राफेल विमान सौदा -
राफेल विमान |
आइये पहले तो राफेल डील की शुरुआत पे एक संछिप्त नजर डालते है (क्योंकि जवाब विषय को देखते हुए थोड़ा लम्बा है )-
कारगिल युद्ध के बाद सेना के लिए ऐसे लड़ाकू विमानों की आवश्यकता महसूस हुई जो सेना की जरूरतों को पूरा कर सके , जिसके लिए अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार में 126 विमानों की खरीद का प्रस्ताव रखा गया और अगली कांग्रेस की सरकार ने प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। अमेरिका , ब्रिटेन, रूस इत्यादि 6 देशो के लड़ाकू विमानों का निरीक्षण करने के बाद यूपीए सरकार ने फ़्रांस के राफेल विमानों पर अपनी मुहर लगाई जो की अन्य विमानों की तुलना में कम कीमत ,गुणवत्ता और रखरखाव में भी सस्ते थे। परन्तु यूपीए सरकार के कार्यकाल में तकनीकी कारणों की वजह से यह डील पूरी नहीं हो पाई। उस समय एचएएल को भारत में इसके पुर्जो को आपस में जोड़ने का काम सौंपा जाना था। तकनीकी हस्तांतरण का मुद्दा भी फ़्रांस से डील ना हो पाने की प्रमुख वजह थी। रही बात विमान की तकनीकी की तो विमान की तकनीकी इतनी उन्नत है की 100 किलोमीटर दूर विमान को भी आसानी से निशाना बना सकती है , यहॉँ तक की अमेरिका और चीन के पास भी इतनी उन्नत श्रेणी के विमान नहीं है।
मोदी सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा फ़्रांस की यात्रा के दौरान इस डील को आगे बढ़ाते हुए दोनों देशो ने इस पर अपनी सहमति दे दी।
अब अपना रुख विवाद की तरफ करते है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस डील को पूरा करने के बाद जानकारी दी की उन्होंने इस डील में कांग्रेस की अपेक्षा 12600 करोड़ की बचत की परन्तु उन्होंने इस तथ्य को सार्वजनिक नहीं किया की डील हुई कितने में है उन्होंने कहा की फ़्रांस इसके अलावा कलपुर्जे और मिसाइल अपने पास से देगा।
बस यही से विवाद की शुरुआत होती है। कांग्रेस ने अपने समय होने वाली डील से सम्बंधित समस्त आंकड़े रखते हुए मोदी सरकार से डील सार्वजनिक करने की मांग की है और मोदी सरकार डील की रकम को सुरक्षा कारणों से सार्वजनिक ना करने का हवाला देते हुए डील पर अपनी पीठ थपथपा रही है।
कांग्रेस का आरोप है की जो विमान वह 428 करोड़ में खरीद रही थी , मोदी सरकार उसी के 1555 करोड़ दे रही है। और भारत में कलपुर्जो को जोड़ने का काम एचएएल को ना देकर अनिल अम्बानी की कम्पनी रिलायंस डिफेन्स को दिया गया है , हालाँकि अनिल अम्बानी ने राहुल गाँधी को लिखे पत्र में यह स्पष्ट किया है की उनका इस डील से कोई वास्ता नहीं है। और नाहीं सरकार की तरफ से उनके पास इस तरह का कोई प्रस्ताव आया है। यहाँ तक की अनिल अम्बानी की स्वामित्व वाली कंपनियों ने नेशनल हेराल्ड में प्रकाशित इससे सम्बंधित एक खबर को संज्ञान में लेते हुए 5000 करोड़ का मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया है।
सारा विवाद डील की कीमतों और भारत में इसके रखरखाव और कलपुर्जो को जोड़ने में रिलायंस डिफेन्स और इसकी सहायक कंपनियों की भूमिका को लेकर है। सरकार का कहना है की फ़्रांसिसी कंपनी भारत में "मेक इन इंडिया " कार्यक्रम को बढ़ावा देगी जबकि कांग्रेस में ऐसा नहीं था। जबकि कांग्रेस इस तथ्य को सिरे से ख़ारिज करती है और डील की कीमतों को बढ़ा हुआ बताकर डील में घोटाले का होना बताती है।
मेरे अनुसार एक बात तो तय है की विमान बड़ी ही उन्नत श्रेणी के है जिसका कोई जवाब नहीं है और इस तथ्य को दोनों पार्टियाँ और अन्य रक्षा विशेषज्ञ भी मानते है । इस डील से भारतीय वायुसेना का आत्मविश्वास तो बढ़ेगा ही और साथ में देश की सुरक्षा व्यवस्था भी और मजबूत होगी। दूसरी बात कांग्रेस सरकार ने देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करते हुए राफेल जैसे अनेक सौदों को लटकाये रखा जो की देश की सुरक्षा के लिए अत्यंत ही आवश्यक थी और जिसे मोदी सरकार ने तेजी से पूरा करने का काम किया है। कांग्रेस के समय डील के मसौदो पर ही चर्चा हुई थी तथा समय के साथ लागत मूल्य बढ़ना लाजमी है। एक और तथ्य जो की सबसे आवश्यक है वह यह है की विक्रेता देश और उसकी कम्पनियाँ अपने उत्पाद को अलग अलग देशो को अलग अलग मूल्यों पर बेचती है तथा मूल्य उजागर होने पर उनकी तकनीकी के स्तर का आंकलन भी किया जा सकता है इसलिए कई समझौतो में इसके मूल्य को गोपनीय रखने की शर्तपर ही कम्पनियाँ अपना उत्पाद देने को तैयार होती है। इस कारण हो सकता है सरकार इस को उजागर करने से बच रही हो। अगर इस डील में किसी तरह का घोटाला हुआ है जैसा की कांग्रेस के आरोप है तो उसके लिए हमें तब तक प्रतीक्षा करनी होगी जब तक दोनों देशो की किसी भी जाँच एजेंसी से इस तरह की कोई खबर नहीं आती। जैसा की अभी तक किसी ने भी इसकी पुष्टि नहीं की है या भारतीय कैग की रिपोर्ट जो की अपने मानको के अनुसार आडिट करती है। अगर कांग्रेस के आरोप निराधार है तो उसे देश की सुरक्षा से सम्बंधित मसलो पर राजनीति नहीं करनी चाहिए जो की उसी के लिए घातक है और अगर वास्तव में घोटाला हुआ है तो सिद्ध होने पर भाजपा भी उसी की श्रेणी में खड़ी हो जाएगी।
लेखक द्वारा क्वोरा पर राफेल विमान के मुद्दे पर पूछे गए सवाल पर दिए गए जवाब से साभार -
Are bhai aam Khao गुठलियां क्यों गिनते हो,अगर मोदी सरकार घपला करेगी तो सिर्फ मोदी ही नहीं भाजपा के सारे प्रतिनिधि गेहूं में घुन कि तरह पिस जाएंगे,क्योंकि ये लोकतंत्र है,और हम जनता इसके असली मालिक हैं।
जवाब देंहटाएंHa aapna shai khaa, it's democratic cuntery
हटाएंपिसे तो तब जाएंगे ना जब चोरी पकड़ी जाएगी
हटाएंओर ये लोकतंत्र है या जनता को मालिक नहीं नोकर समझा जाता है
Very good deal modika good governance
जवाब देंहटाएंVery good deal modi ji ka very very good
जवाब देंहटाएंRight step towards national security
जवाब देंहटाएंThis controversy is all about the misunderstanding between parties. We should wait until it comes to an end. But one thing which is real is that the national security and power is increased.
जवाब देंहटाएं428 करोड का, ज्यादा से ज्यादा 500 करोड तक लेना चाहिये था, उसके कल्पूर्जे जॉईंट करणे का काम HAL को देना चाहिये था, गडबडबी तो बडे पेमाने पर दिख रहि है
जवाब देंहटाएंSahi kaha bhai
हटाएंमोदी जी आप अच्छा काम कर रहे है । जिस तरह से आज देश आगे बढ़ता दिख रहा है आर्थिक स्तिथि में ओर ताकतवर देशो की श्रेणी में बहुत तेजी से आगे आया है । वो दिन दूर नही जब पाकिस्तान जैसे निठल्ले देश 1000 बार सोचेंगे कोई भी गुसपेठ करने से पहले ।
जवाब देंहटाएंमोदी जी देश को आप जैसे नेता की ही जरूरत है ।
लोगों का क्या है । आज तक नेता votebank के लिए गंदी राजनीति करते आये है । ओर आगे भी ये सिलसिला यूँही चलता रहेगा ।
बस आपसे एक प्रार्थना है ।
जितने भी बिल लाओ कोई problem नही है । बस ये वर्ण व्यवस्था को बढ़ावा न दिया जाए ।
इससे लोगों को राजनीति करने का गंदा मौका मिलता है वो न दीजिये ।।।। ,
Desh ki suraksha ko lekar NDA sarkaar chup hai UPA ki tarah badbola nahi hai sarkaar jaanti hai ki desh ki suraksha ki kya value hai jai hind
जवाब देंहटाएंफ्रांस के एक पब्लिकेशन 'मीडियापार्ट' ने दावा किया है कि फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन ने 36 एयरक्राफ्ट की डील के लिए एक बिचौलिए को 7.5 मिलियन यूरो कमीशन दिया था. मीडियापार्ट का कहना है कि इसके दस्तावेज होने के बावजूद भारतीय एजेंसियों ने इस मामले में जांच शुरू नहीं की.
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