कुछ शायरी
इरादे बहुत है वादे बहुत है कसम से तेरे प्यादे बहुत है
चाहे जितनी भी छलांग लगा लो वादों की
इस मुल्क में नासमझ शहजादे बहुत है
वे रोज रोज कश्तियाँ बदलते फिरते है -2
अभी उन्हें मालूम नहीं है -2
की छेद है कहाँ पर
कभी दिल्ली आओ तो दीदार हो तुम्हारा -२
ये सियासत जो तुम खेलते हो
इसमें नकाब अच्छा नहीं होता
आस्तीन तो कइयों ने कटवा दी -२
पर पीछे से जो घुस जाये ऎसे सांपो का जवाब नहीं होता।
मत बोलो इतना की संभालना मुश्किल हो जाये
अब भी वक़्त है कभी सच भी बोल लिया करो
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