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Issq ki dahlij

 इश्क की दहलीज





भाषा नैनो की जिनको आती है

बिन चीनी की , चाय भी उन्हें भाती है 


मिलते हैं ऐसे हर गलियों में 

जैसे भंवरे हैं हर कलियों में 


कुछ सीधे से दिखते कुछ सादे हैं 

अपनी मां के वे शहजादे हैं 


इश्क की एबीसीडी जो पढ़ने जाते हैं 

पकड़े डैडी तो , चाय की अदरक बन जाते हैं 


पूछे हैं प्रभु , मंदिरों में दर्शन किसके पाते हो 

सामने हमें छोड़, बगल में देख मुस्काते हो 


जो लाए थे फूल गुलाब का ,हमारे लिए 

सच-सच बताना अर्पित किस , देवी को किए 


मिटा देते हैं जो, प्यार के हर सबूतों को 

देख पापा के, बाटा वाले जूतो को 


ऐसे अजूबे ही , कटी पतंगों के लुटेरे है 

बाहर से सरल ,अंदर से छुछेरे हैं 


बड़ी रोचक सी इनकी  कहानी है 

बस यहीं से शुरू , इनकी जवानी है

Wo chidiya

वो चिड़िया




वो चिड़िया फिर कब आएगी
जो कभी इस आंगन मे चहकती थी
निर्भय होकर दाना चुगकर , पास मेरे वो फुदकती थी

वो चिड़िया फिर कब आएगी
जो तिनको से घर में मेरे
अपना घरौंदा बनाती थी
साथ अपने खेलने को
खुद जैसी औरों को लाती थी

वो चिड़िया फिर कब आएगी
जिसको हम दाना देते थे
घर को मेरे बना घोंसला
मिसरी सा मीठा गाती थी
सन्नाटे के इस आलम में
रौनक का दीप जलाती थी

जाने कहां गुम हुई वो
ना जाने कौन सा भय उसे अब लगता है
क्या वो चिड़िया फिर से आएगी
जिससे ये आंगन चहकता है

jewan mantr



जीवन मन्त्र  

jewan mantr


शब्दों के जाल बिछाने वाले 
कुछ कर्मो के  करतब दिखलाओ 
वाणी से मिसरी घोलने वाले 
तुम मर्म किसी का क्या जानो 
अर्थ का अनर्थ बनाने वाले, कुछ विषधरों को तुम अब पहचानो 
है स्पष्ट ,सरल , गूढ़  मन्त्र जीवन का ये 
तुम मानो या ना मानो 

कुछ निंदा करके क्या पाया 
सिर्फ जिन्दा रहके क्या पाया 
क्यों उचित को अनुचित में बदला 
रिश्तो को विचलित करके क्या पाया 

कुछ दम्भ भरा खुद का यूँ 
कुछ अहम् हृदय में समाया 
ज्ञान का दीपक बुझा दिया कब 
देर समझ में ये आया 

कब विवेक को छोड़ दिया तूने 
कब धैर्य तुझे ना रास आया 
लोभ ने छीनी अन्तः ज्योति 
मोह में तूं है अंधराया 

कब छूटे तुझसे ये धरा 
क्या जग को तूं दे पाया 
यहाँ जन्म ना तेरी चाह से 
मृत्यु तक तूं ये ना समझ पाया 




holi hai



होली है 

holi hai


रंग तेरा या रंग मेरा
इस उत्सव का एक ही प्रिये 
हूँ तैयार रंग दे मुझको  
प्रीत के इस रंग से प्रिये 

है वाणी में गुजिया की मिठास 

नशा भांग का तेरे पास 
अबकी होली कुछ ऐसे खेले 
रहे रंगो में जीवन की आस 

मधुरिम - मधुरिम  , मस्तम - मस्तम 

 रगो में चढ़ता होली का खुमार 
शिकवे ना याद करो अब कोई 
 उड़ेगा रंग 
फैलेगा प्यार 

कहीं छुप जाये  

जिसे बुलाये 
चाहे जितना नाच नचाये 
भीगेगी फिर से एक बार   
चुनर वाली देखो आज 



लेखक द्वारा क्वोरा पर दिए एक जवाब से साभार   

poor



गरीब 

                                       
poor
 
पैरो में चप्पल नहीं रहती  , तपति सड़को का एहसास होता है 
कभी कंकड़ तो कभी कांटो से  भी मुलाकात होता है। 

कड़ाके की सर्द रातों में खाली पेट नींद नहीं आती  
वो फटा कम्बल भी जब छोटा भाई खींच ले जाता है। 

वो फटा हुआ पैजामा  सिलने के बाद भी क्यों तन को ढँक नहीं पाता  है  
सबको देने के बाद  रोटी, माँ के हिस्से की क्यों घट जाती है। 

छप्पर से टपकती बारिश की बूंदो  में  मैं  , कागज की नाव चलाता हूँ  
और उन्ही नावों पर बैठकर कल्पना की  पतंग उडाता हूँ 

डरता हूँ आंधी  और तूफानो से , इसलिए नहीं की  डर लगता है 
छत मेरी कमजोर है , लम्बा ये सफर लगता है  

ढिबरी की रोशनी में बैठकर आसमान के  तारे गिन जाता हूँ 
रात को गोदामों के बाहर पड़े अनाजों को बिन लाता हूँ 

वो ऊँची ईमारत वाले घर में माँ मेरी पोंछा लगाती है 
मोटी सी वो औरत माँ को खूब सताती  है 

माँ कहती है सब अपना अपना नसीब है 
वे  बड़े लोग  शरीफ और हम छोटे लोग गरीब है 

मैं बोला माँ '  अब तक तेरी चाह थी अब मेरी चाह है 
गरीब पैदा होना नहीं गरीब मरना गुनाह है 

पढ़े बुढ़ापे पर एक मार्मिक कविता - बुढ़ापा 

budhapa

बुढ़ापा 



बूढ़ा हो चला हूँ मैं
सब कहते है घर का कूड़ा हो चला हूँ मैं

आजतक मशीन की तरह काम करता गया
अपने साथ अपने संस्कारो का नाम करता गया

औलादो को भी तो वही दिया था मैंने
जाने कहा बदल लिए संस्कार उन्होंने

बचे हुए सफ़ेद बालो के साथ
कमजोर और बेसहारा मेरे हाथ

लकड़ी का एक टुकड़ा ढूंढ रहे है
शायद अब अपनों के साथ छूट रहे है

सिकुड़ती चाम , टूटते दांत
कमजोर निगाहें , पिघलती आंत

शायद अपने  अंत के कुछ करीब जा रहा हूँ मैं
मधुमेह ,रक्तचाप और मोतियाबिंद की दवा खा रहा हूँ मैं

मेहमानो  के उपहास का पात्र
कभी था एक होनहार छात्र
बुढऊ कहकर अब समाज बुलाता है
ऊपर से मंद - मंद मुस्कुराता है

शारीरिक दुर्बलता से ग्रसित मेरा शरीर
मानसिक दुर्बलता वालो से क्यों घबड़ाता है
थोड़ा ठहरो तुम सब भी
देखो इस बुढ़ापे से कौन बच पाता है



इन्हे भी पढ़े  - गरीब (कविता )

romio ka ishq



रोमियो का इश्क़ 

romio ka ishq


ये जो मोहब्बत है सब उनकी ही सोहबत है
चाँद पर आशियाना बनाएंगे वे
कहते है इस जहां में इश्क़ से ज्यादा नफरत है

वहाँ छांव है तो यहाँ धूप है
सच जानते हुए भी सब चुप हैं
यहाँ झरनो के झरोखे है
हर चेहरे के दिलो में कुछ धोखे  है

कुछ जी के मरते है 
कुछ मर के जीते है 
हम प्यार करने वाले है 
हम इश्क़ में जीते मरते है 

तुम घूमे गली - गली मुहल्ला 
पर उन गलियों में गूंजे नाम हमारा ही लल्ला 
हर मन में मंदिर , हर मंदिर में उसकी मूरत 
पाप - पुण्य में उलझो तुम , वो तो देखे है बस सीरत 
इश्क़ किया इस जहाँ से हमने 

और तुमने रोमियो नाम रख दिया 


सोहबत तो तुम्हारी ही थी 
जाने ये कैसा काम कर दिया 

रोमियो नाम रख दिया .........  


इन्हे भी पढ़े  -   कुछ तो लोग कहेंगे  
                      आशिक  

song of love

प्यार के गीत 



दिल का उड़ता पंछी बोले ......... तेरी ही  बोली रे
अँखियो से चलती   .. .. ...  कैसी ये ठिठोली रे

रात ..... के साये में दिन का उजाला है
रंग ये प्रीत का कैसा तूने डाला है
हुई मतवाली मैं ,तेरे ही  सुरूर में
 रहती हूँ अब तो,  तेरे ही गुरुर में
ये कैसा इश्क़ है जिसमे ,लागे जग निराला है
राधा सी बावली मैं श्याम मेरा मतवाला है



दिल का उड़ता पंछी बोले ......... तेरी ही  बोली रे
अँखियो से चलती   .. .. ...  कैसी ये ठिठोली रे


बिन तेरे सूना दिल , अँखियो में पानी है 
यादों में मेरी , तेरी ही कहानी है 
कुछ तो सुन ले , दिल की आवाज को 
फ़िज़ाओं में बहती , मधुरिम साज को 
पिया बिन राते कैसी , कैसा दिन का उजाला है 
नीला - नीला आसमां भी , दिखे अब काला है 

दिल का उड़ता पंछी बोले ......... तेरी ही  बोली रे
अँखियो से चलती   .. .. ...  कैसी ये ठिठोली रे





kambakht neend

कम्बख्त नींद




कुछ करने की सोचूं तो कम्बख्त नींद आने लगती है
नींद जब आती है, तो वो सताने लगती है
उसको जो भगाता हूँ तो, जाग जाता हूँ
जाग जब जाता हूँ तो, उसे बुलाता हूँ
उसे जब बुलाता हूँ ,तब वो नहीं आती है
वो भी गई नींद भी गई, सोचूं कुछ कर ही लेता हूँ
और कुछ करने की सोचूं तो ........



Princes and country


शहजादा और देश 


  Princes and country


वंशवाद की बेली में 
एक फूल खिला है, हवेली में 
बेला , गुलाब,गुड़हल  और गेंदा 
विलक्षण फूल, नहीं इन जैसा 

मात  करे हर पल रखवाली 
हो ना पूत ,कही मवाली 
पाणी को ग्रहण करे ना 
अधेड़ उम्र का ,बालक सयाना 

राजतिलक को चिंतित माता 
बुझे , इसको कुछ नहीं आता 
जनता के हास्य का साधन

माने खुद को सच्चा बाभन  


चाटुकारो की कथा का नायक 
राजनीति के यह नहीं लायक 
चले जब गुजरात की  आंधी 

संभल ना पावे नकली गांधी 


देशहित में इसे नकारो 
स्वदेशी से देश संवारो 
भूल हुई गर यदि तुमसे 
लूटेगा देश  , एक बार फिरसे 



mandir and ram



मंदिर और राम 



mandir and ram

रामलला  मंदिर  में कब बैठेंगे, वो भी ना जाने
पूछ रहे है हम से अब वे 
बोलो किसको हितैषी माने

है बारिश में चूता  त्रिपाल
देखके रोये है महाकाल
लक्ष्मण दुखी देख भाई का हाल
बीत गए ना जाने कितने साल  

सीता बोली सर पे जब छत नहीं
जीता लंका पर कौनो गत के नहीं
बोलो भरी गर्मी में क्या ,लू  को सह  पाओगे
तब भटके थे वन - वन  में इधर - उधर
इस कलियुग में भी क्या, अच्छे दिन ना दिखलाओगे

थे  वे भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम
बोले बात नहीं ये आम
रावण के दस मुख थे बाहर
अंदर यहाँ सबके लालच के जाम
कुछ  धैर्य  धरो  देखो इस जग को
अभी कितना मुझे सतायेंगे
पूछो तो कहते है अब  ये , रामलला हम आएंगे

मुझसे चलता ये जग सारा , फिर भी फिरू मारा - मारा
तकदीर ऐसी खुद ही  लिखवाई है
ठंडी शुरू हुई सीते  ,देखो घर में कहीं रजाई है
ब्रम्हा जी तो बोल रहे थे , कलियुग में प्रभु बस पत्थर की मूरत है
अयोध्या को  राम की नहीं, राजनीति की जरुरत है


तुम रक्षक पर रक्षा को तुम्हारी
पूरी मानव की फौज खड़ी
जय - जय - जय बजरंग बलि
अब ना तोड़ोगे दुश्मन की नली
लंका नहीं जो आग लगा दो
गोवर्धन को तुम हिला दो
कलियुग के सब रावण सारे 
अपनी पूंछ बचाओ प्यारे 

मंदिर - मंदिर , भक्त कहे 
मन के मंदिर में बस छल रहे 
है प्रपंच ये बड़ा निराला 
मंदिर बनवाने चले है आला 
खुद राजा खुद ही फरियादी 
हँसे भगवन, हुए अब आदि 

अपना छत सारा आकाश 
सरयु  से बुझती अब प्यास 
मंदिर की अब  किनसे  आस 
मंदिर  जब  सत्ता की साँस 

ना बने तो मत बनवाओ 
नाम पे मेरे  मत रबड़ी  खावो 
है आना तुमको मेरे पास  
पूछूंगा तुमसे, क्यों की इतनी बकवास 

दुखी भाव से रायजी, अब तो बस ये कह चले 
ना हो हिंसा उनके नाम पे , मर्यादा में ये जग चले



shaheed

शहीद 




चढ़ गए सीने पे ,जो वे
दुश्मनो के होश उड़ गए
जीत के जंग देखो कैसे ,बन गए है वे सिकंदर

आग भी बुझ जाती उनके , ह्रदय की ज्वाला को देखकर
वीरो की धरती है ये ,भगत सिंह सबके दिल के अंदर

कारगिल की चोटियों पे, गूंजती है उनकी ही कहानियाँ
किस्से कुछ उनकी वीरता के, सुनाती है बूढी नानियाँ



shaheed


गोलियों से होके  छलनी, लाल फिर भी आगे बढ़ चला
छोड़ दे कैसे उन्हें जो, माँ को उसकी नोचने है चला
बंद होती आँखों से भी ,अचूक  निशाना लगाता  वो भला
आखिरी सांस तक भी, फर्ज पूरा करता चला

माँ को गर्व ऐसे लाल पे, जिसको उसने है जना
भाई बोलो दुश्मनो की टोलिया , बतलाओ बची है कहाँ
हिमालय सी मजबूत छाती बुलंद हौंसले है यहाँ 
तिरंगे को दे सलामी बाप गर्व से है खड़ा 
बहन जिसकी बाँधी राखी , देश रक्षा के काम आई 
दुश्मनो का सीना चीरते ,शहीद हुआ उसका भाई 

गर्व ऐसे भाइयो पे, जिनकी माता भारती 
पूजा की थाल में जो, दुश्मनो के शीश लाये 
वे है जिनसे देश चलता , हम करे उनकी आरती 
ऐसे वीर सपूतो को देखकर ही , शान से तिरंगा लहराए 



kuchh apni


कुछ अपनी 


गुमनाम रहने की आदत क्यों डालू मैं

जब जमाना ही ख़राब है

होंगे कद्रदान मेरे चेहरे के लाखो

दिल को समझने वाला मिले

कहाँ ऐसे जनाब है

आप चाहते है की ज़माने से छुप जाएँ

हुनर बोलता है हुजूर

यही इस सवाल का जवाब है

कोशिश बहुतों ने की


की हम मशहूर ना हो पाए


इतना आसान नहीं है

की लोग उन्हें जगाने वाले को भूल जाये

अभी तो सफर की शुरुआत हुई है 

कारवां बनाना बाकी है 

दौलत की चाह नहीं मुझको 

आशियाँ दिलो में बनाना बाकी  है 

कब तक रोकेंगे वक़्त के थपेड़े हमें 

अभी तो अपना वक़्त आना बाकी है 


इन्हे भी पढ़े  - 

जिंदगी और हम 

kuchh to log kahenge

कुछ तो लोग कहेंगे 


कुछ लिखूंगा  तो  कुछ  को कुछ होगा

ना लिखूं तो मुझको कुछ होगा
कुछ  तो  बात है  की  कुछ  को  कुछ लिखना अच्छा नहीं लगता
कुछ सच सुनाना  कुछ अपनी तस्वीर सी लगती है
कुछ का नजरे ना मिलाना कुछ सच की जंजीर सी लगती है

कभी कुछ  कम लिखूं तो कुछ अधूरा सा लगता है 

पूरा जो करता हूँ  तो कुछको  अखरता है 


रिश्ते जो कुछ टूट से रहे है 
अपने जो कुछ छूट से रहे है 
कुछ है जो समझ से परे है 
पर्दे में कुछ छेद सा दिखता है 
कुछ के अंदर कुछ भेद सा दिखता है 

कुछ  करने का अंदाज निराला था 
कुछ ना  करने वालो के दिलो में कुछ काला था 
कुछ हमदर्दी जो दिखा दी 
हाथ मदद को कुछ  जो बढ़ा दी 
कुछ दर्द चेहरे पर लोगो  के  छलकेगें 
कुछ तो लोग कहेंगे  


इन्हे भी पढ़े  - लिखता हूँ  


abhinandan


अभिनन्दन 



कुछ खोज करो हर रोज करो - 3 
जिसने तुमको है जनम दिया -2 

उस माँ का वंदन रोज करो 


कुछ खोज करो हर रोज करो - 2 
है खुद से खुद का ये वचन
पहले तूं है मेरे चमन

इसको नमन हर रोज करो

कुछ खोज करो हर रोज करो - 2

चलता जीवन बहता पानी 
बोलो है कुछ , सब उसकी निशानी 
उससे मैं भी उससे तुमभी 
उससे सारा ब्रम्हांड चले 
उस प्रभु का अभिनन्दन रोज करो 
कुछ खोज करो हर रोज करो 

अक्षर ज्ञान कराया उसने 
जग से परिचय करवाया उसने 
इस अंधियारे मन मस्तिष्क में 
ज्ञान का ज्योत जलाया उसने 
ऐसे गुरु के चरणों को नमन हर रोज करो 
कुछ खोज करो हर रोज करो 



इन्हे भी पढ़े -  ए खुदा तूं ही बता 

kuchh shayari


कुछ शायरी  





इरादे बहुत है वादे  बहुत है कसम से तेरे प्यादे बहुत है
चाहे जितनी भी छलांग लगा लो वादों की
इस मुल्क में नासमझ शहजादे बहुत है



वे रोज रोज कश्तियाँ बदलते फिरते है -2
अभी उन्हें मालूम नहीं है  -2
की छेद है कहाँ पर


कभी दिल्ली आओ तो दीदार हो तुम्हारा  -२
ये सियासत जो तुम खेलते हो
इसमें नकाब अच्छा नहीं होता
आस्तीन तो कइयों ने कटवा दी -२
पर पीछे से जो घुस जाये ऎसे सांपो का जवाब नहीं होता।


मत बोलो इतना की संभालना मुश्किल हो जाये 
अब भी वक़्त है  कभी सच भी बोल लिया करो 

forest politics


जंगल राजनीति 



कौवा चले  हंस की चाल, हंस देख बउराये
शेर खाये घास हरी - हरी , गधा रोज शिकार पर जाये 
मानव  करे नाच झमाझम  बंदरियां देख शर्माए
गिरगिट सब गायब हो गए , नेता रंग बदलते जाये

महंगाई अब  रोज डंसे है , नागिन टीवी पे नाच दिखाए
मगर देख हुए भौचक्का , अब तो राजा  ही  घड़ियाली आँशु बहाये 
कुत्ते हुए भयभीत सब , कंही गाड़ी से कुचल  ना जायें 
देख तमाशा खबरनवींशों  का , भालू भी अचरज खाये

ऊंट बोले मैं लम्बा या कालाधन , जिसे पकड़ ना पाए
घर की रबड़ी खुद ही खा गए , इल्जाम बिल्ली मौसी पे  लगाए
हाथी जैसा हुआ भ्रष्टाचार , जिसे मिटाने आये
खुद ही हो गए फूल के गैंडा ,तुमसे कछु ना हो पाए

लोमड़ी पहने भगवा चोला , साधु ईश्वर से कह ना पाए
तोता बोले राम - राम , तुम भी थे राम का रट्टा लगाए
पूछे गइया चिल्ला के तुमसे , राम का मंदिर काहे ना  बनवाये -


हम जंगल के जीव है सारे , तुम तो मानव कहलाये
सत्ता की खातिर तुम बने जानवर , तुमसे तो अच्छे हम कहलाये 




lajja karo sarkar


लज्जा करो सरकार 

lajja karo sarkar


रोक सको तो रोक लो बंधु
ये सरकार तुम्हारी है
जनमत की आवाज है अब तो
बिना काम की  चौकीदारी है

उड़ना - उड़ना छोड़के अब तो
कुछ तो  ढंग का काम करो

क्या रक्खा है जुमलों में अब

जब जनता जान रही है सब
फेंकी थी जो विकास की बातें
बोलो अब करोगे कब

देश - विदेश की रबड़ी खाई
फ़्रांस की खाई रसमलाई
पाक ने दागी सीने पे गोली
निकल सकी ना तुम्हारे मुंह से बोली
अब कितना लहू बहाओगे तुम
पूछे शहीद की माँ हो गुमसुम

56 इंच का सीना लेकर क्या कसमे खाई थी
कुछ तो शर्म करो राजा जी
क्या अपने झूठे वादों पर
तनिक लाज ना आई थी।


इन्हे भी पढ़े - आखिर कब तक ? 

akhir kab tak


आखिर कब तक  ?

akhir kab tak



जुमलों के सरकार कुछ तो जुमला बोल दो 


मर रहे है वीर सैनिक 
अब तो जुमला छोड़ दो 
56 इंच में गैस भरा है 
या भरी है दूध मलाई 
हम कैसे अब सब्र करे जब

सीमा पर मर रहा है भाई 

मिल लो गले नापाक के अब 
जिसने आँख निकाली है 
कुछ तो बतला दो झांक के अब 
सीने में कितनी बेशर्मी डाली है 
कैसे कायर हो तुम, कैसे ना कहे तुम्हे निकम्मा 
टुकड़ो में बेटे को पाकर क्या कहेगी तुमको उसकी अम्मा 
नहीं चाहिए ऐसा नेता 
ना मांगे भारत माँ ऐसा बेटा 
जो जुमलों से सरकार चलाये 
और मौका पड़ते ही पीठ दिखाए 


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उफ्फ ये बेरोजगारी  - uff ye berojgari  कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमें...