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लहू लाल हूँ ,लहू हूँ , अछूत नहीं सड़को पर बहाते हो कभी आजमाते हो खून हूँ , सुकून हूँ ,ना बहुँ तो थम जाते हो ...
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कोरोना , मजदूर और जिंदगी घर पर रहते हुए भी सुकून का ना होना मजदूरो और कामगारो के लिए कोई नया नहीं है | लेकिन कोरोना से बचने के चक्कर में ...
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करतार सिंह सराभा 15 अगस्त 1947 की वह सुबह पूरे भारतवासियों के लिए न केवल आजादी के खूबसूरत एहसास से भरी थी, बल्कि दिलों में एक कसक लिए हुए ...
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बिहार चुनाव 2025: लोकतंत्र की धड़कन और मतदाता की भूमिका बिहार चुनाव 2025 की ताज़ा जानकारी, मुख्य मुद्दे, और लोकतंत्र में मतदाता की अहम भूमिक...
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आजकल मैं अर्नब द्वारा की जाने वाली पत्रकारिता से पूर्ण रूप से सहमत नहीं रहता हूँ , लेकिन कांग्रेस की दमनकारी नीती देखकर कहीं ना कहीं ...
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जाति क्यों नहीं जाती ज़िन्दा थे तो बे बेनूर थे और मारके कोहिनूर बना दिया हुक्मराणो ...
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कुछ अपनी गुमनाम रहने की आदत क्यों डालू मैं जब जमाना ही ख़राब है होंगे कद्रदान मेरे चेहरे के लाखो दिल को समझने वाला मिले कहाँ...
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उफ्फ ये बेरोजगारी - uff ye berojgari कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमें...
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घर के मंदिर में भगवान श्रीराम की भक्ति भाव से भरे दादा जी ने श्री रामचरितमानस खोलते हुए अपने ७ साल के पोते से पूछा, '' पोते, बताओ तो...
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uff ye berojgaari
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