Bitcoin


बिटकॉइन एक आभासी मुद्रा  bitcoin a cryptoicurrency 


बिटकॉइन को लेकर तरह तरह के भ्रम और जिज्ञासाएं अक्सर ही हमारे दिमाग में चलती रहती है ,बिटकॉइन क्या है ? ये कैसे काम करती है ? यहाँ हम बिटकॉइन के बारे में चर्चा  करेंगे और जानेंगे की की इस आभासी मुद्रा का संसार भर में इतना जिक्र क्यों है। 


bitcoin image
बिटकॉइन इमेज 

BITCOIN -   बिटकॉइन एक ऐसी मुद्रा है जो हमें दिखाई नहीं देती, इसका अविष्कार सातोशी नाकामोतो  नामक  एक इंजीनियर ने सन  2008 में किया था।  और यह अगले साल मार्केट में आ गया। 

जैसे हम अपने डेबिट / क्रेडिट कार्ड से पैसे का ट्रांसफर करते है वैसे ही  हम बिटकॉइन का ट्रांसफर करते है।  बिटकॉइन एक डिजिटल वॉलेट में स्टोर होता है इसे खरीदने के लिए हमें अपनी देश की मुद्रा का हस्तांतरण करना पड़ता है। वर्तमान समय में बिटकॉइन की कीमतों में उतार चढ़ाव जारी है तथा इस समय संसार में एक करोड़ से ज्यादा बिटकॉइन प्रचलन में है।  यह हम आपको बता दे की बिटकॉइन को किसी भी देश ने मान्यता नहीं प्रदान की है तथा भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इसके बारे में लोगो को जागरूक किया है।  लेकिन फिर भी इसके तात्कालिक लाभ को देखते हुए लोगो का आकर्षण बढ़ता ही जा रहा है।  इसी कारण कई ऑनलाइन शॉपिंग कम्पनिया ,एयर लाइन ,होटल, इत्यादि इसकी इजाज़त दे रहे है।  

बिटकॉइन का निर्माण - बिटकॉइन के निर्माण को बिटकॉइन माइनिंग कहते है। इसका निर्माण कई सारी प्रक्रियाओं के बाद होता है जो की अत्यंत ही  कठिन कार्य है। बस इतना समझ लीजिये की इसके निर्माण में कई  शक्तिशाली  कम्प्यूटर , बेहद ही  जटिल गणितीय  प्रणाली , प्रति सेकेंड लाखो कैल्कुलेशन  व असीम ऊर्जा ( बिजली ) की आवश्यकता पड़ती है। और अंत में बिटकॉइन निर्माण के सॉफ्टवेयर की। 

अनेक लोगो ने बिटकॉइन को एक जाली करेंसी कहा है जो कभी भी बंद हो सकती है। 

SPECIAL POST -    पकौड़े से अमेरिका के राष्ट्रपति तक


Beti Bachao Beti Padhao

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ  beti bachao beti padhao


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बेटी बचाओ 

जाते जाते कल्लू आज अपने सातवे बच्चे (लड़के)के सत्ताइसा का न्योता देता गया . छह लड़कियों के बाद उसे एक लड़का हुआ था. दो बार उसकी पत्नी मरते मरते बची उसकी बड़ी लड़की 15 साल की हो गई थी पर लड़के की चाह न छूटी .

 बगल के शर्मा जी दो बार अपनी बहू का गर्भपात करवा चुके है दोनो ही लड़कियां थी, शर्मा जी पेशे से शिक्षक है और एक बालिका इंटर कॉलेज मे अध्यापन कार्य करते है उनके विद्यालय की ही एक छात्रा ने आई आई टी प्रवेश परीक्षा मे परीक्षा मे प्रथम स्थान प्राप्त किया था.


शर्मा जी और मेरे घर काम करने वाली बाई एक ही है नाम है मालती . इस कारण शर्मा जी के घर होने वाली बाते अक्सर अपनी मालकिन से बताया करती थी , उसकी खुद की दो बेटियाँ थी तथा एक बेटा, बेटा सबसे बड़ा था व गलत संगति और बुरी आदतो का शिकार था, वो मेहनत मजदूरी करके अपनी दोनो लड़कियों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया करती थी.


 वो कहती थी की साहब सब अपने सोचने की बात है भगवान ने धन और विद्या दोनो के लिये देविओ को ही चुना देवताओ को क्यो नही ? क्योंकि उन्हे पता था दोनो को संभालने की छ्मता केवल इन्ही के पास है.


 लड़कियां मालविका और नेहा दोनो शर्मा जी के विद्यालय की ही छात्रा थी कोचिंग की फीस ना होने के कारण दोनो ही शाम के समय मुझसे पढ़ा करती थी नेहा का इंटर फाइनल था. मेरी श्रीमती जी आज सुबह से परेशान थी तबियत खराब होने की वजह से घर का काम कर पाने वो असमर्थ थी तथा मालती का आज सुबह से ही कुछ पता नही था.


 वैसे तो वो अपने ना आने की सूचना दे देती थी पर जाने क्यो आज कोई खबर नही आई इस कारण काम का सारा बोझ मुझ पर आ पड़ा ,सुबह का अखबार तक नही पढ सका. शाम को घर आने पे पता चला की मालती की कोई खबर नही


 अब तो चिंता बढ गई तथा मैं किसी अनहोनी की आशंका से चिंतित हो उठा तभी अचानक से घंटी बजी श्रीमती जी ने दरवाज़ा खोला - मालती के साथ उसकी बड़ी बेटी थी और उसके हाथ मे एक डब्बा और अखबार था और आंखो मे अश्रु की धारा .


 अंदर आते ही नेहा मेरा पेर छुने लगी . हम कुछ पूछते उससे पहले ही वो बताने लगी की कैसे आज सुबह अखबार आते है आस - पड़ोस के लोगो का उसके घर पे जमावड़ा लग गया था उन लोगो ने उसे अखबार

 Beti Bachao Beti Padhao

दिखाया और बताया की उसकी बेटी ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा मे अव्वल स्थान प्राप्त किया है


 वे अखबार के पहले पन्ने पर छपी उसकी बेटी की फोटो दिखाने लगे और बताने लगे की अगले हफ्ते मुख्यमन्त्री द्वारा उसकी बेटी के लिये एक सम्मान समारोह भी है.


 सब उसकी बेटी से मिलकर उसे बधाई देना चाह रहे थे जिसने उनके मुहल्ले का नाम रोशन कर दिया जो की आजतक किसी का बेटा नही कर सका.



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zindaagi ki saarthakta

pakoude se america ke rashtrpati tak

पकौड़े से अमेरिका के राष्ट्रपति तक


जबसे पकौड़ा सुर्खियो मे आया और एक बेहतर रोजगार की बात हमारे प्रधानमंत्री जी द्वारा कही गई तबसे इस व्यवसाय के प्रति मैं अपना आकर्षण रोक नही पाया . जब एक आम इंसान चाय बेचकर प्रधानमंत्री बन सकता है तो मुझे लगा पकौड़ा से शुरुआत करके तो में अमेरिका का राष्ट्रपति बन सकता हूँ .



pakoude se america ke rashtrpati tak



 सर्वप्रथम तो मैं एक बेहतरीन नाम की तलाश करने लगा सारी रीसर्च खत्म हुई खुद के नाम से ही . लगा अभी नाम के अनुसार कुछ कमी है तो इसमे कमी कहा रहने वाली थी हमने भी इंटरनैशनल लगा लिया . तो बन गया रायजी इंटरनैशनल पकौड़ा स्टाल . अब जरूरत थी इसके लिये स्थान की तो हमने सोचा इंडिया गेट उपयुक्त रहेगा , हो सके तो हमारे प्रधानमंत्री यहा से गुजरे और कभी गोभी या प्याज के पकौड़े खाये और हमारे मां बाप की तरह ही उन्हे हमपर गर्व हो . और यही स्थान भविष्य मे चलकर रोजगार क्रांति का प्रतीक चिन्ह बने जिससे हमारे देश के युवा प्रेरणा ले सके . और हमारी प्रसिद्दि अमेरिका तक जा पहुचे और वहा के युवा पकौड़े पे चर्चा के लिये हमारे पास आने लगे और हम पूरे अमेरिका मे पकौड़े पे चर्चा करवा के एक दिन वहा के राष्ट्रपति बन जाये . फिर ,…………. फिर क्या फिर आप भी देखियेगा टेलीविजन पर हमको चाय और पकौड़े के साथ.......... 


zindaagi ki saarthakta

जिंदगी की सार्थकता zindagi ki sarthakta




zindaagi ki saarthakta
zindaagi ki saarthakta 
उगते सूरज को देखते हुए ये ख्याल आता है की हम भी जगत मे इसी तरह आशा और उम्मीद के साथ प्रतिदिन उठतें है की आज कुछ अच्छा होगा . वही रोजमर्रा की आदते वही घर गृहस्थी की उलझाने ,शायद ज़िंदगी अब उतनी आसान नही रह गई जितनी हमारे पूर्वजो के लिये थी ,
ज़िंदगी मे स्थिरता नही रह गई बल्कि भागमभाग मची रहती है , अंधी प्रतिस्पर्धा है जिसमे हासिल कुछ नही होता बस हम ज़िंदगी जीना भूल जाते है , चेहरो पर मुस्कुराहट की बजाय भय,तनाव,और क्रोध की झलक ज्यादा देखने को मिलती है , सेवा भाव की जगह मेवा भाव की भावना लोगो के अंदर बसने लगी है . थोड़ी बहुत नाते रिश्तेदारिया और मित्रता तो केवल स्वार्थ की वजह से चल रही है. जाता हूँ कभी शमशान तो ज़िंदगी की सारी भागदौड और असलियत आंखो के सामने दिखती है पता नही ये नजारा और ए असलियत सबको क्यो नही दिखाई देती .
यही शाम है हमारी ज़िंदगी की हम भूल जाते है की सूरज की तरह हमको भी एक दिन ढलना है हमारा जन्म सिर्फ और सिर्फ मानवता को उसके शिखर पर ले जाना है, इसी के साथ जगत मे हमारी पहचान होती है और हम निरर्थकता से सार्थकता की तरफ बढते है .

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हम भारत के लोग

हम भारत के लोग Hum Bharat Ke Log 


हम भारत के लोग
हम भारत के लोग

आज 26 जनवरी को सुबह सैर के दौरान घर से निकलते ही पड़ोस के लड़के ने मुझसे पूछा की क्या आज छुट्टी है मैने कहा क्यो तो उसने बोला की पापा कह रहे थे की आज स्कूल मे पढ़ाई नही होगी . वो शहर के एक बड़े स्कूल का विद्यार्थी था . थोड़ी दूर और आगे जाने पर एक सरकारी विद्यालय पड़ता है वहा धीरे धीरे विद्यार्थियो का जमावड़ा लगने लगा था वे आपस मे चर्चा कर रहे थे की आज देखो कितने लड्डू मिलते है बहुत दिन हुए मिठाई खाये आज छुट्टी भी जल्दी हो जायेगी तो मिड डे मील भी नही मिलेगा शाम तक भूखा ही रहना पड़ेगा . उनकी वार्तालाप चल ही रही थी की तभी उनके मास्टर जी आ गये . वे भी आपस मे बात कर रहे थे बताइये मिश्रा जी आजकल सरकार भी हम मास्टरो को खाली समझ कर सारे काम हमही से करवाती है . 

आज छुट्टी के दिन भी हमको विद्यालय आना पड़ता है. कुछ दूर और चलने पर झोपड़पट्टी शुरु हो जाती है वहां आज सुबह से ही सफाई कार्य चालू था रंग रोशन किये जेया रहे थे जिनको खाने को नसीब नही होता उन्हे नये कपड़े और कंबल ला कर रखे हुए थे एक आदमी सारे झोपड़पट्टी वालो को कई सारे निर्देश दे रहा था पुछ्ने पर पता चला की यहा पर मंत्री जी आने वाले है . मैं रास्ते भर यही सोचता रहा की क्या इन लोगो को गणतंत्र और आज़ादी का मतलब पता है और क्या हम अपनी उस मानसिकता से निकल चुके है जो आज़ादी से पूर्व थी…. क्या ये राष्‍ट्रीय उत्सव ना होकर महज एक छुट्टी दिवस के रूप मे रह गये है.

करणी सेना


करणी सेना - karani sena 


करणी सेना
महाराणा 
अगर इतिहास मे झाँका जाए तो राजपूत एक बहदुर कौम के तौर पे जानी जाती है वर्ण व्यवस्था मे जहा छत्रियो की उतपत्ति ब्रम्हा जी के भुजाओ से हुई है जो की समाज की रक्षा के लिये समय आने पर हथियार उठाये खड़ा रहता है , बाद के भी कई ग्रंथो मे भी उल्लेख है की असुरो से रक्षा के लिये भगवान से ऋषियो की प्रार्थना पर हवन कुण्ड से इनकी उत्पत्ती हुई , इतिहास मे पृथ्वीराज चौहान , महाराणा प्रताप , राणा सांगा जैसे अनेक उदाहरण पड़े हुए है . जिन्होने अपनी वीरता से राजपुतो का नाम शीर्ष तक पहुचाया .

करणी सेना
करणी सेना

परंतु इसी इतिहास की एक सच्चाई ये भी है की इन्ही राजपुतो मे एकता का सर्वथा अभाव रहा है जिसका समय समय पर अनेक आक्रमणकारियो ने लाभ उठाया है और इस धरा को लहूलुहान किया है . इन्ही की विखंडता के कारण मुग़ल भारत मे पैर जमाने मे सफल रहे . केवल तलवार से युद्ध नही लड़े जाते ये इन्हे इतिहास से सीखना चाहिये .

राजशाही खत्म हुए सालो हो गये अब तो प्रजातंत्र है पर कल भी हमारी मानसिक कमजोरी का लाभ दूसरे उठाते रहे और आज भी सत्ता के लालची अपने .. समय के साथ और कुछ हद तक हमारे राजनीतिज्ञों  के कारण हर समाज मे हर जाती मे संघठन बनते गये जो की स्वयं के हितो के लिये अलग अलग राजनीतिक पार्टीयो को समर्थन देते रहे है इनकी संख्याबल और समाज पर इनकी पकड ही इनकी प्रमुख ताकत होती है. समाज और समुदाय पर अपनी पकड बनाये रखने के लिये ए अक्सर ऐसे मुद्दो को हवा देते है जो उनकी भावनाओ से जुड़ी हो , करणी सेना बहुत दिनो से अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड रही है. हालांकि देश के चौदह राज्यो मे इनके संगठन है 


. वर्तमान मे पद्मावती के रूप मे इन्हे एक ऐसा मुद्दा दिखाई दिया जिससे ए अपनी राजनीतिक विरासत चमका सकते थे . इस कारण इन्होने इस फिल्म को राजपूत अस्मिता पर खतरा बताकर इसका विरोध करना प्रारंभ कर दिया और धीरे धीरे ये सुर्खियो मे आने लगे . इसको देखते हुए इन्होने पूरे देश मे इसके विरोध की रणनीति बना ली और सडको पे उतर आये , फिल्म के रीलीज़ होने पर पाया गया की उसमे राजपुतो से सम्बंधित किसी प्रकार का उनकी भावनाओ को ठेस पहुचने वाला दृश्य नही है . फिर भी उनका विरोध जारी है और हमारी सरकार  उनके आगे नतमस्तक है…आखिर क्यो…..



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कभी कभी राजनीतिज्ञो की दिन दूनी रात चौगुनी होती संपत्ती को देखकर मुझे लगता है की राजनीति समाज सेवा नही एक व्यवसाय का माध्यम होती जा रही है , जहां कथनी और करनी मे जमीन आसमान का अंतर होता है , यहाँ सारा खेल आपकी अभिनय छमता पर निर्भर करता जो की आपके वोट प्रतिशत को बढाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है , अब दूसरा महत्वपूर्ण कारक आपकी जाति होती है अगर आपकी जाति बहुसंख्यक है तो क्या कहने. हाँ शुरुआत मे या बाद मे मीडिया से खराब सम्बंध आपके लिये हितकर नही होते


media
media


 इस कारण ही कुछ मीडिया समूह कभी काल सुर्खियो मे आ जाते है. मुझे आज ही मेरे एक मित्र ने बताया की मोदी जी अपना साक्षात्कार विशेष तौर पे केवल दो पत्रकारो को देते है और उनका विवादो से पुराना नाता रहा है इनमे से एक तिहाड़ जेल की सैर भी कर चुके है मैने इनके बारे मे खोज की तो मुझे इनसे सम्बंधित सारी खबरे हिन्दुस्तान टाइम्स पर ही मिल गई जो की सत्य थी . ऐसे कई उदाहरण पड़े हुए हैं , ज्यादा अंदर जाने पे आपका विश्वास इंसानियत से उठ सकता हैं .


corporate
corporate 

उद्योग समूह भी अपने हितो की पूर्ति हेतु अलग अलग पार्टियों से जुड़ाव या अलगाव रखते है और कई तो पर्दे के पीछे से उन्हे संचालित भी करते है. किसी उत्पाद की तरह ही पार्टी और उसके नेता की ब्रांडिंग की जाती हैं इसमे आईटी पेशेवर से लेकर मौखिक प्रचारक तक की अहम भूमिका होती है. तरह तरह के नये शब्दो का जाल बुना जाता है और उन्हे सोशल मीडिया पर प्रचारित किया जाता है . ऐसे कई प्रबंधन करने होते है आज की राजनीति मे और जो उच्चतम अंक प्राप्त करता है वो विजयी होता है.


HAPPY REPUBLIC DAY.

HAPPY REPUBLIC DAY.

HAPPY REPUBLIC DAY.
HAPPY REPUBLIC DAY.

Saare Jahan Se acha Hindustan humara
Hum bulbule hai iske ye gulsita hamara humara.
Happy Republic Day
Aao Jhuke Salam Kare Unko Jinke,
Hisse Mein Ye Muqam Aaya,
Khushnaseeb Hote hai we log,
Jinka lahu Desh Ke Kaam Aaya ,
Jai Hind Jai Bharat,


HAPPY REPUBLIC DAY.
HAPPY REPUBLIC DAY.

पकौड़े से अमेरिका के राष्ट्रपति तक


पकौड़े से अमेरिका के राष्ट्रपति तक pakoude se america ke rashtrpati tak 


जबसे पकौड़ा सुर्खियो मे आया और एक बेहतर रोजगार की बात हमारे प्रधानमंत्री जी द्वारा कही गई तबसे इस व्यवसाय के प्रति मैं अपना आकर्षण रोक नही पाया . जब एक आम इंसान चाय बेचकर प्रधानमंत्री बन सकता है तो मुझे लगा पकौड़ा से शुरुआत करके तो में अमेरिका का राष्ट्रपति बन सकता हूँ .


pakouda
पकौड़ा 





 सर्वप्रथम तो मैं एक बेहतरीन नाम की तलाश करने लगा सारी रीसर्च खत्म हुई खुद के नाम से ही . लगा अभी नाम के अनुसार कुछ कमी है तो इसमे कमी कहा रहने वाली थी हमने भी इंटरनैशनल लगा लिया . तो बन गया रायजी इंटरनैशनल पकौड़ा स्टाल . अब जरूरत थी इसके लिये स्थान की तो हमने सोचा इंडिया गेट उपयुक्त रहेगा , हो सके तो हमारे प्रधानमंत्री यहा से गुजरे और कभी गोभी या प्याज के पकौड़े खाये और हमारे मां बाप की तरह ही उन्हे हमपर गर्व हो . और यही स्थान भविष्य मे चलकर रोजगार क्रांति का प्रतीक चिन्ह बने जिससे हमारे देश के युवा प्रेरणा ले सके . और हमारी प्रसिद्दि अमेरिका तक जा पहुचे और वहा के युवा पकौड़े पे चर्चा के लिये हमारे पास आने लगे और हम पूरे अमेरिका मे पकौड़े पे चर्चा करवा के एक दिन वहा के राष्ट्रपति बन जाये . फिर ,…………. फिर क्या फिर आप भी देखियेगा टेलीविजन पर हमको चाय और पकौड़े के साथ..



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उफ्फ ये बेरोजगारी 

COMMAN MAN

आम आदमी -गंवई  aam aadmi 

गाँव मे दो लोग आपस मे बात करते हुए. पहला -भैया ये मोदी और योगी का करत है आजकल, कुछ समझे मे नही आ रहा दूसरा – भैया समझ मे तो उनको भी नही आ रहा है देखे नही एक्के काम मे कितना स्टॅंड ले रहे है. पहला – हा भैया पर मोदी तो पूरा संसारे घूम लिये पर हम लोगो के बीच तो कब्बो नही आये , का गंगा मैया उनको अब नही बुला रही का दूसरा – नाही भैया जौने गंगा मैया के उ सॉफ करे के कहे रहे उ तो बांट जोहत जोहत थक गई अब हमनी के चुनाव के इंतजार कइल जा तब्बे उ मिलिहे पहला – भैया सुने रहे मोदी हम किसान के आय दुगना करे के सोचत हवे. पर ईहा त खाद, बिया,डीजल सबके दाम बढ गईल .


COMMAN MAN
आम आदमी 

भैया ई फैक्ट्री के मालिक आपन समान के दाम खुद तय करत है. और हम दिन रात पसीना बहा के महन्गा खाद बिया दवाई डाल के फसल उगावत है और दाम सरकार तय करत है ,भैया ई कहा के इंसाफी ह . दूसरा – भैया ई इंसाफी ना सरकार राज ह . तब्बे त किसान आजतक गरीब ह . आत्महत्या करत ह . पर सरकार के का , सरकार त बस किसान खातिर योजना बनावेली और उहे टीवी पर दिखाकर जनता के उल्लू बनावल जाता, ईहा जमीन पर कहा काम होता. पहला – ठीके कहत हॅव भैया पर अगर किसान ही ना रही त ई पूरा देश के पेट कैसे भरी , दूसरा – अरे बुरबक पहले आपन पेट के देख , देश खातिर जब ई देश के नेता ना सोचत हवे त हम गरीब कहा से सोचल जा..





raani padmawati


रानी पद्मावती 


एक इतिहास के प्रवक्ता के तौर पे जब पद्मावती का जिक्र आया तो मैं खुद को रोक नही सका . पद्मावती मलिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत का एक पात्र है, अनेक इतिहासकारो ने अपने शोध से यह प्रमाणित किया है की पद्मावत एक काल्पनिक पात्र है जिसका वास्तविकता से कोई दूर दूर तक का वास्ता नही है, लेकिन एक सच्चाई यह भी है की मलिक मुहम्मद जायसी या अन्य साहित्यो मे पद्मावती एक प्रेरणादायक चरित्र का प्रतिनिधित्व करती है जो की भारतीय संस्कृति को गोर्वान्वित करती है . सचाई यह भी है की अपनी आन के लिये राजा रतन सिंह की पत्नी तथा महल मे रहनी वाली अन्य स्त्रियो ने जौहर किया था. किसी भी विशेष व्यक्ति की उपलब्धियो से ना केवल उसका समुदाय वरन पूरा देश गौरवान्वित होता है.


RAANI PADMAWATI
रायजी 




 हर देश और समुदाय को अपने इतिहास पे गर्व होता है. चाहे वो काल्पनिक , वास्तविक या जनश्रुतीयो वाला ही क्यो न हो . चूंकि रानी पद्मावती का सम्बंध राजस्थान के राजपूत समुदाय से है इस कारण इसका असर इनपर पड़ना स्वभाविक था . परंतु विरोध भी जब ऐसे फ़िल्मकार का होता है जिसका इस तरह के विवादो से पुराना नाता रहा है तो यह प्रश्न स्वभाविक हो जाता है की फिल्म बनाने का वास्तविक उद्देश्य क्या है . विरोध का केन्द्र बिंदु क्या है और फ़िल्मकार द्वारा इतिहास और फिल्म की पटकथा मे कितना अंतर है , इन सबके पीछे लाभ किसे हो रहा है . और अहिंसावादी देश मे अपनी बात क्या हिंसा द्वारा की जा सकती है , क्या जनता की भावनाये आहत करना इतना आसन है . ऐसे कई प्रश्न है जिनका जवाब आने वाले दिनो मे मिलने की संभावनाये है . बाकी ये पब्लिक है सब जानती है . . . . . . . . .


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KANPUR

कानपुर वाले पांडेय जी kanpur wale pandey jee

आज सुबह सुबह उठते ही फोन आया
kanpur station
kanpur station

की कानपुर वाले पाण्डेय जी गुजर गये, अचानक से पाण्डेय जी के विषय मे अनेक यादे ताजा हो गई. पाण्डेय जी हमारे खास मित्रो मे से एक थे , वे वही यूनिवर्सिटी मे समाजशास्त्र के प्रोफेसर थे.हालांकि हम लोगो की उम्र मे एक पीढी का फासला था पर कोई ऐसी चीज थी जिसने हम दोनो को आपस मे बाँध रखा था. पाण्डेय जी एक खुशमिजाज और मजाकिया इंसान थे मुझे उदास देखकर वो अक्सर कहा करते थे ” यार तुम तो 61 साल के बुड्ढे हो गये मुझे देखो मैं तो अभी 16 साल का जवान हूँ “.

कभी कभी वो मुझसे कहा करते थे रायजी जिंदगी मे इंसान को वो सारी चीजे मिले जो इंसान चाहता है ये जरूरी नही जरूरी ये है की जो जिंदगी देती है उसका इस्तेमाल इंसान कैसे करता है. पाण्डेय जी की श्रीमती जी से कभी नही बनी सन्तान शायद किस्मत मे नही थी. पर पाण्डेय जी इस बारे मे कभी सोच नही करते थे . वे अक्सर सेमिनार मे दूर दूर तक जाया करते थे उनके बोलने की शैली लाजवाब थी. कॉलेज मे ज्ञान बांटने के बाद बचा खुछ ग्यान मुझे दे दिया करते थे. और में उनके एक आग्याकारी विद्यार्थी की तरह सारा ज्ञान चुपचाप ग्रहन कर लिया करता था.

शायद यह एक रोजमर्रा की आदत सी बन गई थी, मेरे कही बाहर जाने पर वी बेसब्री से मेरा इंतजार किया करते थे तथा वापस आने पर ढेर सारे उपहार दिया करते थे. जैसे मैं उनका कोई खास रिश्तेदार हूँ. उनकी आधी तनख्वाह केवल गरीब बच्चो की फीस भरने मे चली जाती थी वे कहते थे रायजी जिंदगी ने हमे बहुत कुछ दिया तो हमारा भी फ़र्ज़ है किसी और की जिंदगी को काबिल बनाया जाये. ध्यान से सोचिये तो हम क्या लेके जायेंगे आपनो के साथ जो जी लिया वही ज़िंदगी है दूसरो की सेवा ही ईश्वर की सेवा है. कानपुर से मेरे तबादले की खबर सुनकर मुझसे ज्यादा वो दुखी थे, उन्होने दो दिन से कॉलेज से अवकाश ले रखा था . विदा होते समय पहली बार मैने उनकी आंखो मे आंशु की धारा देखी .

वहा से आने के बाद भी वी अक्सर टेलीफोन पर हालचाल लिया करते थे. अभी कल ही उन्होने मुझसे टेलीफोन पर कहा था की रायजी अगले हफ्ते आपके शहर मे एक सेमिनार मे भाग लेने आना है कहिये तो आपके लिये कुछ लेते आऊ और मैने बस इतना कहा था की आपसे मुलाकात सारी मीठाइयो से बढ़कर है………

GOOD DAYS

अच्छे दिन good days 



मुझे याद है की सन 2014 मे आम आदमी जितना उत्साहित था उतना उत्साह अपनी लॉट्री निकलने पर भी नही होता होगा . यही उत्साह भारी वोट प्रतिशत मे बदलते हुए बीजेपी को भारतीय सत्ता के केन्द्र मे लाता है.शुरुआती एक से दो सालो मे जनता को लगा की शायद नई सरकार को कुछ करने मे कुछ समय लगे इसी करण जनता ने इन सालो मे सरकार का पूर्ण निष्ठा से साथ दिया .


good days

चाहे वो नोट बंदी हो या जी एस टी . जनता लाइन मे मरती रही पर सरकार के प्रति उसकी निष्ठा बरकरार रही . मुझे आजतक ए नही समझ मे आया की हमारे देश का कोई नेता मंत्री विधायक या अधिकारी इस लाइन मे क्यो नही था. खैर सरकार है जाने की हमारी अर्थव्यवस्था कितनी सुधरी और सरकार की कितनी कभी कभी लगता है की यदि जी एस टी, एफ डी आइ और आधार कार्ड सही था तो इसका सबसे ज्यादा विरोध मोदी जी ने किया था जब वो विपक्ष मे थे. 


दरअसल इनकी राजनीति मे क्या होता है की ए जनता को वही सुनाते है जो जनता सुनना चाहती है . ए पाकिस्तान का खुल कर विरोध करते है. पर सत्ता मिलते है अचानक से पाकिस्तान घूमते पहुच जाते है. ए गरीबो को 200-400 या जो भी हो सरकारी पेंशन या अन्य योजनाओ से पैसा खाते मे भेजते है , उन्ही खातो से न्यून्तम राशि न रखने पर पैसा काट लिया जाता है . शायद यही अच्छे दिन है.

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राजनीति की दिशा


राजनीति  की दिशा  raajneeti ki disha 





हमारे देश मे एक समय ऐसा था जब राजनीति समाज सेवा का एक माध्यम हुआ करती थी . परंतु आज के मौजूदा परिदृश्य मे राजनीति किस दिशा मे गंतव्य है यह सोचने का प्रश्न है , सारे राजनीतिक दल से केवल यही प्रश्न पूछना चाहिये की उनके राजनीति मे आने का वास्तविक उद्देश्य क्या था ,क्या वे केवल सत्ता प्राप्ति और लाभ के लिये राजनीति मे है या अपने मूल उद्देश्य से पृथक समाज को खंडित और यथा स्थिति बनाते हुए स्वयं जनता के धन का दुरुपयोग करने मे लगे है.

मूल प्रश्न यह  भी है की क्या राजनीतिक दल अपनी चर्चा और भाषणो मे से केवल दो बिंदुओ को निकल सकते है, ए दो बिंदु है जाति और धर्म .अगर ऐसा हो तो ए अपने वास्तविक मुद्दे विकास पर ही रहेंगे या जनता को बरगलाने के लिये विकास के इतर कोई नया मुद्दा लेकर् प्रकट होंगे .


 जरा ध्यान और तार्किकता से विचार कीजिये अगर इनके पास जाती और धर्म को छोड्कर बात करनी हो तो ए क्या कहेंगे. अगर इन्ही के भाषणो को दुबारा इन्ही को सुनाया जाये तो क्या ए कुछ कहने लायक रहेंगे यहा बात किसी एक पार्टी या दल की नही है यहा बात है की जनता का विश्वास जीतने के बाद भी जनता की उम्मीदो पर ए किस कदर पानी फेरते है और उसी जनता को उनके उज्जवल भविष्य के सपने दिखाकर् फिर से सत्ता प्राप्त करते है.


 आजकल तो विकास शब्द कहने पर इसे किसी पार्टी विशेष का विरोध या पछधर समझ लिया जाता है, पर वास्तव मे क्या आज की राजनीति मे जहां इंसान की जान सस्ती हो गई है वही जानवरो के लिये ए पार्टीया सड़क पर उतर आती है. दिल पे हाथ रखकर बताइये क्या गाय,जाती,धर्म,छेत्र और एक दूसरे पे कीचड़ उच्छाल कर ए राजनीतिक दल जनता और देश को किस दिशा मे ले जा रहे है.क्या होगा आपस मे लड़ते हुए भीड़ से भरे इस देश का भविष्य.
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