Corona majdur aur jindagi
आजकल
आजकल
मैं अर्नब द्वारा की जाने वाली पत्रकारिता से पूर्ण रूप से सहमत नहीं रहता हूँ , लेकिन कांग्रेस की दमनकारी नीती देखकर कहीं ना कहीं यह समझते देर नहीं लगती की अर्नब का पैर ऐसी जगह पड़ चुका है जहाँ से शिवसेना और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों की कमजोर नस दर्द से तड़फड़ा उठती है | कांग्रेस जहाँ अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को दबाना अच्छे से जानती है वही शिवसेना का अहम् सबसे बढ़कर है |
सीबीआई अभी तक सुशांत केस को लेकर किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुँच पाई है या फिर उसे पहुँचने नहीं दिया जा रहा है | ड्रग का एंगल ख़तम हो चुका है | अब कुछ नहीं बचा सिर्फ आत्महत्या या फिर हत्या की गुत्थी सुलझाने के अतिरिक्त |
उद्धव गलती पे गलती किये जा रहे है और भाजपा महाराष्ट्र में बढ़त ही बढ़त लिए जा रही है | अच्छी राजनीति की जा रही है भाजपा द्वारा ,सिर्फ अर्नब और कंगना के द्वारा ही महाराष्ट्र के समूचे विपक्ष को चने के झाड़ पर चढ़ा कर वहां कमल खिलाने के लिए गड्ढा खोदा जा रहा है जिसमे पूरी झाड़ का डूबना निश्चित है |
समाचार चैनल अपना - अपना हित देखते हुए आम जनता को छोड़ टीआरपी की लड़ाई लड़ रहे है , इन सब को छोड़कर यह देखना दिलचस्प होगा की बिहार में सुशासन बाबू का क्या होगा | बिना वारिस के राजनीति छोड़ना भी अच्छा नहीं लगेगा और कमजोर होती जेडीयू तथा क्षीण होते स्वास्थ्य के भरोसे राजनीती करना भी मुश्किल होगा | भाजपा मगन है तो तेजस्वी दस लाख के भरोसे निश्चिंत है | सुशील मोदी को आजीवन बिहार का उपमुख्यमंत्री घोषित किया जा चुका है हालांकि आपत्ति सबको है | वहीँ चिराग से लेकर कुशवाहा तक रात - रात भर जाग कर सपने देख रहे है तो पांडे जी केवल नाम के दबंग निकले ।
korona and lockdown
कोरोना और लाकडाउन
hoshiyar ki talash
होशियार की तलाश
शरीफ आदमी की तलाश करते - करते ना जाने कितने ही शराफत वालो के असली रंग देखने को मिले। शरीफ दिखना और शरीफ होना इस फर्क को समझने में दिमाग की कई नसों ने काम करना बंद कर दिया । वास्तव में आज बेवकूफ कोई भी नहीं है , लेकिन फिर भी होशियार लोगो की कमी देखने को मिलती है । होशियारी की परिभाषा जानने के लिए जब बुजुर्गो का अनुभव लेने पहुंचे तो पता चला की , आज के युग में जो पैसा कमा रहा है ,चाहे माध्यम कोई भी और कैसा भी क्यों ना हो वो सबसे होशियार है। हालांकि ऐसे अनुभव बांटने वाले खुद अपने बेटे - बहु पर आश्रित थे । कुछ के अनुसार दूसरो से चालाकी पूर्वक काम निकालने वाला भी आज के युग में होशियार की उपाधि धारण करता है।
मेरी होशियार की परिभाषा की तलाश जारी है क्योंकि समाज का जो अंश बचा हुआ है, वो निश्चित तौर पर किसी बेवकूफ के भरोसे तो नहीं चल रहा होगा।
Hindu has become the most violent religion
हिन्दू सबसे हिंसक धर्म बन गया है
पहले तो यह बता दूँ की उर्मिला मार्तोडकर का पूरा बयां क्या था। उर्मिला मार्तोडकर ने कहा है की " नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दू सबसे हिंसक धर्म बन गया है " .
Gandhi is a seductive surname
गाँधी एक बहकावे वाला उपनाम -
नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और गाँधी उनकी वैशाखी । इंदिरा गाँधी द्वारा फिरोज खान के साथ प्रेम विवाह करने पर जवाहरलाल नेहरू को अपना और अपने परिवार का राजनीतिक अस्तित्व खतरे में दिखाई पड़ा उन्होंने फिरोज खान के " खान " को हटाकर गांधी कर दिया जिससे इंदिरा खान ना होकर इंदिरा गांधी के नाम से पहचानी जाये।
वैसे इस बारे में यह भी कहा जाता है की गांधी जी ने फिरोज खान को अपना दत्तक पुत्र माना था परन्तु इस प्रकार के तथ्यों की पुष्टि नहीं की जा सकती। फिरोज खान वैसे तो पारसी थे परन्तु उनका खान उपनाम प्रथम दृष्टया मुस्लिम प्रतीत होता और तत्कालीन समय में संचार क्रांति के इतने प्रगतिशील ना होने की वजह से आम जनता प्रथम दृष्टि को ही सत्य मान बैठती । इस प्रकार भारतीय इतिहास पुरुष महात्मा गाँधी के उपनाम का अधिग्रहण बहुत ही सफाई पूर्वक नेहरू - खान परिवारों द्वारा कर लिया गया और भारतीय जनता के विश्वास का भी । इस प्रकार नेहरू - खान परिवार नेहरू - गांधी परिवार के नाम से जाना जाने लगा।
इंदिरा गाँधी ने नेहरू की विरासत को आगे बढ़ाया और उपनाम लगाया "गांधी " का । सत्ता का केन्द्रीकरण करने की शुरुआत इंदिरा गांधी के शासन से शुरू हुई । राजीव गाँधी और फिर वर्तमान में राहुल गाँधी खुद से ज्यादा इसी नेहरू - गाँधी खानदान के वंशज के तौर पर जाने जाते है। अभी जाति सम्बंधित एक विवाद पर राहुल ने अपने गोत्र की पुष्टि भी की थी । परन्तु यह उतना ही आश्चर्य जनक है की "खान " उपनाम के साथ ही फिरोज खान भी वक़्त की आंधी में कहीं सिर्फ इसलिए खो गए है की उनका उपनाम खान था , जो की नेहरू के वंशजो और भारतीय राजनीति दोनों के अनुकूल नहीं था। उपनाम की महत्ता इससे ज्यादा कहीं और नहीं देखी जा सकती।
indian wedding
भारतीय शादियां
शादियों के सीजन की शुरुआत हो चुकी है। रिश्तेदारियों और जान - पहचान वालो के यहाँ से निमंत्रण के आने का दौर शुरू हो चुका है। पुराने कपड़ो को स्त्री करके नया बनाया जा रहा है और पिछले साल वाले जीजा को पुराना बताया जा रहा है ।
कुछ पुरानी शादियों की चर्चाये सुनाई दे रही है , कहीं लड़की ने लड़के को छोड़ दिया तो कहिं लड़के ने लड़की को।
freedom of speech
अभिव्यक्ति की आजादी
अभिव्यक्ति की आजादी ........ कहा है ?
नहीं साहब यहाँ अभिव्यक्ति की आजादी बिलकुल नहीं है। आप पडोसी को गाली नहीं दे सकते प्रधानमंत्री तो दूर की बात है।
क्या लगता है आप को गाली देने पर पडोसी छोड़ेगा ? की इस देश के प्रधानमंत्री ?
जवाब सबको पता है - नरेंद्र दामोदर दास मोदी
लेकिन आप किसी को कुछ भी कह क्यों रहे है ? क्या पीड़ा है आपकी ?
आपकी पीड़ा यही है की वातानुकूलित कमरों में बैठकर देश के लिए लम्बी - लम्बी छोड़ने वालो की दूकान ( गैर लाभकारी संगठन( NGO) ) बंद हो चुकी है।
देश की एकता और अखंडता को खंडित करने वाले अपने बिलो से बाहर नहीं निकल पा रहे है।
देश एक बार फिर विदेशियों(इस बार इटली ) के चंगुल से मुक्त है।
भारतीय फौज बिना किसी हस्तक्षेप के मानवता के दुश्मनो और कातिलों को चुन - चुन कर मार रही है।
कोई और पीड़ा ? हां बची है - भारत अब दुनियां की आँख से आँख मिलाकर कह सकता है की मैं मैं बेहतरीन बनने की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ रहा हूँ।
आप लगाइये नारे पकिस्तान के और हम कह दे पकिस्तान चले जाओ तो गन्दा है
खुली छूट है कुछ भी कहने की तो क्या भरतवंशियो की लाशो पर चढ़कर बोलोगे, अफजल हम शर्मिंदा है
budhapa
बुढ़ापा
बूढ़ा हो चला हूँ मैं
सब कहते है घर का कूड़ा हो चला हूँ मैं
आजतक मशीन की तरह काम करता गया
अपने साथ अपने संस्कारो का नाम करता गया
औलादो को भी तो वही दिया था मैंने
जाने कहा बदल लिए संस्कार उन्होंने
बचे हुए सफ़ेद बालो के साथ
कमजोर और बेसहारा मेरे हाथ
लकड़ी का एक टुकड़ा ढूंढ रहे है
शायद अब अपनों के साथ छूट रहे है
सिकुड़ती चाम , टूटते दांत
कमजोर निगाहें , पिघलती आंत
शायद अपने अंत के कुछ करीब जा रहा हूँ मैं
मधुमेह ,रक्तचाप और मोतियाबिंद की दवा खा रहा हूँ मैं
मेहमानो के उपहास का पात्र
कभी था एक होनहार छात्र
बुढऊ कहकर अब समाज बुलाता है
ऊपर से मंद - मंद मुस्कुराता है
शारीरिक दुर्बलता से ग्रसित मेरा शरीर
मानसिक दुर्बलता वालो से क्यों घबड़ाता है
थोड़ा ठहरो तुम सब भी
देखो इस बुढ़ापे से कौन बच पाता है
इन्हे भी पढ़े - गरीब (कविता )
goverment and poor
गरीब और सरकार
raajneeti aur hum
राजनीति और हम
construction of pauses and rites
ठहराव और संस्कारो का निर्माण
ठहरना जरुरी है , भागते रहोगे तो ठहरने का मजा क्या जानोगे
पड़ाव का अर्थ होता है कुछ दूर चलने के बाद ठहरने वाली जगह। जिंदगी में गतिशीलता भी उतनी जरुरी है जितना की ठहराव। अगर हम बचपन से लेकर जवानी और जवानी से लेकर बचपन तक भागते ही रहे , तब हमें कैसे पता चलेगा की क्या बचपन था और क्या जवानी। बचपन कुछ वक़्त के लिए ठहर के हमें बचपना करने का मौका देता है , जहाँ तनाव के लिए कोई जगह नहीं होती। उस बचपन की पीठ पर 10 किलो का बस्ता किसी तनाव से कम होता है क्या ।
बड़े शहरो में बहती नई पुरवाई मन , हम और बदलता मौसम
this is not rahul gandhi's victory
यह राहुल गाँधी की जीत नहीं -
ऐसे में अगर भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री पद हेतु किसी अन्य प्रत्याशी को उतरा जाता तो परिणाम कुछ और ही होते। इस कारण राजस्थान में मिली जीत राहुल गाँधी की जीत नहीं बल्कि भाजपा के मुख्यमंत्री पद के चेहरे की हार थी।
राहुल गाँधी के लिए आवश्यक है की वे स्वयं के बलबूते ऐसी लड़ाई जीतकर दिखाए जिसमे उनकी सीधी टक्कर मोदी से हो नाकि सत्ता विरोधी थोड़ी सी लहर को मिडिया द्वारा प्रचारित राहुल उदय समझने की भूल करना। नहीं तो मिजोरम में सत्ता हाथ से जाना और तेलांगना जैसे दक्षिण भारतीय राज्य में इसकी बुरी गति का होना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है की बाकि के तीन राज्यों में कांग्रेस का चुनाव जीतना महज सत्ता और राज्य के नेता विरोधी रुझान के सिवा कुछ नहीं।
mind we and the changing season
मन , हम और बदलता मौसम
पेट के पापी होने के सवाल की लम्बाई अब पापी मन तक बढ़ चुकी है। पापी मन को अब पेट भरने के साथ - साथ अन्य कई कार्यो में लगना पड़ता है। जावेद हबीब के सैलून से लेकर मैकडोनाल्ड के बर्गर तक और एप्पल से लेकर फ्लिपकार्ट के फैशन तक ना जाने पापी मन कहाँ - कहाँ तक पहुँच चुका है ।
ये मन अभी भी इस बात पर यकीं करते है की चौराहे की वह सियासत जिसमे धनिया की चटनी के साथ गरमागरम गोभी और प्याज के पकौड़े हो ,का मुकाबला नौटंकी से दिखने वाले न्यूज़ चैनलों के कानफाडू डिबेट कभी नहीं कर सकते जिसमे एंकर कॉफी की चुस्की के साथ दी गई स्क्रिप्ट को अमल करवाने का प्रयास करते है ।
बड़े शहरो में बहती नई पुरवाई
rahul gandhi and chanaky neeti
राहुल गाँधी और चाणक्य नीति
यहाँ इन सारे तथ्यों की चर्चा आवश्यक इसलिए है की भारतीय इतिहास के सबसे ज्ञानी और विद्वान पुरुष चाणक्य की उस उक्ति को झूठलान जिसमे उन्होंने कहा था की -
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