नोटा - गुलाबी क्रांति से सिंहासन खाली करो की शुरुआत -
भारतीय राजनीति एक बार फिर अपने महत्वपूर्ण दौर से गुजर रही है जहाँ आम जनता का विश्वास मौजूदा राजनीतिक पार्टियों से उठता दिख रहा है। सवर्णो को अपना जन्मसिद्ध वोटर मानने वाली बीजेपी को उम्मीद नहीं थी की एससी / एसटी को खुश करने के चक्कर में सुप्रीम कोर्ट के जिस निर्णय को वह पलट चुकी है वही उसकी सत्ता पलटने की हैसियत रखती है। सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट की खामी को दूर करते हुए एफ़ आई आर के बाद बिना जाँच की गिरफ्तारी पर रोक लगा दिया था। उसी पर सरकार को लगा की नहीं गिरफ्तारी तो बिना जाँच के ही होनी चाहिए भले ही किसी निर्दोष को फंसाया जा रहा हो, जबतक अदालत उसे निरपराध घोषित करेगी तब तक बेचारा ऐसे गुनाह की सजा काटकर आएगा जिसका उससे कोई वास्ता ही नहीं , बस उसकी गलती यही होगी की वह सवर्ण है। और उस भाजपा का पारम्परिक वोटर भी जिसकी सरकार बनवाने में उसने मदद की थी वही भाजपा उसकी लुटिया डूबोने में लगी हुई है।
यह तो था सवर्णो का दुःख अब देश की बाकि गरीब जनता की भी सुन लीजिये वह भी सरकार से पूछ रही है की क्या नोटबंदी में कड़कड़ाती ठण्ड में 2000 रूपये के लिए केवल उसे ही परेशान क्यों किया गया। इस देश के पूँजीपति से लेकर अधिकारी वर्ग तक और बड़े नेता से लेकर छुटभैया तक इन लाइनों में क्यों नहीं दिखे। कुछ ईमानदार छवि और दिखावटी लोगो को छोड़कर केवल आम जनता मरती रही और सरकार दावा करती रही की इसके बाद देश के अंदर का कालाधन वापस आ जायेगा और एक नए भारत का निर्माण होगा। अभी भी नोटबंदी की सफलता और असफलता पर चर्चा जारी है। अगर यह इतनी सफल ही होती तो चर्चा की कोई बात ही नहीं थी।
कई गरीबो के घर बेटियों की शादिया टूट गई क्या किसी अमीर के घर ऐसा हुआ नहीं , बल्कि कई वीआईपी शादियों में पैसा पानी की तरह बहा। गुजरात के एक कोआपरेटिव बैंक में अमित शाह के पैसो को सफ़ेद करने का मामला भी सामने आया जिसे प्रबंधित मीडिया ने ज्यादा टूल नहीं दिया। ऐसे ही कई बीजेपी नेता नए नोटों की गड्डियाँ उड़ाते मिले। 50 से ज्यादा बार नोटबंदी के दौरान आरबीआई ने अपने फैसलों और नियमो में बदलाव किया। उत्तर प्रदेशो के चुनावों में इस नोटबंदी ने अपना व्यापक असर दिखाया और अन्य पार्टिया इस कारण अपना पॉलिटिकल मनैजमेंट नहीं कर पाई जिससे फायदा बीजेपी को हुआ इसी कारण नोटबंदी का खेल खेला गया जिसमे आम आदमी ने अपनी जान और मान दोनों को ही गँवा दिया । मध्यम और निचले तबके के व्यापारी वर्ग तो बुरी तरह टूट गए और इसके बाद लागू होने वाली जीएसटी ने तो मानो उसकी कमर ही तोड़ दी , कभी पुराना माल को लेकर जीएसटी की संशय कभी इसकी प्रणाली को समझने का फेर महीनो बिना व्यापार किये ही निकल गए। और मिला क्या ? ये प्रश्न आज भी अनुत्तरित है।
नोटा फिल्म का एक पोस्टर |
देश के विकास के नाम पर जब आम आदमी घुन की तरह पिसा रहा था तब भी विदेश यात्राओं में कुछ कमी नहीं आई, पेट्रोल के जिन दामों पर विपक्ष में रहते हुए साइकिल से चला गया आज अपनी सरकार में सवाल पूछने पर मुंह फेर लिया जाता है. जब जनता पूछती है की ऐसा क्यों है की अंतराष्ट्रीय मार्केट में 65 डॉलर प्रति बैरल होने के बाद भी पेट्रोल महंगा है जबकि पूरवर्ती सरकार में १४४ डॉलर प्रति बैरल में भी दाम इतने ही थे। रुपया क्यों भारतीय प्रधानमंत्री की उम्र पार करने के बाद भी नहीं रुक रहा
अर्थव्यवस्था इतनी व्यवस्था करने के बाद भी काबू में नहीं आ रही है तो आपमें और पिछली सरकारों में क्या अंतर था। हिन्दू का कार्ड कबतक चलेगा ,खाली पेट तो बिलकुल नहीं , गाय की रक्षा कबतक होगी जब बहु बेटियाँ ही सुरक्षित नहीं है ।कब तक पाकिस्तान हमारी देश की बहुओ को विधवा बनाता रहेगा ? नेपाल का चीन के साथ सैन्य अभ्यास क्यों आखिर आप क्यों चार साल बीत जाने के बाद भी कांग्रेस को कोस रहे है ? जातिवाद का जहर घोलना था तो अन्य पार्टियों में क्या बुराई थी ?
विपक्ष में कमजोर नेतृत्व , तीसरे मोर्चे की नाजुक स्थिति तथा लालची एकता और भाजपा के विश्वासघात को देखते हुए धीरे - धीर आम आदमी अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए भारी संख्या में नोटा दबाने का मन बना चुका है इसकी संख्या को देखते हुए 2019 में अवश्य ही इसे एक बार फिर गुलाबी क्रांति की संज्ञा दी जाएगी क्योंकि नोटा के बटन का रंग गुलाबी है।
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