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Hindu has become the most violent religion

हिन्दू सबसे हिंसक धर्म बन गया है



पहले तो यह बता दूँ की उर्मिला मार्तोडकर का पूरा बयां क्या था। उर्मिला मार्तोडकर ने कहा है की " नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दू सबसे हिंसक धर्म बन गया है " .

अब आते है इस बयां के विश्लेषण पे। चूँकि उर्मिला मार्तोडकर ने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया है और उससे पहले एक मुस्लिम कश्मीरी व्यवसाई से शादी करके इस्लाम ज्वाइन कर लिया है। यहाँ दोनों के लिए ज्वाइन शब्द इसलिए क्योंकि वर्तमान समय में राजनीति का आधार धर्म पर आकर टिक जाता है। वैसे आजतक का इतिहास उठाकर देखे तो राजनीति और धर्म , शासन के लिए एक दूसरे के पूरक रहे है , और सत्ता में शामिल होने का एक माध्यम भी। यही कारण है की उर्मिला मार्तोडकर ने पहले इस्लाम ज्वाइन किया फिर निश्चित रूप से उन्हें कांग्रेस ज्वाइन करना ही था।

अब यहाँ से हम उनको उनके नए चोले के अनुसार बेगम अख्तर मीर के नाम से सम्बोधित करेंगे । बेगम अख्तर मीर अपने समय की एक बेहतरीन अदाकारा थी और उर्मिला मार्तोडकर के नाम से जानी जाती थी । हर अदाकारा ( महिला ) का एक समय होता है और उसके पश्चात वह मुख्य भूमिका से सहायक भूमिका या किसी अन्य किरदार ( व्यक्तिगत जीवन में भी ) में नजर आने लगती है। बेगम मरियम अख्तर मीर ने बड़े परदे से उतरने के पश्चात घर - गृहस्थी बसाना उचित समझा , उनके अंदर अभी भी कहीं ना कहीं स्टारडम की महत्वकांक्षा हिलोरे मार रही थी इसलिए उन्होंने राजनीति में उचित अवसर देखकर टिकट की उम्मीद से कांग्रेस से नाता जोड़ लिया ।
अब पहली फिल्म की तरह पहला स्टेटमेंट भी ब्लॉकबस्टर होना ही चाहिए इसलिए बहुसंख्यक हिन्दू आबादी और सर्वाधिक लोकप्रिय नेता का मिश्रण करते हुए यह स्टेटमेंट की "नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दू सबसे हिंसक धर्म बन गया " दे ही दिया । हिन्दुओ को इससे आघात लगा और मोदी समर्थको को गहरा धक्का , हालांकि वर्तमान समय में बहुसंख्य हिन्दुओ की आस्था मोदी में केंद्रित है । हिन्दू एक ऐसा धर्म रहा है जिसने वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को अपनाया , जिसने मुस्लिम शासको के साथ ईसाइयो का भी साथ दिया। यह अलग बात थी की इनके शासन में हिन्दुओ के साथ ना जाने क्या - क्या हुआ । मुस्लिम शासन में निश्चित तौर पर हिन्दुओ का मनोबल गिरा और साथ ही ईसाई शासन में भी , क्योंकि इन शासको ने जैसा मैंने पहले कहा है धर्म आधारित राजनीति को प्रश्रय दिया। और हिन्दू धर्म की बुनियाद पर आघात किया।
समय के साथ आजादी के बाद हिन्दू धर्म को कांग्रेस ने जाति आधारित राजनीति से विभाजित कर सत्ता अपने पास बरकरार रखी 

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का अंदरूनी झुकाव किसी से छिपा नहीं है , परन्तु यह तथ्य आजादी के बाद जिनको पता थी वह इसे जनता के सम्मुख नहीं रख पाए इंटरनेट क्रांति के बाद इस तरह की सूचनाओ का आदान प्रदान तेजी से हुआ और कांग्रेस के दोहरे आचरण की पोल खुलती गई । कांग्रेस के अलावा हिन्दू हितो की बात किसी ने खुलकर नहीं की सिवाय मोदी के , आडवाणी भी जिन्ना के बयान के बाद अपने राजनीतिक करियर पर कुल्हाड़ी मार बैठे । मोदी उदय के साथ हिंदुत्व ने एक नई परिभाषा को जन्म दिया जिसमे राष्ट्रवाद का भी मिश्रण था। एक बार फिर हिन्दुमानस अपने इतिहास को याद करने लगा और मोदी के नेतृत्व में स्वयं को सहज पाने लगा। इसके अलावा वह हिन्दू धर्म की मूल भावना के इतर हिंसक कभी नहीं हुआ। दो चार घटनाये राजनीति से प्रेरित अवश्य थी जिसे मीडिया ने मिर्च मसाले के साथ पेश किया । हां उसका मनोबल कुछ ऊँचा जरूर हुआ है और इस बढे हुए मनोबल की व्याख्या अलग - अलग रूपों में अवश्य हो सकती है।
बेगम मरियम अख्तर मीर कांग्रेस की उसी विचारधारा से प्रभावित है जिसका पोषण उनके अंदर हुआ है। मैं किसी धर्म पर टिपण्णी नहीं कर सकता क्योंकि धर्म हमें भेद करना नहीं सिखाता , मैं उस व्यक्तिगत धर्म के खिलाफ हूँ जिसका पोषण दूसरे धर्म को ठेस और क्षति पहुँचाने के लिए किया जाता है । उनके चुनावी क्षेत्र में में भी इस तरह के बयान की आवश्यकता थी जिससे उनके राजनीतिक किरदार को समझने में आवश्यकता हो । और इस एक स्टेटमेंट से उन्होंने बता दिया की भविष्य में उनका किरदार क्या होगा।

Gandhi is a seductive surname



गाँधी एक बहकावे वाला उपनाम - 



महात्मा गाँधी जैसी शख्शियत के उपनाम से प्रसिद्ध गाँधी शब्द आज राजनीति में बेहद ही मजबूत शब्द माना जाता है।  यहाँ बात केवल शब्द की है नाकि इसको लगाने वाले शख्श  की । लोग अक्सर ही आपके उपनाम को गंभीरता से लेते है , यही उपनाम आपकी पहचान का मूलस्त्रोत होता है।  कभी -  कभी यह उपनाम जातिगत और क्षेत्रगत बंधनो से ऊपर उठता हुआ राष्ट्रिय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करता है । ऐसा ही करिश्मा मोहनदास करमचंद्र  " गाँधी  "  ने किया था ।

 Gandhi is a seductive surname

देश की आजादी में अपना योगदान देने वाले गांधी के प्रति तत्कालीन भारतीय समाज का बड़ा वर्ग अत्यंत ही संवेदनशील था और उसकी नजरो में महात्मा गांधी एक देवतुल्य पुरुष थे। 

नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और गाँधी उनकी वैशाखी । इंदिरा गाँधी द्वारा फिरोज खान के साथ प्रेम विवाह करने पर जवाहरलाल नेहरू को अपना और अपने परिवार का राजनीतिक अस्तित्व खतरे में दिखाई पड़ा उन्होंने फिरोज खान  के " खान "   को हटाकर गांधी कर दिया जिससे इंदिरा खान ना होकर इंदिरा गांधी के नाम से पहचानी जाये।  
 Gandhi is a seductive surname

वैसे इस बारे में यह भी कहा जाता है की गांधी जी ने फिरोज खान को अपना दत्तक पुत्र माना था परन्तु इस प्रकार के तथ्यों की पुष्टि नहीं की जा सकती। फिरोज खान वैसे तो पारसी थे परन्तु  उनका खान उपनाम प्रथम दृष्टया मुस्लिम प्रतीत होता और तत्कालीन समय में संचार क्रांति के इतने प्रगतिशील ना होने की वजह से आम जनता प्रथम दृष्टि को ही सत्य मान बैठती । इस प्रकार भारतीय इतिहास पुरुष महात्मा गाँधी के उपनाम का अधिग्रहण  बहुत ही सफाई पूर्वक नेहरू - खान परिवारों द्वारा कर लिया गया और भारतीय जनता के विश्वास का भी । इस प्रकार नेहरू - खान परिवार नेहरू - गांधी  परिवार के नाम से जाना जाने लगा। 


इंदिरा गाँधी ने नेहरू की विरासत को आगे बढ़ाया और उपनाम लगाया  "गांधी " का । सत्ता का केन्द्रीकरण करने की शुरुआत इंदिरा गांधी के शासन से शुरू हुई । राजीव गाँधी और फिर वर्तमान में राहुल गाँधी खुद से ज्यादा  इसी नेहरू - गाँधी खानदान के वंशज के तौर पर जाने जाते है। अभी जाति  सम्बंधित एक विवाद पर राहुल ने अपने गोत्र की पुष्टि भी की थी । परन्तु यह उतना ही आश्चर्य जनक है की  "खान "  उपनाम के साथ ही  फिरोज खान भी वक़्त की आंधी में कहीं सिर्फ इसलिए खो गए है की उनका उपनाम खान था , जो की नेहरू के वंशजो और भारतीय राजनीति दोनों के अनुकूल नहीं था। उपनाम की महत्ता इससे ज्यादा कहीं और नहीं देखी जा सकती। 


अब बात असली गांधी के हक़दारो की तो जैसा की सब जानते है उनके चार बेटे थे , हरिलाल , मनीलाल , रामदास और देवदास परन्तु महात्मा गाँधी ने कभी उन्हें राजनीति में स्थापित करने की कोशिश नहीं की।  वैसे तो आज महात्मा गाँधी की वंशवृक्ष बेहद विशाल है परन्तु किसी ने भी उनके गांधी उपनाम और राजनीतिक विरासत पर दावा नहीं किया।  जैसा की नकली उपनाम वाले करते है। 



modi

मोदी 

सच कहूं तो मैं एक आम भारतीय की तरह कांग्रेस से काफी निराश हो चुका था। मैं भाजपा को भी पूरी तरह सही नहीं मानता था। तभी अरविंद केजरीवाल आये लगा बंदा कुछ हट के है। फिर उनका पहला झूठ पकड़ा जब उन्होंने अपने बच्चो की कसम खाई और कभी कांग्रेस और बीजेपी का समर्थन ना लेने की बात कही। ईश्वर उनके बच्चो को दीर्घायु प्रदान करे। आम आदमी की तरह प्लेटफार्म पर सोने वाली फोटो खूब भाई, फिर उनकी तानाशाही देखने को मिली। जिन सबूतों से वह शीला सरकार पर कार्यवाही की बात करते थे अचानक ही वह गायब हो गए। झूठ पर झूठ और कुछ हद तक उनके देश के प्रति विचार रास नहीं आये।









मुझे कांग्रेस के इरादे नेक नहीं लगते , मुझे ये समझ नहीं आता की वंशवाद की ऐसी कौन सी मज़बूरी है की राजनीति के अनुकूल ना होते हुए भी कांग्रेस भारत जैसे विशाल देश के लिए राहुल गाँधी को अपना प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने पर तुली हुई है । मनमोहन सिंह ने सोनिया गाँधी के हाथो की कठपुतली बनना क्यों मंजूर किया। हर देश विरोधी तत्वों का कांग्रेस का समर्थन स्वतः ही क्यों मिल जाता है । कांग्रेस के भ्रष्टाचार , हिन्दू और देश विरोधी रवैये से जनता घुट चुकी थी।








ऐसे में गुजरात से उठकर राष्ट्रिय पटल पर मोदी जी का उभार हुआ , जी इसलिए की अभी तक सम्मान बरकरार है क्योंकि राजनीति में व्यक्तित्व में कब बदलाव हो जाये पता नहीं । कुछ हिंदूवादी बातें हुई , मैं सांप्रदायिक नहीं हूँ परन्तु इस देश की अन्य पार्टियों द्वारा हिन्दुओ को अनदेखा किया गया। जैसे हमारे पूर्वजो ने छोटी जातियों को अनदेखा किया था। जिसका दर्द उनके सीने में अभी तक है , और हमारे संविधान ने उनकी इसी स्थिति का आंकलन करते हुए उन्हें आरक्षण प्रदान किया। हालांकि वर्तमान में मैं मैं आरक्षण दिए जाने का पक्षधर नहीं। उन्ही में से कुछ लोगो को मोदी ने सम्मान क्या दे दिया अन्य लोगो ने इसे चुनावी स्टंट बता दिया। चलिए यह काम आप भी सारे पार्टी के मुखिया राहुल से लेकर ममता तक से करवा लीजिये बात बराबर हो जाएगी ।



उनका स्वच्छता अभियान पहले मेरे लिए किसी महत्व का नहीं था मुझे लगा कुछ दिन बाद यह स्वतः ही चर्चा से गायब हो जायेगा जैसा आजतक भारत में होते आया है। परन्तु मैंने देखा धीरे - धीरे इसकी शाखाये विशाल होते जा रही है घर से लेकर बाहर तक लोगो की इस पर चर्चा जारी है , जहाँ तक मेरा मानना है कोई भी काम तब सफल है जब वह लोगो के जेहन में घर कर जाए ।


दरअसल 2014 के बाद मैंने देश के उन चेहरों को अपने असली रंग में आते देखा है जो उससे पहले फेयर एंड लवली लगा कर अपने असली चेहरे को ढके हुए थे। मैंने राहुल गांधी को सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध करते देखा है। मैंने ममता बनर्जी को देश हित से पहले स्वयं की सत्ता बरक़रार रखने के लिए जमीर को बेचते देखा है। मैंने " भारत तेरे टुकड़े होंगे " जैसे नारे भारत की राजधानी और देश के सबसे बड़े शैक्षणिक संस्थान में सुने है। मैंने पकिस्तान के सेना प्रमुख से भारतीय मंत्री को गले मिलते देखा है । मैंने इमरान खान के लिए शांति के नोबल की पुकार सुनी है ।



मेरे लिए देश सर्वपरि है इसलिए मै " हमारा सिद्धांत है हम घर में घुस के मारेंगे " बार - बार सुनना और देखना चाहूंगा। मैं मोदी को वर्तमान राजनीति में सबसे श्रेष्ठ तब तक मानता रहूँगा जब तक वह ऐसे ही ईमानदार रहेंगे। तीन बार मुख्यमंत्री और एक बार प्रधानमंत्री रहने के बाद भी उन पर एक रूपये का भ्रष्टाचार कोई सिद्ध नहीं कर सकता । वे देशहित के मुद्दों पर खुलकर बोलते और फैसले लेते है। वे कुशल राजनीतिज्ञ और कुशल वक्ता भी है । उन्होंने विश्व में भारत का मान और भारतीयों का अभिमान दोनों ही बढ़ाया है ।


लेखक  द्वारा  क्वोरा पर दिए गए एक जवाब से साभार - 

2014 में भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी के प्रति आपकी धारणा कैसे बदल गई है?

new india


नया भारत 




पिछले कुछ दिनों से समाचारो की सुर्खियों में पुलवामा हमला और उसके तुरंत बाद 56 इंच के सीने को लेकर सवाल सोशल मीडिया  में  देखे गए।  हालाँकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की पुलवामा हमले में कहीं ना कहीं भारतीय सुरक्षा तंत्र की नाकामी थी और नाही इस बात से भी की बिना स्थानीय सहयोग के ऐसी घटना को अंजाम देना संभव था। 

फिर सवाल यह भी उठने लगता है की क्या भारत एक बार फिर शांति की दुहाई देगा जैसा 26 / 11 के हमले में दिया गया था या जैश के खिलाफ पाक को सबूत देगा।  घाव बड़ा था इसलिए प्रश्न यह भी था की क्या  " मोदी है तो संभव है " जैसे कहावत हकीकत में अपना असर दिखाएंगे।परन्तु किसी भी घटना के लिए तुरंत प्रतिक्रिया देना कहाँ तक सही है जब सारी की सारी  प्रतिक्रियाएं धरी की धरी रह गई और 56 इंच बढ़ता हुआ 58 इंच हो गया।  जवाब मिला तेरहवे दिन जी बिलकुल यह नया भारत है जिसने जैश ए मुहम्मद के आतंकवादियों को बहत्तर हूरो से मिलवाने का काम किया।  जिसने रातो रात 1000 किलो का बम पकिस्तान में ले जाकर उस वक़्त फोड़ा जब सारे खटमल ( आतंकवादी ) एक जगह जमा थे। 



पकिस्तान घबरा गया उसकी आवाम में सरकार विरोधी नारे लगने लगे , इमरान खान को अपनी साख बचाने के लिए अमेरिका से आयातित एफ - 16 से भारत पर हमला करना पड़ा लेकिन दुश्मन के पलटवार को लेकर सजग भारतीय सेना ने एक एफ - 16 को मार गिराया।  हालाँकि इसमें हमारे एक मिग विमान के पायलट विमान के नष्ट होने की वजह से पाकिस्तानी क्षेत्र में जा गिरे। 

पहले तो पकिस्तान ने शेखी बघारते हुए सूचना दी की भारत के दो पायलट उसके कब्जे में है, परन्तु भारत द्वारा एक पायलट अभिनन्दन के पकिस्तान में होने की बात कही गई , हुआ यूँ  की पाकिस्तान ने अपना पायलट भी गिन लिया था। पहले तो इमरान खान ने रिहाई के बदले शर्त रखी जिसे स्वीकार नहीं किया गया  , फिर भारतीय प्रधानमंत्री से फोन पर बात करने की कोशिश की जिसे मोदी ने मना कर दिया। इसके बाद इमरान खान ने बिना शर्त पाकिस्तानी संसद में भारतीय विंग कमांडर को छोड़ने की बात कही। तथा बाघा सीमा तक कुशलता पूर्वक उन्हें छोड़ा गया। 

पकिस्तान कभी यूएन पहुँचता है , कभी भारत से शांति की अपील करता है। उधर अमेरिका पकिस्तान पर दबाव बनाता है तो चाइना  कुछ भी कहने से बचता है।  एक तरफ इजरायल पाकिस्तानी सेना के रडार जाम करता है तो दूसरी तरफ रसिया सैन्य मदद की पेशकश करता है। शायद नए और उभरते भारत का लोहा दुनियां मानने को मजबूर है। 

यह मोदी के प्रति लोगो का  विश्वास ही है की पुलवामा हमले के बाद देश की जनता को यकीन था की बदला जरूर लिया जायेगा और बदला लिया भी गया। 

बात अब देश में ही छिपे उन आतंकवादियों को भी उनके बिलो से निकालना होगा जो खुद को भारतीय कहते है लेकिन दिल से राष्ट्रविरोधी है। भारत की अधिकांश  राजनीतिक पार्टियों देश हित से सर्वोपरि स्वयं का हित समझती है।  तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करना , सोशल मीडिया पर अफवाहों को बढ़ाना , खुद की देश के प्रति स्थिति स्पष्ट ना करना।  देश को बस एक ऐसे उद्देश्य की पूर्ति का माध्यम समझना जिससे उन्हें सत्ता और धन की प्राप्ति होती है ,वर्ना इनकी संपत्ति में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी कैसे संभव है। 

वर्षो बाद देश को एक मजबूत नेता और सरकार मिली है जिसने देशविरोधी तत्वों के साथ - साथ विश्व मंच पर इससे वैर रखने वालो की नींदे  उड़ा रखी है , इसमें कोई संदेह नहीं की जागरूक और देशप्रेमी जनता 2019 में देश की कमान इसे छोड़ किसी और को सौपेंगी क्योंकि यही नए भारत के निर्माणकर्ता है। 




raajneeti aur hum


राजनीति और हम 



अभी क्या हमेशा पढता हूँ शेर अकेला आता है और भेड़िये झुण्ड में


अगर भारतीय राजनीति के सापेक्ष बात करू तो अब तक तो आप समझ ही गए होंगे की रजनीकांत द्वारा बोला गया यह डायलॉग किसके प्रशंसकों द्वारा कहा जाता है।

भारतीय राजनीत के बदलते चेहरे का एक स्वरुप आजकल सोशल मीडिया पर हावी होते जा रहा है।  जिसमे फोटो एडिटिंग से लेकर वीडियो एडिटिंग तक सब कुछ शामिल है। डायलॉग बाजी तो इसकी जान में बसती है।

नेताओ के नाम बदल कर अशोभनीय टिपण्णी करने वाला समाज , नेताओ से शिष्टाचार की उम्मीद कैसे कर सकता है। केजरुद्दीन , फेंकू , गोदी , पप्पू  जैसे शब्दों का प्रयोग  राजनीति की गिरती गरिमा को रसातल में पहुँचाने का काम करते है।

अनुयायियों का स्थान आजकल चमचो और भक्तो जैसे शब्दों ने ले लिया है। नेता लड़े या ना लड़े इनकी जंग जारी रहती है। फोटो एडिटिंग को देखकर तो कभी - कभी सच्ची तस्वीरों पर भी शक होने लगता है।

अब तो लगता है देश जैसे  पूर्ण रूप से विकसित हो चुका है , क्योंकि मुद्दों में कही विकास रहता ही नहीं।  हम बस जी रहे है भावनावो के साथ वही काफी है। चुनाव शुरू होते ही  भावनावो का बाजार  सजने लगता है।

गाय से श्रद्धा रखने वाले एक तरफ , सच्चे हिंदू एक तरफ , हनुमान जी वाले एक तरफ , देशभक्त कहलाने वाले एक तरफ  और दूसरी तरफ अपनी - अपनी जाति  वालो की लम्बी लिस्ट ,उसके बाद अल्पसंख्यकों के हितैषी एक तरफ, अब चुन लीजिये अपनी जाति  का नेता जो आपको अच्छे दिन दिखलायेगा। खामी उनसे ज्यादा कहीं ना कहीं हमारे अंदर ही है। जो विकास , बेरोजगारी , बढ़ती आबादी , कुपोषण , गरीबी , भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को छोड़कर ऐसे मुद्दों की तरफ भागते है जिनसे हमें तो कुछ नहीं मिलने वाला लेकिन इन मुद्दों को बनाने वाले सत्ता के शिखर पर पहुँच जाते है। 


समय है पहले खुद में सुधार लाने का , समय है खुद से जुड़े मुद्दों के साथ खड़े होने का , समय है मर्यादित आचरण का और समय है व्यर्थहीन मुद्दों से अपना मुख मोड़ने  का। 





this is not rahul gandhi's victory



यह राहुल गाँधी की जीत नहीं  - 




राजस्थान , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है । जहाँ छत्तीसगढ़ में इसे स्पष्ट बहुमत प्राप्त है वही राजस्थान और मध्यप्रदेश में महज सीटों की आवश्यकता सरकार बनांने में पड़ेगी । इसके साथ ही हम आंकड़ों पर एक नजर डालते है जहाँ विधानसभा में मध्यप्रदेश की 230  सीटे है वही भाजपा ने 109 सीटों पर अपनी प्रतिष्ठा बरकरार रखी और कांग्रेस 114 सीट जीतने में सफल रही । वहीँ 2 सीट मायावती, 1 सीट समाजवादी पार्टी और 4 सीटों पर निर्दलीयों ने विजय हासिल की। कांग्रेस जहा राज्य के 40.9 %  वोटरो को अपने पक्ष में करने में सफल रही वही  बीजेपी  41 % वोटरों को। ऐसे में दोनों के बीच महज .1 % वोटो का ही अंतर रहा। मध्यप्रदेश में ऐसी सीटों की संख्या 7 थी जहाँ पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के बीच जीत का अंतर सिर्फ 100 से 1000 वोटो के बीच था तो क्या क्या कहेंगे ऐसे में। 

15 साल के शासन के पश्चात सत्ता विरोधी लहर का होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है। ऐसे में यह सत्ता विरोधी लहर महज चार सीटों और .1 प्रतिशत वोटो के अंतर से सिमट जाती है वह भी किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत दिए बगैर। 

क्या कह सकते है इसको की यह राज्य सरकार की नाकामी है या फिर जनता का एक  वर्ग  बस इसलिए सत्ता परिवर्तित करता है की उसे सिर्फ इतने सालो से चली आ रही  पुरानी सरकार के बदले एक नई सरकार देखने की इच्छा मात्र थी, कांग्रेस के चुनाव का कारण मात्र यह था की  विकल्प में मध्यप्रदेश जैसे राज्य में उत्तर प्रदेश और अन्य प्रदेशो की तरह कोई क्षेत्रीय पार्टियाँ नहीं थी।  जमीन से जुड़े लोग बताते है की अभी भी बिना चेहरे वाली कांग्रेस की अपेक्षा बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश का सबसे लोकप्रिय चेहरा है। 

 कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की अपेक्षा शिवराज सिंह मध्यप्रदेश की राजनीति में  आज भी उतने विश्वसनीय और लोकप्रिय है जितना वे पहले हुआ करते थे। लड़ाई यहाँ ना राहुल गाँधी और मोदी में थी ना कांग्रेस और भाजपा में ,लड़ाई सिर्फ 15 साल पुरानी सरकार को सिर्फ स्वाभाविक तौर पर जनता द्वारा बदलने की मानसिकता की थी। जिसे सम्पूर्ण जनता ने तो नहीं स्वीकार किया लेकिन कुछ ने माना की एक बार किसी अन्य को मौका इसलिए दिया जाए ताकि सत्ता का हस्तांतरण होता रहे।  

अब बारी राजस्थान की -  राजस्थान  का हाल तो वैसे भी  किसी से नहीं छुपा।  यहाँ लगातार दो बार सरकार बनाना यानि जनता को इस परिस्थिति में ला देना की वह इस मिथक को तोड़ सकती है लगभग असंभव है। फिर भी आंकड़ों पर गौर करना बेहद जरुरी है। 

यहाँ भी कांग्रेस अपने बलबूते सरकार बनांने की स्थिति में नहीं है। लेकिन ढिंढोरा पीटा जा रहा है की राहुल गाँधी की लहर शुरू हो चुकी है। 49. 5 प्रतिशत वोटो के साथ कांग्रेस यहाँ 99 सीटे जीतने में कामयाब रही है। हालाँकि सरकार बनाने के लिए उसे दो सीटों की और आवश्यकता होगी परन्तु बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी  द्वारा कांग्रेस को समर्थन की घोषणा के बाद दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनना तय है। 

दरअसल लड़ाई यहाँ भी मोदी और राहुल गाँधी की नहीं बल्कि यहाँ की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और जनता के बीच थी, जिसका लाभ कांग्रेस को मिला ।  200 सीटों की  विधानसभा  वाली यहाँ की जनता ने इसके बावजूद बीजेपी की झोली में 36.5 प्रतिशत वोटो के साथ 73 सीटे डाल दी। जनता द्वारा दिए गए नारो से इस लड़ाई को साफ़ समझा जा सकता है।  " मोदी जी से वैर नहीं वसुंधरा तेरी खैर नहीं "   , "After 8 PM no CM  "यानि आठ बजे रात्रि के बाद यह मुख्यमंत्री नहीं रहती। नाराजगी काम से ज्यादा वसुंधरा के व्यवहार से थी जनता कभी भी उन्हें अपने बीच नहीं पाती , जिस वजह से अपने मुख्यमंत्री से उसका जुड़ाव ख़त्म हो चुका था ।  

ऐसे में अगर भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री पद हेतु किसी अन्य प्रत्याशी को उतरा जाता तो परिणाम कुछ और ही होते। इस कारण राजस्थान में मिली जीत राहुल गाँधी की जीत नहीं बल्कि भाजपा के मुख्यमंत्री पद के चेहरे की हार थी। 


अब आते है छत्तीसगढ़ की तरफ -  गरीबी और अशिक्षा से जूझता यह राज्य 15 सालो से भाजपा द्वारा शासित था कहानी कुछ मध्य प्रदेश जैसी ही थी , परन्तु यंहा कांग्रेस का सिर्फ एक चुनावी वादा दस दिनों में कर्जमाफी का ने कहानी में बड़ा अंतर ला दिया फलस्वरूप खेती किसानी और आदिवासी बहुल वाले  इस राज्य ने  75.6 प्रतिशत वोटो के साथ कांग्रेस को 68 और 16.7 प्रतिशत वोटो के साथ भाजपा को महज 15 सीटों पर ला दिया। 


इन सारे रुझानों में कही भी राहुल गाँधी के व्यक्तित्व की चर्चा नहीं होती। अगर उनका कोई योगदान है तो वह सिर्फ एक ही है और वो है की राजस्थान में सचिन पायलट तथा अशोक गहलोत और मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओ  का उनकी पार्टी में होना।  अगर इसे 2019 के लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है तो यह बिल्कुल सही है , परन्तु आवश्यक है इन परिणामो को बारीकी से समझना, आंकड़ों में जनता के सवालो और जवाबो को ढूंढना क्योंकि विधानसभा और लोकसभा दोनों के चुनावों में जनता का मत और मुद्दे दोनों ही अलग - अलग होते  है। 

राहुल गाँधी के लिए आवश्यक है की वे स्वयं के बलबूते ऐसी लड़ाई जीतकर दिखाए जिसमे उनकी सीधी टक्कर मोदी से हो नाकि सत्ता विरोधी थोड़ी सी लहर को मिडिया द्वारा प्रचारित राहुल उदय समझने की भूल करना। नहीं तो मिजोरम  में  सत्ता हाथ से जाना और तेलांगना जैसे दक्षिण भारतीय राज्य में इसकी बुरी गति का होना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है की बाकि के तीन राज्यों में कांग्रेस का चुनाव जीतना महज सत्ता और राज्य के नेता विरोधी रुझान के सिवा कुछ नहीं। 


भाजपा के लिए भी यह आवश्यक है की वह जनता की नब्ज समझे और मंदिर , गाय, हनुमान  जैसे  अनावश्यक मुद्दों को ज्यादा तरहीज ना दे क्योंकि तमाम तरह की  दुश्वारियों और कठिनाइयों से परेशान इस देश की जनता इस तरह के मुद्दों से अब ज्यादा प्रभावित नहीं होती । बल्कि रोजगार , सड़क , बिजली ,पानी तथा स्थानीय मुद्दे ही उसके लिए प्रमुख होते है।

 बाकी यह पब्लिक है सब जानती है। 





rahul gandhi and chanaky neeti


राहुल गाँधी और चाणक्य नीति 


rahul gandhi and chanaky neeti


चाणक्य ने कहा था की  किसी विदेशी महिला की कोख से उत्पन्न संतान उस देश का हित  कभी नहीं सोच सकती । 

राहुल गाँधी कांग्रेस का वो चेहरा है जिसे राजनीति में नहीं होना चाहिए था। परन्तु वंशवाद और गाँधी परिवार के सदस्य होने के नाते वह स्वाभाविक तौर पर पार्टी की कमान सँभालने के योग्य है। हालांकि पार्टी में योग्य नेताओ की कमी बिलकुल भी नहीं है , परन्तु उनके पास  गाँधी परिवार का जन्म प्रमाणपत्र नहीं है। इस कारण वे सिर्फ परिवार से वफादारी दिखाकर दूध के ऊपर की मलाई खाने में ही मगन है। 

एक कल्पना आप भी कीजिये की यदि अमेरिका जैसे देश की कमान वहां पर बहु बनी आपकी माँ के पास आ जाये तो वे क्या करेंगी।  क्या वे पूर्ण रूप से उस देश  की प्रगति के लिए कार्य कर पाएंगी या फिर अपने मूल देश के उद्देश्यों की पूर्ति का साधन बनेंगी।  क्या वे अमेरिका जैसे देश की जमीनी हकीकत समझ पाएंगी , जबकि वे जन्म से लेकर युवावस्था तक भारत की संस्कृति और परिवेश में पली - बढ़ी होंगी । इन सबके बाद भी सम्भावनाओ से इंकार नहीं किया जा सकता की वे अमेरिका जैसे देश को आगे बढ़ाने का काम करती यदि उनकी नियत, धर्म , वहाँ के परिवार की कार्यशैली और जन्म से मिलने वाले संस्कार उत्तम कोटि के होते , और उनका मूल देश भारत होता ना कि इटली जैसा वह  देश जिसके नाविक तक भारतीय मछुआरों की बिना वजह हत्या कर देते है। 

राहुल गांधी  इस तथ्य को नकार नहीं सकते की वे पूर्ण रूप से भारतीय नस्ल के नहीं  है। उनका जुड़ाव आज भी इटली से है ,बोफोर्स के क्वात्रोची  से लेकर वाड्रा  तक उनके विदेशी और धार्मिक पक्ष को मजबूती से बयां करते है । क्वात्रोची की प्रधानमंत्री आवास से लेकर कार्यालय तक बेरोकटोक आवाजाही किसी से छिपी नहीं थी ।  उसी प्रकार राबर्ट वाड्रा  का बिना किसी पद के  सिर्फ  परिवार के बूते वीवीआईपी  बनना भी  कांग्रेस सरकार में  एक आम बात थी । 

फिलहाल राहुल गाँधी अपने गोत्र से लेकर उपनाम तक के सन्दर्भ में सुर्खियों में रहने वाले है।  इतिहास सिर्फ पढ़ा जा सकता है उसे बदला नहीं जा सकता ,और नाही उसे झुठलाया जा सकता है।  खुद को नाना के गोत्र का बताने वाले राहुल गाँधी यह भूल जाते है की यदि गोत्र माँ के पक्ष का लिया जाता तो उनकी माँ को सर्वप्रथम हिन्दू धर्म स्वीकार करना पड़ता।  यदि दादा के पक्ष का लिया जाता तो पारसियों का कोई गोत्र नहीं होता। 

यहाँ इन सारे तथ्यों की चर्चा आवश्यक इसलिए है की भारतीय इतिहास के सबसे ज्ञानी और विद्वान पुरुष चाणक्य की उस उक्ति को झूठलान जिसमे उन्होंने कहा था की -


"विदेशी माँ की कोख से उत्पन्न संतान कभी इस देश का भला नहीं सोच सकती  "

इस देश को  रसातल में पहुंचा सकता है और इसके देशवासियो को भिखारी। 



Princes and country


शहजादा और देश 


  Princes and country


वंशवाद की बेली में 
एक फूल खिला है, हवेली में 
बेला , गुलाब,गुड़हल  और गेंदा 
विलक्षण फूल, नहीं इन जैसा 

मात  करे हर पल रखवाली 
हो ना पूत ,कही मवाली 
पाणी को ग्रहण करे ना 
अधेड़ उम्र का ,बालक सयाना 

राजतिलक को चिंतित माता 
बुझे , इसको कुछ नहीं आता 
जनता के हास्य का साधन

माने खुद को सच्चा बाभन  


चाटुकारो की कथा का नायक 
राजनीति के यह नहीं लायक 
चले जब गुजरात की  आंधी 

संभल ना पावे नकली गांधी 


देशहित में इसे नकारो 
स्वदेशी से देश संवारो 
भूल हुई गर यदि तुमसे 
लूटेगा देश  , एक बार फिरसे 



preperation of 2019


2019 की तैयारी (व्यंग )



2019  में होने वाले उल्लूसभा  की तैयारी जोरो से शुरू हो चुकी है।  हर तरफ कलियुग के पुण्यात्माओं द्वारा प्रवचनों की बाढ़ आई हुई है।  अभी कल ही एक थो महाराज टीवी पर अपनी पार्टी की मालकिन को भला बुरा कहने पर विरोधी प्रवक्ता का टेटुआ दबा रहे थे। एंकर से लेकर कैमरा मैन तक सब उनको पकड़ने में धराशायी हो गए  बड़ी मुश्किल से उनकी (प्रवक्ता ) जान बची।  लेकिन वो(प्रवक्ता ) भी अपनी आदत से मजबूर थे जाते जाते चिकोटी काट के चले गए।


टीवी पर देखा की एक जगह  एक प्रत्याशी जनता को लुभाने के लिए जादू का खेल दिखा रहे थे।  लेकिन इसमें नया क्या था आज कागज से कबूतर बना रहे है और पहले भी कागज पर सड़के , नहर , अस्पताल और स्कूल बनवाया करते थे। फिर जैसे कबूतर को गायब कर देते वैसे ही ये सब भी गायब हो जाते।

इधर विपक्ष द्वारा सत्ता पक्ष पर तमाम आरोप प्रत्यारोप लगाने का दौर जारी है। सफ़ेद कुर्ता वाला बालक भी हाथ में हवाई जहाज लिए उड़ने की कोशिश में लगा हुआ है। इसी उड़ान के चक्कर में कई बार नाक के बल गिर भी चुका है।  बड़े साइज का पैजामा और कुर्ता होने की वजह से कुर्ता हाथ की उंगलियों को भी ढँक लेता है जिस कारण उसे बार - बार खींचकर वापस लाना पड़ता है।

राजस्थान , और मध्यप्रदेश में मीडिया द्वारा प्रत्याशियों को कौन बनेगा मुख्यमंत्री का खेल खिलाया जा रहा है , जिसे की 2019 के उल्लू सभा का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसी बहाने इन प्रदेशो के छोटे जिले भी राष्ट्रिय  मीडिया में छाए हुए है । कल तक जैसे चैनलों के एंकर ,आजकल ,पत्रकारिता के अलावा सब कुछ करते देखे जा सकते है ।  मजा तब और बढ़ जाता है जब इन चैनलों पर होने वाली बहस में भैंस , बकरी से लेकर सब कुछ हो जाता है।

वैसे अभी दूर - दूर तक 2014 के चुनावों की तरह कहीं से भी गोला फेंकने की खबर नहीं आई है , आम आदमी भी ख़ास बनने के बाद बस धक्कामुक्की करने में लगा हुआ है हालाँकि इसी चक्कर में उसे मिर्च भी लग चुकी है । गरीब जनता बस अमीर दिल से तमाशा देखे जा रही है।



discussion

बहस 


टीटी  - टिकट दिखाइए प्लीज। 

ऊपर की बर्थ  पर सोये हुए आदमी को जगाते हुए टीटी कहता है।  इसके साथ ही अन्य लोग बिना कहे ही अपने - अपने टिकटों को ऐसे ढूंढते है जैसे दो हजार की गड्डी छिपाकर रखी हो। 

गुवाहाटी से जम्मू जाने वाली ट्रेन में आज भीड़ कुछ ज्यादा ही थी।  कारण छठ की छुट्टियों के बाद लोगो की वापसी का सिलसिला जारी था। 

ट्रेन के अंदर चर्चाओ का बाजार राजनीति के प्रोडक्ट पर कुछ ज्यादा ही गर्म हो चुका था।  नीचे की सीट पर बैठे चार सज्जन अपने - अपने विचारो के साथ जंग जीतने की पूरी कोशिश कर रहे थे। 

मूंछ वाले एक भाई साहब देश में एक बार फिर वर्तमान सरकार चाहते थे  जबकि उनके सामने बैठे सज्जन जो की खैनी ठोकने के साथ ही चर्चा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे सरकार के  नोटबंदी  वाले फैसले से काफी दुखी थे और चाहते थे की इस बार विपक्षी दल की सरकार  बने।  हालांकि उनकी खैनी से दिक्कत तो सबको थी लेकिन विषय की महत्ता को देखते हुए  सब अनदेखा कर रहे थे। 

मूंछ वाले भाई साहब  - देखिये मैं आपसे कह देता हूँ  वर्तमान सरकार से ईमानदार सरकार आज तक देश में नहीं आई है। 

दूसरा व्यक्ति - ऐसा ना कहिये सरकार अपने किये कई वादों में असफल भी रही है। 

तीसरा -  आप ही बताइये इतने बड़े मुल्क की समस्या क्या कुछ सालो में हल की जा सकती है। कम से कम सरकार सही राह पर तो चल रही है पूर्वर्ती सरकारों की तरह देश को लूटा तो नहीं जा रहा है । 

खैनी वाले भाई साहब - 'ऐसा ना कहे ' सरकार जब सत्ता से हटती है तब उनकी पोल खुलती है।  बैंको में लाइन लगवा दिया , कई लोगो के ब्लड प्रेशर बढ़ गए और कई लोग ऊपर की ओर  रास्ता नाप लिए। 

मूंछ वाले - अरे तो जिनमे सामर्थ्य नहीं थी वे फिर लाइनों में लगे ही क्यों ?  उसके बाद के चुनावों में फिर जनता ने सरकार का समर्थन क्यों किया ? सब विपक्ष की चाल है वह सत्ता से ज्यादा दूरी बनाकर नहीं रह सकता। उसे बिना घोटालो के घोटाला दिखता है। 

दूसरा व्यक्ति  - परन्तु आजादी के बाद से हुआ विकास आपको नहीं दिखता।  कम्प्यूटर से लेकर शिक्षा संस्थान तक सब पूर्वर्ती सरकार की ही  तो देन है। 

मूंछ वाले भाई साहब   -  हां दिखता है , जातियों में जाति इतने सालो से बढ़ती गई वो दिखता है , अन्य देश कहा से कहा पहुँच गए और हम अभी प्राइमरी की पाठशाला तक नहीं पास कर सके। आईआईटी बने लेकिन उच्च कोटि के मानव जो बना सके ऐसे संस्थान क्यों नहीं बनाई आपकी सरकारों ने । गरीब तब भी थे गरीब अब भी है  शोषित तब भी थे शोषित  अब भी  है । 

कुछ देर सन्नाटे के बाद

खैनी वाले भाई साहब  -  सही कहा आपने भाई साहब  लड़ते तो हम है आपस में , वे तो परदे के पीछे हम पे हँसते है।  लाइन में तो हम लगते है , भरी गर्मी में पूरे  - पूरे  दिन बिजली गुल होने का दंश तो हमने झेला है। सब्जी महँगी हुई तो बाजार पैदल ही चल दिए , पेट्रोल महंगा हुआ तो ऑफिस बस से जाने लगे , कर्फ्यू लगा तो घरो में कैद हो गए  , सीमा पर हमने अपने बेटो की कुर्बानी दी , दंगो में हमारे भाई मारे गए। फिर भी हमे समझ नहीं आई की सब सत्ता का खेल है। 

दूसरा व्यक्ति - उनकी कोठियों की कीमते बढ़ते गई , हमारी ही जमीने हमसे ले ली गई , वे कहते है मुआवजा तो अच्छा दे रहे है , अब आप ही बताइये कौन अपनी माँ को बेचकर मुआवजा चाहेगा। 
बात बात पर कहते है की पकिस्तान को करारा जवाब देंगे।  कब देंगे ?, और इनके जवाब होते कैसे है जो नापाक को समझ में नहीं आता।  पूछिए उस माँ से जिसने अपने बुढ़ापे की लाठी खोई है , पूछिए उस लड़की से जिसका सुहाग चंद दिनों में ही उजड़ गया। कहते है करारा जवाब देंगे  ..... ...... .... ..  

ट्रेन पूरे रफ़्तार में थी और उसके अंदर चलने वाली बहस भी। 




  

politics of religion



धर्म की राजनीति 







यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥


भगवन श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है की जब जब धर्म की हानि होगी तब तब मैं धरती पर दुष्टो का संहार करने के लिए जन्म लेता रहूँगा। 

भारत के वर्तमान राजनीति परिदृश्य में आप धर्म और राजनीति को अलग करके नहीं देख सकते।  पहले धर्म सिर्फ उपासना का माध्यम हुआ करती थी परन्तु समय के साथ भारतीय इतिहास काल के मध्य से धर्म की राजनीति होने लगी , धर्म का प्रसार और धर्म की रक्षा ही प्रमुख मुद्दे रहे। 

अगर आपको किसी धर्म से लोगो की मानसिकता हटानी है तब आप उस धर्म के मूल पर प्रहार कर सकते है।  कांग्रेस ने अपने शासन काल में हिन्दुस्तान के प्रमुख हिन्दू धर्म के मूल पर प्रहार करना शुरू किया।  किस देश का शासक अपने राज्य के धर्म को कमजोर करता है ? यदि वह उस धर्म को नहीं मानता तभी ऐसा संभव है। 



राम सेतु 


कांग्रेस ने रामसेतु  को मानने से इंकार किया , उस राम सेतु को जिसकी प्रमाणिकता अंतरिक्ष से भी देखी जा सकती है। जिसके साथ ही रामायण के पात्रो पर संदेह नहीं किया जा सकता ,परन्तु कांग्रेस काल में उनपर भी संदेह किया गया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम खुद अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिया न्यायालय पहुंचे। 

हिन्दू धर्म के प्रमुख रंग को ही संदेह की दृष्टि दी गई और उसके लिए एक नए शब्द का अविष्कार कांग्रेस ने कर डाला भगवा आतंकवाद  इसके साथ ही निर्दोष हिन्दुओ को झूठे मुकदमो में फंसाकर जेल में डालने का कार्य शुरू हुआ ताकि इस शब्द की परिभाषा के साथ इसकी प्रयोगात्मक स्थिति को स्पष्ट किया जा सके। 

भगवान् राम के जिस मंदिर पर मुग़ल आक्रमणकारी बाबर ने मस्जिद का निर्माण करवाया था।  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में पुष्टि होने के बाद भी कांग्रेस ने इस सन्दर्भ में कोई कदम नहीं उठाया। 

हिन्दू और हिन्दू धर्म एक मानवतावादी धर्म रहा है इसने कभी किसी का विरोध नहीं किया।  परन्तु एक बहुसंख्य आबादी वाले धर्म को कांग्रेस द्वारा परदे के पीछे से उत्पीड़ित करने के बाद इस आबादी ने नए सिरे से विचार करना प्रारम्भ किया तथा  स्प्रिंग के सामान दबाये जाने के बाद इस बहुसंख्य आबादी ने धर्म की रक्षा हेतु छलांग लगाना शुरू किया और एक हिंदूवादी पार्टी भाजपा को इस देश की कमान सौंपी। 

समय के साथ ही केंद्र में स्थापित बीजेपी सरकार ने हिन्दू हितो को सुरक्षित किया जिससे हिन्दुओ की आस्था पार्टी के साथ बढ़ी। 

जाति की राजनीति से ऊपर उठकर शुरू हुई इस धर्म की राजनीति में कांग्रेस मौके की नजाकत को समझते हुए अपने ऊपर लगे धब्बे को छुड़ाने हेतु चोला बदलने के प्रयास में लग गई और इसके मुखिया कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर बैठे। इसके साथ ही मध्यप्रदेश के चुनावी पोस्टरों में शिव भक्त के रूप में देखे गए। भक्ति के नए नए आयामों द्वारा कांग्रेस को भी हिंदूवादी पार्टी बताने के प्रयास जारी है। आगामी चुनावों में भागवान के इस नए भक्त और उसकी पार्टी की कड़ी परीक्षा होने वाली  है। 

2019 के चुनावों में गर्माते राम मंदिर के मुद्दे के साथ ही एक बार फिर धर्म की राजनीति होने की संभावना है। जहाँ विजय श्री उसी को मिलनेवाली है जो राम और काम दोनों में स्वयं को सिद्ध कर सके। 







ram mamndir a political issue


हम राम मंदिर बनवाएंगे  -


ram mamndir a political issue


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ अभी कुछ दिनों  तक रामलला और उनके पैतृक जन्मस्थान की चर्चा जारी रहने वाली है।  भाजपा पर मंदिर बनवाने का दबाव सरकार बनने के साथ ही शुरू हो चुका था परन्तु उसने गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में डालते हुए कोर्ट के निर्णय के सम्मान की बात कही थी।  राजनीति में मुद्दों को समय से पकड़ना और समय से छोड़ने के अलावा मुद्दों को दबाना भी आना चाहिए और साथ में विपक्ष को समय से मुद्दों को छेड़ना  भी। 

एस सी /एस टी   फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मोदी सरकार द्वारा जहाँ संशोधन कर दिया जाता है वही जनता और भाजपा कार्यकर्ता  इस मुद्दे के लिए भी अध्यादेश की मांग कर रहे है। मुझे तो लगता है जनता को एक नारा और देना चाहिए  - 

                              जो राम का नहीं वो किसी काम का नहीं 



मुद्दे  बनाने के लिए आरएसएस द्वारा  जिस बाबरी मंदिर का विन्ध्वन्श 1992 में किया गया  तथा जिसके  परिणामस्वरूप  होने वाले दंगो में 2000 लोगो की मौत हुई उस मुद्दे पर कही ना कहीं भाजपा पीछे हटते  हुए दिख रही है।  1992 के नायक आडवाणी ने सिर्फ एक गलती की , की पकिस्तान जाकर जिन्ना के जिन्न को जगाकर चले आये और उस जिन्न ने इनके पुरे राजनीतिक कैरियर  को स्वाहा कर दिया।  आरएसएस में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले आडवाणी  जहाँ कट्टर हिंदूवादी नेता की संज्ञा से सुशोभित होते थे वही इस घटना के बाद मजबूत नेता - मजबूत सरकार  के नारे लायक भी नहीं रहे।  जनता भी कहावतों में भाजपा का मजा लेने लगी " राम लला हम आएंगे मंदिर वही बनाएंगे पर तारीख नहीं बताएँगे " . हालाँकि इसी मुद्दे की वजह से  भाजपा 1998 में सत्तासीन हुई और खुद महल में पहुँचने के बाद भी उसके बाद भी भाजपा ने रामलला को त्रिपाल में ही रखा। अभी तक का दौर वह दौर था जब भगवान राम के नाम पर आम जनमानस की भावनावो को वोटबैंक में बदला जा सकता था। 


एक बार फिर पुराने तरीके को नई  चाशनी  में लपेटकर गुजरात दंगे हुए  राजनीति हेतु आम आदमी की तिलांजलि दी गई और उसी  आम जनमानस के अंदर से उसके सरस  हिंदुत्व को हिंसक रूप में जगाया गया।एक नए नायक का उदय देश के राष्ट्रीय पटल पर हुआ नाम था नरेंद्र दामोदर दास मोदी। 

मोदी ने आडवाणी की गलतियों से सबक लेते हुए और कांग्रेस पार्टी का मुस्लिमो के प्रति झुकाव का फायदा उठाते हुए अनेक हिंदूवादी भाषण दिए जिनमे कुत्ते से लेकर कुछ भाषण अत्यंत विवादित भी हुए।  हिन्दुओ को मोदी में एक ऐसे नेता की छवि दिखाई दी जो स्पष्ट रूप से उनका हिमायती था इस कारण अपेक्षा की गई की सरकार बनने के बाद जल्द ही राम मंदिर मुद्दे को सुलझा लिया जायेगा। 

लेकिन कहते है की दूर के ढोल सुहावने होते है।  मोदी सरकार बनने के बाद मंदिर मुद्दे को कोर्ट के पाले में डाल  दिया गया और अन्य  मुद्दों की तरह इसको  उचित समय पर इस्तेमाल करने के लिए छोड़ दिया गया । 
अब आम जनता जब सरकार से उसके चार सालो के कार्यो का लेखा जोखा मांग रही तब इस मुद्दें को एक बार फिर हवा देने की कोशिश की जा रही है यही वजह है की गिरिराज सिंह जैसे नेताओं के बयान आना शुरू हो चुके है। 
अभी   बयान  में आगे रहने वाले नेताओ द्वारा जनता को उकसाना जारी रहेगा । कुछ फिल्मे आएँगी इस मुद्दे पर , कुछ पेड  उलेमाओ के भी बयान आएंगे , कुछ प्रवक्ता न्यूज़ चैनलों पर मंदिर बनाते दिखेंगे ,  परन्तु उनके द्वारा सरकार से नहीं पूछा जायेगा की मंदिर कब बनेगा ? और सरकार कभी कोर्ट तो कभी सत्ता की दुहाई देती रहेगी और रामलला को उनके बनाये संसार में सिर्फ तारीख पे तारीख ही  मिलती रहेगी पर अपना घर नहीं। 







mission2019



मिशन 2019 


भारतीय राजनीति के सबसे बड़े राजनीतिक युद्ध  का अघोषित सिंघनाद तीनो राज्यों(मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ ,राजस्थान ) के चुनावों की घोषणा के साथ प्रारम्भ  हो  चुका है।  भाजपा और कांग्रेस के साथ ही  देश की अन्य तमाम छोटी बड़ी पार्टियाों ने  इस युद्ध के लिए प्यादो से लेकर मैदान और सारथी की तलाश में  जाल बिछाना शुरू कर दिया है। 


mission2019


भाजपा मगध की सियासत में अपने मजबूत साझेदार नीतीश कुमार के साथ  बड़ी ही विनम्रता से  50 - 50  के सिद्धांत पर झुकती दिख रही है  जिसको भांपते हुए रामविलास पासवान से लेकर कुशवाहा खेमे की बेचैनी साफ़ समझी जा सकती है, क्योंकि पिछली बार सीटों के बंटवारे में इन्हे अच्छी स्थिति प्राप्त थी और मोदी चेहरे के साथ वे भी संसद में पहुँचने में सफल हुए थे। तब भाजपा  ने भी नहीं सोचा था की उसे इतना प्रचंड बहुमत प्राप्त होगा  इस कारण कमजोर और छोटी  पार्टियों से भी समझौता करने में उसे हिचक नहीं हुई  । इस बार चेहरे की चमक फीकी पड़ने के साथ  ही भाजपा को  मजबूत साझेदारों  की आवश्यकता  महसूस हुई जिसका  राजनीतिक लाभ  उसके मजबूत सहयोगियों को मिलना स्वाभाविक है। 


mission2019


कांग्रेस की रणनीति अभी तक मोदी सरकार पर आरोप प्रत्यारोप तक ही सीमित है  2019 को लेकर उसकी नीति अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन उम्मीद के मुताबिक अपने पुराने सहयोगियों को साथ लेकर चलने का प्रयास  जारी  रहेगा। 


लोकसभा चुनावों से पहले होने वाले राजस्थान , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनावों  के परिणाम को  2019  का सेमीफाइनल माना जा सकता है । इन तीनो राज्यों में भाजपा की सरकार है और  राजस्थान में हर पांच साल  में सत्ता परिवर्तित होते रहती है।  शिवराज सिंह चौहान की प्रतिष्ठा भी ऐसे समय में दांव पर लगी है जब व्यापम की आंच  अभी तक ठंडी नहीं हुई है और दूसरी तरफ सत्ता विरोधी रुझान। 





तीसरा मोर्चा अभी तक ख्याली  पुलाव की तरह  धरातल पर नहीं आ सका

हालाँकि अगर इसमें  नीतीश कुमार होते तो मामला कुछ दिलचस्प होता अभी भी यदि संगठित होकर बागडोर ममता बनर्जी के हाथो में जाती है तो  नए सम्भावनाओ के द्वार खुल सकते है। क्योंकि बंगाल में लगातार सेंधमारी के बावजूद बीजेपी को निराशा ही हाथ लगी है , हालांकि थोड़े से बढे हुए वोट प्रतिशत और दो - तीन सीटों की विजय पर वह खुद को सांत्वना दे सकती है लेकिन बंगाल और तमिलनाडु ही ऐसे दो राज्य थे जहाँ  2014 में मोदी लहर  बेअसर साबित हुई थी ,इसलिए  इन दोनों  ही राज्यों में भाजपा द्वारा  कुछ नई  तरह की राजनीति देखने को मिल सकती है। 2019  के लोकसभा चुनाव  जयललिता  के बिना उनकी पार्टी के  लिए भी  अग्नि परीक्षा के  समान होंगे  ।


मुलायम के अखिलेश और उनकी बुआ  के वोट बैंक का ध्रुवीकरण 2014  के चुनावों में  बीजेपी अपने पक्ष में करने में कामयाब रही थी , परन्तु पाँच साल बाद इस तरह के मुद्दे दुबारा मतदाताओं की भावनाये  राजनीतिक रूप से वोट में तब्दील नहीं कर सकते। एससी / एसटी  एक्ट में बाजी जरूर बीजेपी ने मारी है परन्तु  अपने परंपरागत ब्राम्हण वोट बैंको की नाराजगी उसे भारी पड़ सकती है।  वहीँ  सवाल यह भी रहेगा की  बसपा के मूल एससी / एसटी  वोटर बीजेपी में अपना कितना रुझान दिखाते है। 

कुल मिलाकर कांग्रेस और भाजपा  के बीच में होने वाला 2019  का मुकाबला  2014  की अपेक्षा काफी अलग है जहाँ  ना अब किसी की लहर है और नाहीं भ्रष्टाचार  का कोई स्पष्ट मुद्दा।  प्रमुख मुद्दा जो रहने वाला है वो है  मौजूदा सरकार का  कामकाज और  2014 में उसके द्वारा किये गए वादे  तथा  वर्तमान परिदृश्य में  दोनों पार्टियों  के प्रधानमंत्री पद के  प्रमुख  उम्मीदवारों की नेतृत्व क्षमता। 




kuchh shayari


कुछ शायरी  





इरादे बहुत है वादे  बहुत है कसम से तेरे प्यादे बहुत है
चाहे जितनी भी छलांग लगा लो वादों की
इस मुल्क में नासमझ शहजादे बहुत है



वे रोज रोज कश्तियाँ बदलते फिरते है -2
अभी उन्हें मालूम नहीं है  -2
की छेद है कहाँ पर


कभी दिल्ली आओ तो दीदार हो तुम्हारा  -२
ये सियासत जो तुम खेलते हो
इसमें नकाब अच्छा नहीं होता
आस्तीन तो कइयों ने कटवा दी -२
पर पीछे से जो घुस जाये ऎसे सांपो का जवाब नहीं होता।


मत बोलो इतना की संभालना मुश्किल हो जाये 
अब भी वक़्त है  कभी सच भी बोल लिया करो 

rahul and rafal


राहुल का राफेल राग खतरे में देश 

rahul and rafel


चाहे आप किसी दल या नेता के खिलाफ हो परंतु आप सत्ता के लिये देश की सुरक्षा से खिलवाड़ नही कर सकते . राहुल गाँधी भाजपा पर इस कदर हमलावार हैं की देश की सुरक्षा से ही खिलवाड़ करने पर उतारू हो चुके है . उनको लगता है की राफेल डील मे सरकार ने घोटाला किया है , उनको लगता है की सरकार सुरक्षा पर अहम जानकारिया सार्वजनिक करे जिससे वी चीन और पाकिस्तान को इसकी जानकारी दे सके इसीलिये पाकिस्तान ने उनका समर्थन किया है .


एक पूर्व प्रायोजित साजिश के तहत सरकार को रक्षा डील को सार्वजनिक करने पर मजबूर करना कहा तक उचित है , उसपर से आप विपक्ष मे प्रधानमंत्री के उम्मीदवार भी है क्या होता अगर आप प्रधानमंत्री बन जाते आप तो देश की सुरक्षा को ही ताक पर रख देते और पाकिस्तान और चीन को खुश करने मे कोई कसर नही छोड़ते . अभी तक राफेल मे आप सिर्फ फ़्राँस के पूर्व राष्ट्रपति के बयान को आधार बताते है . आप को मालूम होना चाहिये की वे एक पूर्व राष्ट्रपति होने के साथ ईसाई भी है जो की भारत सरकार द्वारा ईसाई मिशनरियो की फंडिंग और इनके द्वारा भारत मे ईसाईकरण पर लगाम लगाने से क्षुब्ध भी .

राहुल गाँधी आजकल खुद को हिन्दू कहलवाना पसंद करते है लेकिन इसकी जरूरत क्यो आ पड़ी और क्या राहुल गाँधी अपनी और प्रियंका गाँधी की कोई ऐसी तस्वीर भी सांझा करना पसंद करेंगे जिसमे वे  रक्षाबन्धन का पर्व प्रियंका गाँधी के साथ मनाना पसंद करते हो .क्या वे अपने बहनोई का धर्म बताना पसंद करेंगे . जिनके हाथो पर रक्षासूत्र नही दिखता .

राफेल कारगिल युद्ध के बाद से ही सेना के लिये जरूरी माना गया परंतु कांग्रेस सरकार और इसके बिचौलियो ने अपने हित पूरी ना होते देख इसे लंबे समय तक लटकाये रखा और अब जब सेना और सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए मोदी सरकार ने इसे अंतिम रूप दिया तो आप उसके पीछे ही प़ड गये . राहुल गाँधी तीन बार राफेल की अलग - अलग कीमते बता चुके है . पहले तो मैं राहुल गाँधी से ये पूछना चाहूंगा की वे ना तो तत्कालीन समय मे प्रधानमंत्री थे और ना ही कांग्रेस के अध्यक्ष फिर उनके पास राफेल की जानकारी कहा से आई और अगर आई भी तो उन्हे इस तरह सार्वजनिक करते हुए क्या वे भारत विरोधी ताकतो की मदद नही कर रहे .

वे बोलते है की भाजपा ने रिलायंस का नाम फ़्राँस को सुझाया था और भाजपा बोलती है की फ़्राँस की कम्पनी का पहले से ही रिलायंस के साथ करार था . अगर भाजपा सही हो तो राहुल गाँधी का क्या ?

कांग्रेस सरकार मे एच ए एल और अन्य सरकारी उपक्रम इनकी कठपुतली मात्र थे जिनसे ये अपनी मंशा पूरी करते थे और इस कारण इन्होने कभी भी तकनीकी रूप से इन्हे इतना विकसित नही होने दिया जितना आज ये इससे अपेक्षा कर रहे है . अगर फ़्राँस की कम्पनी रिलायन्स के साथ पूर्व मे करार कर भी ली है तो इसमे ऐसा कौन सा गुनाह है . आखिर वह भी तो अन्य राष्ट्रो की तरह देश मे रक्षा उपकरणो को बना सकती है ताकि आवश्यकता होने पर और आपात परिस्थितियो मे देश की रक्षा सम्बंधी आवश्यकताओ की पूर्ति की जा सके .

अगर आप को लगता है की मोदी रिलायंस की वफादारी करते है तो आप बता सकते है की केजी बेसिन मे रिलायंस को बढे हुए मूल्य सरकार क्यो चुकाती थी . ऐसे मे मोदी टाटा से करार करते तो भी आप यही कहते, आखिर देश के विकास का बोझ सरकारी कम्पनियाँ कहा तक उठाने मे सक्षम है और आपने इतने सालो मे इन्हे कितना सक्षम बनने दिया आपसे बेहतर कौन जान सकता है .

rahul and rafel

राहुल गाँधी बस राफेल की खामियां गिना दे तो उनकी सारी बातें सही मानी जा सकती है लेकिन अगर एक भी खामी नही गिना पाये तो देश उनसे सवाल जरूर पूछेगा की क्या सत्ता ही उनके लिये सबकुछ है . क्या वे इटली की किसी कम्पनी से सौदा ना किये जाने से खफा है या फिर देश के मजबूत होते रक्षातंत्र से . क्या वे देश मे तेजी से खत्म होते ईसाई मिशनरियो और नक्सलवाद से खफा है या फिर खुद को राजनीति मे स्थापित ना कर पाने से .



इन्हे भी पढ़े - राफेल विमान सौदा  

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