जंगल राजनीति
कौवा चले हंस की चाल, हंस देख बउराये
शेर खाये घास हरी - हरी , गधा रोज शिकार पर जाये
मानव करे नाच झमाझम बंदरियां देख शर्माए
गिरगिट सब गायब हो गए , नेता रंग बदलते जाये
महंगाई अब रोज डंसे है , नागिन टीवी पे नाच दिखाए
मगर देख हुए भौचक्का , अब तो राजा ही घड़ियाली आँशु बहाये
कुत्ते हुए भयभीत सब , कंही गाड़ी से कुचल ना जायें
देख तमाशा खबरनवींशों का , भालू भी अचरज खाये
ऊंट बोले मैं लम्बा या कालाधन , जिसे पकड़ ना पाए
घर की रबड़ी खुद ही खा गए , इल्जाम बिल्ली मौसी पे लगाए
हाथी जैसा हुआ भ्रष्टाचार , जिसे मिटाने आये
खुद ही हो गए फूल के गैंडा ,तुमसे कछु ना हो पाए
लोमड़ी पहने भगवा चोला , साधु ईश्वर से कह ना पाए
तोता बोले राम - राम , तुम भी थे राम का रट्टा लगाए
पूछे गइया चिल्ला के तुमसे , राम का मंदिर काहे ना बनवाये -
हम जंगल के जीव है सारे , तुम तो मानव कहलाये
सत्ता की खातिर तुम बने जानवर , तुमसे तो अच्छे हम कहलाये
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