तूँ और मैं


नहीं था तूँ
तो मैं मैं था
था तूँ तो मैं तुमसा
बना जब तुमसा
मैं तूँ पर तूं ना मेरा
तूँ भी वो तूँ ना रहा
मैं बना जिस तूँ जैसा
मैं अब मैं जैसा
तूँ अब ना जाने कैसा
तूँ बना जैसा
रंग जिसमे चढ़े ना ऐसा
क्या तूँ - क्या मैं
लगन ऐसी थी उतरन वैसी
मैं अब आईने जैसा
तूँ एक मुखौटे जैसा
मैं अब ना तुझसा
तूँ ना अब मुझसा



a marriage in bihaar

ए मैरिज इन बिहार 

a marriage in bihaar


दूल्हे का भाव और दूल्हे के छोटका भाई का ताव देखकर रिश्तेदारों को यह समझते देर न लगी की आज बिहारी दूल्हे और उसके भाइयो का भाव रहर के दाल की तरह बढ़ा हुआ है ।  खुद को हृत्विक  समझने वाले दूल्हे को भले ही  पूरा जवार राजपाल यादव समझता हो लेकिन मायावती सरीखी उसकी बुआ और  गांव देहात के चढाकू फुफ्फा की नजर में वो कोई मिल गया वाला हृत्विक ही था ।  लड़के के फूफ्फा मुंहबोले धन्ना सेठ थे जिनकी पूरी जिंदाई दूसरो को नीचा और खुद को बबूल के पेड़ जितना ऊँचा दिखाने में निकल गई और  फुआ , मिसरी  जितनी मीठी और सेवन ओ क्लॉक ब्लेड जितनी धारदार  ।   

दरवाजे पर पहुँचते ही तिलक की व्यवस्था देखकर ऐसा लगा जैसे  सब कुछ राम भरोसे हो , अरे राम भरोसे गांव के कैटरिंग वाले का नाम था जिस पर गांव के समृद्ध और बड़का लोग कम ही लोग भरोसा किया करते थे।  किन्तु किफायती और बचतशील होने के नाते लड़के के इंजीनियर पिता ने  पी डब्लू डी के टेंडर की तरह ही शादी का टेंडर  50  %  डिस्काउंट के भरोसे  राम भरोसे को दे दिया था । पूरे गांव की जनसँख्या को ध्यान में रखते हुए आधे लोगो की व्यवस्था की गई , भाई अब राम भरोसे की व्यवस्था थी तो इस  इस पर शक कैसे किया जा सकता था। प्रत्येक स्टाल पर एक - एक मुश्तंडे को बैठा दिया गया , जो  किसी भी मेहमान और गांव वाले को जाने पर एक ही जवाब देता " तिलकहरू के आने पर ही स्टाल खुलेगा " और जब तिलकहरू आ गए तब जवाब में परिवर्तन कर दिया जाता  " अबहिन मालिक मना किये है " . बेचारा  चाट का स्टाल छोले के वियोग में ही दुखी था उधर पूड़ियाँ भी डालडे को कब तक बर्दाश्त करती।  हालाँकि कई रिश्तेदार यह बताने में असमर्थ रहे की आखिरकार स्टाल में पकवान क्या थे , कइयों की तो शंका यही थी की शायद ईंट पत्थर सजाकर रख दिए हो। 

गांव वाले ठहरे भाई पटीदार वो तो बीप ... बीप  की गालियां देते निकल गए परन्तु वे रिश्तेदार जो  शादियों में अपने अपने  साथ एक स्टेपनी लेकर चलते है वे क्या मुंह दिखाते।  साथ ही समय से घर पहुँचने की मजबूरी अलग।  रुकने वाले रिश्तेदारो को ऐसा लगने लगा था जैसे उन्हें किसी जेल में बंद कर दिया गया हो और खाना जेलर के आने के बाद ही मिलेगा । दूल्हे के घर वालो के भाव देखकर नारद जी को भी विश्वास हो गया था की पूरे ब्रम्हांड में दिग्विजय सिंह की शादी के बाद कोई खुश है तो यही परिवार । 

आखिरकार कई मेहमान स्टाल का मुंह देखे बगैर ही अपने - अपने घरो को लौट गए , कष्ट तो तब बढ़ा जब घरवालों ने यह कहा की " आ गए पनीर - पूड़ी चाप के " . अब बेचारे किसे बताते की कितनी पूड़ी खाकर आये है और कितनी इज्जत से मिठाई परोसी गई ।

खैर दूल्हे का तिलक शुरू होता है और जून की गर्मी से बचती - बचाती मामी , मौसी , फुआ ( बुआ ), भौजाइयां और गांव जवार की वे लड़कियाँ और औरते जिन्हे समारोह से ज्यादा चढ़ने वाले चढ़ावे की गिनती और क्वालिटी में नाक नुक्स निकालना आता है ने गीत कम गालियों की जो बौछार कि  , की दूल्हे के साले और ससुर यह नहीं समझ पाए की वे तिलक चढाने आये है या फिर पूरे गांव से पटिदारी का मार करने। 

गर्मी अगर कहीं पड़ रही थी तो वो जगह थी दूल्हे के भाई और पिता जी के दिमाग में।  खैर रिश्तेदारों ने अपनी इज्जत खुद ही मेंटेन की और गांव वालो ने इनकी इज्जत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । हां, समारोह में  मिठाई और स्टाल  के आइटम अगर किसी ने देखा था तो उससे बढ़कर दुनियां में  खुशनसीब कोई भी नहीं । 

मैं तो यहाँ दूर बैठा कोल्ड कॉफी और पनीर रोल के साथ शादी का आँखों देखा हाल सुन रहा था । लालू के जमाने से ही मुझे बिहार से डर लगता है । 

jewan mantr



जीवन मन्त्र  

jewan mantr


शब्दों के जाल बिछाने वाले 
कुछ कर्मो के  करतब दिखलाओ 
वाणी से मिसरी घोलने वाले 
तुम मर्म किसी का क्या जानो 
अर्थ का अनर्थ बनाने वाले, कुछ विषधरों को तुम अब पहचानो 
है स्पष्ट ,सरल , गूढ़  मन्त्र जीवन का ये 
तुम मानो या ना मानो 

कुछ निंदा करके क्या पाया 
सिर्फ जिन्दा रहके क्या पाया 
क्यों उचित को अनुचित में बदला 
रिश्तो को विचलित करके क्या पाया 

कुछ दम्भ भरा खुद का यूँ 
कुछ अहम् हृदय में समाया 
ज्ञान का दीपक बुझा दिया कब 
देर समझ में ये आया 

कब विवेक को छोड़ दिया तूने 
कब धैर्य तुझे ना रास आया 
लोभ ने छीनी अन्तः ज्योति 
मोह में तूं है अंधराया 

कब छूटे तुझसे ये धरा 
क्या जग को तूं दे पाया 
यहाँ जन्म ना तेरी चाह से 
मृत्यु तक तूं ये ना समझ पाया 




hoshiyar ki talash


होशियार की तलाश 


शरीफ आदमी की तलाश करते - करते ना जाने कितने ही  शराफत वालो के असली रंग देखने को मिले।  शरीफ दिखना और शरीफ होना इस फर्क को समझने में दिमाग  की कई नसों ने काम करना बंद कर दिया । वास्तव में आज बेवकूफ कोई भी नहीं है , लेकिन फिर भी होशियार लोगो की कमी देखने को मिलती है ।  होशियारी की परिभाषा जानने के लिए जब बुजुर्गो का अनुभव लेने पहुंचे तो पता चला की , आज के युग में जो पैसा कमा रहा है ,चाहे माध्यम कोई भी और कैसा भी क्यों ना हो वो सबसे होशियार है।  हालांकि ऐसे अनुभव बांटने वाले खुद अपने बेटे - बहु पर आश्रित थे । कुछ के अनुसार दूसरो से चालाकी पूर्वक काम निकालने वाला भी आज के युग में होशियार की उपाधि धारण करता है। 


कुछ सज्जनो ने आपस में विचार विमर्श के फलस्वरूप  ऐसे लोगो को होशियार बताया जो सरकारी नौकरी करते हुए घर से दूर एकांत में परिवार ( धर्मपत्नी ) के साथ जीवन यापन कर रहे है । ना घर पर रहेंगे ना रिश्तेदारों से लेकर नातेदारों का कोई चक्कर रहेगा । 

महिलाओं की राय इतर थी।  उनके अनुसार वह बहु ज्यादा होशियार है जो शादी के बाद बेटे के साथ चली जाती है और घर पर सास - ससुर का हाल - चाल लेने के लिए हफ्ते में एक बार जिओ के मोबाईल से आमने - सामने बतिया लेती है , हाँ दिखावटी मिठास में कोई  कमी नहीं करती । 

इन तथ्यों से मुझे यह समझ में आ गया की होशियार वही है जिसने अपनापन , दया , मर्यादा , लज्जा , सेवा , मृदुता ,फर्ज और कर्तव्य जैसे अवगुणो का त्याग करते हुए अवसरवादिता , घमंड , लालच , निष्ठुरता , कटुता या कठोरता के साथ धोखा देने जैसे सद्गुणों को अपना लिया है। 

मैंने इतिहास को थोड़ा टटोलने की कोशिश की तो पता चला कबीर गरीब होते हुए भी होशियार थे और सिकंदर विश्व विजेता होने के बावजूद भी नासमझ था। 
अपना काम किसी भी सूरत में निकलने वाले को इतिहास ने मतलबी और और इसकी हद पार करने वाले जयचंद जैसो को गद्दार कहा है।
पारिवारिक  जीवन में ऐसी बहुओं को समाज में कोई इज्जत नहीं दी जाती थी जो अपने घर की मान मर्यादा के साथ बड़ो की सेवा ना करती हो।  इन बड़ो में चचेरे सास - ससुर से लेकर सम्पूर्ण कुटुंबवासी आते थे। 

इतिहास और वर्तमान की बदली हुई यह परिभाषा कहीं  ना कहीं समाज की उस बदलती सोच को दिखाती  है जिसमे जाने - अनजाने खुशियों की नई परिभाषा गढ़ी गई है। और हमरा  मन उसी को पाने की लालसा कर बैठता है।  समाज, परिवार से मिलकर बनता है और परिवार उसके सदस्यों से , सदस्यों को तोड़ कर परिवार का विघटन जारी है और इसी के साथ ही समाज का खोखलापन भी। 

मेरी होशियार की परिभाषा की तलाश जारी है क्योंकि समाज का जो अंश बचा हुआ है, वो निश्चित तौर पर किसी बेवकूफ के भरोसे तो नहीं चल रहा होगा। 




jhandu baam jindagi

झंडू बाम जिंदगी 


गोविन्द चार साल से जिस सामने वाली को लइनिया रहा था , आज बाजार में उ लड़की उसके भाई के साथ लेमन जूस पी रही थी , उ भी पूरा मुस्की ( हंसकर ) मारकर । उधर कॉलेज वाली रोज उससे अपना प्रोजेक्ट पूरा करवाती थी । गोविन्द भी इसी चक्कर में अपने अंदर हाई क्वालिटी ला कर , पूरा मेहनत और लगन से प्रोजेक्ट पूरा कर रहा था जैसे यूपीएससी का मेंस हो और इंटरव्यू में उसे इ लड़की प्रपोज करने वाली है । लेकिन जैसे ही प्रोजेक्ट पूरा हुआ इहो लड़की थैंक्यू भैया बोल कर निकल ली।
गोविन्द को लगा की जिंदगी में कुछो अच्छा नहीं हो रहा है , सारा मेहनत बर्बाद है । तभी उसके कॉलेज का रिजल्ट आता है और वो पूरे कॉलेज में दुसरे स्थान पर रहता है। गोविन्द सोचता है चलो कुछ तो अच्छा हुआ , तभी उसे सामने बोर्ड पर पहला स्थान पाने वाले का फोटो दिखाई दिया , यह वही लड़की थी जिसका प्रोजेक्ट गोविन्द पूरा कर रहा था , सारा ख़ुशी एकदमे से गायब हो गया ।
गोविन्द निराश होकर घर पहुंचा , लगा आँगन की छावं में कुछ आराम मिलेगा , तभी पता चलता है सबकी रजामंदी से उसके भाई की शादी सामने वाली लड़की से तय हो गई है और आज अंगूठी पहनाई की रसम है । अब तक गोविन्द को लगने लगता है की वाकई में उसकी जिंदगी झंड हो गई है । तभी सामने से एक सुन्दर सी लड़की आती है जिसे देखकर गोविन्द मुंह फेर लेता है। लेकिन वह गोविन्द के पास जाकर , उसका हाथ पकड़कर , पूछती है मुझसे शादी करेंगे ?, गोविन्द को सहसा विश्वास नहीं होता। गोविन्द को ऐसे देखकर वह दुबारा पूछती है , इस बार गोविन्द हाँ बोल देता है , तभी सारे लोग हंसने लगते है ,, क्योंकि गोविन्द आँगन में बंधी भैंस से कुछ बड़बड़ा रहा था।

लेखक के क्वोरा पर दिए एक जवाब से  साभार 

laal musafir

लाल मुसाफिर 


दोपहर के तीन बजे मुंबई सेन्ट्रल स्टेशन पर उतरने के बाद एहसास होता है की की शायद यह सपना तो नहीं , क्योंकि देश और दुनिया के व्यस्ततम स्टेशनों में से एक मुंबई सेंट्रल पर सिवाय मोटे , बिल्ले जैसे चूहों के सिवा किसी एक  प्राणी का नामोनिशान तक नहीं था ।

परन्तु कुछ ही देर में पता चल जाता है यह सपना नहीं हकीकत है।  घबराहट के साथ डर भी लग रहा था , शायद ऐसी कल्पना हॉलीवुड की फिल्मो में की जाती होगी , परन्तु वीरान पड़ा स्टेशन शहर में किसी अनहोनी  की पुष्टि कर रहा था। आखिर एकाएक सारे के सारे मनुष्य चले कहा गए ।  ट्रेन जिससे मैं उतरा था पिछले स्टेशन पर ही खाली हो गई थी और इंजन के पास जाने पर पैरो के नीचे की जमीन भी खिसक गई क्योंकि इसमें तो इंजन था ही नहीं  । 

मेरी नई कहानी का एक छोटा सा अंश पूरी कहानी श्रृंखलाबद्ध जल्द ही आपके सामने होगी - 

Hindu has become the most violent religion

हिन्दू सबसे हिंसक धर्म बन गया है



पहले तो यह बता दूँ की उर्मिला मार्तोडकर का पूरा बयां क्या था। उर्मिला मार्तोडकर ने कहा है की " नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दू सबसे हिंसक धर्म बन गया है " .

अब आते है इस बयां के विश्लेषण पे। चूँकि उर्मिला मार्तोडकर ने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया है और उससे पहले एक मुस्लिम कश्मीरी व्यवसाई से शादी करके इस्लाम ज्वाइन कर लिया है। यहाँ दोनों के लिए ज्वाइन शब्द इसलिए क्योंकि वर्तमान समय में राजनीति का आधार धर्म पर आकर टिक जाता है। वैसे आजतक का इतिहास उठाकर देखे तो राजनीति और धर्म , शासन के लिए एक दूसरे के पूरक रहे है , और सत्ता में शामिल होने का एक माध्यम भी। यही कारण है की उर्मिला मार्तोडकर ने पहले इस्लाम ज्वाइन किया फिर निश्चित रूप से उन्हें कांग्रेस ज्वाइन करना ही था।

अब यहाँ से हम उनको उनके नए चोले के अनुसार बेगम अख्तर मीर के नाम से सम्बोधित करेंगे । बेगम अख्तर मीर अपने समय की एक बेहतरीन अदाकारा थी और उर्मिला मार्तोडकर के नाम से जानी जाती थी । हर अदाकारा ( महिला ) का एक समय होता है और उसके पश्चात वह मुख्य भूमिका से सहायक भूमिका या किसी अन्य किरदार ( व्यक्तिगत जीवन में भी ) में नजर आने लगती है। बेगम मरियम अख्तर मीर ने बड़े परदे से उतरने के पश्चात घर - गृहस्थी बसाना उचित समझा , उनके अंदर अभी भी कहीं ना कहीं स्टारडम की महत्वकांक्षा हिलोरे मार रही थी इसलिए उन्होंने राजनीति में उचित अवसर देखकर टिकट की उम्मीद से कांग्रेस से नाता जोड़ लिया ।
अब पहली फिल्म की तरह पहला स्टेटमेंट भी ब्लॉकबस्टर होना ही चाहिए इसलिए बहुसंख्यक हिन्दू आबादी और सर्वाधिक लोकप्रिय नेता का मिश्रण करते हुए यह स्टेटमेंट की "नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दू सबसे हिंसक धर्म बन गया " दे ही दिया । हिन्दुओ को इससे आघात लगा और मोदी समर्थको को गहरा धक्का , हालांकि वर्तमान समय में बहुसंख्य हिन्दुओ की आस्था मोदी में केंद्रित है । हिन्दू एक ऐसा धर्म रहा है जिसने वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को अपनाया , जिसने मुस्लिम शासको के साथ ईसाइयो का भी साथ दिया। यह अलग बात थी की इनके शासन में हिन्दुओ के साथ ना जाने क्या - क्या हुआ । मुस्लिम शासन में निश्चित तौर पर हिन्दुओ का मनोबल गिरा और साथ ही ईसाई शासन में भी , क्योंकि इन शासको ने जैसा मैंने पहले कहा है धर्म आधारित राजनीति को प्रश्रय दिया। और हिन्दू धर्म की बुनियाद पर आघात किया।
समय के साथ आजादी के बाद हिन्दू धर्म को कांग्रेस ने जाति आधारित राजनीति से विभाजित कर सत्ता अपने पास बरकरार रखी 

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का अंदरूनी झुकाव किसी से छिपा नहीं है , परन्तु यह तथ्य आजादी के बाद जिनको पता थी वह इसे जनता के सम्मुख नहीं रख पाए इंटरनेट क्रांति के बाद इस तरह की सूचनाओ का आदान प्रदान तेजी से हुआ और कांग्रेस के दोहरे आचरण की पोल खुलती गई । कांग्रेस के अलावा हिन्दू हितो की बात किसी ने खुलकर नहीं की सिवाय मोदी के , आडवाणी भी जिन्ना के बयान के बाद अपने राजनीतिक करियर पर कुल्हाड़ी मार बैठे । मोदी उदय के साथ हिंदुत्व ने एक नई परिभाषा को जन्म दिया जिसमे राष्ट्रवाद का भी मिश्रण था। एक बार फिर हिन्दुमानस अपने इतिहास को याद करने लगा और मोदी के नेतृत्व में स्वयं को सहज पाने लगा। इसके अलावा वह हिन्दू धर्म की मूल भावना के इतर हिंसक कभी नहीं हुआ। दो चार घटनाये राजनीति से प्रेरित अवश्य थी जिसे मीडिया ने मिर्च मसाले के साथ पेश किया । हां उसका मनोबल कुछ ऊँचा जरूर हुआ है और इस बढे हुए मनोबल की व्याख्या अलग - अलग रूपों में अवश्य हो सकती है।
बेगम मरियम अख्तर मीर कांग्रेस की उसी विचारधारा से प्रभावित है जिसका पोषण उनके अंदर हुआ है। मैं किसी धर्म पर टिपण्णी नहीं कर सकता क्योंकि धर्म हमें भेद करना नहीं सिखाता , मैं उस व्यक्तिगत धर्म के खिलाफ हूँ जिसका पोषण दूसरे धर्म को ठेस और क्षति पहुँचाने के लिए किया जाता है । उनके चुनावी क्षेत्र में में भी इस तरह के बयान की आवश्यकता थी जिससे उनके राजनीतिक किरदार को समझने में आवश्यकता हो । और इस एक स्टेटमेंट से उन्होंने बता दिया की भविष्य में उनका किरदार क्या होगा।

Gandhi is a seductive surname



गाँधी एक बहकावे वाला उपनाम - 



महात्मा गाँधी जैसी शख्शियत के उपनाम से प्रसिद्ध गाँधी शब्द आज राजनीति में बेहद ही मजबूत शब्द माना जाता है।  यहाँ बात केवल शब्द की है नाकि इसको लगाने वाले शख्श  की । लोग अक्सर ही आपके उपनाम को गंभीरता से लेते है , यही उपनाम आपकी पहचान का मूलस्त्रोत होता है।  कभी -  कभी यह उपनाम जातिगत और क्षेत्रगत बंधनो से ऊपर उठता हुआ राष्ट्रिय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करता है । ऐसा ही करिश्मा मोहनदास करमचंद्र  " गाँधी  "  ने किया था ।

 Gandhi is a seductive surname

देश की आजादी में अपना योगदान देने वाले गांधी के प्रति तत्कालीन भारतीय समाज का बड़ा वर्ग अत्यंत ही संवेदनशील था और उसकी नजरो में महात्मा गांधी एक देवतुल्य पुरुष थे। 

नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और गाँधी उनकी वैशाखी । इंदिरा गाँधी द्वारा फिरोज खान के साथ प्रेम विवाह करने पर जवाहरलाल नेहरू को अपना और अपने परिवार का राजनीतिक अस्तित्व खतरे में दिखाई पड़ा उन्होंने फिरोज खान  के " खान "   को हटाकर गांधी कर दिया जिससे इंदिरा खान ना होकर इंदिरा गांधी के नाम से पहचानी जाये।  
 Gandhi is a seductive surname

वैसे इस बारे में यह भी कहा जाता है की गांधी जी ने फिरोज खान को अपना दत्तक पुत्र माना था परन्तु इस प्रकार के तथ्यों की पुष्टि नहीं की जा सकती। फिरोज खान वैसे तो पारसी थे परन्तु  उनका खान उपनाम प्रथम दृष्टया मुस्लिम प्रतीत होता और तत्कालीन समय में संचार क्रांति के इतने प्रगतिशील ना होने की वजह से आम जनता प्रथम दृष्टि को ही सत्य मान बैठती । इस प्रकार भारतीय इतिहास पुरुष महात्मा गाँधी के उपनाम का अधिग्रहण  बहुत ही सफाई पूर्वक नेहरू - खान परिवारों द्वारा कर लिया गया और भारतीय जनता के विश्वास का भी । इस प्रकार नेहरू - खान परिवार नेहरू - गांधी  परिवार के नाम से जाना जाने लगा। 


इंदिरा गाँधी ने नेहरू की विरासत को आगे बढ़ाया और उपनाम लगाया  "गांधी " का । सत्ता का केन्द्रीकरण करने की शुरुआत इंदिरा गांधी के शासन से शुरू हुई । राजीव गाँधी और फिर वर्तमान में राहुल गाँधी खुद से ज्यादा  इसी नेहरू - गाँधी खानदान के वंशज के तौर पर जाने जाते है। अभी जाति  सम्बंधित एक विवाद पर राहुल ने अपने गोत्र की पुष्टि भी की थी । परन्तु यह उतना ही आश्चर्य जनक है की  "खान "  उपनाम के साथ ही  फिरोज खान भी वक़्त की आंधी में कहीं सिर्फ इसलिए खो गए है की उनका उपनाम खान था , जो की नेहरू के वंशजो और भारतीय राजनीति दोनों के अनुकूल नहीं था। उपनाम की महत्ता इससे ज्यादा कहीं और नहीं देखी जा सकती। 


अब बात असली गांधी के हक़दारो की तो जैसा की सब जानते है उनके चार बेटे थे , हरिलाल , मनीलाल , रामदास और देवदास परन्तु महात्मा गाँधी ने कभी उन्हें राजनीति में स्थापित करने की कोशिश नहीं की।  वैसे तो आज महात्मा गाँधी की वंशवृक्ष बेहद विशाल है परन्तु किसी ने भी उनके गांधी उपनाम और राजनीतिक विरासत पर दावा नहीं किया।  जैसा की नकली उपनाम वाले करते है। 



modi

मोदी 

सच कहूं तो मैं एक आम भारतीय की तरह कांग्रेस से काफी निराश हो चुका था। मैं भाजपा को भी पूरी तरह सही नहीं मानता था। तभी अरविंद केजरीवाल आये लगा बंदा कुछ हट के है। फिर उनका पहला झूठ पकड़ा जब उन्होंने अपने बच्चो की कसम खाई और कभी कांग्रेस और बीजेपी का समर्थन ना लेने की बात कही। ईश्वर उनके बच्चो को दीर्घायु प्रदान करे। आम आदमी की तरह प्लेटफार्म पर सोने वाली फोटो खूब भाई, फिर उनकी तानाशाही देखने को मिली। जिन सबूतों से वह शीला सरकार पर कार्यवाही की बात करते थे अचानक ही वह गायब हो गए। झूठ पर झूठ और कुछ हद तक उनके देश के प्रति विचार रास नहीं आये।









मुझे कांग्रेस के इरादे नेक नहीं लगते , मुझे ये समझ नहीं आता की वंशवाद की ऐसी कौन सी मज़बूरी है की राजनीति के अनुकूल ना होते हुए भी कांग्रेस भारत जैसे विशाल देश के लिए राहुल गाँधी को अपना प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने पर तुली हुई है । मनमोहन सिंह ने सोनिया गाँधी के हाथो की कठपुतली बनना क्यों मंजूर किया। हर देश विरोधी तत्वों का कांग्रेस का समर्थन स्वतः ही क्यों मिल जाता है । कांग्रेस के भ्रष्टाचार , हिन्दू और देश विरोधी रवैये से जनता घुट चुकी थी।








ऐसे में गुजरात से उठकर राष्ट्रिय पटल पर मोदी जी का उभार हुआ , जी इसलिए की अभी तक सम्मान बरकरार है क्योंकि राजनीति में व्यक्तित्व में कब बदलाव हो जाये पता नहीं । कुछ हिंदूवादी बातें हुई , मैं सांप्रदायिक नहीं हूँ परन्तु इस देश की अन्य पार्टियों द्वारा हिन्दुओ को अनदेखा किया गया। जैसे हमारे पूर्वजो ने छोटी जातियों को अनदेखा किया था। जिसका दर्द उनके सीने में अभी तक है , और हमारे संविधान ने उनकी इसी स्थिति का आंकलन करते हुए उन्हें आरक्षण प्रदान किया। हालांकि वर्तमान में मैं मैं आरक्षण दिए जाने का पक्षधर नहीं। उन्ही में से कुछ लोगो को मोदी ने सम्मान क्या दे दिया अन्य लोगो ने इसे चुनावी स्टंट बता दिया। चलिए यह काम आप भी सारे पार्टी के मुखिया राहुल से लेकर ममता तक से करवा लीजिये बात बराबर हो जाएगी ।



उनका स्वच्छता अभियान पहले मेरे लिए किसी महत्व का नहीं था मुझे लगा कुछ दिन बाद यह स्वतः ही चर्चा से गायब हो जायेगा जैसा आजतक भारत में होते आया है। परन्तु मैंने देखा धीरे - धीरे इसकी शाखाये विशाल होते जा रही है घर से लेकर बाहर तक लोगो की इस पर चर्चा जारी है , जहाँ तक मेरा मानना है कोई भी काम तब सफल है जब वह लोगो के जेहन में घर कर जाए ।


दरअसल 2014 के बाद मैंने देश के उन चेहरों को अपने असली रंग में आते देखा है जो उससे पहले फेयर एंड लवली लगा कर अपने असली चेहरे को ढके हुए थे। मैंने राहुल गांधी को सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध करते देखा है। मैंने ममता बनर्जी को देश हित से पहले स्वयं की सत्ता बरक़रार रखने के लिए जमीर को बेचते देखा है। मैंने " भारत तेरे टुकड़े होंगे " जैसे नारे भारत की राजधानी और देश के सबसे बड़े शैक्षणिक संस्थान में सुने है। मैंने पकिस्तान के सेना प्रमुख से भारतीय मंत्री को गले मिलते देखा है । मैंने इमरान खान के लिए शांति के नोबल की पुकार सुनी है ।



मेरे लिए देश सर्वपरि है इसलिए मै " हमारा सिद्धांत है हम घर में घुस के मारेंगे " बार - बार सुनना और देखना चाहूंगा। मैं मोदी को वर्तमान राजनीति में सबसे श्रेष्ठ तब तक मानता रहूँगा जब तक वह ऐसे ही ईमानदार रहेंगे। तीन बार मुख्यमंत्री और एक बार प्रधानमंत्री रहने के बाद भी उन पर एक रूपये का भ्रष्टाचार कोई सिद्ध नहीं कर सकता । वे देशहित के मुद्दों पर खुलकर बोलते और फैसले लेते है। वे कुशल राजनीतिज्ञ और कुशल वक्ता भी है । उन्होंने विश्व में भारत का मान और भारतीयों का अभिमान दोनों ही बढ़ाया है ।


लेखक  द्वारा  क्वोरा पर दिए गए एक जवाब से साभार - 

2014 में भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी के प्रति आपकी धारणा कैसे बदल गई है?

holi hai



होली है 

holi hai


रंग तेरा या रंग मेरा
इस उत्सव का एक ही प्रिये 
हूँ तैयार रंग दे मुझको  
प्रीत के इस रंग से प्रिये 

है वाणी में गुजिया की मिठास 

नशा भांग का तेरे पास 
अबकी होली कुछ ऐसे खेले 
रहे रंगो में जीवन की आस 

मधुरिम - मधुरिम  , मस्तम - मस्तम 

 रगो में चढ़ता होली का खुमार 
शिकवे ना याद करो अब कोई 
 उड़ेगा रंग 
फैलेगा प्यार 

कहीं छुप जाये  

जिसे बुलाये 
चाहे जितना नाच नचाये 
भीगेगी फिर से एक बार   
चुनर वाली देखो आज 



लेखक द्वारा क्वोरा पर दिए एक जवाब से साभार   

poor



गरीब 

                                       
poor
 
पैरो में चप्पल नहीं रहती  , तपति सड़को का एहसास होता है 
कभी कंकड़ तो कभी कांटो से  भी मुलाकात होता है। 

कड़ाके की सर्द रातों में खाली पेट नींद नहीं आती  
वो फटा कम्बल भी जब छोटा भाई खींच ले जाता है। 

वो फटा हुआ पैजामा  सिलने के बाद भी क्यों तन को ढँक नहीं पाता  है  
सबको देने के बाद  रोटी, माँ के हिस्से की क्यों घट जाती है। 

छप्पर से टपकती बारिश की बूंदो  में  मैं  , कागज की नाव चलाता हूँ  
और उन्ही नावों पर बैठकर कल्पना की  पतंग उडाता हूँ 

डरता हूँ आंधी  और तूफानो से , इसलिए नहीं की  डर लगता है 
छत मेरी कमजोर है , लम्बा ये सफर लगता है  

ढिबरी की रोशनी में बैठकर आसमान के  तारे गिन जाता हूँ 
रात को गोदामों के बाहर पड़े अनाजों को बिन लाता हूँ 

वो ऊँची ईमारत वाले घर में माँ मेरी पोंछा लगाती है 
मोटी सी वो औरत माँ को खूब सताती  है 

माँ कहती है सब अपना अपना नसीब है 
वे  बड़े लोग  शरीफ और हम छोटे लोग गरीब है 

मैं बोला माँ '  अब तक तेरी चाह थी अब मेरी चाह है 
गरीब पैदा होना नहीं गरीब मरना गुनाह है 

पढ़े बुढ़ापे पर एक मार्मिक कविता - बुढ़ापा 

Some Interesting Facts about Holi

होली के बारे में कुछ रोचक तथ्य  - 




फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाये जाने वाला होली का त्यौहार भारत और नेपाल दोनों ही जगहों में प्रमुखता से मनाया जाने वाला त्यौहार है । धुरखेल , धुरविन्दं और धूलखेड़ी इसके अन्य नाम है। इसके अतिरिक्त इसे बसंत महोत्सव और कान महोत्सव भी कहा जाता है। होली के दिन चन्दन और आम की मंझरी को मिलकर खाने का बड़ा महत्व  है।  होलिका और प्रह्लाद की कहानी के अतिरिक्त  कृष्ण और पूतना , ढुंढी तथा शिव की बारात के रूप में होली की कथाये प्रचलित है। माना जाता है की गणो का रूप धारण करके लोग शिव की बारात का हिस्सा बनते है।  इस दिन भांग पीने की भांग परंपरा से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। होली में रंगो के प्रयोग का श्रेय भगवान श्रीकृष्ण को जाता है। 

इतिहास में भी अकबर - जोधाबाई और जहांगीर - नूरजहां के साथ होली खेलने का विवरण मिलता है। दक्षिण भारत के विजयनगर में भी होली मनाने के प्रमाण मिले है।  हालाँकि दक्षिण भारत में होली की महत्ता उतनी नहीं है जितनी उत्तर भारत में।  इसी कारण दक्षिण भारत के अधिकांश सरकारी प्रतिष्ठान इस दिन खुले रहते है। 

बरसाना की विश्व प्रसिद्द लठ्मार होली -   


ऐसा माना जाता है की श्रीकृष्ण ने मथुरा के  बरसाना में ग्वालो के संग राधा तथा उनकी अन्य सहेलियों के साथ छेड़छाड़ की थी जिसके फलस्वरूप वहां के निवासियों ने उन लोगो की लट्ठ से धुलाई कर दी। इसका दूसरा पक्ष यह भी माना जाता है की श्रीकृष्ण हर साल राधा के साथ होली खेलने आते थे और राधा उन्हें बांस की बल्लियों ( डंडे )से  दौड़ाती थी।  उसके बाद से ही बरसाना और नन्द गांव में लठमार होली की परंपरा विकसित हो गई।  वहां का प्रसिद्ध राधा - रानी मंदिर के परिसर में इस प्रकार की होली का बड़ा ही भव्य आयोजन होता है। बरसाना के अगले दिन नंदगांव में होली मनाई जाती है जहाँ बरसाना के पुरुष वहां की महिलाओ के साथ होली खेलने पहुँचते है और बदले में उन्हें रंगो के साथ लट्ठ मिलती है। 


कुमाउँनी बैठक होली


इसकी शुरुआत पौष माह के पहले रविवार से हो जाती है।  नैनीताल के अल्मोड़ा जिले में मनाई जाने वाली इस होली में रंगो के अतिरिक्त शास्त्रीय संगीत का रस भी लिया जाता है।  इसमें ख्याल , ठुमरी से लेकर लोक गीतों को गाने की परंपरा है। इसके साथ ही इसमें राजनीतिक और हास्य चर्चाये भी होती है।  इसकी शुरुआत कैसे हुई यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। 


नवसम्वत का आरम्भ  -  

होली के दिन पूर्णिमा होने की वजह से इस दिन  भारतीय नवसम्वत का आरम्भ होता है। इसी दिन मनु का जन्म भी हुआ था। होली के पर्व के बाद ही नए वर्ष का आरम्भ होता है। 

होलिका दहन  -           

माना जाता है की हिरणकश्यप की बहन और प्रह्लाद की बुआ होलिका  को अग्नि से किसी प्रकार की क्षति ना होने का वरदान प्राप्त था। जिस वजह से हिरणकश्यप ने अपनी बहन को प्रह्लाद के साथ अग्नि में बैठने को कहा।  प्रह्लाद को तो कुछ नहीं हुआ परन्तु होलिका उसी अग्नि में भष्म हो गई।  तभी से होलिका दहन  बुराई के खात्मे के प्रतीक स्वरुप होली से एक दिन पहले मनाया जाता है।  इसमें गोबर के छेद वाले उपले जलाने की प्रथा है। माना जाता है की एक साथ सात उपलों की माला से भाइयो की नजर उतारकर जलाने पर सारी बुरी बालाएं इसी अग्नि में समाहित हो जाती है। 


bhai sahab



भाई साहब 

bhai sahab


बचपन से ही भाई साहब का अस्पष्ट नजरिया हमेशा ही मुझे कुछ दुविधा में डाले रहता था । उधर  भाई साहब  इसके उलट  मुझे ही आरोपित किया करते थे । उनके अनुसार मैं लापरवाह और सामाजिकता की गहराई में डूबा हुआ ऎसा इंसान  था जिसने अपन बहुमूल्य समय इन्ही बेफजूल के  कार्यो में व्यर्थ कर दिया  । भाई साहब के लिए समय की परिभाषा अलग थी , अगर उन्हें मुझे समय देना पड़े तो उनकी व्यस्तता प्रधानमंत्री को भी मात दे देती है । यहाँ उनकी प्रेरणा स्त्रोत धर्मपत्नी की बात ना की जाये तो परिवार पुराण कुछ अधूरा सा लगता है । भाभी जी भी व्यस्तता में भाई साहब से कम ना थी, चादर बिछाने से लेकर टीवी का रिमोट ढूंढने तक ना जाने ऐसे कितने जटिल काम थे जो उनकी दिनचर्या से ऊपर थे और उनकी व्यस्तता बढ़ाते थे ,हालांकि मायके पक्ष के सन्दर्भ में उनकी व्यस्तता उसी तरह रफूचक्कर हो जाती थी जिस तरह घर के महत्वपूर्ण अवसरों पर  भाई साहब की उपस्थिति । 

भाई साहब का दर्शन मैं आजतक नहीं समझ पाया भावनाये कभी उनपर हावी नहीं हो पाई हालांकि भाभी जी की भावनाये उनपर जरूर हावी रहती थी।  खुशनसीबी यह थी की ईश्वर की कृपा उनपर बराबर बनी  रही और उनके महत्वपूर्ण कार्य स्वतः ही होते चले गए , हालांकि इन कार्यो का श्रेय भी भाभी जी ने ईश्वर से हटाकर खुद पर ले लिया था ,वैसे  शुरुआत ईश्वर से ही होती थी परन्तु वार्तालाप की अंतिम यात्रा में ईश्वर ठीक  पीछे उसी प्रकार छूट जाते थे जिस प्रकार गांव की पगडंडियों से गुजरने वाली बारात में दूल्हा ।  कभी - कभी तो मुझे ईश्वर पर भी दया आने लगती थी , मैं कितना सोचता था की ईश्वर को किसी बात का श्रेय दूँ , परन्तु भाई साहब की बातो से लगने लगता ईश्वर कुछ नहीं करते, आदमी जो करता है उसे निश्चित रूप से होना ही है । 

भाई साहब को दूसरो को प्रसन्न करने की अदभुत कला थी , हालाँकि यह प्रसन्नता मौखिक रूप से ही होती थी व्यवहारात्मक रूप से इस प्रसन्नता का 90 % हिस्से का स्थानांतरण उनके ससुराल पक्ष में होता और काफी कुछ सुनने के बाद 10 % बाकियो के हिस्से में आता । मुझे भाई साहब से कभी कोई शिकायत नहीं रही क्योंकि बाल्यावस्था से ही मुझे उनकी प्रकृति की आदत सी  हो गई थी ।  वैसे भाई साहब ने कई जगहों पर मेरी मदद अवश्य की थी परन्तु अपनत्व का नमक निकालकर ।  वैसे मैं यह नमक आवश्यकता से अधिक घोल देता था जिसकी वजह से मुझे खुद कभी काल स्वयं पर ग्लानि होने लगती थी ,  वैसे यह आवश्यकता से अधिक मेरे अनुसार नहीं होता था। 

भाई साहब की नजरो में बुद्धिजीवी बनना और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होना एक ही बात थी । वैसे अभी तक यह सम्मान उन्ही को प्राप्त हुआ है जिनकी नजरो में भाई साहब खुद सुकरात या प्लूटो से कम नहीं थे।  भाई साहब द्वारा एक नए दर्शन का ईजाद किया गया, जिसे आधुनिक युग का  द्धिज आचरण सिद्धांत कहा जा सकता है । मैं भाई साहब के दर्शन के पहले अध्याय में ही अनुत्तीर्ण हो जाया करता था जिसके अनुसार व्यवहार लाभकारी और बचतकारी होना चाहिए,  बचतकारी में समय और अर्थ दोनों आते थे।  परन्तु यह बात मेरे पल्ले कभी नहीं पड़ती और शायद मैं यह दोनों ही गँवा बैठता । 

दर्शन के दूसरे अध्याय के अनुसार बातो से महत्ता बताकर दूसरो को भ्रम में रखना और टेढ़ी - मेढ़ी पगडंडियों से घुमाने के बाद  कार्य की जटिलता या कार्य करने में  असमर्थता प्रकट करना मनुष्य का एक सामान्य लक्षण होना चाहिए और  कभी - कभी  ऐसे अवसरों पर मौन व्रत भी रखा जाना चाहिए। भाई साहब ने इस अध्याय को सम्पूर्ण रूप से आत्मसात कर लिया था और और साथ में उनकी  जीवन संगिनी ने भी  ।  वैसे इसे मेरी तरह सीधे शब्दों में " ना " या " हां " बोलने की जहमत और कार्य की प्रकृति पर चर्चा के साथ  उसे हल करने की नीयत से भाई साहब कोसो दूर भागते थे और मुझे अपने इस गुण  के कारण कई जगह भाई साहब द्वारा मूर्ख घोषित कर दिया जाता । 


मुझे भाई साहब का दर्शन अवसरवादिता और संवेदन शून्य सा लगता, हालाँकि भाई साहब संवेदनशील भी थे परन्तु उनके लिए जो मेरी नजरो में इंसानियत के आम गुणों से अभावग्रस्त थे। मेरा अपना कोई दर्शन नहीं था , जिसने मदद मांगी उसकी मदद की भले ही वह उस काबिल हो या  ना हो कम से कम ईश्वर ने तो मुझे इस काबिल बनाया ही होगा । समाज में कुछ समय रूपी धन स्वयं की मर्जी से खर्च किया , शायद आत्मा और मन को प्रसन्नता अवश्य मिली होगी ,परन्तु इस ख़ुशी को पाने के चक्कर में वह दौड़ छूट गई जिसके भाई साहब विजेता थे।  जिस दौड़ में आज हर इंसान शामिल है तथा  आगे बने रहने के लिए भाई साहब के दर्शन को अपनाता है , और मेरे जैसा इंसान उनकी नजर में पढ़ा लिखा तो रहता है लेकिन अक्लमंद नहीं रहता ।   

    

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पाकिस्तानी हैंडपंप 


हीरा ठाकुर  आज बहुत परेशान थे।  उनकी परेशानी का कारण वीरू का वह लड़का था जो पाकिस्तान से हैण्डपम्प उखाड़ लाया था।  हीरा ठाकुर ने वीरू से उस हैंडपंप की गुजारिश की थी ताकि वे शान से उसे अपने दरवाजे पर लगवा सके और उन्हें उस नल में पाकिस्तानियो की हार दिखाई दे।  किन्तु बसंती ने वह नल देने से वीरू को रोक लिया था।  बसंती उसे एक वाटर प्यूरीफायर  कंपनी को देना चाहती थी जिसे कंपनी अपने दफ्तर में लगवाती।

लेकिन जबसे पकिस्तान ने अभिनन्दन को वापिस किया है तबसे भारत के जैकाल , मोगैम्बो , गेंडास्वामी और चिन्ना ने पकिस्तान को नल वापिस करने की मांग करदी।  भारतीय सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए मिस्टर इंडिया को खोजने का आदेश जारी किया है परन्तु एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी कृष और शिवाजी - बॉस  दोनों ही मिस्टर इंडिया को खोजने में असमर्थ है।

इधर कुछ भारतीय नेताओ ने तारा सिंह द्वारा उखाड़े गए नल को पाकिस्तानी होने से ही इंकार कर दिया है , वे तारा सिंह से इस बात की पुष्टि के लिए सबूत की मांग कर रहे है।  इधर तारा सिंह इस बात को लेकर आग - बबूला हो उठे है और उन नेताओ के नल उखाड़ने निकल पड़े है।

इधर भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी ट्रा  ने अपने एजेंट अक्षय खुमार को पाकिस्तान से उस नल का वाशर लाने की जिम्मेदारी सौंपी है। और उनके सहयोग के लिए टाइगर को साथ में भेजा है।

क्रमश  -  



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नया भारत 




पिछले कुछ दिनों से समाचारो की सुर्खियों में पुलवामा हमला और उसके तुरंत बाद 56 इंच के सीने को लेकर सवाल सोशल मीडिया  में  देखे गए।  हालाँकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की पुलवामा हमले में कहीं ना कहीं भारतीय सुरक्षा तंत्र की नाकामी थी और नाही इस बात से भी की बिना स्थानीय सहयोग के ऐसी घटना को अंजाम देना संभव था। 

फिर सवाल यह भी उठने लगता है की क्या भारत एक बार फिर शांति की दुहाई देगा जैसा 26 / 11 के हमले में दिया गया था या जैश के खिलाफ पाक को सबूत देगा।  घाव बड़ा था इसलिए प्रश्न यह भी था की क्या  " मोदी है तो संभव है " जैसे कहावत हकीकत में अपना असर दिखाएंगे।परन्तु किसी भी घटना के लिए तुरंत प्रतिक्रिया देना कहाँ तक सही है जब सारी की सारी  प्रतिक्रियाएं धरी की धरी रह गई और 56 इंच बढ़ता हुआ 58 इंच हो गया।  जवाब मिला तेरहवे दिन जी बिलकुल यह नया भारत है जिसने जैश ए मुहम्मद के आतंकवादियों को बहत्तर हूरो से मिलवाने का काम किया।  जिसने रातो रात 1000 किलो का बम पकिस्तान में ले जाकर उस वक़्त फोड़ा जब सारे खटमल ( आतंकवादी ) एक जगह जमा थे। 



पकिस्तान घबरा गया उसकी आवाम में सरकार विरोधी नारे लगने लगे , इमरान खान को अपनी साख बचाने के लिए अमेरिका से आयातित एफ - 16 से भारत पर हमला करना पड़ा लेकिन दुश्मन के पलटवार को लेकर सजग भारतीय सेना ने एक एफ - 16 को मार गिराया।  हालाँकि इसमें हमारे एक मिग विमान के पायलट विमान के नष्ट होने की वजह से पाकिस्तानी क्षेत्र में जा गिरे। 

पहले तो पकिस्तान ने शेखी बघारते हुए सूचना दी की भारत के दो पायलट उसके कब्जे में है, परन्तु भारत द्वारा एक पायलट अभिनन्दन के पकिस्तान में होने की बात कही गई , हुआ यूँ  की पाकिस्तान ने अपना पायलट भी गिन लिया था। पहले तो इमरान खान ने रिहाई के बदले शर्त रखी जिसे स्वीकार नहीं किया गया  , फिर भारतीय प्रधानमंत्री से फोन पर बात करने की कोशिश की जिसे मोदी ने मना कर दिया। इसके बाद इमरान खान ने बिना शर्त पाकिस्तानी संसद में भारतीय विंग कमांडर को छोड़ने की बात कही। तथा बाघा सीमा तक कुशलता पूर्वक उन्हें छोड़ा गया। 

पकिस्तान कभी यूएन पहुँचता है , कभी भारत से शांति की अपील करता है। उधर अमेरिका पकिस्तान पर दबाव बनाता है तो चाइना  कुछ भी कहने से बचता है।  एक तरफ इजरायल पाकिस्तानी सेना के रडार जाम करता है तो दूसरी तरफ रसिया सैन्य मदद की पेशकश करता है। शायद नए और उभरते भारत का लोहा दुनियां मानने को मजबूर है। 

यह मोदी के प्रति लोगो का  विश्वास ही है की पुलवामा हमले के बाद देश की जनता को यकीन था की बदला जरूर लिया जायेगा और बदला लिया भी गया। 

बात अब देश में ही छिपे उन आतंकवादियों को भी उनके बिलो से निकालना होगा जो खुद को भारतीय कहते है लेकिन दिल से राष्ट्रविरोधी है। भारत की अधिकांश  राजनीतिक पार्टियों देश हित से सर्वोपरि स्वयं का हित समझती है।  तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करना , सोशल मीडिया पर अफवाहों को बढ़ाना , खुद की देश के प्रति स्थिति स्पष्ट ना करना।  देश को बस एक ऐसे उद्देश्य की पूर्ति का माध्यम समझना जिससे उन्हें सत्ता और धन की प्राप्ति होती है ,वर्ना इनकी संपत्ति में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी कैसे संभव है। 

वर्षो बाद देश को एक मजबूत नेता और सरकार मिली है जिसने देशविरोधी तत्वों के साथ - साथ विश्व मंच पर इससे वैर रखने वालो की नींदे  उड़ा रखी है , इसमें कोई संदेह नहीं की जागरूक और देशप्रेमी जनता 2019 में देश की कमान इसे छोड़ किसी और को सौपेंगी क्योंकि यही नए भारत के निर्माणकर्ता है। 




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भारतीय शादियां 


शादियों के सीजन की शुरुआत हो चुकी है।  रिश्तेदारियों और जान - पहचान वालो के यहाँ से निमंत्रण के आने का दौर शुरू हो चुका है।  पुराने कपड़ो को स्त्री करके नया बनाया जा रहा है और पिछले साल वाले जीजा को पुराना बताया जा रहा है । 



रिश्तेदारियों में पड़ने वाली शादियों के लिए नए कपडे लिए जा रहे है।  कई घरो में तो न्यौतो की बाढ़ आई हुई है और घर की लगभग पूरी आमदनी इन्ही शादियों की तैयारियों में जाने की संभावना है। दूर के रिश्तेदार ट्रेनों में वापसी के लिए रिजर्वेशन के जुगाड़ में लगे हुए है , और पास वाले एक दुसरे की गाड़ियों में तेल के हिसाब में लगे हुए है।  ससुराल जाने के लिए चार पहिया ढूंढी जा रही है और घर की शादियों में जाने के लिए समय की दुहाई दी जा रही है। 

दूल्हा - दुल्हन मुंबई वाली मौसी के बच्चो की  परीक्षा से परेशान है जो फ़रवरी में है, और लखनऊ वाली दीदी ने साफ़ - साफ़ कह दिया है की शादी की तारीख मार्च - अप्रैल में नहीं पड़नी चाहिए। मई में छोटका भाई के कम्पटीशन का एग्जाम है तो जून में सब हलवाई ना मिलने से परेशान है।
तारीख पे तारीख मिल रही है लेकिन बियाह नहीं हो रहा है।  ऐसे पढाई लिखाई से क्या फायदा जब शादी के लिए ही समय ना हो। 

कुछ पुरानी शादियों की चर्चाये सुनाई दे रही है , कहीं लड़की ने लड़के को छोड़ दिया तो कहिं लड़के ने लड़की को।

कारण शादी के बाद पता चला की लड़की की नाक छोटी है और लड़के का कुछ और। 

खास रिश्तेदारियों से कई दिन पहले ही बुलावे  का दौर शुरू हो चुका  है तो कई जगह रिश्ते में खास लोगो द्वारा औपचारिकता पूरी की जा रही है। इंद्र देव से सारे होने वाले नव वर - वधु शांति की प्रार्थना कर रहे है क्योंकि उनका कोपभाजन होने पर लड़के और लड़की के नाम के पूर्व भद्रा की उपाधि लग जाती है। और शामियाने वाले से लेकर रिश्तेदार तक जो उपाधिया लगाते है सो अलग। 
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सालियाँ जूता चुराई की रणनीति बनाते दिख रही है और होने वाले जीजा के वजन के अनुसार जूते की कीमत तय की जा रही है। कुछ चुलबुली सालियाँ जीजा का बुलबुला निकालने की सोच रही है तो दूल्हे के छोटे भाइयो से घर के बड़े अपने लिए उन्ही सालियो में से घरवाली पसंद करने की बात पे मजा लेते हुए। बड़े अपने साढू और सढ़ुआइन की खातिरदारी में व्यस्त है तो छोटे लड़के सहबाला बनके ही मस्त है। 

लड़के की बुआ की डिमांड कुछ बढ़ी हुई है बस इसी बात पे बड़ी बहन की नाक चढी हुई है। भौजाई सास से नए जेवर की चाह में मगन है क्योंकि घर का ये आखिरी लगन है। 

पुराने लोग बस हलवाई से पकवानो का हाल पूछ रहे है , और कब, क्या ,कहाँ खाया था एक दूसरे से वो साल पूछ रहे है। 

कुछ इमरती , लाल मोहन और पनीर पकौड़ा आपका बेसब्री से इन्तजार कर रहे है , दौर शुरू हो चुका है शादियों के मेले का ,झमेले की बाद में सोचियेगा साहब, इस पापी पेट को क्यों बेकरार कर रहे है। 




Boor and smart


गंवार और होशियार 




उसका गँवारपना देख कर कभी - कभी तो मन में हंसी आने लगती है।  मास्टर की डिग्री के पद पीएचडी और उसके बाद कॉलेज के सहायक प्रोफ़ेसर पद पर आसीन होने तक वह गंवार ही रहा ,हालांकि अपने विषय का वो महारथी था परन्तु सांसारिक विषय में उसकी जानकारी कक्षा पांच के बच्चे जितनी भी नहीं थी ।

कॉलेज में तो उसे मात्र  5 - 6 घंटे बिताने होते थे जिसके लिए उसने पीएचडी तक कर डाली लेकिन बाकी के घंटो के लिए कोई सीख ना ले सका।

उसको लगता था की दुनिया बस यहीं तक है ,वह भूल गया था की दुनियां की शुरुआत यहाँ से है। पैसा बचाता था वो , बचाना भी चाहिए कब कैसा वक़्त आ जाए क्या पता।  परन्तु जीवन की विषमताओ को बढ़ाते हुए धन बचाने का मन सिर्फ उसके ही बस की बात थी। 

बोलने में भी वह कुछ कंजूस था।  आस - पड़ोस से लेकर कॉलेज तक बस सबको किसी एलियन की प्रजाति समझ कर अलग ही प्रकार से देखता था।  हम में अ लगाने की आदत सी पड़ गई थी उसको । 

शादी हुई बच्चे हुए परन्तु वो अपनी ही धुन में चलता रहा।  बीवी दुखी होकर बच्चो के साथ  मायके चली गई क्योंकि उसे जनाब की आदते नहीं पसंद थी।  आदतो की शुरुआत होती थी सुबह देर से उठने से  फिर नित्य क्रिया और नाश्ते के बाद कॉलेज।  कॉलेज के बाद दोस्त - मित्र ना होने की वजह से वह सीधा घर चला आता था।  उसका मानना था की दोस्त सिर्फ समय की बर्बादी के लिए ही होते है , ये तरक्की की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। इस कारण बीमार होने पर भी वह अकेला ही अस्पताल जाता था। शाम का वक़्त भी किताबो में ही बीतता था।परिवार के लिए वक़्त ही ना बचता उसके पास।  उसे ज्ञान प्राप्त करने की बड़ी लालसा थी लेकिन इस किताबी ज्ञान का उपयोग सिर्फ कॉलेज तक ही सीमित था। 

लोगो को खुद से नीचा समझने की प्रवृत्ति भी उसमे घर करने लगी थी।  खुद में मगन रहने वाला वह बीवी और बच्चो के घर से जाने के बाद भोजन हेतु होटल पर निर्भर हो गया था । वह अकेला ही अपनी टेबल पर बैठकर भोजन करता और दुसरे लोगो के समूहों को को भोजन करते देखा करता था ।  धीरे - धीरे उसकी सेहत गिरती गई और अस्पताल तक जाना पड़ा।  अस्पताल में संयोगवश उसे पोस्टमार्टम हेतु लाइ गई कुछ लाशें दिखाई पड़ी।  कैसे - कैसे चीरा काटी  की गई थी उन लाशो से।
ऐसे लग रहा था जैसे इंसानी शरीर ना होकर कोई कपडे से बनी कोई  मूरत है जिसमे जहाँ से मन किया वहा से खोलकर सिलाई कर दी गई। उम्र तो देखो कोई पचास के आसपास होगी कैसे एक सफ़ेद कपडे में लिपटा है कोई ऐतराज नहीं है इसे, इस ठंड में लोहे की बनी स्ट्रेचर पर लेटने से । 

उधर अस्पताल के  बाहर काफी भीड़ इकठ्ठा होने लगी थी , चारो तरफ विलाप की आवाजे गूंज रही थी।  उसके बगल से दो वार्डबॉय आपस में बाते करते हुए जा रहे थे की कैसे दुर्घटना में मरा हुआ शख्श इस शहर का सबसे धनी व्यक्ति निरंजन दास था  ।  कई फैक्टरियां थी उसकी , शहर में स्कूल - कॉलेज से लेकर गरीबो के लिए घर तक बनवा कर दिए थे उसने।  अपने ज़माने में पढाई के लिए लन्दन तक गया था। और आज सब कुछ होने के बाद यहाँ लेटा हुआ था। कितनी महँगी क्रीम लगाता था चेहरे पर और आज टांके से पूरा चेहरा भरा हुआ है। 

दो - दो गाड़ियां सुरक्षा  में चलती थी फिर भी इसके प्राणो की रक्षा नहीं कर पाई।  लेकिन अस्पताल के बाहर की भीड़ बता रही है की पूरा शहर इसको कितना मानता था।  कितने गरीबो के घर आज चूल्हे नहीं जले कितने शहर के मजदूर आज काम करने नहीं गए। लोगो का रो - रो के बुरा हाल है। बात तो थी इस आदमी में वर्ना आजकल के अमीर तो आसमान से नीचे उतरते ही नहीं , महान था यह आदमी मरने के बाद भी लम्बे समय तक लोगो की यादो में जीवित रहेगा । 

वह  आज अजीब उलझन में था, उसे समझ नहीं आ रहा था की किताबो में लिखे सूत्र और जिंदगी का यह आधारभूत सत्य दोनों में से कौन जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।  उसे आज वह सब व्यर्थ लगने लगा था जो वह करता आया था।  जब जीवन क्षणिक है और उसका अंत निश्चित है तब संसार में वह  अपना समय कहाँ जाया कर रहा था।  उसका कार्य और उसका परिवार दोनों संतुलित क्यों नहीं हो पा रहे थे।  केवल कार्य करते गया तो उसे कुछ लकड़ी के पुरूस्कार जरूर मिलेंगे लेकिन उन्हें लेने के बाद फिर अगले पुरूस्कार हेतु प्रयत्न जारी हो जाएगा और यह क्रम निरंतर चलता रहेगा। 

लेकिन परिवार और व्यवहार कदम - कदम  पर उसके साथ खड़े रहेंगे। जीवन ईश्वर प्रदत्त प्रकृति हेतु ही है , इसको सम्पूर्णता के साथ जीने में ही इसका सार  है। पता नहीं आज उसे कैसी बेचैनी थी ,क्या सत्य उसने जान लिया था जो उसके कदम अपने परिवार को घर वापिस लाने हेतु बढे जा रहे थे। शायद अब वह गंवार नहीं रहा। 



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freedom of speech

अभिव्यक्ति की आजादी


अभिव्यक्ति की आजादी ........  कहा है  ?

नहीं साहब यहाँ अभिव्यक्ति की आजादी बिलकुल नहीं है।  आप पडोसी को गाली नहीं दे सकते प्रधानमंत्री तो दूर की बात है।
क्या लगता है आप को गाली देने पर पडोसी छोड़ेगा ? की इस देश के प्रधानमंत्री  ?

जवाब सबको पता है - नरेंद्र दामोदर दास मोदी

लेकिन आप किसी को कुछ भी कह क्यों रहे है ? क्या पीड़ा है आपकी ?

आपकी पीड़ा यही है की वातानुकूलित कमरों में बैठकर देश के लिए लम्बी  -  लम्बी छोड़ने वालो की दूकान ( गैर लाभकारी संगठन( NGO) ) बंद हो चुकी है।
देश की एकता और अखंडता को खंडित करने वाले अपने बिलो से बाहर नहीं निकल पा रहे है।
देश एक बार फिर विदेशियों(इस बार इटली ) के चंगुल से मुक्त है।
भारतीय फौज बिना किसी हस्तक्षेप के मानवता के दुश्मनो और कातिलों को चुन - चुन कर मार रही है।

कोई और पीड़ा ? हां बची है - भारत अब दुनियां की आँख से आँख मिलाकर कह सकता है की मैं मैं बेहतरीन बनने की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ रहा हूँ।

आप लगाइये नारे पकिस्तान के और हम कह दे पकिस्तान चले जाओ तो गन्दा है
खुली छूट है कुछ भी कहने की तो क्या भरतवंशियो की लाशो पर चढ़कर बोलोगे, अफजल हम शर्मिंदा है



budhapa

बुढ़ापा 



बूढ़ा हो चला हूँ मैं
सब कहते है घर का कूड़ा हो चला हूँ मैं

आजतक मशीन की तरह काम करता गया
अपने साथ अपने संस्कारो का नाम करता गया

औलादो को भी तो वही दिया था मैंने
जाने कहा बदल लिए संस्कार उन्होंने

बचे हुए सफ़ेद बालो के साथ
कमजोर और बेसहारा मेरे हाथ

लकड़ी का एक टुकड़ा ढूंढ रहे है
शायद अब अपनों के साथ छूट रहे है

सिकुड़ती चाम , टूटते दांत
कमजोर निगाहें , पिघलती आंत

शायद अपने  अंत के कुछ करीब जा रहा हूँ मैं
मधुमेह ,रक्तचाप और मोतियाबिंद की दवा खा रहा हूँ मैं

मेहमानो  के उपहास का पात्र
कभी था एक होनहार छात्र
बुढऊ कहकर अब समाज बुलाता है
ऊपर से मंद - मंद मुस्कुराता है

शारीरिक दुर्बलता से ग्रसित मेरा शरीर
मानसिक दुर्बलता वालो से क्यों घबड़ाता है
थोड़ा ठहरो तुम सब भी
देखो इस बुढ़ापे से कौन बच पाता है



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romio ka ishq



रोमियो का इश्क़ 

romio ka ishq


ये जो मोहब्बत है सब उनकी ही सोहबत है
चाँद पर आशियाना बनाएंगे वे
कहते है इस जहां में इश्क़ से ज्यादा नफरत है

वहाँ छांव है तो यहाँ धूप है
सच जानते हुए भी सब चुप हैं
यहाँ झरनो के झरोखे है
हर चेहरे के दिलो में कुछ धोखे  है

कुछ जी के मरते है 
कुछ मर के जीते है 
हम प्यार करने वाले है 
हम इश्क़ में जीते मरते है 

तुम घूमे गली - गली मुहल्ला 
पर उन गलियों में गूंजे नाम हमारा ही लल्ला 
हर मन में मंदिर , हर मंदिर में उसकी मूरत 
पाप - पुण्य में उलझो तुम , वो तो देखे है बस सीरत 
इश्क़ किया इस जहाँ से हमने 

और तुमने रोमियो नाम रख दिया 


सोहबत तो तुम्हारी ही थी 
जाने ये कैसा काम कर दिया 

रोमियो नाम रख दिया .........  


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                      आशिक  

najar

नजर 


लड़की - अच्छा सुनो
लड़का - हां बोलो
लड़की - छोड़ो रहने दो
लड़का - नहीं बोलो
लड़की - "प्लीज" ना मत बोलना
लड़का - तुमसे कभी बोला है
लड़की - ये चेहरे से काला चश्मा हटाकर सादा चश्मा क्यों नहीं लगा लेते।
           
लड़का - मेरी मन की आँखों में इस दुनियां की जो हसीन छवि है उसे यह काला चश्मा बाहर नहीं जाने देता।
लड़की - लेकिन तुम्हारी खूबसूरत आँखों के दीदार नहीं हो पाते।
लड़का - रात में देख लिया कर पगली कहीं नजर लग गई तो
लड़की - नजर लगे दुश्मनो को
लड़का - देखना मेरी छड़ी तुम्हारे आस - पास है क्या।
लड़की - दोनों हाथो से टटोल लिया मिल नहीं रही।
लड़का - किसी को आवाज लगाते है , तुम भी कला चश्मा पहन लो कही नजर ना लग जाये।

goverment and poor


गरीब  और सरकार


मीडिया सब कुछ दिखाती है , उसे चटपटी खबरे दिखाने में मजा आता है। लेकिन गरीब की जिंदगी में शायद कुछ चटपटा नहीं होता।  जीएसटी का उसकी जिंदगी से कोई वास्ता नहीं होता , धर्म उसका हिन्दू - मुस्लिम ना होकर दो जून की रोटी का इंतजाम करना होता है। साहब लोगो की दया का पात्र होता है , नेताओ की वोट बैंक का वो हिस्सा होता है जो सिर्फ बटन दबाने तक ही सिमट कर रह जाता है।



कई लोग गरीबी को गँवारपना से भी जोड़ कर देखते है लेकिन यह भूल जाते है की यह गँवारपना उसकी गरीबी नहीं उनकी अमीरी है। फैक्ट्री में काम करने वाला मजदूर सिवाय दो वक़्त की रोटी के अतिरिक्त इतना धन नहीं बचा पाता की वह अपने बच्चो को अच्छी तालीम दिलवा सके।  सरकारी स्कूल तो जरूर है लेकिन वहाँ मोटी तनख्वाह लेने वाले शिक्षक  अपना मूल कर्तव्य केवल तनख्वाह बढ़ोत्तरी के लिए होने वाले धरना प्रदर्शनों को ही मानते है। सरकार उनकी तनख्वाह तो बढाती है लेकिन वे अपना काम अच्छे से कर रहे है या नहीं इससे आँखे मूँद लेती है क्योंकि शायद उसमे पढ़ने वाले बच्चे गरीब घरो के जो ठहरे।  उनके अभिभावक शिकायत करे तो किससे , जितना समय वह शिकायत करने और इस व्यवस्था को झेलने में लगाएंगे उतने वक़्त उन्हें भूख भी बर्दाश्त करनी पड़ेगी।

सरकारी स्कूलों के शिक्षक कभी इस बात के लिए धरना नहीं देते की उनके स्कूल के बच्चे टाट - पट्टी पर क्यों बैठते है , उनके स्कूल में शुद्ध जल और कम्प्यूटर की व्यवस्था क्यों नहीं है। क्यों उनके स्कूल के बच्चो का परिधान अंग्रेजो के जमाने की वर्दी की तरह लगता है।

उद्योगपतियों और पेट्रोल - डीजल में होने वाला घाटा तो सरकार को दिखता है लेकिन खेती में होने वाला घाटा सरकार को नहीं दिखता। महँगी गाड़ियों के लिए किसानो की जमीन लेकर  एक्सप्रेस वे का तो निर्माण होता है लेकिन सूखे पड़े खेतो के लिए नहरों का निर्माण नहीं होता। क्या उन एक्सप्रेस वे पर कोई किसान खेती से होने वाले लाभ से  गाडी खरीद कर चल सकता  है।

आपके स्मार्ट शहरो और बुलेट ट्रेन की परिकल्पना तब तक बेकार है जब तक आम इंसान उसमे रहने और चलने लायक नहीं हो जाता।  वह तो शहर में आने के लिए भी सौ बार सोचता है की किराए में लगने वाले पैसो का इंतजाम कहा से करेगा , फिर वह गुजरात जाकर मूर्ति के दर्शन कैसे कर सकता है जिससे आपके राजस्व की वसूली हो।

देश में कंक्रीट के और झोपड़पट्टी दोनों ही प्रकार के मकानों की संख्या बढ़ रही है।  चिंता झोपड़पट्टी वाले मकानों की है जहा गर्मी में एक चिंगारी उनके सर की धुप तेज कर सकता है। सरकार की तरफ से चलाई जाने वाली योजनाओ की जमीनी सच्चाई जमीन पर जाकर बखूबी देखीं जा सकती है। रोज - कमाने और रोज खाने की जद्दोजहद से जूझता यह वर्ग इस बात पर कब जागरूक होगा की चुनावों में मुद्दे उसकी चिंताओं से जुड़े होंगे नाकि उसकी जाति से। 







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