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jhandu baam jindagi

झंडू बाम जिंदगी 


गोविन्द चार साल से जिस सामने वाली को लइनिया रहा था , आज बाजार में उ लड़की उसके भाई के साथ लेमन जूस पी रही थी , उ भी पूरा मुस्की ( हंसकर ) मारकर । उधर कॉलेज वाली रोज उससे अपना प्रोजेक्ट पूरा करवाती थी । गोविन्द भी इसी चक्कर में अपने अंदर हाई क्वालिटी ला कर , पूरा मेहनत और लगन से प्रोजेक्ट पूरा कर रहा था जैसे यूपीएससी का मेंस हो और इंटरव्यू में उसे इ लड़की प्रपोज करने वाली है । लेकिन जैसे ही प्रोजेक्ट पूरा हुआ इहो लड़की थैंक्यू भैया बोल कर निकल ली।
गोविन्द को लगा की जिंदगी में कुछो अच्छा नहीं हो रहा है , सारा मेहनत बर्बाद है । तभी उसके कॉलेज का रिजल्ट आता है और वो पूरे कॉलेज में दुसरे स्थान पर रहता है। गोविन्द सोचता है चलो कुछ तो अच्छा हुआ , तभी उसे सामने बोर्ड पर पहला स्थान पाने वाले का फोटो दिखाई दिया , यह वही लड़की थी जिसका प्रोजेक्ट गोविन्द पूरा कर रहा था , सारा ख़ुशी एकदमे से गायब हो गया ।
गोविन्द निराश होकर घर पहुंचा , लगा आँगन की छावं में कुछ आराम मिलेगा , तभी पता चलता है सबकी रजामंदी से उसके भाई की शादी सामने वाली लड़की से तय हो गई है और आज अंगूठी पहनाई की रसम है । अब तक गोविन्द को लगने लगता है की वाकई में उसकी जिंदगी झंड हो गई है । तभी सामने से एक सुन्दर सी लड़की आती है जिसे देखकर गोविन्द मुंह फेर लेता है। लेकिन वह गोविन्द के पास जाकर , उसका हाथ पकड़कर , पूछती है मुझसे शादी करेंगे ?, गोविन्द को सहसा विश्वास नहीं होता। गोविन्द को ऐसे देखकर वह दुबारा पूछती है , इस बार गोविन्द हाँ बोल देता है , तभी सारे लोग हंसने लगते है ,, क्योंकि गोविन्द आँगन में बंधी भैंस से कुछ बड़बड़ा रहा था।

लेखक के क्वोरा पर दिए एक जवाब से  साभार 

Some Interesting Facts about Holi

होली के बारे में कुछ रोचक तथ्य  - 




फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाये जाने वाला होली का त्यौहार भारत और नेपाल दोनों ही जगहों में प्रमुखता से मनाया जाने वाला त्यौहार है । धुरखेल , धुरविन्दं और धूलखेड़ी इसके अन्य नाम है। इसके अतिरिक्त इसे बसंत महोत्सव और कान महोत्सव भी कहा जाता है। होली के दिन चन्दन और आम की मंझरी को मिलकर खाने का बड़ा महत्व  है।  होलिका और प्रह्लाद की कहानी के अतिरिक्त  कृष्ण और पूतना , ढुंढी तथा शिव की बारात के रूप में होली की कथाये प्रचलित है। माना जाता है की गणो का रूप धारण करके लोग शिव की बारात का हिस्सा बनते है।  इस दिन भांग पीने की भांग परंपरा से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। होली में रंगो के प्रयोग का श्रेय भगवान श्रीकृष्ण को जाता है। 

इतिहास में भी अकबर - जोधाबाई और जहांगीर - नूरजहां के साथ होली खेलने का विवरण मिलता है। दक्षिण भारत के विजयनगर में भी होली मनाने के प्रमाण मिले है।  हालाँकि दक्षिण भारत में होली की महत्ता उतनी नहीं है जितनी उत्तर भारत में।  इसी कारण दक्षिण भारत के अधिकांश सरकारी प्रतिष्ठान इस दिन खुले रहते है। 

बरसाना की विश्व प्रसिद्द लठ्मार होली -   


ऐसा माना जाता है की श्रीकृष्ण ने मथुरा के  बरसाना में ग्वालो के संग राधा तथा उनकी अन्य सहेलियों के साथ छेड़छाड़ की थी जिसके फलस्वरूप वहां के निवासियों ने उन लोगो की लट्ठ से धुलाई कर दी। इसका दूसरा पक्ष यह भी माना जाता है की श्रीकृष्ण हर साल राधा के साथ होली खेलने आते थे और राधा उन्हें बांस की बल्लियों ( डंडे )से  दौड़ाती थी।  उसके बाद से ही बरसाना और नन्द गांव में लठमार होली की परंपरा विकसित हो गई।  वहां का प्रसिद्ध राधा - रानी मंदिर के परिसर में इस प्रकार की होली का बड़ा ही भव्य आयोजन होता है। बरसाना के अगले दिन नंदगांव में होली मनाई जाती है जहाँ बरसाना के पुरुष वहां की महिलाओ के साथ होली खेलने पहुँचते है और बदले में उन्हें रंगो के साथ लट्ठ मिलती है। 


कुमाउँनी बैठक होली


इसकी शुरुआत पौष माह के पहले रविवार से हो जाती है।  नैनीताल के अल्मोड़ा जिले में मनाई जाने वाली इस होली में रंगो के अतिरिक्त शास्त्रीय संगीत का रस भी लिया जाता है।  इसमें ख्याल , ठुमरी से लेकर लोक गीतों को गाने की परंपरा है। इसके साथ ही इसमें राजनीतिक और हास्य चर्चाये भी होती है।  इसकी शुरुआत कैसे हुई यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। 


नवसम्वत का आरम्भ  -  

होली के दिन पूर्णिमा होने की वजह से इस दिन  भारतीय नवसम्वत का आरम्भ होता है। इसी दिन मनु का जन्म भी हुआ था। होली के पर्व के बाद ही नए वर्ष का आरम्भ होता है। 

होलिका दहन  -           

माना जाता है की हिरणकश्यप की बहन और प्रह्लाद की बुआ होलिका  को अग्नि से किसी प्रकार की क्षति ना होने का वरदान प्राप्त था। जिस वजह से हिरणकश्यप ने अपनी बहन को प्रह्लाद के साथ अग्नि में बैठने को कहा।  प्रह्लाद को तो कुछ नहीं हुआ परन्तु होलिका उसी अग्नि में भष्म हो गई।  तभी से होलिका दहन  बुराई के खात्मे के प्रतीक स्वरुप होली से एक दिन पहले मनाया जाता है।  इसमें गोबर के छेद वाले उपले जलाने की प्रथा है। माना जाता है की एक साथ सात उपलों की माला से भाइयो की नजर उतारकर जलाने पर सारी बुरी बालाएं इसी अग्नि में समाहित हो जाती है। 


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