हास्य व्यंग लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
हास्य व्यंग लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

Purane bargad

पुराने बरगद​





मन की बेचैनी को शांत करने के लिए आज सुबह से ही एक शांत चित्त वाले श्रोता की तलाश जारी थी । विषाक्त और उद्देलित रक्त वाले नव युवकों से यह अपेक्षा पूरी ना होती तथा कसौटी जिंदगी वाली गृहणीयां कसौटी पर खरी ना उतरती , इसलिए हमारा सारा ध्यान जिंदगी भर टायर की तरह भार वहन कर , "पीपी और पोंपों " कि शोर युक्त आवाज सुनने वाले उस धीर पुरुष पर लगा था जिसकी चमक घिसने और रिटायर होने के बाद भी बरकरार थी ।

इंग्लिश भी साहब बड़ी अजीब भाषा है , ओपन के आगे रि जुड़ जाए तो रिओपन , न्यू के आगे जुड़ जाए तो रिन्यू और यदि टायर के आगे जुड़ जाए तो रिटायर का अर्थ ही बदल जाता है । बाकी दोनों में तो नई शुरुआत होती है लेकिन यहां टायर की नई शुरुआत ना होकर आदमी के  काम की ही छुट्टी हो जाती है ।

आसपास नजर दौड़ाने पर ऐसे बहुत से टायर माफ कीजिएगा रिटायर सज्जन पुरुष ध्यान में आने लगे जो हमारी मानसिक शांति के लिए उपयुक्त हो सकते थे यहां वृद्ध शब्द की अवधारणा उनकी चेतना के आगे सटीक न बैठती , क्योंकि वृद्ध होने का उम्र के आंकड़ों से कोई वास्ता नहीं , इसलिए उनके लिए इस या इसके पर्यायवाची शब्दों​ का प्रयोग मेरे द्वारा प्रतिबंधित है। 

बड़े शहरों से लेकर कस्बों तथा गांव में रहने वाले इन जैसे ज्ञान की खान को छोड़कर यदि हम अपने प्रत्येक सवाल उस गूगल से ढूंढते हैं तो यह हमारा दुर्भाग्य ही है । खैर आखिर में हमारा सारा ध्यान उन सेवानिवृत्त पुरुषों पर था जो अपने घर की  ललिता पवार की सेवा से अभी भी निवृत्त नहीं हो पा रहे थे , और दिन भर के थके हारे अपने दोनों कानों को बहलाने संध्या  बेला पर निकला करते थे । कभी-कभी ऐसे पुरुषों के लिए महापुरुष शब्द भी लघुता को प्राप्त होता है । आज के वर्तमान परिदृश्य में जहां छोटी-छोटी बातों पर पति पत्नी के बीच नित्य ही लड़ाई झगड़े आम हैं , वहीं ऐसे पुराने बरगदो ने  ताउम्र क्रोध को अपने पास फटकने ना दिया और ना केवल अपनी गृहस्थी बल्कि अपने संपूर्ण परिवार की एकता व अखंडता को विषम परिस्थितियों में भी बनाए  रखना सुनिश्चित किया । चाहे वह छोटे भाई का हुड़दंग हो या बीवी की किचकीच के अलावा पिताजी की फटकार ही क्यों ना हो इन सब में भी इन्होंने अपना सामंजस्य और मानसिक संतुलन बनाए रखा ।

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकला कि संध्या काल की बेला पर ही हमें ऐसे महापुरुषों के दर्शन हो सकते हैं । इसलिए सर्वप्रथम एक सज्जन पुरुष का रूप धर के ही हमने उनसे भेंट करना उचित समझा । हमने अपनी कटप्पा वाली दाढ़ीयों को काटना मुनासिब समझा और आयुष्मान खुराना बन अपने अमिताभ बच्चन की तलाश में निकल लिए।

आखिर ढूंढने से तो भगवान भी मिल जाते हैं फिर इंसान क्या हैं । मोहल्ले की मेन सड़क पर स्थित चाय की दुकान में हमे बगल की गली वाले उन वर्मा जी में अपनी पूरी संभावना नजर आई जो अपनी राबड़ी देवी के लिए तरकारी (सब्जी ) लेने निकले थे और चाय के दो प्यालो के साथ एक प्लेट प्याज की गरमा गरम पकौड़ियां धनिया की चटनी के साथ ठिकाने लगा चुके थे।

सर्वप्रथम तो नजर मिलने पर उन्होंने अपनी तटस्थता बरकरार रखी परंतु जब मैंने झुक कर उनका अभिवादन किया तो उन्होंने मधुर मुस्कान के साथ दाहिना हाथ ऊपर करते हुए मजबूती से अपनी प्रतिक्रिया दी । जब मैं उनके पास कुर्सी खींचते हुए बैठने लगा तो उन्होंने बैरे से एक चाय की प्याली और लाने का आदेश दिया । 

 हां तो मैंने भी वर्मा जी का हाल चाल लेते हुए अपनी जिज्ञासा उनके सामने रखने में तनिक भी देर नहीं की सर्वप्रथम तो वह ध्यान से सुनते रहे परंतु कुछ छण पश्चात उनके चेहरे की चमक फीकी पड़ने लगी और सवाल के खत्म होने पर वह मेरी ओर टकटकी लगाए देखे जा रहे थे तो सवाल यह था कि

 ऐसी क्या वजह है कि कुछ ही दशकों पूर्व से चली आ रही संयुक्त परिवार की अवधारणा खत्म होने के बाद , एकल परिवार के पुत्र पिता व मां को अपनी जिम्मेदारी नहीं मानते , या जिम्मेदारी शब्द को हटा भी दे तो क्या​ ज्यादातर पुत्र और पुत्रवधू के लिए पिछली पीढ़ी उनके परिवार का हिस्सा नहीं होती , और यदि कुछ जगह साथ-साथ हैं तो भी उपेक्षा का शिकार क्यों है । 

अचानक ही मुझे ध्यान आया कि समाजशास्त्र के नामी प्रोफ़ेसर वर्मा जी के पास इन सवालों के जवाब होते हुए भी वे उसे व्यक्त नहीं कर सकते क्योंकि बाहर रहने वालें​ उनके दोनों बेटे विगत 10 वर्षों में एक बार भी उनका कुशलक्षेम पूछने नहीं आए शायद उनके साथ वर्मा जी भी उन्हें भूल चुके थे और आज मैंने अपनी जिज्ञासा हेतू उनकी खोई हुई अभिलाषा की याद दिला दी , अब मेरी जिज्ञासा  ग्लानी में बदल चुकी थी ।

korona and lockdown

कोरोना और लाकडाउन 





लॉक होके डाउन होना जिनको पसंद नहीं है उनके लिए  लॉकअप की सुविधा आसानी से उपलब्ध है।  आसपड़ोस क्या होता है और नए मेहमान का स्वागत हम कैसे करते है लॉकडाउन में पैदा होने वाले बच्चे कभी नहीं जान पाएंगे । कुछ लोग सेहत पर ध्यान दे रहे है तो कुछ नए तरह की पागलपंती करते हुए दिख जायेंगे लेकिन उनका क्या जो बिना कुछ किये ऐसे लम्हो को जाया कर रहे है । 



खैर कोरोना है तो सब खैरियत है , सड़को पर दुर्घटना नहीं हो रही , जालंधर  से हिमालय दिखने लगा , यमुना और अन्य नदिया स्वच्छ होने लगी , महानगरों के  छोटे बच्चो को दादा - दादी क्या होते है छू कर पता लगाने का मौका मिला और तो और पुरुषो के अंदर के संजीव कपूर ने आलू , बैगन पर करतब दिखाना शुरू कर दिया , बची खुची कसर रामायण ने शुद्ध हिंदी सीखकर पूरी कर दी। 

समझ से परे तो यह रहा की महिलाओ ने चुगलियों के इस अथाह सागर को छोटे से उदर में कैसे समाहित कर के रखा हुआ है जिसका आकर समय की धारा में दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। वस्तुओ के आदान प्रदान से सुगन्धित आस पड़ोस के रिश्ते कैसे स्वयं को प्रसार भारती होने से रोके हुए है।  उन भक्तो का तो और भी बुरा हाल है जो प्रतिदिन मंदिर की आरती में अपनी उपस्थिति कार्यालय की उपस्थित से ज्यादा सुनिश्चित किये रहते है।  चाय की दुकानों के वे रणबांकुरे जो पल भर में इस देश की सरकार गिराने का माद्दा रखते थे खुद की सरकार की निगरानी में घरो में कैद है उनपर तो मानो वज्रपात ही हो गया। पान को ईश्वर का भोग और पंसेरी को ईश्वर का दूत समझ कर दिन भर पान का भोग लगाने वाले पीके  सरीखे मानवो की पीक ( थूक ) से दीवारे और सड़के रंगविहीन हो चुकी है। 

 अब इस रंगविहीन दुनियां को चाइना की छालरो से रंगीन भी नहीं बना सकते।  इतने दिनों से सांप सीढ़ी खेलने पर यह समझ में नहीं आया की कैसे सौंवे स्थान पर रहने वाला आदमी विजयी होता है और पहले या दूसरे  स्थान पर रहने वाला आदमी हार जाता है । 

जहाँ एक तरफ इस बिमारी के इलाज में डॉक्टरों और पुलिसकर्मियों की संयुक्त टीमें मुस्तैदी से अपनी भूमिका निभा रही है वही दुनियां से हल्के होने के चक्कर में कुछ लोग इसे हल्के में ले रहे है। खैर सरकार के पास इसके हर रूप के इलाज की व्यवस्था है और हमारे पास इससे बचने का उपाय जिसे मानना या ना मानने का असर हमारे और हमारे परिवार के अतिरिक्त सम्पूर्ण समाज पर पड़ सकता है।  इसलिए हठधर्मिता छोड़े और बचाव धर्म का पालन करे। 

a marriage in bihaar

ए मैरिज इन बिहार 

a marriage in bihaar


दूल्हे का भाव और दूल्हे के छोटका भाई का ताव देखकर रिश्तेदारों को यह समझते देर न लगी की आज बिहारी दूल्हे और उसके भाइयो का भाव रहर के दाल की तरह बढ़ा हुआ है ।  खुद को हृत्विक  समझने वाले दूल्हे को भले ही  पूरा जवार राजपाल यादव समझता हो लेकिन मायावती सरीखी उसकी बुआ और  गांव देहात के चढाकू फुफ्फा की नजर में वो कोई मिल गया वाला हृत्विक ही था ।  लड़के के फूफ्फा मुंहबोले धन्ना सेठ थे जिनकी पूरी जिंदाई दूसरो को नीचा और खुद को बबूल के पेड़ जितना ऊँचा दिखाने में निकल गई और  फुआ , मिसरी  जितनी मीठी और सेवन ओ क्लॉक ब्लेड जितनी धारदार  ।   

दरवाजे पर पहुँचते ही तिलक की व्यवस्था देखकर ऐसा लगा जैसे  सब कुछ राम भरोसे हो , अरे राम भरोसे गांव के कैटरिंग वाले का नाम था जिस पर गांव के समृद्ध और बड़का लोग कम ही लोग भरोसा किया करते थे।  किन्तु किफायती और बचतशील होने के नाते लड़के के इंजीनियर पिता ने  पी डब्लू डी के टेंडर की तरह ही शादी का टेंडर  50  %  डिस्काउंट के भरोसे  राम भरोसे को दे दिया था । पूरे गांव की जनसँख्या को ध्यान में रखते हुए आधे लोगो की व्यवस्था की गई , भाई अब राम भरोसे की व्यवस्था थी तो इस  इस पर शक कैसे किया जा सकता था। प्रत्येक स्टाल पर एक - एक मुश्तंडे को बैठा दिया गया , जो  किसी भी मेहमान और गांव वाले को जाने पर एक ही जवाब देता " तिलकहरू के आने पर ही स्टाल खुलेगा " और जब तिलकहरू आ गए तब जवाब में परिवर्तन कर दिया जाता  " अबहिन मालिक मना किये है " . बेचारा  चाट का स्टाल छोले के वियोग में ही दुखी था उधर पूड़ियाँ भी डालडे को कब तक बर्दाश्त करती।  हालाँकि कई रिश्तेदार यह बताने में असमर्थ रहे की आखिरकार स्टाल में पकवान क्या थे , कइयों की तो शंका यही थी की शायद ईंट पत्थर सजाकर रख दिए हो। 

गांव वाले ठहरे भाई पटीदार वो तो बीप ... बीप  की गालियां देते निकल गए परन्तु वे रिश्तेदार जो  शादियों में अपने अपने  साथ एक स्टेपनी लेकर चलते है वे क्या मुंह दिखाते।  साथ ही समय से घर पहुँचने की मजबूरी अलग।  रुकने वाले रिश्तेदारो को ऐसा लगने लगा था जैसे उन्हें किसी जेल में बंद कर दिया गया हो और खाना जेलर के आने के बाद ही मिलेगा । दूल्हे के घर वालो के भाव देखकर नारद जी को भी विश्वास हो गया था की पूरे ब्रम्हांड में दिग्विजय सिंह की शादी के बाद कोई खुश है तो यही परिवार । 

आखिरकार कई मेहमान स्टाल का मुंह देखे बगैर ही अपने - अपने घरो को लौट गए , कष्ट तो तब बढ़ा जब घरवालों ने यह कहा की " आ गए पनीर - पूड़ी चाप के " . अब बेचारे किसे बताते की कितनी पूड़ी खाकर आये है और कितनी इज्जत से मिठाई परोसी गई ।

खैर दूल्हे का तिलक शुरू होता है और जून की गर्मी से बचती - बचाती मामी , मौसी , फुआ ( बुआ ), भौजाइयां और गांव जवार की वे लड़कियाँ और औरते जिन्हे समारोह से ज्यादा चढ़ने वाले चढ़ावे की गिनती और क्वालिटी में नाक नुक्स निकालना आता है ने गीत कम गालियों की जो बौछार कि  , की दूल्हे के साले और ससुर यह नहीं समझ पाए की वे तिलक चढाने आये है या फिर पूरे गांव से पटिदारी का मार करने। 

गर्मी अगर कहीं पड़ रही थी तो वो जगह थी दूल्हे के भाई और पिता जी के दिमाग में।  खैर रिश्तेदारों ने अपनी इज्जत खुद ही मेंटेन की और गांव वालो ने इनकी इज्जत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । हां, समारोह में  मिठाई और स्टाल  के आइटम अगर किसी ने देखा था तो उससे बढ़कर दुनियां में  खुशनसीब कोई भी नहीं । 

मैं तो यहाँ दूर बैठा कोल्ड कॉफी और पनीर रोल के साथ शादी का आँखों देखा हाल सुन रहा था । लालू के जमाने से ही मुझे बिहार से डर लगता है । 

pakistani handpump

पाकिस्तानी हैंडपंप 


हीरा ठाकुर  आज बहुत परेशान थे।  उनकी परेशानी का कारण वीरू का वह लड़का था जो पाकिस्तान से हैण्डपम्प उखाड़ लाया था।  हीरा ठाकुर ने वीरू से उस हैंडपंप की गुजारिश की थी ताकि वे शान से उसे अपने दरवाजे पर लगवा सके और उन्हें उस नल में पाकिस्तानियो की हार दिखाई दे।  किन्तु बसंती ने वह नल देने से वीरू को रोक लिया था।  बसंती उसे एक वाटर प्यूरीफायर  कंपनी को देना चाहती थी जिसे कंपनी अपने दफ्तर में लगवाती।

लेकिन जबसे पकिस्तान ने अभिनन्दन को वापिस किया है तबसे भारत के जैकाल , मोगैम्बो , गेंडास्वामी और चिन्ना ने पकिस्तान को नल वापिस करने की मांग करदी।  भारतीय सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए मिस्टर इंडिया को खोजने का आदेश जारी किया है परन्तु एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी कृष और शिवाजी - बॉस  दोनों ही मिस्टर इंडिया को खोजने में असमर्थ है।

इधर कुछ भारतीय नेताओ ने तारा सिंह द्वारा उखाड़े गए नल को पाकिस्तानी होने से ही इंकार कर दिया है , वे तारा सिंह से इस बात की पुष्टि के लिए सबूत की मांग कर रहे है।  इधर तारा सिंह इस बात को लेकर आग - बबूला हो उठे है और उन नेताओ के नल उखाड़ने निकल पड़े है।

इधर भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी ट्रा  ने अपने एजेंट अक्षय खुमार को पाकिस्तान से उस नल का वाशर लाने की जिम्मेदारी सौंपी है। और उनके सहयोग के लिए टाइगर को साथ में भेजा है।

क्रमश  -  



preperation of 2019


2019 की तैयारी (व्यंग )



2019  में होने वाले उल्लूसभा  की तैयारी जोरो से शुरू हो चुकी है।  हर तरफ कलियुग के पुण्यात्माओं द्वारा प्रवचनों की बाढ़ आई हुई है।  अभी कल ही एक थो महाराज टीवी पर अपनी पार्टी की मालकिन को भला बुरा कहने पर विरोधी प्रवक्ता का टेटुआ दबा रहे थे। एंकर से लेकर कैमरा मैन तक सब उनको पकड़ने में धराशायी हो गए  बड़ी मुश्किल से उनकी (प्रवक्ता ) जान बची।  लेकिन वो(प्रवक्ता ) भी अपनी आदत से मजबूर थे जाते जाते चिकोटी काट के चले गए।


टीवी पर देखा की एक जगह  एक प्रत्याशी जनता को लुभाने के लिए जादू का खेल दिखा रहे थे।  लेकिन इसमें नया क्या था आज कागज से कबूतर बना रहे है और पहले भी कागज पर सड़के , नहर , अस्पताल और स्कूल बनवाया करते थे। फिर जैसे कबूतर को गायब कर देते वैसे ही ये सब भी गायब हो जाते।

इधर विपक्ष द्वारा सत्ता पक्ष पर तमाम आरोप प्रत्यारोप लगाने का दौर जारी है। सफ़ेद कुर्ता वाला बालक भी हाथ में हवाई जहाज लिए उड़ने की कोशिश में लगा हुआ है। इसी उड़ान के चक्कर में कई बार नाक के बल गिर भी चुका है।  बड़े साइज का पैजामा और कुर्ता होने की वजह से कुर्ता हाथ की उंगलियों को भी ढँक लेता है जिस कारण उसे बार - बार खींचकर वापस लाना पड़ता है।

राजस्थान , और मध्यप्रदेश में मीडिया द्वारा प्रत्याशियों को कौन बनेगा मुख्यमंत्री का खेल खिलाया जा रहा है , जिसे की 2019 के उल्लू सभा का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसी बहाने इन प्रदेशो के छोटे जिले भी राष्ट्रिय  मीडिया में छाए हुए है । कल तक जैसे चैनलों के एंकर ,आजकल ,पत्रकारिता के अलावा सब कुछ करते देखे जा सकते है ।  मजा तब और बढ़ जाता है जब इन चैनलों पर होने वाली बहस में भैंस , बकरी से लेकर सब कुछ हो जाता है।

वैसे अभी दूर - दूर तक 2014 के चुनावों की तरह कहीं से भी गोला फेंकने की खबर नहीं आई है , आम आदमी भी ख़ास बनने के बाद बस धक्कामुक्की करने में लगा हुआ है हालाँकि इसी चक्कर में उसे मिर्च भी लग चुकी है । गरीब जनता बस अमीर दिल से तमाशा देखे जा रही है।



lndian boys


लौंडे 


भोजपुरिया क्षेत्र की समस्या बहुत ही निराली है या कह सकते है की अधिकांश भारतीय क्षेत्र की ।  लौंडे ज्यादा हो गए है और सड़के हो गई है कम , बेचारे अपनी रफ़्तार को कैसे नचा - नचा के  कंट्रोल  करते है, यह कला तो पूछनी ही पड़ेगी।  

ये माचो कट मगरमच्छी बाल  ...... साथ मे  तिकोनी , कोन वाली आइसक्रीम की तरह दाढ़ी  ...... मोबाईल के एप  तो रोज इंस्टाल और अनइंस्टॉल होते रहते है ।  पार्टी  , भाई गिरी  , सेल्फी  और  सेल्फी विवरण तो वाकई दिल दहलाने और  पढ़ने लायक होता है।  इसके  कुछ उदहारण इस प्रकार है -  छोटे भाई के साथ पैजामा ठीक करते हुए बड़े भाई का सानिध्य प्राप्त करने का अवसर मिला ,  आज बड़े भाई के घर पर उनकी माता की पुण्यतिथि में , पूज्यनीय और परम आदरणीय संभ्रांत बड़े भ्राता जी के साथ एक सेल्फी , आज गांव में चूहामार दवा का वितरण करते हुए , एक कप चाय की प्याली छोटे भाइयों के साथ।  इतना आदर तो अपने सगे भाइयो के लिए नहीं रहता है जितना  इन सेल्फी वाले भाइयो के लिए होता है। 


कुछ सवाल जो इनके क्रोध को बढ़ाते है।  

बेटा क्या कर रहे हो  ? 
सेमेस्टर या परीक्षा में कितने नम्बर आये थे  ?

lndianboysकल किन लफंगो के साथ घूम रहे थे  ?

अभी से स्मार्टफोन की क्या जरुरत है ?          
पढाई क्यों नहीं करते  ?
नौकरी क्यों नहीं करते ?

इससे ज्यादा सवालो को  बर्दाश्त करने की क्षमता इनमे नहीं होती , आगे सवाल पूछे जाने पर अपनी सलामती के जिम्मेदार आप स्वयं है। 

चौराहा संस्कृति  आजकल इनकी  पाठशाला का एक प्रमुख हिस्सा  है। पकौड़ो के ठेले , चाय की दूकान , पान की गुमटी पर इनकी राजनीतिक और सामाजिक समझ का नमूना आसानी से मिल जाता है। 

विभिन्न पार्टियों का झंडा पता नहीं कितने दिन और कितने दिनों का रोजगार  इन्हे सुलभ कराता रहेगा भगवान् ही मालिक है । कम समय में प्रसिद्धि पाने की चाह  में खुद ही बड़ी - बड़ी बाते छोड़ते हुए  बड़ा बनना , लो क्लास वाले लड़को का चश्मा और फैशनेबल कपड़ा पहनकर अमीर दिखना,  चेहरे से मुस्कराहट का गायब होना और अकड़ वाकई देखने लायक होती है। चाल  तो इनकी ऐसी की आप डर के कहीं दुबक जायेंगे, बाद में भले ही इनके बारे में जानने के बाद सीना चौड़ा करते हुए सामने आ जाये।  वैसे ये भी मानते है की फर्स्ट इम्प्रेसन इज लास्ट इम्प्रेसन।  लेकिन गलती से इनको कहीं छेड़ मत दीजियेगा  क्योंकि इनको झुण्ड में बदलते समय नहीं लगता। 

वैसे गजब का हौंसला  और धैर्य है इनके अभिभावकों का  एक बार  " कोटिश धन्यवाद " तो उनको बनता ही है की इतने जिम्मेदार और होनहार नौजवानो को इतने बेहतरीन ढंग से भारतीय संस्कृति और सामाजिकता का पाठ पढ़ाया है। अगर उन्होंने नहीं पढ़ाया तो कहीं ना कहीं पढ़ने तो भेजा ही होगा। 


man ki baat 2


मन की बात - 2 

man ki baat 2


साहब आज एक बार हम फिर आप से अपने मन की बात करने वाले है पिछली बार तो उ आधार लिंक करवाने जाना था तो थोड़ा सा कहके निकल लिए इस बार साहब हमको लागत  है की आप पिछली बार से भी कम सोने लगे है तभी तो दिन रात एक करके सबके घर में चूल्हा लगवा दिए पर उ रामवृक्षवा के घर एक बार सिलेंडरवा ख़त्म हो गया तो उ फिर से  गोइंठा  पर बनाने लगा , हम पूछे तो झुट्ठे बोल दिया की सरकार  खाने का बेवत लायक छोड़े ही नहीं हमका   गैसवा  कहा से भरवाएंगे जौने मनई के दूकान पर ठेला चलात रहे उ नोटबंदी और जीएसटीये समझे  खातिर परेशान  रहा ये ही चक्कर में  दुकानदारी चौपट रही। व्यापारी तो खुदे कर्जा में चला गया  , आप उसकी बाती पे एकदम विश्वास मत कीजियेगा सरकार एक नंबर का झूठा है अभी पिछले ही महीने देखे थे चौधरी की दुकान से बड़का  नहाने वाला साबुन खरीदा था , इंहा  तो जमाना गुजर गया साबुन खरीदे। 



सुने है सरकार उ चाइना वाले डोकलाम में फिर से घुस आये है , इसीलिए हम कहते है थोड़ा आप भी अब विदेशवा  जाना  कम कर दीजिये इहा रहेंगे तो डर - भय बना रहेगा। वैसे भी आपको चाइना के माल और बात पर कम ही भरोसा करना चाहिए, ई सब हमेशा आपको भाउक करके फायदा उठा ले जाते है। 


सरकार  आप के काम से हम पूरा खुश है ,सुने थे सुप्रीम कोरट  उ छोट जात वाला कानून में कुछ करे रही। .... उ त अच्छा रहा की आप कानून ना बदले दिहे , इ ठकुरवा और पंडितवा  इतने से ही इतरा गए थे की अब कोई उनको झूठ मुठ में नहीं फंसा सकता। इनके पक्ष में सरकार कोई कानून मत बनाइयेगा नहीं तो इ फिर उतरा जायेंगे। एक तो पहले ही नौकरी में अरक्षणवा से जलते थे अब तो अउरी बउरा गए है बुझते थे की सरकार केवल उन्ही के है। अरे उ 200 में से 200 ला देंगे तब्बो सरकार नौकरी हमही को देंगे चाहे हम 50ए  नंबर काहे  ना लाये। 


एक थो हमारा पर्सनल रेक़ुएस्ट था सरकार आप से.......  अब हम गरीब मनई का जानी की आप उ स्मार्ट सिटी कहा बनाये है , और कहा से टिकट कटवाई आप ही दुगो  टिकटवा  निकलवा दीजिये ना.......  उ कलुआ के अम्मा भी कह रही थी की उसको भी देखना है की सरकार कैसा सुन्दर शहर बसाये है। और हाँ  ड्रइवरवा से कह दीजियेगा की ट्रेनवा टाइम पर लेते आएगा। कल्हिये भिनसारे रामखेलावन के लइका को छोड़े स्टेशन गए थे ट्रेन पकड़ाते - पकड़ाते  अगला दिन का दतुअन स्टेशनवे पे करना पड़ा. 
अच्छा सरकार अब हम चलते है अब तो आप भी आइयेगा ही अपने भाइयो और बहनो से मिलने  चुनाव में । ........ 


लेखक की इससे पहले की  प्रसिद्द रचना  -  मन की बात 

thelua and mathelua

ठेलुआ और मथेलुआ 


ठेलुआ और मथेलुआ अपने गाँव के सबसे बड़े लाल बुझक्कड़ हुआ करते थे , लाल बुझक्कड़ अत्यंत ही प्राचीन भाषा का शब्द है चूंकि दोनो की योग्यता के अनुसार इससे उचित शब्द की खोज नही की जा सकती थी इसलिये इसका प्रयोग ही यथोचित समझा गया . इस शब्द का अर्थ अलग अलग लोग अपने अपने अनुसार लगाते रहते है .

thelua and matheluaठेलुआ और मथेलुआ को अक्सर एक दूसरे के साथ बंदर और उसकी पूंछ की तरह देखा जाता था . बंदर की तरह ही दोनो को गुलाटियां लगाने की आदत थी और इसी आदत की वजह से बेचारे अपने हाथ पेर तुड़वा बैठते . गाँव मे होने वाले नुक्कड नाटको मे भी दोनो को बानर या रीक्ष का ही किरदार दिया जाता था जिसे दोनो बखूबी निभाते थे .कभी – कभी तो दोनो की हरकते देखकर ऐसा लगता की जैसे असली मे कोई बानर या रीक्ष आ गया है . लोग उनके अभिनय का भरपूर आनंद लेते थे और ठहाके मारकर हंसते – हंसते लोटपोट हो जाया करते थे . दोनो के घरवाले उनकी आदतो से परेशान होकर नित्य ही उनको ताने दिया करते थे जो की उनके लिये दिनचर्या का नियमित हिस्सा था .

एक बार की बात है उनके गाँव मे एक बहुत ही पहुंचे हुए महात्मा का आगमन होता है , सारे ग्रामवासी उनकी सेवा सत्कार मे जुट जाते है , ठेलुआ और मथेलुआ की जोड़ी को भी महात्मा की सेवा मे लगा दिया जाता है .
ठेलुआ के आगे के दो दांत बढते हुए उसके होंठो को पार कर गये थे कई बार उसके दांतो पर वज्रपात की संभावना हुई लेकिन खुशकिस्मती से कोई संभावना आगे नही बढ सकी .शक्ल से काले ठेलुआ के आगे के दोनो दांत ही अंधेरे मे उसकी राष्‍ट्रीय पहचान बने हुए थे . वही मथेलुआ शरीर से हट्टा – कट्टा तो था पर था एक नंबर का डरपोक . स्कूल के दर पर दोनो केवल दो ही बार गये थे. एक बार स्कूल मे लगे आम के पेड़ से आम चुराने और दूसरी बार स्कूल मे जांच आने पर मास्टर साहब द्वारा बच्चो की गिनती मे जिसमे दोनो को पुरस्कार स्वरूप किस्मीबार नामक टॉफी मिली थी .
हाँ तो महात्मा जी द्वारा रोज शाम को गाँव के मैदान मे प्रवचन का आयोजन होता था जिसमे अन्य गाँव के लोग भी उनकी मधुर वाणी सुनकर चले आते थे , पास के ही गाँव के एक पुराने जमींदार हरखू सिंह बहुत ही राजा आदमी थे उन्होने ही महात्मा जी के प्रवचन मे होने वाले खर्चे जिसमे प्रसाद से लेकर तम्बू तक शामिल था स्वयं वहन किया करते थे .

एक दिन सांय काल के समय महात्मा जी प्रवचन दे रहे थे तभी तेज गति से आंधी और तूफान नामक दो डाकू आ धमके , दोनो ही बड़े जालिम किस्म के बंदे थे वो जानते थे की प्रवचन सुनने भारी संख्या मे लोग उपस्थित होंगे ,औरते तो ऐसे स्थल पर जाती ही अपने गहनो का प्रदर्शन करने प्रवचन मे उनका ध्यान कम अपनी बहुओं और सास की चुगली मे ज्यादा रहता है , किसकी सास ज्यादा अत्याचारी है और किसकी बहू ने उनके लायक पुत्र को अपने वश मे कर रखा है चर्चा का प्रमुख विषय रहता था .


आंधी तो कुछ हद तक मुलायम था पर तूफान किसी को नही बख्शता था . दोनो ही घोडो पर सवार थे, औरते तो उन्हे देखते ही रोने लगी तथा जिन गहनो को उन्हे दिखाने मे दिलचस्पी थी उन्ही को अब छुपाने की जगहे ढूंढी जाने लगी . मर्द जो अब तक महात्मा जी के प्रवचनो मे लीन कलियुगी संसार और मोहमाया से विरक्ति की बाते कर रहे थे अचानक से ही उन्हे अपने तिजोरी मे रखे धन की चिंता सताने लगी . ठेलुआ और मथेलुआ प्रवचन सुनते सुनते कब गहरी नीद्रा मे लीन  हो गये उन्हे कुछ पता ही नही चला ,महात्मा जी लोगो से धैर्य रखने की अपील कर रहे थे . आंधी और तूफान ने मंडप मे प्रवेश करते ही अपने बाहुबल दिखाना शुरु कर दिया उन्होने हवा मे कुछ गोलिया दागते हुए सभा मे भय का माहौल बना दिया भयभीत औरते स्वतः ही अपने अपने गहने उनके चरणो मे अर्पित करते जा रही थी जिससे उनके प्राण उनके पास बचे रहे .

बंदूक की आवाज सुनकर ठेलुआ और मथेलुआ दोनो की नींद खुल जाती है , दोनो अपने सामने डाकुओ को पाकर भयभीत हो जाते है तथा भय से अचानक ही तंबू की रस्सी उनके हाथ से खींच जाती है और आंधी और तूफान के उपर एक बड़ा हिस्सा आ गिरता है जिससे दोनो ही मूर्च्छित हो जाते है . ग्रामवासियो द्वारा तत्काल ही पुलिस को सूचित किया जाता है . अगले ही दिन से अखबारो मे ठेलुआ और मथेलुआ छा जाते है , सरकार से डाकुओ के सिर् पर रखा इनाम भी उन्हे प्राप्त होता है और तो और महात्मा जी उनको अपना शिष्य बना लेते है . गाँव की औरते जो अब तक उनकी बुराई करते नही थकती थी अपने – अपने गहने पाकर ठेलुआ – और मथेलुआ के लम्बी उम्र की कामना करती है . दोनो के घर वाले भी अब दोनो को नित्य नये पकवान बनाकर खिलाने लगते है . वैसे इन दोनो के स्वभाव मे कोई परिवर्तन अब भी नही आया था .आज भी दोनो पूर्व की भांति ही ज्ञानी थे. राजा और रानियो के साथ ही दोनो के दिन की शुरुआत होती थी ये अलग बात है राजा और रानी कभी चिडि के होते थे और कभी हुकुम के पर इनके आज तक नही हुए . शायद किसी ने ठीक ही कहा है ” अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान “

इन्हे भी पढ़े -  

हाईस्कूल की परीक्षा और हम

girgit ki bechaini

गिरगिट की बेचैनी  -girgit ki  bachaini 


मेर घर के छोटे से बगीचे मे पौधो के बीच अनेक गिरगिट है जो की पानी देते वक़्त या पौधे के पास जाने पर अचानक से प्रकट होते है तथा मुझे देखके भागने लगते है पौधो के बीच वे रंग बदलकर उन्ही मे घुलमिल जाते है .कल शाम को पौधो मे पानी देते वक़्त अचानक से एक गिरगिट बाहर निकल कर आया  तथा भागने की बजाय मुझे देखने लगा वह  कुछ व्यथित सा नजर आ रहा था , इतने दिन मेरे घर मे रहते हुए उसे पता चल गया था की मैं एक लेखक हूँ .इसलिये भागने की बजाय वो मुझसे कई सारे सवाल पूछने लगा .

girgit ki bechaini

  
उसका पहला प्रश्‍न अपनी पहचान को लेकर था उसको लग रहा था की जिस पहचान के कारण उसकी नस्ल संसार भर मे प्रसिद्ध है उसको उससे छीनने का प्रयास किया जा रहा है .
मैने अन्जान बनकर जानना चाहा की कौन उसकी पहचान छीन रहा है . वो भी बड़ा चतुर था उसने मेरी तरफ इशारा कर दिया .
मैने पूछा में उसकी पहचान कैसे छीन रहा हूँ . 
अब वो गंभीर मुद्रा मे आ गया - बोला तुम कौन हो 
 अचानक ही मेरे मुंह से निकल गया आम आदमी  
गिरगिट - इसी आम आदमी का उदाहरण दे दे कर तुम्हारे जैसा एक इंसान आज खास आदमी बन गया .
न जाने कितने रंग बदले उसने पिछ्ले ही दिनो पढ़ा था उसने एक नया रंग खोज निकाला जिससे कीचड़ भी सॉफ हो जाता है .
क्या नाम था उसका ........ हाँ  माफीनामा , न जाने कितनो पे कीचड़ उछालने के बाद उसने इसका इस्तेमाल किया .
मैने भी उससे पूछ ही दिया - पर किसी से माफी मांगने मे क्या बुराई है .
गिरगिट - लो कर लो बात ऐसे तो हर कोई एक दूसरे पे कीचड़ उछालता रहे और तुम लोगो के चारो ओर दलदल ही दलदल हो जाये . क्या फिर तुम उसे माफीनामा से साफ कर पाओगे . बिल्कुल नही उसकी कीमत तो तुम्हे चुकानी पड़ेगी . कीचड़ उछालने से तुम्हारे हाथ भी गन्दे होंगे और सामने वाला भी तुम्हारी कुटाई को तैयार रहेगा . फिर चाहे कितना भी माफीनामा से सॉफ करते रहो ना तुम्हारा मैल सॉफ होगा ना उसका .
वो धीरे - धीरे अब अपने प्रमुख मुद्दे की ओर अग्रसर होने लगा था. 
गिरगिट - जबसे तुम आम आदमी राजनीति मे आ जाते हो पता नही ऐसा क्या हो जाता है की लोग तुम्हारी कसमो , वादो पर भी ऐतबार नही करते . कभी तुम केसरिया रंग लेकर किसी इलाके मे मांसाहार का विरोध करते हो. तो कभी किसी इलाके मे चुनाव जीतने के लिये उसे भी जायज ठहराते हो . यार इतनी तेजी से तो हम रंग नही बदल पाते जितनी तेजी से तुम लोगो की पार्टिया बदलवाते हो . अभी तक तुम्हारे नाम फेंकू , पप्पू  , जैसी कम उपाधिया थी जो अब हमसे हमारी पहचान छीनने मे लगे हो . 
हमारे रंग बदलने से तो किसी का नुकसान नही होता पर तुम्हारे रंग बदलने से कितने लोगो की उम्मीदे  टूटती है कुछ अंदाजा भी है तुम्हे , उस जनता के साथ - साथ  तुम मानवता के साथ भी   विश्वासघात करते हो . 
इतने रंग बदलते हो की तुम्हारा कोई रंग ही नही रह जाता . कुछ दिनो मे मुहावरो मे से हमारा नाम हटाकर लोग कहेंगे क्या नेताओ की तरह रंग बदल रहे हो . और हम एक विलुप्त प्राणी बनकर रह जायेंगे.  

अब में उसे कैसे समझाता जिस देश मे नेताओ द्वारा धर्म , रंग , शाकाहार - मांसाहार , वंदे मातरम , राष्ट्र - गान , तिरंगे तक का कापीराइट अपनी पार्टी के नाम करा लिया जाता है वहां  ये तो बहुत ही तुच्छ जीव है जिसने अगर ज्यादा विरोध किया तो उसका अस्तित्व ही संकट मे पड़  सकता है . 


इन्हे भी पढ़े - 

अच्छे दिनों की आस में 

   






naari wyatha



नारी व्यथा -  गंभीर समस्या  naari wyatha ek gambhir samasya  


"अजी सुनते हो "  - शब्द कानो में पड़ते ही दिमाग में हलचल होने लगती है की पता नहीं अब कौन सी मुसीबत आने वाली है। वैसी  ही अनुभूति  " ब्रेकिंग न्यूज़" सुनते समय होती   है।
                                                                        
naari wyathaशादी के कुछ समय बाद कानो को ये नया स्वर सुहाना जरूर लगता है परन्तु कुछ समय व्यतीत हो जाने के बाद आने वाले खतरे की आशंका से मन ग्रसित हो उठता है.  अभी कुछ दिन पहले ही पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष जी  से हुई बातचीत में उन्होंने विषय से सम्बंधित गंभीरता का विस्तार से वर्णन किया था वे बताने लगे की कैसे - कैसे लोग अपनी समस्या लेकर उनके पास आते है , उनमे इसका कोई फर्क नहीं पड़ता की वे किस ओहदे पर है  घर पर वे सभी एक नितांत भय के वातावरण में जीवन व्यतीत कर रहे है। अभी कल ही एक प्रख्यात चिकित्सक अपनी समस्या लेकर आये थे की उनकी धर्मपत्नी जो की चिकित्सक नहीं है इतनी शंकालु प्रवृत्ति की महिला है जो की सदैव उनके साथ चिपकी रहती है यहाँ तक की रोगियों को देखते वक़्त भी उनके बगल में कुर्सी पर विराजमान रहती है इस कारण चिकित्सक महोदय की खिल्ली उड़नी  लाजमी है .   मैंने भी अध्यक्ष जी की चुटकी ली की उनमे इस तरह का संघ बनाने की हिम्मत तभी आई जब वे कुंवारे है वर्ना एक शादीशुदा पुरुष के ख्यालो में भी इस तरह के विचार नहीं आ सकते। मुझे चिकित्सक महोदय की धर्मपत्नी की तरह ही उन समाचार चैनलों का ध्यान आया जो अक्सर ही सेलिब्रिटीयो की निजी ज़िन्दगी में तांका - झांकि करते है। 

मेरे बगल के शर्मा जी उपजिलाधिकारी के पद पर आसीन है परन्तु घर में प्रवेश से पूर्व मेरे यंहा आकर इस बात की जानकारी अवश्य लेते है की आज उनकी श्रीमती जी की मनोदशा कैसी  है। उसके पश्चात पूरी तैयारी के साथ घर में प्रवेश करते है। अभी कल ही उनका शाम का भोजन मेरे ही घर पर हुआ था कारण जो उन्होंने बताया उसको सार्वजनिक करने में लोगो का प्रशासन पर से विश्वास उठ सकता है। 

घर में यदि आपकी धर्मपत्नी की सास है तब तो आपके लिए कुछ आस है क्योंकि युद्ध के मैदान में शत्रु का ध्यान दोनों ही तरफ लगा रहता है।  अगर किसी के पूर्वजन्मों में किये गए पुण्यस्वरूप एक सुशील धर्मपत्नी  मिलती है तो उनसे अनुरोध है की घर में टेलीविजन का प्रवेश वर्जित करदे नहीं तो पूर्वजन्मों का पुण्य कब टेलीविजन की धारा में प्रवाहित हो जायेगा आप की सोच से परे है। 

जबसे टेलीविजन के विभिन्न चैनलों पर सास - बहु प्रकार के धारावाहिको की टीआरपी में बढ़ोत्तरी हुई  है तबसे आम आदमी के घर की सुख शांति में बेतहाशा गिरावट दर्ज की गई है , क्योंकि सास भी कभी बहु थी जैसे धारावाहिको ने बहुओ के अंदर सास बनने की ऐसी जिज्ञासा जगाई की देखके लगता नहीं की कौन सास है और कौन बहु।  जितना  छल - प्रपंच इन धारावाहिको में दिखाया जाता है  उसकी कल्पना कभी आम आदमी भी नहीं कर सकता , परन्तु  हमारे और आपके घर की गृहणियों के लघु मन मष्तिस्क में संदेह रूपी ज्वार - भाटा अवश्य ही उठ जाता है जो की समुन्द्र मंथन के बाद ही शांत होता है जिसमे विष का प्याला शंकर जी की ही तरह हमेशा  ही हमें  गटकना  पड़ता है। 

निश्चित रूप से इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की वर्तमान समय में ये समस्या एक गंभीर रूप धारण करते जा रही है , महिला - मित्र से  जब इसका रूपांतरण पत्नी में होता  है तो इस समस्या की गंभीरता का पता  चलता है।  अनेक शोधार्थियों द्वारा इस क्षेत्र में शोधकार्य जारी है परन्तु अभी तक किसी भी नारी के मष्तिस्क का  १/१०  से ज्यादा हिस्सा नहीं पढ़ा जा सका है  . सरकार से अनुरोध है की देश की अन्य समस्याओ की तरफ इस पर भी ध्यान दिया जाये।  जिससे की प्रत्येक कार्यकारी पुरुष बिना भय और दुखी मन के अपने कार्य में अपनी क्षमता का १०० प्रतिशत योगदान दे सके जिससे देश के विकास का पहिया तेजी से आगे बढ़ते हुए संसार के अन्य देशो को पीछे छोड़ सके।   



इन्हे भी पढ़े = 

हाईस्कूल की परीक्षा और हम 





highschool pass

हाईस्कूल की परीक्षा और हम  - high school ki pariksha aur hum 




highschool passअभी  पिछले साल की ही  बात है जब गोलुआ हाईस्कूल की परीक्षा में सत्तर  परसेंट  लाके  अपने पुरे गांव में हल्ला मचा दिया था।  इ अलग बात है की उसको अपना नाम भी लिखना नहीं आता। गोलुआ के हाईस्कूल पास होने की अलगे कहानी है , उ  तो स्कूले  नहीं जाना चाहता था पर उसकी अम्मा उसको समझाई की बेटवा लड़की वाले कहे है की कम से कम लड़का हाईस्कूल पास होना चाहिए और तुमको बस स्कूले तो जाना है वहां गुरूजी सब संभाल लेंगे। गोलुआ के रिश्ते की बात उसके मौसी की जेठानी की बहन के ननद की लड़की से चल रही  थी।लड़की वाले चाहते थे की लड़का कम से कम हाईस्कूल पास हो ताकि किसी अच्छे से स्कूल में जुगाड़ से  चपरासी बनवा दिया जाये  । उसके बाद तो गोलुआ फर्राटे से स्कूल की और ऐसा भागा की जैसे उसकी ट्रेन छूटी जा रही हो। 

गोलुआ को देख के बाकि सारे लइका लोग के माई - बाप  भी अपने - अपने होनहार सपूत से अइसे ही आशा लगा लिए थे। पर हम लोगो का दुःख कौन समझेगा की पुरे साल तो गिल्ली - डंडा , सनीमा और रिश्तेदारी निभाने में ही निकल जाता था और जो थोड़ा बहुत समय बचता था उसमे स्कूल चले जाते थे की सारे भाई लोग से मिल सके आखिर याराना भी तो जरुरी है।  

पिछले साल तो व्यवस्था मुलायम थी इसलिए गोलुआ निकल गया इस साल  पूरा योगी बनके साधना करनी पड़ेगी तो हमने भी साधना शुरू कर दी और रोज सुबह गुरु जी लोगो के घर के चक्कर काटना शुरू कर दिए दूध , दही , मट्ठा सब लेके गए पर गुरु जी लोग लेने से मना कर दिए बोले की बेटा ए साल सवाल नौकरी का है हम लोग खुदे कठिन परीक्षा के दौर से गुजर रहे है नही तो तुमको तो पता ही है पुरे साल तुम लोग हमरा कितना हेल्प करते हो और परीक्षा के टाइम हमलोग तुम्हारा। 

आजतक हम जब भी क्लास में सोये है तब  - तब तुम लोग शांति बनाये रखे हो जितने महीना हम नहीं आते थे तुम लोग खुदे हमारा हाजिरी दुसरे गुरु जी से लगवाए हो पर कभी कही शिकायत नहीं किये।  इसीलिए हम भी परीक्षा में पूरा कार्बन कपीये तुम लोगो को दे देते थे , और जो नहीं लिख पाता था उसके  घर से किसी को बुलवा लेते थे ताकि उ  बाहर लिख सके और तुम अंदर आराम से रहो।

सारी खिड़की पे एक - एक थो सीढ़ी लगवा दिए थे ताकि तुम्हरे घर के लोग भी इत्मीनान से देख सके और सवाल फसने पर पर्ची दे सके इसी चक्कर में कई लोग सीढ़ी अपने घरवे उठा ले गए , पानी ,  समोसा, कोल्ड - ड्रिंक सबका व्यवस्था किये रहे की तुम लोगो का मेहनत का पसीना बर्बाद न  जाये।  पर बेटा ये साल  जालिम सरकार नहीं चाह रही है की तुम लोग मेरिट लाके प्राइमरी का मस्टरवो बन सको। फौज में जा सको कुछ नहीं तो  चपरासियो बन सको और हमारे स्कूल का नाम रोशन कर सको । बेटा ई  सरकार चाह रही है की तुम भी चौराहे पे जाके पकौड़ा बेचो , बेरोजगार रहो , बिन ब्याहे रहो   गुरु जी की बातें ख़त्म होती उससे पहले ही हम फफक - फफक के रो पड़े और हमे देख के गुरु जी। 

इन्हे भी पढ़े - 


  




wah re sharma jee

वाह रे शर्मा जी wah re sharma jee 


बीवी और टीवी ये दोनों दूर से ही चले तो अच्छी है पास से देखने पे एक आँखों के लिए नुकसानदायक है और दूसरा मन की शांति के लिए।और इसीलिए लगता है की दोनों ही रिमोट से चलती तो कितना अच्छा होता।  

शर्मा जी आज सुबह ऑफिस के लिए तैयार होते वक़्त यही सोच रहे थे की आज सुबह उनसे ऐसी कौन सी खता हो गई की उनकी बीवी उनपे ट्रक के हार्न की तरह बजती ही जा रही है। सुबह उन्होंने बस इतना ही तो कहा था की आज नाश्ते में आलू के पराठें की  जगह मूली के परांठे बन जाये तो  उन्होंने ऐसा कौन सा गुनाह कर  दिया ये अलग बात है की शर्मा जी को गैस की प्रॉब्लम है पर बीवी को क्या समस्या  थी, नहीं बनाना था तो एक बार बोल ही  दी होती सर पे आसमां उठाने की क्या जरुरत थी। 

अभी कल ही मुंह से बस गलती से ही निकल गया की कानपुर भारत  के सबसे गंदे शहरो में से एक है वहा  स्वच्छ भारत अभियान की धज्जिया उड़ रही है   फिर क्या  फिर तो ना जाने कितनी बुराइया मुझमे और नैनीताल शहर में निकल आई दोपहर के खाने तक से महरूम होना पड़ा  वो अलग , अब तक तो आप समझ ही गए होंगे की  शर्मा जी नैनीताल के थे और उनकी श्रीमती जी कानपूर की। भला कानपुर की बुराई करना उनके मायके की बुराई करने से कम थोड़ी न था। 

खैर शर्मा जी ने अपना ध्यान सामने आई मुसीबत से हटाकर डाइनिंग टेबल पर रखे आलू के परांठे , धनिया और टमाटर की चटनी पे लगाया। नाश्ता खत्म होते ही वे घर के जरुरी कामों की सूची मांगने ,हिम्मत करके श्रीमती जी के पास पहुंचे, देखे तो श्रीमती जी के चेहरे पे कुटिल मुस्कान झलक रही थी ,वे  मन ही मन सोचने लगे  इतनी जल्दी तो गिरगिट भी  अपना रंग नहीं बदलता  जरूर दाल में कुछ काला है।  

श्रीमती जी बोली - " सुना है आपका प्रमोशन होने वाला है "
शर्मा जी - " हाँ तो "
श्रीमती जी  - " मैं सोच रही थी की आपके प्रमोशन के बाद हम कुछ दिनों के लिए कानपुर  घूमने चले "
शर्मा जी - " ठीक है देखता हूँ। " कहकर शर्मा जी ने वह से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी। 

wah re sharma jee


शर्मा जी रास्ते में यही सोच रहे थे की पिछले हफ्ते   बाबू जी का फ़ोन आने पर घर में कैसे तहलका मच गया था। मां की तबियत अचानक ही ख़राब हो गई थी और उनकी देख रेख करने वाला वहा  पर कोई नहीं था।  बड़े भाई साहब परिवार समेत विदेश में जा बसे थे और उन्हें सबसे कोई मतलब ही नहीं था और छोटा भाई आई आई टी से इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा था। एक मैं ही था जिनसे उनकी उम्मीद कायम थी , मैंने भी कई बार उनको अपने पास लाने की कोशिश की पर वे अपना पुश्तैनी मकान  छोड़ने को तैयार ही  नहीं थे। आखिर होते भी क्यों वो मकान नहीं  घर था हमारा जिससे हमारी अनेक यादें जुडी थी , ये यादें ही तो थी जिनके सहारे उनकी जिंदगी गुजर रही थी। 

अगले दिन ही शर्मा जी घर से ऑफिस के किसी काम का बहाना लेकर अपने गांव निकल लिए , आखिर उस मां  के लिए उनके भी कुछ फर्ज थे जिसका अंश वे है। जिसकी ऊँगली पकड़ के वे इतने बड़े हुए और जिसकी ममता की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती।  एक अजीब सी शांति और संतोष था शर्मा जी के चेहरे पर क्योंकि वे परिवार में संतुलन बनाना जान गए थे। और अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से  निभाना भी। 




इन्हे भी पढ़े - 

कानपुर वाले पांडेय जी 




bada kasht hai jindagi me


बड़ा कष्ट है जिंदगी में  bada kasht hai jindagi me - 


भाई जिंदगी में आजकल बड़ा कष्ट हो गया है पहले जिस रात में हम बड़े आराम से सोते थे उसका भी चैन  इस  मोबाइल ने छीन लिया उठ - उठ के देखते है, तकिया के नीचे से निकाल के देखते है 5 मिनट के लिए आँखों से ओझल हो जाये तो बैचेन हो उठते है। सोचिये जब एक अदने से वस्तु को लेकर जिंदगी कष्टकारक हो जाती है तो अभी तो तमाम मुश्किलें है। 


स्कूल गए तो सीखने से ज्यादा नंबर लाने की टेंशन , भारी भरकम बस्ते को नाजुक कंधो पर उठाने की टेंशन 
टाई पहनेंगे तभी हाई - फाई स्टूडेंट लगेंगे , पता नहीं इस टाई में पढाई से सम्बंधित ऐसा कौन सा गुण  होता है जो गले को कस  कर हमें पढ़ना सीखा देता है। बेल्ट तो खैर पैंट ढीली होने पर उसको रोकने के काम आ सकती है , पर ये शर्ट कहा भागी जा रही है। पहले तो साल में केवल 2 परीक्षाये होती थी अर्धवार्षिक और सालाना यानि halfyearly और yearly . पर अब हर महीने न जाने कितनी परीक्षाएं होती रहती है। 

bada kasht hai jindagi me


स्कूल ख़त्म तो कॉलेज में एड्मिशन और कॅरिअर को लेकर टेंशन उसके लिए भी तैयारी। उद्देश्य केवल एक ही नाम और पैसा। मुझे ये समझ में नहीं आता की जब पूरी ज़िन्दगी का उद्देश्य इन्ही दोनों चीजों पर आकर ख़त्म हो जाता है तो शुरू से इतना कष्ट उठाने पर मजबूर क्यों किया जाता है। कॉलेज तक नंबर लाने और अव्वल आने का प्रेशर बरकरार रहता है। फिर शुरू होती है नौकरी को लेकर जंग जिसमे सरकारी का तो हाल ही मत पूछिए एक अनार सौ  बीमार वाली हालत हो गई है , प्राइवेट में ही इतनी  दिक्कत है नौकरी मिलने से लेकर उसको बरक़रार रखने की दिक्कत , सीनियर की बिना मतलब की फटकार , अत्यधिक काम का तनाव ऊपर से नाम मात्र का वेतन और अगर कोई नौकरी नहीं मिली तो बेरोजगारी का दंश मतलब कष्ट ही कष्ट। 

नौकरी के बाद बात आती है शादी पे ,आपकी शादी बहुत हद तक आपकी नौकरी पर ही निर्भर करती है नौकरी अच्छी रहेगी तो कहते है छोकरी भी अच्छी मिलेगी नहीं तो मुझे थ्री इडियट फिल्म का एक डायलॉक याद आता है की अगर अच्छी नौकरी नहीं रहेगी तो कोई बैंक क्रेडिट कार्ड नहीं देगा , लोग रिसपेक्ट नहीं देंगे और कोई बाप अपनी बेटी नहीं देगा। एक चुटकुला भी काफी प्रचलित है की एक बार एक गुरूजी अपने विद्यार्थी को परीक्षा के प्रति लगाव न देखते हुए कहते है की हे शिष्य परीक्षा हाल में तुम्हारे द्वारा किया गया एक भी गलत प्रश्न भविष्य में होने वाले तुम्हारे हमीमून को स्विट्जरलैंड से लखनऊ शिफ्ट कर सकता है तबसे वो बालक आजतक कक्षा  में अव्वल आ रहा है। 


शादी का लड्डू ऐसा होता है की जो खाये वो पछताए और जो न खाये वो भी पछताए। बडे कष्टों की शुरुआत तो होती है शादी के बाद जिसके लक्षण शादी के एक महीने बाद ही परिलक्षित होने लगते है और शुरुआत होती है रोज के तू - तू ,मैं - मैं से लेकर रोज मिलने वाले नाना प्रकार के तानो से । और बेलन ,झाड़ू से लेकर शब्दों के कौन से जाल नहीं चलते मत पूछिए वेदो में सत्य ही कहा गया है हे नारी तू सब पर भारी और आज के  पुरुष कहते है हे नारी तू अत्याचारी । अब नारी व्यथा और पुरुष प्रताड़ना प्रथा की कहानी सब को पता  है उसके बारे में कभी विस्तार से चर्चा होगी क्योंकि  समाज का कोई ही ऐसा पुरुष होगा जो खुल के और ईमानदारी से कह सकता है की वो अपनी बीवी से सुखी है और पत्नी भी अपने पति के बारे में ये झूठ बोलने से पीछे नहीं रहती। 
अभी तक जो शादी नाम की दुर्घटना से बचे हुए है उनसे निवेदन है की जान जोखिम में डालने से पहले शादी को लेकर अपना रिसर्च अच्छे से कर ले तथा बाद में किसी पर दोषारोपण न करे। 

शादी के कष्ट के साथ - साथ आपकी शरारतो के परिणाम भी सामने आने लगते है जो की अत्यंत ही शरारती होते है।  लालन - पालन पहले की अपेक्षा आसान नहीं रहे , जिस संयुक्त परिवार को हम अपने लालच वश ख़त्म करते जा रहे है उस संयुक्त परिवार की महत्ता को हम नकार नहीं सकते।  आज एक बच्चे की परवरिश में अनेक कष्टों को उठाना पड़  जाता है वही संयुक्त(joint family) परिवार में  चार - चार बच्चो की परिवरिश आसानी से हो जाती थी। दादी बच्चो की मालिश करती  तो दादा कहानिया सुनाते , चाची या बुआ सुबह का टिफिन तैयार करती तो चाचा स्कूल छोड़के आते लेकिन अब इतने सारे कामो का बोझ खुद ही उठाना पड़ता है ऊपर से ऑफिस अलग से समय पे पहुंचना। 

बच्चे बड़े हुए तो उनके कॅरियर सवारने  की टेंशन दिन - रात एक करके पैसा जमा करो और फिर किसी लायक न हुए तो सब व्यर्थ फिर कष्ट , और बुढ़ापे की तो पूछिए ही मत आज - कल के जो हालात  है उसको देखते हुए तो लगता है जैसे हमारे पूर्वज हमसे कह रहे है अपनी तो जैसे - तैसे कट गई आपका क्या होगा जनाबे अली। क्योंकि आज की नई पीढ़ी के सामाजिक सरोकार केवल नाममात्र के रह गए है , कभी सोचता हू  की समाज और विज्ञान की इतनी तरक्की हमारे किस काम की पूरी दुनिया घूमने के बाद भी इंसान तन्हा  है, लाखो रूपये की नौकरी मिलने के बाद भी कंगाल है उसके पास खुद के लिए समय नहीं बचता उसके अपने बच्चे उसकी बातो को अनदेखा या भार समझते है बीवी दिन रात खरीदारी में व्यस्त है या उसको प्रताड़ना देती है। माँ - बाप को तो वो कही दूर  गांव में छोड़ आया , अपने भाई - बहन तो अब रिश्तेदारों की श्रेणी में आ गए है , रिश्तो से  वो मिठास न जाने कहा चली गई और कहने को  हम तरक्की कर रहे है पर  इस संसार के बनाये नए भौतिक मायाजाल में फंसकर जिंदगी को कष्टदायक बनाते जा रहे है। 


इन्हे भी पढ़े  - उफ़ ये बेरोजगारी   

fenku chachha ki holi


फेंकू चच्चा की होली fenku chachha ki holi - 



होली का त्योहार ज्यो ज्यो पास आता जा रहा है वैसे ही धीरे - धीरे माहौल भी रंगीन होते जा रहा है , हमारे गाँव के फेंकू चच्चा जबसे प्रधान बने है तबसे इस त्योहार का एक अलगे मजा हो गया है. 2014 की होली मे तो उन्होने कईयो को रंग दिया था उस साल उन्होने किसी को नही छोड़ा पप्पू तो पहचाने मे नही आ रहा था वो तो उसकी मम्मी ने बंदर छाप साबुन से रगड़ - रगड के उसे नहलाया तो जाके उसका मुखड़ा दिखाई दिया . लेकिन तबसे पप्पू गाँव मे दिखाई नही दिया.उसे दुसरे गांव में होली मनाने में ही मजा आता था. 

fenku chachha
फेंकू चच्चा 
साइकल वाले नरम चच्चा और उनका बेटवा दुन्नु  की तो साइकल तक पे चच्चा ने अपना रंग चढ़ा दिया था . चच्चा को केसरिया रंग बड़ा प्रिय है इसलिये होली के दिन चच्चा गुलाल तक केसरिया रंग का ही लाते है . चच्चा बता रहे थे की कैसे वे एक बार अमेरिका गये और वहा वे ट्रॅंप के साथ होली खेल के आये थे.तब ट्रंप  एकदम करिया हुआ करता था चच्चा ने ट्रम्प पर ऐसा सफेदा पोता की आजतक छुटबे नहीं किया इसीलिए ट्रम्प इतना गोरा है।  तब से ट्रॅंप भी होली और चच्चा दोनों  का दीवाना हो गया था . हमारे गाँव मे तो चच्चा की होली देखने दूर दूर तक से लोग आते थे .होली के दिन एक ठो बड़का गड़हा खोद के उसमे कीचड और गोबर दोनों से भर दिया जाता था और गांव के सबसे मनबढ़ लइका  को उसमे उठा के पटक  दिया जाता था  ताकि उ अपनी मनबढ़ई भुला सके। 

चच्चा होली के दिन कई तरह के पकवान भी बनवाया करते थे जिसमे गुजिया से लेकर मालपुआ तक सब होता था. और हां पकौड़ी भी। 

 हमारे गाँव मे एक नकचढ़ी बुआ भी थी जिनपे रंग लगाना साक्षात अपनी शामत बुलाना था , बुआ को हाथियो से बड़ा प्यार था इसलिये बुआ के घर मे हाथियो के कई सारे पुतले थे . बुआ के बोलने का अंदाज भी सबसे निराला था , पिछली होली मे गाँव के एक लड़के ने साइकल पे चढ के बुआ पे रंग डालने की कोशिश की थी ताकि भागने मे आसानी हो पर पर गाँव का ही पप्पू उससे आके भीड़ गया . साइकल के साथ दोनो के हाथ पांव टूटे वो अलग से . हमारे गाँव मे होली के दिन रस्सी खींच प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है अभी पिछली ही बार चच्चा अकेले ही मोर्चा संभाले हुए थे और दूसरी तरफ दूसरे गाँव के चालू प्रसाद और विनीत कुमार थे दोनो ही चच्चा के कट्टर विरोधी थे पर चच्चा ने ऐसी रस्सी खींची की विनीत चच्चा के पास आ गिरे और चालू पीछे नाले मे तबसे चालू चच्चा को गरियाते फिर रहे है . इस बार तो चच्चा सबके निशाने पे है सबने अपनी अपनी पिचकारी चच्चा के लिये तैयार कर रखी है . बुआ तो इस बार असली हाथी पर चढ के चच्चा को रंग लगाने वाली है अब्बे से कई ठो बाल्टी तैयार कर ली है।  वैसे एक बार चच्चा हांथी की सूंड मे सुई घुसा चुके है . उसी सुई से उन्होने साइकल भी पंचर की थी और उसी से पप्पू के हाथ मे खुजली भी की थी . देखना है चच्चा इस बार कैसी होली खेलते है  और चच्चा इस बार कौन सी पिचकारी से रंग के साथ और क्या क्या फेंकते है या बाकी सब चच्चा का क्या हाल करते है इहे तो एक त्यौहार है जिसमे कपडा भी फाड़ देंगे तो कोई बुरा नहीं मानेगा इसीलिए सब कहता है -  बुरा ना मानो होली है .


इन्हे भी पढ़े  - फेंकू चच्चा 

after valentine

किस्सा वैलेंटाइन डे के बाद का -  




हाँ तो आप लोगो को  वैलेंटाइन दिन वाले दिन तो हमारी और कमला की कहानी पता चली  थी , पर उसके बाद क्या हुआ इसको बताने में इतनी देर इस  वजह से हुई की भैया  अस्पताल से ठीक होने में थोड़ा टाइम लग गया। 

अब आप ये सोच रहे है  की हमारी कुटाई हो गई थी  तो बिलकुल सही सोच रहे है।  दरअसल वैलेंटाइन डे वाले दिन कमला को  देखते ही हमरे प्यार का थर्मामीटर इतना हाइ हो गया था की कमला को  सीट पे बैठाने  के बाद हमारी साइकिल की स्पीड 60 किलोमीटर / घंटा हो गई थी , और हम कुछ ही देर में शहर के गुरमुटिआ पार्क आ पहुंचे। पार्क लैला - मजनुओं से खचाखच  भरा हुआ था ,तरह - तरह के दिल के आकर वाले गुब्बारे हाथ में लेके लइका - लईकी  घूम रहे थे , हम तो सीधे कलेजा हथेली पे रखके आये थे अब  इतना तगड़ा बंदोबस्त होने के बाद इस तरह के पार्क में आना कलेजा हाथ में रखके आना ही तो  हुआ। हां तो पार्क में तरह - तरह के नमूने भी देखने को मिले कई ठो  ऐसे मिले की विश्वास हो गया की प्यार अँधा होता है अब हो काहे न एक खूबे सुन्दर लईकी बानर जइसे लइका के हाथ में हाथ डाले घूम रही थी देखे तो लइका का किनारे का बाल पूरा सफाचट था सिर्फ बीच में कुछ बचा था वो भी खड़ा। मेकअप तो इतना पोत के घूम रहीं  थी लोग की अगर भगवान् बरस जाते तो  हरी - हर घांस सफ़ेद हो जाती और चेहरा यूपी के सड़क जैसा। 

मुंह से जानू  - सोना  करके चाशनी इतना झर  रहा था की लगा की आज  के बाद प्यार  करने को ही नहीं मिलेगा। खैर हमको दुसरे से क्या करना था हमको लगा इहा ज्यादा देर रहना सुरक्षित नहीं इसलिए हम अपनी बुद्धि पे भरोसा करके उहा  से खिसक लिए और पहुँच गए गोलगप्पा खाने वहाँ पे भी उहे हाल जल्दी - जल्दी गोलगप्पा खाने के बाद  निरहुआ का एक ठो सिनेमा देखे चल दिए टिकट हम पहले ही खरीद लिए थे वो भी किनारे वाला। आज के दिन का पूरा प्लानिंग हम पहले ही कर लिए थे हाँ सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए  एक ठो  बुरका भी साथ लाये थे। फिलम शुरू होते ही हाल में सीटी और ताली का  आवाज शुरू हो गया  हम भी निश्चिंत होक कमला से बतियाने  लगे। लगा की आज पूरा   मेहनत स्वार्थ हो गया।


 तभी पता नहीं कहा से जोर - जोर से आवाज आने लगी देखे तो हमारी सिट्टी - पिट्टी  गुम , हाल पे बजरंग दल वाले पूरी बटालियन लेके आ गए थे उधर परदे पे निरहुआ का एक्शन सीन शुरू हुआ और  इहा हकीकत में ,बुर्का पहिनने का मौका भी नहीं मिला। सीन जबतक ख़तम हुआ तब - तक हमरा पुर्जा - पुर्जा हिल चुका था और मुंह से बस इहे  निकला  -  हे राम ...... 


मजेदार पढ़े    -  #वैलेंटाइन दिवस के पटाखे

 

valentine day

#वैलेंटाइन दिवस के पटाखे  ( crackers of valentine day)


एक महीने से जिसका इन्तजार किये रहे और एक हफ्ते से जिसका  रोज छोटी दीपावली की तरह कोई न कोई डे रहता था ऊ  वेलेंटाइन डे आज आ ही गया।बेरोजगारी में   कसम से पैसा बचावे खातिर खैनी तक खाया छोड़ दिए रहे कितना बार त भन्सारी के दूकान के सामने से निकले पर खैनी की तरफ देखे भी नहीं। बस कमला का गेंदा की फूल की तरह खिला चेहरा देख के मन हरिहरा  जाता था। आजे  अपनी साइकिल में आगे एगो छोटका सीट लगवाए हैं  एही पे बैठाके  कमला को नहरी से लेके शहर वाला पारक में घुमाएंगे सुने है उहा तो मेला लगता है गुब्बारा से लेके चाट - गोलगप्पा सब मिलता है।  हमरी कमला को भी गोलगप्पा बहुत पसंद है उहो तीखा। 


काल्हिए साइकिल से शहर जाके कमला के लिए बढ़िया सा गिफ्ट लाये है अब बताएँगे नहीं की हम का लाये है 
इ बस हमरे और कमला के बीच की  बात है। हाँ पर  गिफ्ट के साथ चेंगु हलवाई की इमरती जरूर लाये है चेंगा की दूकान पे आज के दिन गजबे  का भीड़ था , हो काहे  नहीं उ से अच्छा मिठाई पूरा इलाका में कौन बनावत  है।  धक्का मुक्की में जरूर एक थो दांत निकल गया हमारा पर वो भी हमारी कमला से बढ़ के थोड़ी न था।  


पता नहीं काहे आज सुबह से इ फोनवे नहीं मिल रहा है और इ वैलेंटाइन डे का मुहूरत भी निकला जा रहा है। सोच रहे है एक बार साडी पहन के कमला के घरवे चले जाये कह देंगे अंकल आज शिवरात्रि पे मंदिर जाना है जल चढाने। पर इ मूंछ का का करेंगे कमला कही थी इ मूंछ ही त हमारी शान है और हमारे करिया चेहरे में एक मूंछ ही तो उसको पसंद है।  न .. थोड़ा देर और इन्तजार कर लेते है प्यार में इन्तजार का अलगे मजा है। 

valentine day rose
valentine day rose


हां पर आज बड़ा सावधानियों बरतना पड़ेगा पिछली बार तो खाली बजरंग दाल वाले ही हाथ में दू - दू  गो डंडा लेके घूम रहे थे इस बार तो जोगी एंटी रोमिओ वालो को ही लगा दिए है।  हमको लगता है की इन लोगो को तो कौनो लड़की पूछी नहीं , अब पूछती कईसे कंठी माला देख के तो इहे लगेगा की इ लोग साधू है  और शादियों के बाद मोदी जी जैसे संन्यास ले लिए तो हमरा  का होगा। एक थो महात्मा बड़ा ठीके कहे है " पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया  न कोई ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होई " . 

लगता है कमला आ रही है अब हम चलते है क्योंकि हम नहीं चाहते की उ  इन्तजार करे जिससे प्यार किये है उसको कौनो तकलीफ हो तो कसम से कलेजा से रोआई छूटता है। और हां अपना भी ध्यान रखियेगा और हॉलमेट साथे लेके चलिएगा क्योंकि कौनो दल और कौनो सेना अरे भारतीय सेना नहीं करणी सेना टाइप 
आज के दिन हमरा और आपके ऊपर पटाखा फोड़ सकती है और हाँ  



              HAPPY VALENTINE DAY 

पसंद आये तो शेयर जरूर करियेगा  कंजूसी नहीं करियेगा  कमला बोली है  - 


fenku uncle

फेंकू चच्चा 


uncle
fenku uncle 


मारे गाँव मे एक ठो चच्चा हुआ करते थे फेंकू चच्चा . उनके फेंकने के किस्से दूर – दूर तक मशहूर थे . दूर – से मतलब अमेरिका से नही हाँ आसपास के गाँव, रिश्तेदारियो और जवार मे , चच्चा जब कभी रिश्तेदारियो मे जाते तो उनके आसपास भीड़ का रेला लग जाता था उनकी बातों के दीवाने घर के बच्चो से लेकर बूढ़े बुजुर्ग तक सभी थे . चच्चा अक्सर ही भ्रमण पे जाया करते थे थोड़ा घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के थे . वापस लौटकर आने पर बातों का भंडार रहता था .


चच्चा एक बार बता रहे थे की कैसे रास्ते मे उन्हे शेर मिल गया था , चच्चा उसे देखकर बिल्कुल भी नही डरे बल्कि शेर चच्चा को देखते ही उनके आगे नतमस्तक हो गया और पूरे जंगल मे उनके पीछे – पीछे घूमते रहा चच्चा उसे पालतू बनाकर घर ले आने लगे पर गाँव वाले उसे देखकर कही डर से मर ना जाये इसीलिये समाजहित मे उसे जंगल मे ही छोड़ आये . हम बच्चे जब तक छोटे थे तब तक चच्चा की कहानियो को सही मानते थे . जैसे की चच्चा बताते की उन्होने ही गब्बर सिंह को पकड के फिल्म शोले मे दिया था जिससे अमिताभ बच्चन उनका फैन हो गया था. अपनी जवानी मे वो सेना मे थे और उन्होने कैसे पाकिस्तान की नाक मे दम कर दिया था उनको देखते ही पाकिस्तानी डर के भाग खड़े होते थे .



चीनी तो उनको देखते ही हिन्दी बोलना शुरु कर देते थे . अमेरिका तक मे उनके चर्चे थे , एक बार हमने पूछ  ही दिया तब तो चच्चा इतिहास की किताबो मे आपका नाम जरूर होगा चच्चा बोले की वे नही चाहते थे की पाकिस्तानी और चीनी बच्चे उनके बारे मे पढ के पैंट गीला करदे भला इनमे बच्चो का क्या दोष . ऐसे लोगो की भी संख्या अधिक थी जिन्हे चच्चा और उनकी कहानियों पर पूर्ण निष्ठा थी . और वे चच्चा के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नही थे . चच्चा की फ्रेंड फालोविंग भी बड़ी लम्बी चौड़ी थी इसका करण था की चच्चा से बढिया मनोरंजन और मसाला फिल्मो के पास भी नही होता था .

और चच्चा की शैली मे लोगो को बांधे रखने की छ्मता थी वो वही सुनाते जो लोग सुनना चाहते थे , करना चाहते थे चाहे वो कल्पना मे ही क्यो ना हो . इधर गाँव मे प्रधानी के चुनावो की घोषणा हुई उधर चच्चा के चौपाल का दायरा बढ़ता गया . चच्चा को इस से बढिया मौका कहा मिलता अपनी काबिलयत दिखाने का सो वो भी चुनाव मे खड़े हो गये . चच्चा मे भीड़ जुटाने की काबिलियत तो थी ही सो उन्होने फिर अपनी बातो का मायाजाल फैलाना शुरु कर दिया , सबको लगा कुछ हो चाहे ना हो चच्चा का दिल नही दुखाना चाहिये नही तो बिना बिजली , सड़क के इस गाँव मे हमारा समय कैसे व्यतीत होगा औरतो को लगा की अगर चच्चा हार गये तो मर्द दिन रात घर मे पड़े उन्हे ही परेशन करते रहेंगे , बच्चो ने तो साफ – साफ कह दिया था की अगर उनके घर से चच्चा को वोट नही मिला तो वो भूख हड़ताल पे चले जायेंगे , तब – तब क्या चच्चा प्रधान हो गये . आज भी गाँव मे चच्चा के किस्सो के साथ चाय – पकौडो से ही लोगो का टाइम पास होता है .


इन्हे भी पढ़े - उफ्फ ये बेरोजगारी

Pappu paas ho gaya


पप्पू पास हो गया - pappu paas ho gaya 



मैं  और पप्पू बचपन से ही एक साथ स्कूल मे  साथ - साथ पढ़ते आये थे , शुरुआत मे जब पप्पू चौथी कक्षा का विद्यार्थी था  तभी मैने  विद्यालय मे दाखिला लिया था . मेरे चौथी कक्षा मे आने तक पप्पू ने मेरा इंतजार बड़ी बेसब्री से किया था . हालांकि पप्पू के एक दो सब्जेक्ट को छोड़ कर बाकी सबमे 0 नंबर ही थे . पर पप्पू हार मानने
pappu
pappu
वालो मे से नही था, हर बार कम नंबर आने के बाद वो कड़ी साधना मे जुट जाता था . पर  साधना करने के लिये उसे अपना घर उपुक्त नही लगता इसलिये वो अपने मामा के घर शिमला  या मौसी के पास  मसूरी चला जाता था. 

पप्पू जब लौट के वापस आता तो उसकी साधना उसके चेहरे से सॉफ झलकती थी , हाँ  तो मुझे याद है की जब मैं कक्षा चार मे पहुँचा तो सरकार की तरफ से एक नई शिक्षा नीति आ गई की आठवीं तक के किसी विद्यार्थी को फेल नही किया जायेगा, मैं बड़ा प्रसन्न हुआ , मुझे लगा की जरूर पप्पू की साधना का फल है जो भगवान के साथ सरकार ने भी सून ली .

अब तो में भी पप्पू का मुरीद हो गया और पप्पू के साथ अपनी घनिष्टता बढ़ा ली . पप्पू अपने लंच बॉक्स मे हमेशा मूली के परांठे और मिर्चे का आचार लाया करता था . वो कहता था की मिर्च से गला सॉफ होता है और मूली से पेट . अक्सर लंच के बाद पूरी कक्षा के विद्यार्थी अपने नाक पे रूमाल लगा लिया करते थे शायद कही से विषैली गैस का  रिसाव होने लगता .

आठवी कक्षा के बाद नौवी कक्षा मे अचानक से पप्पू के अंदर प्रवचन देने की प्रवित्ति उतपन्न हो गई मुझे लगा शायद मिर्चे ने पप्पू का गला कुछ ज्यादा ही सुरीला बना दिया था , कई बार क्लास की लड़कियां कन्फ्यूज हो जाती . पर पप्पू के प्रवचन मे आंकड़े अक्सर ही इधर से उधर हो जाया करते थे कभी अकबर  की रानी एलीजाबेथ हो जाती तो कभी पप्पू बाबर का युद्ध सम्राट अशोक से करा देता.

पर इन सबमे पप्पू का कोई दोष नही था सब गलती किताबो की ही थी जिनमे इतने रानी राजाओ का जिक्र था , इसी से खिसिया के एक बार तो पप्पू ने  किताब ही फाड़ दी  जबकि अगले दिन उसी विषय की परीक्षा थी .बेचारा पप्पू किताब की वजह से  फिर फेल हो गया और मैं पास होके अगली कक्षा मे पहुंच गया ,उसके बाद तो कभी - कभी ही पप्पू से मुलाकात हो पाती थी. पर पप्पू के चर्चे जरूर सुनने को मिलते थे , समय का पहिया चलते गया और  पढ़ाई पूरी करने के बाद  आम आदमी की तरह मैं भी  नौकरी मे लग गया. पर पप्पू ने उसी विद्यालय मे ही मन लगा लिया था .
इधर कुछ दिनो से पप्पू का ज़िक्र अचानक ही  बढ गया  था , कई लोगो ने बताया की पप्पू अपने अमेरिका वाले फूफा के यहाँ गया था वहा उन्होने अनेक विद्वान लोगो से उसकी मुलाकात कराई पप्पू से बहुत से प्रवचन दिलवाये जिससे पप्पू वहा अपना झंडा गाड़ के आया है. यहाँ आने पे पप्पू मे फिर से नई उर्जा झलकने लगी थी और इस बार पप्पू ने बिहार से फार्म भरकर हाइ स्कूल की  परीक्षा न केवल  पास कर ली  बल्कि पूरा बिहार ही  टॉप कर दिया . 
  
इन्हे भी पढ़े -  -  

इस माह की १० सबसे लोकप्रिय रचनायें

SPECIAL POST

uff ye berojgaari

उफ्फ ये बेरोजगारी  - uff ye berojgari  कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमें...