lndian boys


लौंडे 


भोजपुरिया क्षेत्र की समस्या बहुत ही निराली है या कह सकते है की अधिकांश भारतीय क्षेत्र की ।  लौंडे ज्यादा हो गए है और सड़के हो गई है कम , बेचारे अपनी रफ़्तार को कैसे नचा - नचा के  कंट्रोल  करते है, यह कला तो पूछनी ही पड़ेगी।  

ये माचो कट मगरमच्छी बाल  ...... साथ मे  तिकोनी , कोन वाली आइसक्रीम की तरह दाढ़ी  ...... मोबाईल के एप  तो रोज इंस्टाल और अनइंस्टॉल होते रहते है ।  पार्टी  , भाई गिरी  , सेल्फी  और  सेल्फी विवरण तो वाकई दिल दहलाने और  पढ़ने लायक होता है।  इसके  कुछ उदहारण इस प्रकार है -  छोटे भाई के साथ पैजामा ठीक करते हुए बड़े भाई का सानिध्य प्राप्त करने का अवसर मिला ,  आज बड़े भाई के घर पर उनकी माता की पुण्यतिथि में , पूज्यनीय और परम आदरणीय संभ्रांत बड़े भ्राता जी के साथ एक सेल्फी , आज गांव में चूहामार दवा का वितरण करते हुए , एक कप चाय की प्याली छोटे भाइयों के साथ।  इतना आदर तो अपने सगे भाइयो के लिए नहीं रहता है जितना  इन सेल्फी वाले भाइयो के लिए होता है। 


कुछ सवाल जो इनके क्रोध को बढ़ाते है।  

बेटा क्या कर रहे हो  ? 
सेमेस्टर या परीक्षा में कितने नम्बर आये थे  ?

lndianboysकल किन लफंगो के साथ घूम रहे थे  ?

अभी से स्मार्टफोन की क्या जरुरत है ?          
पढाई क्यों नहीं करते  ?
नौकरी क्यों नहीं करते ?

इससे ज्यादा सवालो को  बर्दाश्त करने की क्षमता इनमे नहीं होती , आगे सवाल पूछे जाने पर अपनी सलामती के जिम्मेदार आप स्वयं है। 

चौराहा संस्कृति  आजकल इनकी  पाठशाला का एक प्रमुख हिस्सा  है। पकौड़ो के ठेले , चाय की दूकान , पान की गुमटी पर इनकी राजनीतिक और सामाजिक समझ का नमूना आसानी से मिल जाता है। 

विभिन्न पार्टियों का झंडा पता नहीं कितने दिन और कितने दिनों का रोजगार  इन्हे सुलभ कराता रहेगा भगवान् ही मालिक है । कम समय में प्रसिद्धि पाने की चाह  में खुद ही बड़ी - बड़ी बाते छोड़ते हुए  बड़ा बनना , लो क्लास वाले लड़को का चश्मा और फैशनेबल कपड़ा पहनकर अमीर दिखना,  चेहरे से मुस्कराहट का गायब होना और अकड़ वाकई देखने लायक होती है। चाल  तो इनकी ऐसी की आप डर के कहीं दुबक जायेंगे, बाद में भले ही इनके बारे में जानने के बाद सीना चौड़ा करते हुए सामने आ जाये।  वैसे ये भी मानते है की फर्स्ट इम्प्रेसन इज लास्ट इम्प्रेसन।  लेकिन गलती से इनको कहीं छेड़ मत दीजियेगा  क्योंकि इनको झुण्ड में बदलते समय नहीं लगता। 

वैसे गजब का हौंसला  और धैर्य है इनके अभिभावकों का  एक बार  " कोटिश धन्यवाद " तो उनको बनता ही है की इतने जिम्मेदार और होनहार नौजवानो को इतने बेहतरीन ढंग से भारतीय संस्कृति और सामाजिकता का पाठ पढ़ाया है। अगर उन्होंने नहीं पढ़ाया तो कहीं ना कहीं पढ़ने तो भेजा ही होगा। 


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