deshwa

देशवा  (भोजपुरी कविता )


साहब साहब कहके पुकार मत बाबू
जेके देहले रहले वोट उहे ना बा काबू
खेल बा सब सत्ता के और
नेता हो गईल बाड़े बेकाबू

बोली बोलला मे आगे बाड़े देश के ई नेता
माई के आंख मे आंशु बा और
खून से लथपथ बा बेटा
रोज तमाशा चलअता देश मे ई का होता

हिन्दू , मुस्लिम रहलें इंहा बनके देखअ भाई भाई
मरलें नेता बांट देहले देखअ पाई पाई
अ जतियो मे जात बटलें अब केहके समझाई


अरे बिजली भइल महन्गा देख , सड़क मे अब मछलि पलाई
गरीब रोअता खून के आंशु बढअता महंगाई
की सुनत हई अब हिन्दू कहला से पेट भर जाई

अरे का भइल जो लईका आपन पढके घूमतारें
अरे कुछ ना करिहें त चौराहे पे पकौड़ी त बेचाइ

अब का बोली , का कही और केकरा के समझाइ
खोज अ कौनो और रास्ता जेसे देश सुधर जाई
नेता पे भरोसा नईखे कुलहि बाड़े मौसेरा भाई
राम के जे ना भइल उ जनता के का मुंह दिखलाई










2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १४ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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