पितृसत्ता की उत्पत्ति
यहाँ मैं प्रत्येक तथ्य के विस्तार में न जाकर केवल मूल तथ्य बताने की कोशिश कर रहा हूँ क्योंकि विस्तारित उत्तर कई पृष्ठों का हो सकता है
हम आज समाज में जो भी देखते है , समाज को उस स्वरुप में आने में सदियाँ लग गई।
इसी प्रकार प्रारम्भ में स्त्री पुरुष के बीच रिश्तो का कोई नाम नहीं था , और नाहि सम्बन्धो की कोई सुनिश्चितता । जिससे समाज का कोई स्वरुप निर्धारित नहीं था। इस कारण स्त्री के गर्भवती होने पर कोई पुरुष यह सुनिश्चित नहीं कर पता था की संतान का पिता कौन है ,ऐसी अवस्था में स्त्रियां गर्भावस्था के समय भोजन और अन्य कार्यो हेतु लाचार हो जाया करती थी. क्योंकि उस समय जानवरो का शिकार और कंदमूल का संग्रहण ही आहार के प्रमुख साधन थे। ऐसी अवस्था को देखते हुए और स्वयं की सुरक्षा हेतु स्त्रियों ने पुरुषो का आश्रय लेना शुरू कर दिया और समय व्यतीत होने के साथ इस व्यवस्था को विवाह का नाम दिया गया जिससे पिता की पहचान की जा सके और यहीं से धीरे - धीरे परिवार की अवधारणा ने जन्म लिया।
अब परिवार की देखरेख हेतु पुरुष शिकार हेतु लम्बी आखेट यात्राओं पर कम जाने लगे और उन्होंने अपने आसपास खाली पड़ी जमीन को घेरकर खेती करना प्रारम्भ कर दिया और पशुओ को पालतू बनाना भी। बाहरी जानवरो से सुरक्षा हेतु मनुष्यो ने संगठित होकर झुण्ड में रहना प्रारम्भ कर दिया , ऐसे समय में जब किसी बात पर दो व्यक्तियों में विवाद होता तो झुण्ड से निकलकर एक व्यक्ति उन्हें सुलझाने चला आता इसी व्यक्ति को झुण्ड (जिसे बाद में कबीला कहा जाने लगा) के सरदार की संज्ञा दी गई।
जमीन पर कब्जे को लेकर कबीलो में होने वाले विवादो ने लड़ाइयों का रूप ले लिया और एक कबीला दुसरे पर आक्रमण करके उसे अपनी सीमा में शामिल करता गया जिससे सरदार की ताकत बढ़ने के साथ ही उसे राजा की पदवी दी जाने लगी और इस प्रकार " राज्य" तथा "राजा" शब्द की उत्पत्ति हुई। इस पूरी प्रक्रिया में सत्ता पुरुषो के पास ही रही चाहे वह घर के अंदर हो या बाहर।
इस पूरी प्रक्रिया में स्त्रीयाँ अपनी रक्षा हेतु पुरुषो पर ही निर्भर रही है और उनका कार्य घर की चारदीवारी के अंदर ही रहा । इस कारण प्रारम्भ से ही परुष वर्चस्ववादी मानसिकता बनी रही । बाद के समय में समाज ज्यों - ज्यों विकसित होता गया और परिवार में पुरुष की मृत्यु होने पर या अन्य कारणों से कुछ स्त्रीयो ने घर और परिवार की जिम्मेदारी जिस तरीके से आगे बढ़कर निभाई, परिवार ने आगे चलकर परिस्थितियों को समझते हुए उस स्त्री का नेतृत्व स्वीकार किया।ऐसी जगहों पर मातृसत्तात्मकता समाज का निर्माण हुआ। समाज के सभ्य स्वरुप ने स्त्रियों को कई अधिकार दिए , लेकिन यह अधिकार भी पुरुषो द्वारा ही दिए गए थे जोकि हर काल में समाज में होने वाले धार्मिक और सत्ता के उतार चढ़ाव के कारण घटते बढ़ते रहते थे। यही कारण है की समाज के मूल में पितृसत्तात्मकता बसी हुई है।
आज संसार भर में विभिन्न क्षेत्रो , परिस्थितियों और समाज की मानसिकता के अनुसार कहीं पितृसत्तात्मक समाज है तो चुनिंदा जगहों पर मातृसत्तात्मक भी .
क्वोरा पर लेखक द्वारा दिए गए जवाब से साभार -
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