मेरी मुहब्बत
तेरी मासूम मुहब्बत पे दिल है मेरा ठहरा सा
बहुत सोचा तुझे भुलूँ
पर इश्क़ है गहरा सा
मुहब्बत में जो दिल टूटा
तो आवाज नहीं होती
जो होता है वो कह नहीं सकता
उसकी कहीं फ़रियाद नहीं होती
हमें मालूम था एक दिन ऐसा भी आएगा
जो था खुदा मेरा
वही तडपायेगा
चाहत है तू मेरी
तुझे कैसे भला भूलूँ
की जी करता है एक बार, तुझे जरा छू लूँ
तुझ बिन रात नहीं गुजरती
दिन भी काट खाता है
अब तेरे बिना मुझको
कोई और न भाता है
पारो है तू मेरी, मैं तेरा देवदास हूँ
तेरे बिना देखो , कितना उदास हूँ
तू मेरी हो जाये , बता वो लकीर कहाँ खींचू
तू कहे तो मुहब्बत के बगिया को
अपने खून से सींचू
तेरी गुस्ताख़ मुहब्बत में दिल ये मेरा ठहरा सा
जाने कौन सी है बंदिशे
है तुझपे कौन पहरा सा
है पहचान नहीं तुझको मेरी मुहब्बत की
जाने कौन सी है दुनिया तेरी जरुरत की
इन्तजार है तेरा, जब तक जिंदगानी है
यही मेरी मुहब्बत की, छोटी सी कहानी है .........
इन्हे भी पढ़े -
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें