नया भारत
पिछले कुछ दिनों से समाचारो की सुर्खियों में पुलवामा हमला और उसके तुरंत बाद 56 इंच के सीने को लेकर सवाल सोशल मीडिया में देखे गए। हालाँकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की पुलवामा हमले में कहीं ना कहीं भारतीय सुरक्षा तंत्र की नाकामी थी और नाही इस बात से भी की बिना स्थानीय सहयोग के ऐसी घटना को अंजाम देना संभव था।
फिर सवाल यह भी उठने लगता है की क्या भारत एक बार फिर शांति की दुहाई देगा जैसा 26 / 11 के हमले में दिया गया था या जैश के खिलाफ पाक को सबूत देगा। घाव बड़ा था इसलिए प्रश्न यह भी था की क्या " मोदी है तो संभव है " जैसे कहावत हकीकत में अपना असर दिखाएंगे।परन्तु किसी भी घटना के लिए तुरंत प्रतिक्रिया देना कहाँ तक सही है जब सारी की सारी प्रतिक्रियाएं धरी की धरी रह गई और 56 इंच बढ़ता हुआ 58 इंच हो गया। जवाब मिला तेरहवे दिन जी बिलकुल यह नया भारत है जिसने जैश ए मुहम्मद के आतंकवादियों को बहत्तर हूरो से मिलवाने का काम किया। जिसने रातो रात 1000 किलो का बम पकिस्तान में ले जाकर उस वक़्त फोड़ा जब सारे खटमल ( आतंकवादी ) एक जगह जमा थे।
पकिस्तान घबरा गया उसकी आवाम में सरकार विरोधी नारे लगने लगे , इमरान खान को अपनी साख बचाने के लिए अमेरिका से आयातित एफ - 16 से भारत पर हमला करना पड़ा लेकिन दुश्मन के पलटवार को लेकर सजग भारतीय सेना ने एक एफ - 16 को मार गिराया। हालाँकि इसमें हमारे एक मिग विमान के पायलट विमान के नष्ट होने की वजह से पाकिस्तानी क्षेत्र में जा गिरे।
पहले तो पकिस्तान ने शेखी बघारते हुए सूचना दी की भारत के दो पायलट उसके कब्जे में है, परन्तु भारत द्वारा एक पायलट अभिनन्दन के पकिस्तान में होने की बात कही गई , हुआ यूँ की पाकिस्तान ने अपना पायलट भी गिन लिया था। पहले तो इमरान खान ने रिहाई के बदले शर्त रखी जिसे स्वीकार नहीं किया गया , फिर भारतीय प्रधानमंत्री से फोन पर बात करने की कोशिश की जिसे मोदी ने मना कर दिया। इसके बाद इमरान खान ने बिना शर्त पाकिस्तानी संसद में भारतीय विंग कमांडर को छोड़ने की बात कही। तथा बाघा सीमा तक कुशलता पूर्वक उन्हें छोड़ा गया।
पकिस्तान कभी यूएन पहुँचता है , कभी भारत से शांति की अपील करता है। उधर अमेरिका पकिस्तान पर दबाव बनाता है तो चाइना कुछ भी कहने से बचता है। एक तरफ इजरायल पाकिस्तानी सेना के रडार जाम करता है तो दूसरी तरफ रसिया सैन्य मदद की पेशकश करता है। शायद नए और उभरते भारत का लोहा दुनियां मानने को मजबूर है।
यह मोदी के प्रति लोगो का विश्वास ही है की पुलवामा हमले के बाद देश की जनता को यकीन था की बदला जरूर लिया जायेगा और बदला लिया भी गया।
बात अब देश में ही छिपे उन आतंकवादियों को भी उनके बिलो से निकालना होगा जो खुद को भारतीय कहते है लेकिन दिल से राष्ट्रविरोधी है। भारत की अधिकांश राजनीतिक पार्टियों देश हित से सर्वोपरि स्वयं का हित समझती है। तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करना , सोशल मीडिया पर अफवाहों को बढ़ाना , खुद की देश के प्रति स्थिति स्पष्ट ना करना। देश को बस एक ऐसे उद्देश्य की पूर्ति का माध्यम समझना जिससे उन्हें सत्ता और धन की प्राप्ति होती है ,वर्ना इनकी संपत्ति में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी कैसे संभव है।
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