अनुच्छेद - 377 और समलैंगिगता -
विगत 6 सितम्बर को आई पी सी की धारा 377 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुचित ठहराते हुए कहा की हमें व्यक्ति की पसंद को आजादी देनी होगी तथा यह गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसले में आईपीसी की धारा-377 को समानता और संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करार देते हुए आंशिक रूप से खारिज कर दिया है हालाँकि कुछ मसलो में ये प्रभावी रहेगा।
फैसला आते ही बाहर खड़े हजारो समलैंगिको ने अपनी ख़ुशी का इजहार अपने तरीके से किया। अब एक बार फिर इस कानून पर नए सिरे से चर्चा होना स्वाभाविक है। परन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की भारत जैसे परम्परागत देश में इस तरह के फैसले कितनी अहमियत रखते है। जहाँ आज भी इन मुद्दों पर खुलकर चर्चा करना भी समाज पसंद नहीं करता वहां अब कानूनन रूप से इसे मान्यता मिलना भारतीय समाज में नए बदलाव का संकेत है। इसके साथ ही कुछ नए सवाल सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो रहे है , जोकि इस कानून में दिलचस्पी को बढ़ाते ही है , इनके कुछ उदाहरण निम्न है।
धारा 377 में कोई रेप केस आया तो न्यायधीश कैसे तय करेंगे कि किसका बलात्कार हुआ?
बच्चो के जेंडर का निर्धारण कैसे होगा ?
अब लड़को को भी डर है रेप होने का।
हालाँकि सरकार ने इस मुद्दे पर अपनी भूमिका नगण्य रखी है और सबकुछ कोर्ट पर छोड़ दिया है , अभी भी धारा 377 आंशिक रूप से कुछ मसलो में प्रभावी रहेगी , परन्तु देखना यह है की क्या भारतीय समाज इसे अपनी स्वीकार्यता देता है या नहीं ?
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