ishq me

इश्क़ में 

ishq me


तड़प ,जूनून ,दर्द ,दिल्लगी
सिर्फ इश्क़ में ही मिलेगी
 गर इश्क़ ना मिला तो तूं
और मिल गया तो दुनिया जलेगी


निकम्मा बनाता इश्क़ नहीं हैइश्क़ करने वाले होते ही निकम्मे है

इश्क़ की छुरियाँ चलती है जब दिल पर
आह तो नहीं निकलती
पर जाने क्या - क्या  निकल जाता  है

एक चेहरे के पीछे भागे हम बहुत है
सारी -  सारी  रात जागे हम बहुत  है
सोये तो पुरे दिन भर थे हम

पर उस बेवफा के लिए रोये बहुत है


इश्क़ करना तो पूरी हिफाजत के साथ
दिल को थोड़ा संभाल के पूरी इनायत के साथ
टूटे हैं दिल बहुत यहाँ
बचे है थोड़े - थोड़ी मिलावट के साथ


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इश्क़  

jhagda




झगड़ा  


प्रायः दो व्यक्तियों के बीच होने वाले आपसी तनाव और हिंसा पूर्ण गतिविधियों की वह संलिप्तता है जिसमे भाषा और व्याकरण का ध्यान नहीं रखा जाता है।  रखने को तो शारीरिक हानि  का भी ध्यान नहीं रखा जाता है परन्तु  स्वयं की नहीं बल्कि प्रतिपक्षी की। 

jhagda


झगडे का बीज प्रायः  मन मस्तिष्क के किसी कोने से जड़ो में परिवर्तित होने का प्रयास करता है , विद्वान पुरुषो द्वारा इस प्रकार के पौधो का दमन अंकुरण के समय ही ठीक उसी प्रकार कर दिया जाता है जैसे लाभकारी फसलों के बीच जमने वाले खरपतवारो का किया जाता है परन्तु जिस मन मस्तिष्क में सालो से कोई उपजाऊ फसल ना बोई गई हो वहां इस तरह की पौध जीवन की मायावी ऊर्जा में संतुलन का कार्य करती है। 

झगडे को लेकर विद्वान पुरुषो द्धारा अक्सर ही उनसे दुरी बनाये जाने की बात कही जाती है क्योंकि झगड़ा अगर एक बार गड गया तो उसे उखाड़ना इतना आसान नहीं होता और उसे उखाड़ने के चक्कर में हम अपना अमूल्य छण व्यर्थ में ही जाया कर देते है जिसका उपयोग हम स्वयं के विकास में लगा सकते थे।  यदि आप एक नन्हे पौधे है और आपके बगल में कोई दीवार खड़ा कर देता है तो भलाई उससे लड़ने में नहीं है बल्कि अपनी दिशा थोड़ी सी  बदल कर निकलने में है। समय आने पर पौधा जब विशाल पेड़ में परिवर्तित होता है तो वह दीवार स्वयं ही गिर जाती है। 

झगडे का बीज ज्यों - ज्यों  बड़ा होते जाता है उसी प्रकार वह मस्तिष्क में लगे अन्य सुकोमल पौधो (मानवीय विचारो )को हानि पहुंचाने लगता है। बीज को मस्तिष्क में रोपित होने से बचाने के लिए आवश्यक है की हम अहम् का त्याग कर दे वास्तव में झगडे के प्रधान कारणों में से अहम् का प्रथम  स्थान है। जहाँ मैं है वहां कोई और आ ही नहीं सकता और जहा मैं नहीं है वहा  प्रत्येक विचार और व्यक्ति का स्वागत है। 

NOTE - झगडे की औषधि अगर कोई है तो वह है आपकी एक मुस्कान।  





sir jhukau tere dar pe


ए  खुदा तू ही बता 

sir jhukau tere dar pe

सिर झुकाऊँ तेरे दर पे  तू है दयालु - दाता मेरा
जाने क्यों रूठा है  मुझसे

तू परमेश्वर  विधाता मेरा


 क्या खता मेरी हुई है
हुई कौन सी नादानियाँ
तेरा ही सजदा हूँ करता
तेरी ही राह धरता  सदा

है ह्रदय विशाल अम्बर
जिसमे सारा जग भरा
मैं हूँ एक कण के बराबर
हो जाऊं समाहित तुझमे सदा

तूं ही शक्ति तूँ ही भक्ति
हर धर्म तुझसे जुड़ा
हैं पथ अलग - अलग
 पर तूँ ही हर पथ पे खड़ा

हैं अज्ञानी जग सारा ये
बाँट जो तुझको रहा
तूँ ही अल्लाह तूँ ही शम्भू
ईसा जग ने तुझको कहा

तूँ ही थल में तूँ ही नभ में
मैं भला मैं  हूँ कहाँ
तुझसे निकला तुझमे समाया
और भला जाऊँ कहाँ

राख का एक कण हूँ मैं तो
ना अहम् मुझमे भरा
है तेरी लीला मैं जानू
तुझसे ही ये जग चला


चल रहा जिस राह पर जग
उस पर मानव चलते कहाँ
कर प्रकाशित राह सत्य का जिसपे सारा जग चले........



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माँ 

rahul aur pappu

राहुल और पप्पू 



आज सुबह - सुबह ही प्रिय प्रकाश राज से मुलाकात हो गई ..... बड़ी परेशान थी बेचारी जबसे उसका नैन पिचकाऊ वाला सीन प्रसिद्द हुआ है तबसे जो भी बड़ी हस्ती यह काम करती है बगल की तस्वीर में उसे भी डाल दिया जाता है। जवान की तो बात ठीक थी पर बुड्ढों के साथ कैसी तुलना।  अभी कुछ दिन पहले ही अपने देश के एक होनहार बालक देश के सबसे बड़े क्लास रूम में आँख मारते दिखे , वैसे मारा बड़ा गजब का था स्माइल के साथ , ऐसा प्रदर्शन बिना अथक प्रयास के नहीं किया जा सकता। 

rahul aur pappu


उनकी मम्मी को भी अब समझना चाहिए की हर कोई सलमान खान नहीं होता , जल्दी से एक सुन्दर सुशील  कन्या देखकर उनके हाथ पीले कर दे वर्ना  जिस तरह से वे संसद में गले मिल रहे है उसको देख के लगता है की कही घर में  ही  जमाई न लाना पड़े। बाबू ने तो खुले आम स्वीकार भी कर लिया की लोग उन्हें पप्पू भी कहते है  . वैसे बालक है बड़ा नादान। ऐसी बातो पर सबके सामने मुहर नहीं लगाना चाहिए। 

वैसे जबसे राहुल गाँधी का गले मिलने वाला प्रकरण हुआ है तबसे भाजपा के सांसद उनसे दूर रहने लगे है ,कारण वही की कोई रिश्तेदारी न हो जाये न तो राजनीति में बड़ी भारी पड़ेगी। 

" सोते हुए को जगा दिया तुमने 
   आज किसको गले लगा लिया तुमने  "

मेरी कक्षा में एक बड़ा ही  हंश्मुख लड़का था उसे हमेशा  ही  मॉनिटर बनने का शौक लगा रहता था। पर पढाई में निल बटा सन्नाटा और हरकते अजीबो गरीब होने के कारण  उसका शौक कभी हकीकत में न बदल सका.कर्मठी वह बहुत था परन्तु उसे यह कभी समझ में नहीं आया की उसके अंदर मॉनिटर बनने के एक भी गुण विद्यमान  नहीं थे और नाहीं उसने उन आवश्यक गुणों को कभी ग्रहण करने की कोशिश की।वो तो बस बाकि लोगो का मनोरंजन ही करता रह गया।  और एक बात मेरा इशारा बिलकुल भी राहुल गाँधी की तरफ नहीं है। 

मेरा मोदी जी से विनम्र निवेदन है राजनीति अपनी जगह है और प्रेम व्यवहार अपनी जगह।  आखिर है तो अपने ही देश का एक  बच्चा कृपया आप इस बालक को राजनीति के कुछ गुण ही सीखा दीजिये वर्ना कांग्रेस में बैठे बालक के चचा लोग इसे ऐसी ही उलटी सीढ़ी हरकते सीखाते रहेंगे आखिर ये कहावत इसीलिए तो बनी है की


 " मुर्ख दोस्त से तो अच्छा होशियार दुश्मन होता है"

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नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी




likhta hu2

लिखता हूँ -२ 


लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नही आती
चाहे कुछ भी कर लो पर ए जात नही जाती

खाने को रोटी नही ना पहनने को वस्त्र है
महंगाई की मार पड़ी है बचने का ना कोई अस्त्र है
सूखे खेते से भी अब कोई फरियाद नही आती
की लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नही आती

गृहस्थ जीवन पड़े है भारी
जिसमे भरे है सरकार ने अनेको दुश्वारी
कैसे चलाऊँ मैं अपनी गाड़ी
अब तो पूरी तनख्वाह भी काम नही आती
की लिखता हूँ मैं थोड़ा - थोड़ा पर वो बात नही आती

जम्मू मे दंगल हुआ बिहार मे थोड़ा मंगल हुआ
बंगाल की लड़ाई मे, सभा मे अमंगल हुआ
गोरखपुर की हार भी अब कोई सबक नही सीखलाती
जनता की तकलीफे अब कोई चिट्ठी कैसे बतलाती
लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नही आती

डरी हुई नारी है देखो, बच्ची भी अब नही बच पाती   अजब तेरा संसार है विधाता क्या कोई खबर नही आती

राजा को सुध नही जनता की अब
उसे जुमलेबाजी है खूब भाती
था विपक्ष मे तो खूब मुखर था
सत्ता पाते ही हवा बदल जाती
इसीलिये लिखता हूँ मैं थोड़ा - थोड़ा पर वो बात नही आती
कभी सुकून से गुजरे अब वो रात नही आती

तू मुस्लिम है मैं हिन्दू हूँ  , मैं ही राजनीति का केन्द्र बिंदु हूँ

तेरी मेरी इस लड़ाई मे किसी एक की हार है
यही जीत हार उनकी किस्मत है चमकाती
सब समझ समझ की बात हैं मेरी समझ कितना समझाती

इसीलिये लिखता हूँ में थोड़ा थोड़ा पर वो बात नही आती
ईश्वर अल्लाह एक सारे
अलग इन्हे सिर्फ राजनीति बतलाती ..

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ye kaise achhe din

ये कैसे अच्छे दिन -

ye kaise achhe din

अच्छे दिन लाते लाते तुमने
ये कैसे दिन है दिखलाया

तुम को खाके मजा आया तो सबसे पकौड़े क्यों बनवाया

खुद तो घुमा देश विदेश और
मेरे इस शहर - ए - अमन में दंगा क्यूँ है भड़काया

कहने को तुम आलम - ए - वजीर
फ़कीर हमको है क्यों बनवाया
एक - दो समझ में ना आया
पांच तरह की जीएसटी लगवाया
पप्पू से लड़ते लड़ते
जनता को उल्लू क्यों बनवाया

खुद सरकार बने फिरते हो

चौकीदार कुछ समझ में ना आया

खुली तिजोरी लुटते रहे वो
इल्जाम है किसपे लगवाया

राशन लेने गया फकीरा जिसको न ककहरा आता
आधार लिंक कहा से कराये कौन सी भाषा में उसे डिजिटल इंडिया समझाता
एक बार चमका था भारत एक बार बहका है भारत
अब और इसे न बहकाना
अच्छे दिन दिखला न सके तो
पोस्टर पर पैसे और ना लुटवाना

विकल्प विहीन है देश की जनता
कुछ भक्ति में लीन  है
शक्ति सारी जुबान में है
सत्ता कर्महीन है

बाते बड़ी बड़ी है यहाँ
भक्तो और चमचो  में मारा मारी है
इन सबसे बढ़के देखो उनकी अदाकारी है

कोई देश लूट रहा था  कोई देश फूंक  रहा है

जो समझा वो मौन खड़ा है
चुप रहने में होशियारी है

हुए आंदोलन बहुत यहाँ पे
सबपे सत्ता भारी है
बाबा पहने सलवार सूट
देख अचंभित नारी है

क्या सफ़ेद और क्या काला
जनता के धन को क्या बना डाला
क्या गरीब और क्या किसान
सबका बीमा करा डाला

जीते जी की बात नहीं की थी
मरने पे अच्छे दिन दिखलायेंगे

अभी तो बस शुरुआत की है

अच्छे दिन तो अब आएंगे



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जलता शहर 

kuchh baat dilo ki

कुछ बात दिलो की 



कुछ बात दिलो की पढ़ने को
ऐनक है हमने लगा डाली
पढ़ पाए न एक दिल को भी हम
दिल थे सारे खाली  - खाली

भरा न उनमे भाव मगर था
न थी दया की कोई प्याली
अजब गजब थी भाषा उनकी
थी गूढ़ रहस्य की गुफा काली

विस्मित थे ये  नैन देख के
छल प्रपंच की नई  परिभाषा
आशा की कोई ज्योति नहीं थी
जिससे ये जग -जीवन चल पाता 

रिश्तो का कोई मोल नहीं है
मुद्रा से ये तौली जाती 
मातृ और पितृ भक्ति भी
पुत्रो को 
धन लक्ष्मी है सिखलाती

पत्नी हुई प्रधान जग में 
अब  ये बतलाती 
भाई से कितना बोला जाये 
है विनम्र निवेदन अब तो बस ये
राखी को ना  तौला  जाये 

कुछ राज दिलो के छिपे रहे 
इनको ना ढूँढा जाये 
है बची कुछ अब भी मर्यादा 
घूंघट न खोला जाये 

कुछ बात दिलो की पढ़ने को
ऐनक है हमने लगा डाली
पढ़ पाए न एक दिल को भी हम
दिल थे सारे खाली  - खाली


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लिखता हूँ 





gareebi mukt bharat

गरीबी मुक्त भारत 



बहुत दिनो से भारतीय राजनीति मे बहुत ही मजेदार कथन और मुहावरे प्रचलन मे चले आ रहे है जिनमे से अधिकांश महत्वहीन है , हाँ महत्व बस इतना ही है की जनभावनाओ को अपनी राजनीतिक गतिशीलता दी जा सके . नाम बदलने की निरर्थक राजनीति भी अब जनता के किसी काम की नही , कभी किसी स्टेशन का नाम तो कभी किसी अन्य सार्वजनिक स्थलो के नाम , अगर करना ही है तो कुछ काम करिये अगर नारे देने है तो गरीबी मुक्त भारत का नारा दीजिये आप फाइव स्टार होटल मे बैठकर बिसलेरी का पानी पीते हुए नामी अखबारो मे निकलवा देते है गरीबी बढ रही है या घट रही है , दिखावा तो इतना है की गरीब के घर का खाना जाके खा आते है लेकिन कभी उस गरीब को अपने घर दावत का पुछ्ते भी नही , समाचार वाले भी खूब दिखाते है की फलां नेता आज दलित के घर खाना खाने आ रहे है और सौभाग्य से वो दलित हमेशा गरीब ही निकलता है काश की ए जिस गरीब के घर भोजन करते कम से कम उसकी गरीबी त़ो मिटा देते . भाषन बहुत है साहब बहुत सी कलाकारियां है . मध्यम वर्गीय परिवार के रीढ़ की हड्डी टूट चुकी है प्राइवेट नौकरियो मे परिवार चलाने इतना वेतन नही है और सरकारी नौकरी मिलना भगवान मिलने के बराबर है.

राम का आसरा है पर वो खुद ही बिना आसरे के है . विकास और गरीबी मुक्त नारे कहाँ अब तो मुस्लिम पार्टी हिन्दू पार्टी के नारे दिये जा रहे है बस यही हिन्दू – मुस्लिम से गरीबी दूर होगी . सब भावनाओ का बजार है जिसके सहारे वोट खरीदे जा रहे है और बेचारा गरीब और गरीब होते जा रहा है .

maa

माँ 



मेरी हर इन्तेहाँ में माँ की दुआ काम आती है
लाख चढ़ लू सीढ़ियां कामयाबी की मगर
थकने पर मां ही आँचल फैलाती है

उम्र बढ़ती है आँख धुंधलाती है 

पर मेरे चेहरे की शिकन माँ को साफ़ नजर आती है
गम में भी उसे देखकर मैं तो हंस लेता हूँ
पर माँ ही है जो चुपके - चुपके नीर बहाती है
इसीलिए तो वो माँ कहलाती है

सब कहते है की 

माँ की ममता का कोई मोल नहीं होता 

मै कहता हूँ माँ जैसा कोई और नहीं होता


गलतियों पे जो माफ़ करे वो माँ होती है
हर जख्म को जो साफ़ करे वो माँ होती है
अपने खून से सींचे वो माँ होती है 


माँ ना इस जैसी होती है माँ ना उस जैसी होती है
माँ तो बस माँ जैसी होती है


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