
अपनी सियासत चमकाते हो 

ब्रम्हा जी ने लिख दिया 
जनता ने तुमको भीख दिया 
उसपे इतना इतराते हो 
जाने कौन सी बेशर्मी के साबुन से नहाते हो 

है लिखा किसी संत ने, ना अपना आपा  खोए 
राजा हो या रंक सभी का अंत एक सा होए

बोले कन्हैया, सुन मेरी मइया 

देख धरा है मुझमे समाया देख  तीनो लोक है मेरे अंदर 
फिर भी अकड़े  क्यों सर्कस का बन्दर 

मैं ना मंदिर में मैं ना  मस्जिद में 
मुझको न ढूंढो तुम अपनी जिद में 
मैं तो हूँ हर उस दिल में समाया 
जिसमे ना  कोई मोह ना  कोईं माया 
जिसके दिल में हर प्राणी का  मर्म समाया । ........ 


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जलता शहर 






bewfai


बेवफाई 


मेंरे दिल के पन्नो पे तस्वीर तेरी है
जो मिट गई हथेली से
वो लकीर मेरी है

कभी तंग करते थे तुम हमको
कभी तंग करते थे हम तुमको
अब तंग करते हो तुम हमको
हम कह ना सके कुछ तुमको

वो फूल तेरे बगिया का
घर मेरे जो रखा है
उस फूल से मेरे घर का
हर कोना  महका है

पर मेरे दिल के कोने में 
तेरी ही खुशबू  है
उस रात की यादें है 
सारी मुलाकाते है 

वफ़ा मेरी तुझको 
एक बार बुलाती है 
तेरी बेवफाई के 
किस्से सुनाती है 

की होकर बेवफा यूँ 
दिल जो मेरा तोड़ा  है 
बर्बादी की राह पर मुझको ला छोड़ा है 

तूं बेवफा है तो क्या हुआ 
यूँ खंजर प्यार का चला दिया 
और प्यार करने वालो का नाम 
सारे जग में हंसा दिया। 




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जाने तू या जाने ना 




man ki baat

मन  की बात 


हम क्या बोलेंगे साहब आप ही इतना कुछ सुना देते है की मन खुश हो जाता है , आपके पास तो बड़का बड़का माइक है ,लाखो लोगो की भीड़ है हम तो उस भीड़ का हिस्सा मात्र है ,


आपने कह दिया की आप अच्छे दिन लाएंगे हम इसी उम्मीद पर आपको लेते आये। अभी कल की ही बात है हमारी घरवाली हमसे बोली अब तो छोटका लोगो पे तुम्हारी सरकार ज्यादा ध्यान देगी तुमको अपने दुकान के लिए भी आसानी से लोन मिल जायेगा , अब हम उसको कैसे समझाते की सरकार तो हर जगह नहीं जा सकते , कही बैंक का मैनेजर जालिम निकला तो सरकार उसको कैसे सबक सीखाएंगे और हम गरीब मनई अपनी फ़रियाद लेकर कहां - कहाँ तक दौड़ेंगे हाँ सरकार बोले है तो अच्छे दिन जरूर आएंगे सरकार के मंत्री तो है वो तो सरकार के आदेश पर काम करेंगे और उनके आदेश पर बैंक से लेकर हर विभाग के अधिकारी भी ढंग से काम करना शुरू कर देंगे आखिर कुछ तो डर होगा हमारे नए सरकार का।

पहले के सरकार तो कुछ बोलते ही नहीं थे और अबकी सरकार खूब बोलते है अरे रेडियो  पर भी तो अपने मन की बात करते है पर कभी हमारे मन की बात क्यों नहीं सुनते हम भी क्या क्या सोचते है सरकार के पास इतना टाइम कहा होता है की अपने देश  के मनई लोगो की बात सुन सके वो तो विदेश में जाकर ऊ ट्रम्प  के साथ  देश को आगे बढ़ाने की चर्चा  में ही बिजी रहते है , लेकिन देश का क्या उसके लिए सरकार जरूर कुछ आदेश देकर जाते होंगे । अब पिछले ही साल सरकार से शिकायत करनी थी  की हमारे इलाके के सांसद और विधायक जी कभी दर्शन ही नहीं देते , वो भी तो सरकार की ही पार्टी के है उनके अंदर भी तो सरकार का खौफ होना ही चाहिए , हमारे सरकार तो  इतने अच्छे है 18 घंटा तक तो खाली काम करते है और उनकी पार्टी के लोगो का इ हाल है , इहे लोग सरकार को बदनाम करते है।

अभी पिछले ही महीने पढ़ा था एगो भगोड़ा बैंक का पैसा लेकर विदेश भाग गया और लोग हमारे सरकार को सुना रहे है , अब हम क्या कहे मतलब सरकार थोड़ी ना जानते है कौन आदमी ईमानदार है और कौन बेईमान अगर इतना ही पता होता तो हमारे सरकार एक -  एक को जेल नहीं भिजवा दिए होते , आप मत सोचियेगा सरकार ये बैंक वाले भी कम धूर्त नहीं होते अभी छह महीने से हमारी ही अर्जी दबाकर रखे हुए है चार महीने में तो आधार से लिंक किये है कह रहे थे सब की सरकार की योजना है कोई भी आदमी अब फर्जी काम नहीं करवा पायेगा बताइये जैसे हम समझ ही नहीं रहे है की सब कैसे हमको चुतिया बना रहे है अगर ऐसा होता तो उ नीरव मोदी कैसे उल्लू बना देता।

man ki baat

ऐसे ही सब हमको नोटबंदी में उल्लू बनाये थे कह रहे थे सरकार नोट बॅंद कर दी है हम भी उनसे कहे हमरी सरकार जनता की सरकार है अगर नोटबंद की होगी तो जरूर पहले उतना नोटछाप ली होगी इतनी बुरबक नहीं है सब नोट तुम्ही लोग ब्लैक कर दिए होंगे देखे नहीं कितना करोड़ लेके लोग पकड़ा रहे है।  बात तो बहुत है सरकार पर पर उ  खाद की दुकान पर भी जाना है आधार से लिंक करवाने नहीं तो सब खाद ही नहीं देंगे।अब आप से क्या छुपाये सरकार  1000  रुपया के खाद के लिए आज हम महाजन के यहाँ से 2000 उधार लेकर आये है काहे से लोग बोल रहे थे बाकी का एक हजार वापस हमरे खाता में आएगा  तब हम सूद सहित महाजन को लौटा देंगे इहे गरीबी मिटाये खातिर तो हम आपको वोट दिए रहे की   एक थो आप ही है जो हमरा अच्छा दिन जरूर लाएंगे ऊ टीबी  पर आपका अच्छा दिन वाला प्रचार भी देखे रहे जिसमे किसान लोग आपस में बतिया रहे थे की अच्छा दिन आने वाला है , आप भले ही भूल गए होंगे सरकार लेकिन हमको आज भी ऊ प्रचार याद है आप निश्चिंत होकर अपना काम करते रहिये सरकार ऐसे ही हम आगे भी आपको अपनी मन की बात बताते रहेंगे आखिर आप सच्ची में कहा मिलने वाले।


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thelua and mathelua

ठेलुआ और मथेलुआ 


ठेलुआ और मथेलुआ अपने गाँव के सबसे बड़े लाल बुझक्कड़ हुआ करते थे , लाल बुझक्कड़ अत्यंत ही प्राचीन भाषा का शब्द है चूंकि दोनो की योग्यता के अनुसार इससे उचित शब्द की खोज नही की जा सकती थी इसलिये इसका प्रयोग ही यथोचित समझा गया . इस शब्द का अर्थ अलग अलग लोग अपने अपने अनुसार लगाते रहते है .

thelua and matheluaठेलुआ और मथेलुआ को अक्सर एक दूसरे के साथ बंदर और उसकी पूंछ की तरह देखा जाता था . बंदर की तरह ही दोनो को गुलाटियां लगाने की आदत थी और इसी आदत की वजह से बेचारे अपने हाथ पेर तुड़वा बैठते . गाँव मे होने वाले नुक्कड नाटको मे भी दोनो को बानर या रीक्ष का ही किरदार दिया जाता था जिसे दोनो बखूबी निभाते थे .कभी – कभी तो दोनो की हरकते देखकर ऐसा लगता की जैसे असली मे कोई बानर या रीक्ष आ गया है . लोग उनके अभिनय का भरपूर आनंद लेते थे और ठहाके मारकर हंसते – हंसते लोटपोट हो जाया करते थे . दोनो के घरवाले उनकी आदतो से परेशान होकर नित्य ही उनको ताने दिया करते थे जो की उनके लिये दिनचर्या का नियमित हिस्सा था .

एक बार की बात है उनके गाँव मे एक बहुत ही पहुंचे हुए महात्मा का आगमन होता है , सारे ग्रामवासी उनकी सेवा सत्कार मे जुट जाते है , ठेलुआ और मथेलुआ की जोड़ी को भी महात्मा की सेवा मे लगा दिया जाता है .
ठेलुआ के आगे के दो दांत बढते हुए उसके होंठो को पार कर गये थे कई बार उसके दांतो पर वज्रपात की संभावना हुई लेकिन खुशकिस्मती से कोई संभावना आगे नही बढ सकी .शक्ल से काले ठेलुआ के आगे के दोनो दांत ही अंधेरे मे उसकी राष्‍ट्रीय पहचान बने हुए थे . वही मथेलुआ शरीर से हट्टा – कट्टा तो था पर था एक नंबर का डरपोक . स्कूल के दर पर दोनो केवल दो ही बार गये थे. एक बार स्कूल मे लगे आम के पेड़ से आम चुराने और दूसरी बार स्कूल मे जांच आने पर मास्टर साहब द्वारा बच्चो की गिनती मे जिसमे दोनो को पुरस्कार स्वरूप किस्मीबार नामक टॉफी मिली थी .
हाँ तो महात्मा जी द्वारा रोज शाम को गाँव के मैदान मे प्रवचन का आयोजन होता था जिसमे अन्य गाँव के लोग भी उनकी मधुर वाणी सुनकर चले आते थे , पास के ही गाँव के एक पुराने जमींदार हरखू सिंह बहुत ही राजा आदमी थे उन्होने ही महात्मा जी के प्रवचन मे होने वाले खर्चे जिसमे प्रसाद से लेकर तम्बू तक शामिल था स्वयं वहन किया करते थे .

एक दिन सांय काल के समय महात्मा जी प्रवचन दे रहे थे तभी तेज गति से आंधी और तूफान नामक दो डाकू आ धमके , दोनो ही बड़े जालिम किस्म के बंदे थे वो जानते थे की प्रवचन सुनने भारी संख्या मे लोग उपस्थित होंगे ,औरते तो ऐसे स्थल पर जाती ही अपने गहनो का प्रदर्शन करने प्रवचन मे उनका ध्यान कम अपनी बहुओं और सास की चुगली मे ज्यादा रहता है , किसकी सास ज्यादा अत्याचारी है और किसकी बहू ने उनके लायक पुत्र को अपने वश मे कर रखा है चर्चा का प्रमुख विषय रहता था .


आंधी तो कुछ हद तक मुलायम था पर तूफान किसी को नही बख्शता था . दोनो ही घोडो पर सवार थे, औरते तो उन्हे देखते ही रोने लगी तथा जिन गहनो को उन्हे दिखाने मे दिलचस्पी थी उन्ही को अब छुपाने की जगहे ढूंढी जाने लगी . मर्द जो अब तक महात्मा जी के प्रवचनो मे लीन कलियुगी संसार और मोहमाया से विरक्ति की बाते कर रहे थे अचानक से ही उन्हे अपने तिजोरी मे रखे धन की चिंता सताने लगी . ठेलुआ और मथेलुआ प्रवचन सुनते सुनते कब गहरी नीद्रा मे लीन  हो गये उन्हे कुछ पता ही नही चला ,महात्मा जी लोगो से धैर्य रखने की अपील कर रहे थे . आंधी और तूफान ने मंडप मे प्रवेश करते ही अपने बाहुबल दिखाना शुरु कर दिया उन्होने हवा मे कुछ गोलिया दागते हुए सभा मे भय का माहौल बना दिया भयभीत औरते स्वतः ही अपने अपने गहने उनके चरणो मे अर्पित करते जा रही थी जिससे उनके प्राण उनके पास बचे रहे .

बंदूक की आवाज सुनकर ठेलुआ और मथेलुआ दोनो की नींद खुल जाती है , दोनो अपने सामने डाकुओ को पाकर भयभीत हो जाते है तथा भय से अचानक ही तंबू की रस्सी उनके हाथ से खींच जाती है और आंधी और तूफान के उपर एक बड़ा हिस्सा आ गिरता है जिससे दोनो ही मूर्च्छित हो जाते है . ग्रामवासियो द्वारा तत्काल ही पुलिस को सूचित किया जाता है . अगले ही दिन से अखबारो मे ठेलुआ और मथेलुआ छा जाते है , सरकार से डाकुओ के सिर् पर रखा इनाम भी उन्हे प्राप्त होता है और तो और महात्मा जी उनको अपना शिष्य बना लेते है . गाँव की औरते जो अब तक उनकी बुराई करते नही थकती थी अपने – अपने गहने पाकर ठेलुआ – और मथेलुआ के लम्बी उम्र की कामना करती है . दोनो के घर वाले भी अब दोनो को नित्य नये पकवान बनाकर खिलाने लगते है . वैसे इन दोनो के स्वभाव मे कोई परिवर्तन अब भी नही आया था .आज भी दोनो पूर्व की भांति ही ज्ञानी थे. राजा और रानियो के साथ ही दोनो के दिन की शुरुआत होती थी ये अलग बात है राजा और रानी कभी चिडि के होते थे और कभी हुकुम के पर इनके आज तक नही हुए . शायद किसी ने ठीक ही कहा है ” अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान “

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 मोदी की घटती लोकप्रियता 


कर्नाटका चुनाव के बाद सरकार  बनाने के लिए होने वाली जी तोड़ कोशिश करने के बाद भी बीजेपी सदन में अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाई जिस तोड़ - फोड़ की राजनीति के लिए वह जानी जाती है उसमे कही न कही फेल हो गई।  हालांकि बीजेपी ने राज्य में सबसे ज्यादा सीट जितने में कामयाबी जरूर हासिल की थी  परन्तु स्पष्ट बहुमत से बस चंद कदम दूर रह गई।

अगर स्पष्ट शब्दों में कहा जाये तो राज्यों में पूर्ण बहुमत ना मिलना कहीं ना कहीं मोदी सरकार की घटती लोकप्रियता का संकेत देती है , कर्नाटका में तो सत्ता विरोधी रुझान भी थे तभी तो जेडीएस भी सीटे निकालने में कामयाब रही। अगर कहा जाये की मोदी विरोधी रुझान इधर कुछ महीनो से बनना शुरू हुए है तो ज्यादा उचित होगा , इसको समझने के  लिए हमको कुछ तथ्यों पर बेबाक रूप से चर्चा करनी होगी। 

कांग्रेस अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के बाद से लगातार 10 सालो से सत्ता में बनी हुई थी , जाहिर है सत्ता विरोधी रुझान होगा ही दूसरी बात कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के लिए कार्य तो कुछ नहीं क्या परन्तु उनको इस झूठे दिलासे में अवश्य रखा की उनका हित कांग्रेस पार्टी तक ही है , प्रदेश स्तर पर यही कार्य सपा और बसपा ने भी किया जिसमे बाजी मारी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी ने।
विकास से कही दूर उत्तर प्रदेश जैसो राज्यों में भी जनता ने क्रांतिकारी तरीके से वोट किया। कारण मुजफ्फरपुर जैसे दंगो ने ध्रुवीकरण की ऐसी राजनीतिक शुरुआत की जो आज भी थमने का नाम नहीं ले रही। वस्तुए और विचार जब नए होते है तब वे लोगो को ज्यादा प्रभावित करते है लोग जबतक उनकी असलियत समझते है तबतक वह उनके हाथ से निकल चुका होता है। 

भारत की राजनीति में भी यही हुआ एक ओर कांग्रेस पार्टी में नित नए घोटालो की पोटली खुलती जाती थी और जनता का आक्रोश अपने परवान चढ़ते जाता दूसरी ओर ध्रुवीकरण की नकारात्मक राजनीति समाज को बांटते हुए अपने - अपने पार्टियों के वोट बैंक मजबूत करती। बीजेपी ऐसे समय में खुल कर सामने आती है और अपने आपको सच्चा हिंदूवादी पार्टी घोषित करती है क्योंकि उसे पता था अल्पसंख्यक वोट उसे कभी मिलने वाला नहीं , वह गोरक्षा , भगवा हिंदुत्ववादी मुद्दों पर अपनी राय बेहिचक रखती है जनता के लिए यह एक तरह से नई  राजनीति थी क्योंकि अभी तक सारी पार्टियों जिन मुद्दों पर चर्चा मात्र से डरती थी  बीजेपी उन मुद्दों पर काम की और खुलकर बातें करने लगी
जैसे धारा 370 , पाकिस्तान और चीन के खिलाफ जोशीले भाषण, हिंदुत्व , हर साल दो करोड़ युवाओ को रोजगार ,राष्ट्रभक्ति ,सरहद पर एक के बदले दस सिर काटकर लाना ,अल्पसंख्यकों के खिलाफ बातें, किसानो की आय दुगनी करने के सपने , बुलेट ट्रेन , स्मार्ट सिटी , स्विस बैंक, काला धन , गरीबी हटाओ , पेट्रोल के दाम ,स्वच्छ गंगा मिशन ऐसे ही बातों की बड़ी लम्बी चौड़ी अनुक्रमणिका  है. और इसके साथ ही बीजेपी ने कुछ नारे भी प्रचलित करवाए जैसे सबका साथ सबका विकास , अबकी बार मोदी सरकार , हर - हर मोदी घर - घर मोदी, प्रधान सेवक  इत्यादि। 

शुरूआती दौर में जनता ने सरकार बनवाने से लेकर सरकार बनने के बाद लिए गए हर निर्णयों में मोदी सरकार का साथ दिया चाहे वो नोटबंदी हो या जीएसटी  या फिर एफडीआइ जनता को लगा की सरकार को कुछ समय अवश्य देना चाहिए परन्तु समय बीतने के साथ ही सम्पूर्ण कथानक की विषयवस्तु उसे समझ में आने लगी उसे समझ में आने   लगा की असली परेशानी उसके मुस्लिम भाइयो से बैर नहीं बल्कि इस बैर को आगामी चुनावों में एक बार फिर मुद्दा बनाने वालो से है। इन चार सालो में सरकार की यदि कोई उपलब्धि रही है तो कांग्रेस राज में बनने वाले आधार कार्ड को बैंक से लेकर सिम कार्ड , पैन कार्ड , गैस पासबुक , ड्राइविंग लाइसेंस , इत्यादि से लिंक करने की रही है। कुछ कार्य सरकार ने बैंकिंग सेक्टर में भी किये है जैसे कितनी बार पैसा निकालना है कितनी बार जमा करना है , खाते में निर्धारित राशि से कम होने पर लगने वाला अर्थ दंड कितना होना चाहिए इत्यादि। 

मोदी सरकार में गरीब और गरीब होते गया और अमीर और अमीर होते गया अब इसके बारे में विस्तार से कभी फिर चर्चा होगी की कैसे। परन्तु यहाँ यह समझना आवश्यक है की सरकार का कोई भी वास्तविक एजेंडा आजतक लोगो के समझ में नहीं आया भले ही सरकार ने इसपर प्रचार स्वरुप कई हजार करोड़ क्यों न खर्च कर दिए।
लेकिन एक बात अब धीरे धीरे लोगो के समझ में आने लगी है की सरकार का भी एजेंडा विकासवादी नहीं है वरन विकास सरकार द्वारा नियंत्रित और स्वार्थी मीडिया तक ही सीमित है। बाकि मोदी सरकार ने अपने पूर्व कथित वादों में कितनो को पूरा किया और जिन राज्यों में उसकी सरकार है क्या आने वाले दिनों में वो भी पंजाब की तरह ही हाथ से निकल जायेंगे। देखना दिलचस्प होगा क्योंकि अभी तक जिन राज्यों में चुनाव हुए है वहा  पूर्व में अन्य सरकारे  थी।  वैसे उप चुनावों में होने वाली हार ख़ास तौर पर गोरखपुर और फूलपुर  इशारा तो मोदी क्षरण का ही करते है।  



  


tu sabr to kar



तू सब्र तो कर 



ये रात भी कट जाएगी 
ये गम भी मिट जाएगा  
ये धुंध भी छट जाएगी 
ये अँधेरा भी हट  जायेगा 
                           तू सब्र तो कर 

ये दिल भी लग जायेगा 
ये धड़कने भी चल जाएँगी 
ये मौसम भी बदल जायेगा 
ये मन भी मुस्कुराएगा 
                         तू सब्र तो कर 

ये दुनिया भी देखेगी 
ये लोग भी देखेंगे 
तेरे अपने भी देखेंगे 
तेरे दुश्मन भी देखेंगे 
                               तू सब्र तो कर 

तेरे रब का साथ रहेगा 
किसी अपने का हाथ रहेगा 
ये किस्मत भी तेरी रहेगी 
ये तेरा खुद का विश्वास रहेगा 
                                     तू सब्र तो कर 


ऐसा ही एक दिन मेरा भी आएगा 

ऐसा ही एक दिन तेरा भी आएगा 

                              
                                            तू सब्र तो कर 

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कर्नाटक चुनाव

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आज की बात कर्नाटक के साथ शुरु करते है जहां सारे राजनीतिक दल अटक से गये है . जनता का विश्वास अगर सबसे ज्यादा चुनावो के बाद अगर किसी पर है तो वो है अमित शाह . हर तरह की राजनीति मे भाजपा के लिये क़िला फतह करके लाने वाले अमित शाह के दिमाग मे कर्नाटक चुनावो के बाद सरकार बनाने के लिये क्या चल रहा है अभी कोई नही जानता लेकिन सब इतना जरूर जानते है की इस खेल का उनसे बड़ा महारथी  कोई नही है . फिलहाल एक बात जो स्पष्ट है वो ये है की कर्नाटक चुनाव मे जनता ने किसी एक पार्टी को निस्चित तौर पर बहुमत नही दिया है भले ही अधूरे बहुमत मे कोई पार्टी सबसे ज्यादा सीटे लाई हो .


कहते है की प्यार और जंग मे सब जायज है शायद भाजपा ने अपने लिये ही इस फार्मूले का जन्म माना है . मौजूदा राजनीतिक हालत मे कांग्रेस और जेडीएस के सरकार बनाने के प्रबल आसर है . भाजपा को इसके लिये विपक्षी कुनबे मे तोड़फोड़ की आवश्यकता पड़ेगी इसके लिये विपक्षी खेमा सतर्क है की उसके सिपाही कही ज्यादा वेतन के लालच मे अपनी निष्ठा का त्याग करते हुए भाजपा के साथ ना चले जाये .

खैर देखना दिलचस्प होगा की कर्नाटक मे किसकी सरकार बनती है . क्योंकि गोआ की हार कांग्रेस अभी भूली नही है और इस बार मदर्स डे के अवसर पर कमान भी सोनिया गाँधी ने संभाल ली है .

वैसे   भाजपा की प्रत्येक जीत के पीछे राहुल गाँधी का हाथ जरूर है क्योंकि भाजपा का नारा ही यही है आप का हाथ हमारा विकास . आज बहुत सी बातें या बातों का तरीका कई लोगो को नागवार लग सकता है लेकिन यह इतना भी नही जितना चुनावो के दौरान एक दूसरे के लिये प्रयुक्त होनी वाली मधुर भाषा .
वैसे इन दिनो एक कहावत चलन मे ज्यादा ही है , चीते की चाल , बाज की नजर और अमित भई शाह पर शक नही करते .

indian media


भारतीय मीडिया 


भारतीय राजनीति के मौजूदा हालत में विकास कही पीछे छुटते जा रहा है , मीडिया भी जनता के मुलभुत मुद्दों सड़क ,पानी , बिजली, स्वास्थ , शिक्षा और कानून व्यवस्था की जमीनी हकीकत न दिखते हुए उन्ही खबरों को दिखाने में लगी  जिससे उसके चैनल की टीआरपी बढ़ सके क्या आने वाले दिनों में मीडिया द्वारा दिखाई गई खबरे खास तौर पर राजनीतिक मुद्दों पर आधारित कार्यक्रम अपनी प्रासंगगिकता खो बैठेंगे और मीडिया स्वार्थ सिद्धि हेतु  सम्पूर्ण रूप से राजनीतिक प्रभाव में आ जायेगा .

indian media

मीडिया एक राजनीतिक मुहीम का हिस्सा हो गई है , मैंने न्यूज़ चैनलों पर होने वाली डिबेट की प्रासंगिकता के विषय में विस्तार से चर्चा की थी और बतलाया था की ऐसे डिबेट पूर्व प्रायोजित होते है।  इनमे पूर्व में सब निर्धारित रहता है , वैसे देखा जाये तो धीरे - धीरे जनता भी इस बात को समझने लगी है। मैंने ऊपर की पांच  लाइने एक चैनल से पूछी थी जवाब अभी तक मिला नहीं। 


भारतीय मीडिया आज विश्व मंच पर अपनी पहचान राजनीतिक चाटुकारिता के रूप में बनाती जा रही है। दिल्ली और नोएडा जैसे शहरो में प्लॉट आवंटन खुद के लिए अन्य सरकारी सुविधाएं और राजनीतिक सौदेबाजी मीडिया की प्रमुख पहचान है।  निचले स्तर पर भी पत्रकारिता मात्र थानों से लेकर विभिन्न सरकारी विभागों में दलाली का साधन बनकर रह गई है। ऐसे में निष्पक्ष पत्रकारिता कहाँ  रह जाती है जो थोड़े बहुत मीडिया कर्मी अपनी अंतरात्मा की आवाज को दबा नहीं पाते उनको राजनीतिक द्धेष का शिकार होना पड़ता है तथा  सरकारी तंत्र द्वारा उन्हें अनेको माध्यम से प्रताड़ित किया जाता है। 

बाकि अक्सर चैनलों पर छाये रहने वाले पत्रकारों की अगर संपत्ति की जाँच हो जाये तो सारी हकीकत जनता के सामने आ जाएगी परन्तु ऐसा कभी संभव नहीं। यह एक बहुत आवश्यक कदम है की मीडिया से जुड़े उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों की संपत्ति की निष्पक्ष रूप से जांच की जाये क्योंकि लोकतंत्र में कोई भी संविधान और जनता  से बढ़कर नहीं होता। 


लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया आज बड़े बड़े उद्योग समूहों द्वारा संचालित किया जा रहा है। ऐसे में सरकार पर दबाव बनाने में और सरकार को खुश करने में मीडिया का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। 

कई खबरे तो ऐसी है जो सोशल मीडिया पर बहुतायत में प्रसारित होने पर भी मीडिया में नहीं दिखाया जाता। 
सोशल मीडिया को भी आजकल नियंत्रित करने के लिए विभिन्न राजनीतिक समूह प्रयासरत है। इस कार्य में इनके द्वारा संचालित आईटी सेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। 

वैसे मीडिया की हकीकत अब जनता भी बखूबी समझने लगी है , अगर ऐसे ही चलता रहा तो चैनलों पर दिखाए जाने वाले सास - बहु के कार्यक्रम और समाचार एक ही श्रेणी में आ जायेंगे जिनमे सिवा नौटंकी के और खबरों को तोड़ मरोड़ के दिखने के सिवा कुछ और नहीं होता। 


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त्रिशा और विजय भोजन समाप्त करने के पश्चात होटल के बगीचे में घूमने निकलते है।  बहुत ही सुन्दर नजारा था वो रंग बिरंगे फव्वारे , करीने से लगे अनेको सुन्दर पुष्प वाले पौधे , मखमली घास और चांदनी रात में हलके कोहरे की बरसात मन मोहने के लिए पर्याप्त थी ।


 त्रिशा  - पता है विजय जी आज से ठीक ३० साल पहले मां और पापा की भी मुलाकात भी इसी कोल्हापुर में हुई  थी। माँ यहाँ अपनी छुट्टियां बिताने आई थी और पापा दादा जी के साथ फैक्ट्री के काम से।
यही पर इसी होटल में माँ ठहरी हुई थी और पापा भी।

विजय - एक बात कहे त्रिशा जी आपकी माँ बहुत ही सुन्दर रही होंगी।
त्रिशा - हाँ पर आपको कैसे पता।
विजय (मुस्कुराकर) - क्योंकि आपके पिता जी को देखकर लगता है की आप भी अपनी माँ पर ही गई होंगी।
त्रिशा भी (मुस्कुराते हुए ) - तो इसे मैं क्या समझू अपनी तारीफ या पिता जी की बुराई।
विजय (झेपते हुए ) - नहीं मेरा कहने का  मतलब वो नहीं था....
त्रिशा बीच में ही बात काटते हुए - अच्छा तो क्या मतलब था आपका।

विजय बात को सँभालते हुए  - जी आपके पिता जी का ह्रदय तो बहुत ही विशाल है उनके विषय में कुछ भी अनुचित कैसे कह सकता हूँ , और आप तो साक्षात् देवी है।

त्रिशा - चलिए कोई बात नहीं .

चांदनी रात थी उस पर था तेरे जुल्फों का घना अँधेरा 

फिसलते कैसे नहीं हम तेरे प्यार में 
जब सामने हो दुनिया का सबसे खूबसूरत चेहरा 


दोनों देर रात एक दूसरे से बातें करते हुए होटल के कई चक्कर लगा लेते है , इन्ही बातों के सिलसिले आगे चलकर कब मुहब्बत में बदल जाते है दोनों को पता ही नहीं चलता , अभी तो बस शुरुआत थी। ........ 

आगे आगे देखिये इस इश्क में होता है क्या 
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राजनीति  का खेल 



हिन्दू-  मुस्लिम ना कर बंदे
खेल है उनके सारे गन्दे
विकास की आस बस तेरे पास
तेरे खून से बुझेगी अब उनकी प्यास

उनके घर मंदिर मस्जिद
उनके घर मे सारी जात
तेरे लिये जतियो मे जात
तेरे लिये बस लव जेहाद

क्या कांग्रेस और क्या बीजेपी
क्या माया और क्या मुलायम
राज करेंगे सारे नेता
जबतक जाति और धर्म है कायम

तेरी समझ का खेल नही ये
जिसको कहते राजनीति है
मानवता का मेल नही ये
जिसको कहते राजनीति है

बातें करते ये बार - बार
काम ना करते एक भी बार

मुद्दे है इनके सारे बेकार
जनता से कहे ये हर बार

मौका दे हमको बस एक बार
अबकी बार मैं  कहूँ सारे बेकार
है बस अब उसका इंतजार
जो  मिटा दे नफरत करे सबसे प्यार
ना कराये विकास को लम्बा इंतजार



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रेलमपेल 


मेरा अनुरोध है सारे भारतीय राजनेताओं से की वो अपनी यात्रा रेलवे की सामान्य बोगियों मे  करें खास तौर पर माननीय प्रधानमंत्री जी से यदि वी देश से वीआईपी कल्चर खत्म करना चाहते है तो डिब्बो मे आम आदमी की तरह चढकर ही दिखा दे वर्ना तो इनके आने पर आम आदमी को सड़कों के किनारे खड़ा कर दिया जाता है . एक तरफ जहां ओवरलोडिंग मे दोपहिया से लेकर चर पहिया वाहनो का चालान काटा जाता है वही दूसरी तरफ ट्रेनो मे बाहर तक लटकते लोगो को देखकर क्या सरकार रेलवे का चालान काट सकती है , यह इस देश की कैसी नीति है . सामान्य टिकट खिड़कियॉ पर लगी लम्बी लाइन ,आपस मे लड़ते झगड़ते लोग और आम आदमी के समय की बर्बादी वाकई हम निरर्थक होते जा रहे है .


जनरल डिब्बो मे भेड़  बकरी की तरह ठुंसे लोग घंटो विलंब से चलती रेल , शौचालय से आती भीषण दुर्गन्ध यही है भारतीय रेल की पहचान . कहने को तो इस देश मे राजधानी से लेकर शताब्दी तक चलती है परंतु उनमे मजदूर , कामकाजी वर्ग और गरीब जनता तो नही चलती पैसे वालो के लिये तो हवाई जहाज तक है . परंतु आम आदमी के लिये मशक्कत और दुर्व्यवस्था रूपी इस दानव से निजात दिलाने मे कोई भी सरकार सक्षम नही दिखती सिर्फ वादे होते है , दिलासे होते है और मिलती है सिर्फ झूठी उम्मीद के दिलासे .बाकी जिंदगी तो रेलगाड़ी के पहियो की तरह चलती ही रहती है .

jinna karenge des ka vikas

जिन्ना करेंगे देश का विकास -


जिन्ना करेंगे देश का विकास



भारतीय राजनीति आजकल विकासवादी ना होकर इतिहासवादी होते जा रही है . मुझे नही पता था भारतीय राजनेताओ का इतिहास ज्ञान ही उनके चुने जाने की काबिलियत है . वैसे कभी नेहरू कभी पटेल कभी श्यामा प्रसाद तो कभी गाँधी छाये रहते है . आजकल तो भई जिन्ना जी धूम मचा रहे है , एक इतिहासकर होने के नाते में इस विषय पर लम्बी चर्चा कर सकता हूँ . लेकिन असल मे मुद्दा यह  नही है की जिन्ना ने क्या किया मुद्दा तो यह  है की हमारे राजनेता क्या कर रहे है क्या जिन्ना पर चर्चा करके हम विलंब से चलने वाली ट्रेनो को नियत समय पर ला सकते है . क्या जिन्ना देश मे बढ़ती बेरोजगारी की प्रमुख वजह है ,आज जिन्ना कुछ नही है, जिन्ना थे और जो था उसके लिये तो में इतना कहना चाहूंगा की जब हम लाखो करोड़ो की संपत्ती छोड़कर जाने वाले अपने परदादा को नही याद करते तो जिन्ना को लेकर इतने ज्यादा चिंतित क्यो नजर आते है . 

हो सकता है जिन्ना की वजह से पाकिस्तान जैसे नापाक राष्ट्र का निर्माण हुआ हो पर क्या जिन्ना को याद करके हम इस बात का समर्थन नही करते की उन्होने जो किया वो सही था या गलत . अगर लोगो को इतिहास मे जाने का इतना ही शौक है तो कम से कम शुरुआत तो प्राचीन इतिहास मे हड़प्पा सभ्यता से करते की 5000 साल पहले हमारे पास इतनी विकसित और सुव्यवस्थित सभ्यता थी जितनी आज नही है . आज बस तकनीकीयो मे इजाफा हुआ है पर हम सभ्यता तो भूलते जा रहे है . उसके बाद वैदिक सभ्यता मे आते जहा वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा दी गई , जहा स्त्रियो को समान अधिकार दिये गये , जहा स्त्रिया निडर होकर आवगमन करती थी . जहा महान वेदो की रचना हुई . पूरे इतिहास मे घूम फिर के सीखने के लिये नेहरू और जिन्ना ही मिलते है .

 जिन्ना के जिन्‍न को बोतल से निकलने के पीछे इन राजनेताओ की मंशा समाज मे जहर घोलती राजनीति के सिवा कुछ नही है . अगर जिन्ना का जिन्‍न गड्ढा युक्त सडको को भर सकता है तो बेशक उसे बोतल से निकालिये . अगर जिन्ना का भूत भ्रष्टाचारियो को डरा  सकता है तो उसकी पूजा कीजिये . अगर जिन्ना की आत्मा समाज मे फैलती अशान्ति को शांत कर सकती है तो उसके लिये मोमबत्तियाँ जलाईये . हम इस पर चर्चा करके कुछ नही पा सकते सिवा खुराफाती दिमाग के सुकून के की भारत विभाजन के लिये जिम्मेदार कौन था . सदियाँ निकल जायेंगी परंतु हम सबको संतुष्ट नही कर पायेंगे . परंतु अगर हम आज एक अच्छी सरकार चुनकर लाते है तो आने वाली पीढियाँ अपनी जिंदगी सुकून से जी सकती है और हम पर गर्व कर सकती है . हमे जरूरत है अब सवाल करने की जब तक हम सवाल नही करते तब तक हमे ऐसे ही मुफ्त के बेमतलब वाले मुद्दो मे उलझाकर रखा जायेगा , जब हम सवाल करेंगे तब शुरुआत होगी बदलाव की तब मुद्दे होंगे बिजली, पानी , सड़क , स्वास्थ ,शिक्षा , नारी सुरक्षा ऐसे ही अनेक और मुद्दे जिनकी तकलीफ हमे और आपको अपनी छोटी सी जिंदगी मे उठानी पड़ती है ना की हमारे राजनेताओ को .

deshwa

देशवा  (भोजपुरी कविता )


साहब साहब कहके पुकार मत बाबू
जेके देहले रहले वोट उहे ना बा काबू
खेल बा सब सत्ता के और
नेता हो गईल बाड़े बेकाबू

बोली बोलला मे आगे बाड़े देश के ई नेता
माई के आंख मे आंशु बा और
खून से लथपथ बा बेटा
रोज तमाशा चलअता देश मे ई का होता

हिन्दू , मुस्लिम रहलें इंहा बनके देखअ भाई भाई
मरलें नेता बांट देहले देखअ पाई पाई
अ जतियो मे जात बटलें अब केहके समझाई


अरे बिजली भइल महन्गा देख , सड़क मे अब मछलि पलाई
गरीब रोअता खून के आंशु बढअता महंगाई
की सुनत हई अब हिन्दू कहला से पेट भर जाई

अरे का भइल जो लईका आपन पढके घूमतारें
अरे कुछ ना करिहें त चौराहे पे पकौड़ी त बेचाइ

अब का बोली , का कही और केकरा के समझाइ
खोज अ कौनो और रास्ता जेसे देश सुधर जाई
नेता पे भरोसा नईखे कुलहि बाड़े मौसेरा भाई
राम के जे ना भइल उ जनता के का मुंह दिखलाई










meri muhabbat


मेरी मुहब्बत 


तेरी मासूम मुहब्बत पे दिल  है मेरा ठहरा सा
बहुत सोचा तुझे भुलूँ
पर इश्क़ है गहरा सा

मुहब्बत में जो दिल टूटा
तो आवाज नहीं होती
जो होता है वो कह नहीं सकता
उसकी कहीं फ़रियाद नहीं होती
हमें मालूम था एक दिन ऐसा भी आएगा
जो था खुदा मेरा
वही   तडपायेगा

चाहत है तू मेरी
तुझे कैसे भला भूलूँ
की जी करता है एक बार,  तुझे जरा  छू लूँ

तुझ बिन रात नहीं गुजरती
दिन भी काट खाता है
अब तेरे बिना मुझको
कोई और न भाता है

पारो है तू मेरी, मैं तेरा देवदास हूँ
तेरे बिना  देखो , कितना उदास हूँ
तू मेरी हो जाये , बता वो लकीर कहाँ खींचू
तू कहे तो मुहब्बत के बगिया को
अपने खून से सींचू

तेरी गुस्ताख़ मुहब्बत में दिल ये मेरा ठहरा सा
जाने कौन सी है बंदिशे
है तुझपे कौन पहरा सा

है पहचान नहीं तुझको मेरी मुहब्बत की
जाने कौन सी है दुनिया तेरी जरुरत  की
इन्तजार है तेरा, जब तक जिंदगानी है
यही मेरी  मुहब्बत की, छोटी सी कहानी है .........



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इश्क़ 


इश्क़ के समंदर में डूबते  है  आशिक़ कई 

बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई 

इश्क़ के रोग  का इलाज नहीं 

फिर भी  इस रोग में  पड़ते है कई 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

ना रांझे को हीर मिली, ना शीरी को मिला फरहाद 

इस इश्क़ - मुश्क़ के चक्कर  में ,ना जाने कितने हुए बर्बाद 
ना जाने कितने हुए बर्बाद ,  देखो फिर भी ना  छूटी आशिकी 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

जख्म  मिलता है, मिलती है देखो रुसवाई 

बैरी हो जाते है अपने , और जमाना हो जाता है हरजाई 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

ना  जाने कौन सी दिल्लगी होती है इस इश्क़ में 

जाने  मिलता है कैसा सुकून 
नजरे ढूंढती है दीदार - ए - मुहब्बत 
हम नासमझ क्या जाने , होता है क्या इश्क़ - ए - जूनून 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

नैनो की भाषा है , इनायत है रब की 

दिल में चाहत है ,और है आशिकी
हँसते वे बहुत हैं,
हँसते वे बहुत हैं ,जिसे लगा ये रोग नहीं 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई


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भारतीय रेल एक सुहाना सफर 


शादियों के इस मौसम में यदि किसी ने भारतीय रेल का मजा न लिया हो तो मजा कुछ फीका हो जाता है। ऐसे ही एक शादी में मुझे लौटते समय भारतीय रेल की वो सुखद अनुभूति हुई जो अधिकांश भारतीय सालो से करते आ रहे है। 


यात्रा थी बनारस से गोरखपुर के बीच की बहुत ही छोटी सी और संक्षिप्त यात्रा।  सर्वप्रथम तो यह बता दूँ की यह वही बनारस है जो हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी का संसदीय क्षेत्र है और जहा की जनता उन्हें आज भी उनके किये वादो के लिए ढूंढ रही है पर उन्हें विदेश यात्राओं से फुर्सत हो तब वे देश की कुछ सुध ले सके खैर वे सुध क्या लेंगे जहाँ वे कहते है की वे वी आई पी कल्चर को नहीं मानते और गाड़ियों पर से बत्तिया हटा दी गई है वही एक बार उनके आगमन के समय मैं bhu कैंपस में ही था जहाँ सड़को पर बैरिकेटिंग के माध्यम से आम जनता की गाड़ियों को घंटो रोक दिया गया यहाँ तक की एम्बुलेंस सेवाओं को भी। इसलिए बनारसवासी 2019 के चुनावों का इन्तजार कर रहे है। ताकि कही वे दिखलाई दे। 


हा तो बनारस की सड़को पे कूदते फांदते (क्योंकि वहा  की कोई भी सड़क समतल नहीं ) हम पहुंचे मंडुआडीह स्टेशन ट्रेन थी मंडुआडीह - गोरखपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस चूँकि ट्रेन में चढ़ने से पहले टिकट लेना आवश्यक था इसलिए टिकट लेने खिड़की की और चल पड़े।

 वहा पहुंचा तो देखा की टिकट खिड़की से शुरू लाइन दीवार ख़त्म होने के बाद घूमकर u  आकार में लगी हुई थी सोचा जाना तो जरुरी है और दोपहर तक कोई ट्रेन भी नहीं है इसलिए हम भी लाइन में लग गए। अभी ट्रेन खुलने में एक घंटा का समय बाकि था सोचा टिकट मिल ही जाएगी। परन्तु लाइन थी जो खिसकने का नाम ही नहीं ले रही थी आगे देखा तो बगल से काफी महिलाये लगी हुई थी और पीछे उनके घर वाले कुछ ऐसे लोग भी थे जो खिड़की पे सीधे जाके  अपना रौब दिखाते हुए टिकट लेने की कोशिश कर रहे थे और हम पीछे वाले पीछे ही रह गए। खैर तभी सूचना मिली की ट्रेन चलने वाली है इस कारण कई लोग काउंटर छोड़ कर ट्रेन पकड़ने निकल लिए   अवसर देखकर हम भी  टिकट के लिए डटे  रहे  और   टिकट लेने में कामयाब रहे। 
indian railway
अब बारी थी ट्रेन के अंदर  घुसने की जिसपर  दरवाजे तक लटकने वालो की अच्छी संख्या थी  जुगाड़ पद्धति के द्वारा आपातकालीन खिड़की से ट्रेन में प्रवेश करने में  कामयाब हुए। अंदर का नजारा और मुर्गे के बाड़े में कोई विशेष अंतर नहीं था बाहर भी कई लोग ऐसे थे जिनसे अब सुपाड़ी न कूची जाये और वे दरवाजे पे बाहर की ओर अपनी जान जोखिम में डालकर  लटके हुए थे।   
   
कभी सोचता हूँ सरकार की मोटर साइकिल पर तीन सवारियों पर ओवरलोडिंग में   चालान काटती है  परन्तु इसका क्या। 

खैर ट्रेन अपने निर्धारित समय से प्रारम्भ स्थान से ही खुलने में दो घंटे ले लेती है। और लोग अंदर  राहत की सांस लेते है। वैसे राहत के नाम पर बस एक दुसरे के ऊपर चढ़े लोग स्टेशनो का नाम  बताने और पूछने  में मशगूल थे। आने वाले स्टेशनो पर ट्रेन के अंदर घुसने के लिए होने वाली  धक्कामुक्की और न घुस पाने  वाले बेबस चेहरे ही थे। बाकि बहुत से नज़ारे ऐसे थे जो सोचने पे मजबूर करते थे की क्या वाकई हमारी सरकार हमें इंसान समझती है या वोट देने वाले जानवर। 


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