धनतेरस , दीपावली और परिवार
धनतेरस की सुबह से ही भौजाई पूरे मूड में थी , घर के आँगन में जोर - जोर से उनके चिल्लाने की आवाज आ रही थी -
' बस अब बहुत हो गया इस रोज - रोज की किचकिच से तो अच्छा है की हम अलगे हो जाये , जब से इस घर में आएं है तब से सुख का एक्को दाना भी नहीं खाये है , कहा तो मायके में चार - चार लौड़ी लगी रहती थी और इंहा खुद लौड़ी बनना पड़ रहा है '
' एक तो हमरे मर्द की कमाई से पूरा घर चलता है ऊपर से छोटका से लेकर इस घर के बड़का तक इंहा सब रोआबे में रहते है. ........ अब बस बहुत हो गया अब हम अलग हुए बिना नहीं मानेंगे नहीं तो इसी आँगन में हमारी समाधी बनेगी और इस बरस की दीवाली सबको याद रहेगी ....... और आप भी कान खोल के सुन लीजिये ई सब जो आपसे लगाव दिखाते है। ... ई आपसे नहीं आपकी कमाई से लगाव रखते है ' .
क्या - क्या अरमान लेकर हम इस घर में आये थे। हमारे माँ - बाप भी इहे सोच कर बियाह किये थे की लड़का सरकारी नौकरी में है लड़की हमारी राज करेगी , पर इंहा तो कोई और ही राज कर रहा है
कान खोलकर सुन लीजिये आज बिना फैसला के हम नहीं मानने वाले
आपको तो पति कहने में भी शर्म लगता है जो अपनी पत्नी को सुखी नहीं रख सकता
बेचारे सास और ससुर अपने कमरे में एक दुसरे के चेहरे को देखते हुए बहु की बाते सुन रहे थे किसी तरह की गलती ना होते हुए भी उन्हें अपने आप पर ग्लानि हो रही थी की आखिर कहाँ उनके फर्ज में कमी रह गई की हालात यहाँ तक बिगड़ गए। उन्होंने तो सदैव बहु को बेटी की तरह ही समझा था भरसक कोशिश की थी की कभी उसे अपने मायके की याद ना आये। बूढी और मधुमेह की रोगी सास भी बहु के बीमार रहने पर उसकी तीमारदारी में दिन रात एक कर दिया करती थी ।
मायके वाले तो बस मोबाईल का झुनझुना बजाकर समाचार ले लिया करते थे। फोन पर सहानुभूति के साथ विमर्श तो ऐसे दिया करते थे जैसे उनके फोन के बिना उनकी बिटिया की बिमारी ना छूटती । सढ़ूआने से लेकर मौसिआने तक चाची , बुआ , भाभी और चचेरी बहनो के फोन की बाढ़ आ जाती थी लेकिन साल बीतने पर भी चौखट पर कोई पधारे ऐसा कभी न हुआ , हां इनसे (भाभी ) जरूर अपेक्षा रखी जाती थी।
पति बेचारा अपने संस्कारो और रिश्तो के बीच एक झूले की तरह झूल रहा था। गुलमोहर की तरह खिला रहने वाला चेहरा आज छुईमुई की याद दिला रहा था। सबसे ज्यादा फ़िक्र तो उसे पड़ोसियों की थी जो दिन रात उसकी चौखट पर कान लगाए रहते थे। आज अगर एक आवाज भी घर के बाहर गई तो पुरे मोहल्ले को मिर्च मसाला लगाने का मौका मिल जायेगा। कल ही मिश्राइन आंटी कह रही थी की
' भई पूरा मुहल्ला आप के बेटे और बहु की तारीफ़ करता है , कैसे आते ही उसने पूरे परिवार को संभाल लिया। आजकल ऐसी बहुए मिलती कहाँ है मुझे तो जलन होती है आपके राम जैसे बेटे और सीता जैसी बहु को देखकर '.
वही मिश्राइन आंटी आज इस घर की बहु का नागिन रूप देखकर क्या कहेंगी।
तिवराइन आंटी तो नारद मुनि का स्त्री संस्करण है जैसे नारद मुनि तीनो लोक में अपने पेट की बात उगिल कर आते थे वैसे ही तिवराइन आंटी अगल - बगल के तीनो मुहल्ले में कथा बाच आती है , ऊपर से आज तो धनतेरस है एक ही स्थान पर रायता फ़ैलाने के लिए उन्हें पूरा समूह मिल जायेगा और दिवाली के पटाखे की तो जरुरत ही नहीं पड़ेगी जब इतना बड़ा बम उनके पास होगा तो, मोहल्ले के हर घर में एक - एक बम गिराती जाएँगी और तबाही मचेगी हमारे घर में।
देवर अपने तेवर को ठंडा करके एक कोने में बैठा हुआ था। कहीं भैया भौजी का पूरा फ्रस्टेशन उसपे ना निकाल दे। अगर भैया अलग हो गए तो ? वो तो कहीं ना कहीं नौकरी करके अपना पेट पाल लेगा लेकिन माँ बाउ जी का क्या ? जिन्होंने अपने जिंदगी की पूरी पूंजी इस घर को बनवाने में और भैया को पढ़ाने में इस उम्मीद से लगा दी की वही तो उनके बुढ़ापे का सहारा है। नहीं तो प्राइवेट नौकरी में इतना पैसा कहा की कुछ अपने लिए बचा के रख सके उनके जीवन भर की पूंजी तो हम दोनों भाई ही है।
बहन दो दिन पहले ही ससुराल से आई थी। उसे पता था की भाभी बड़े घर की लड़की है थोड़ा भाव - ताव है लेकिन भैया पर उसे पूरा भरोसा था। लेकिन अगर भैया ने भाभी की बात मान ली तो ? आखिर वो भी तो उनकी धर्मपत्नी ही है । आखिर कब तक भैया हम सबके लिए अपना निजी सुख चैन त्यागते फिरेंगे ? अगर भैया अलग हो गए तो राखी के दिन वो किस भाई के घर पहले जाएगी ?
ससुर बेचारे धर्म संकट में फंसे हुए थे एक तरफ पुत्र मोह था तो दूसरी तरफ उसी पुत्र के गृहस्थी की चिंता। एक तरफ उनकी जिंदगी भर की कमाई हुए इज्जत थी तो दूसरे तरफ उनके बुढ़ापे की लाठी।
त्यौहार को देखते हुए सर्वसम्मति से फैसला हुआ की त्यौहार के बाद भैया बगल के जिले में जहाँ उनका ससुराल भी है तबादला कराकर भाभी के साथ प्रस्थान करेंगे जिससे घर की इज्जत भी सलामत रहेगी और मुहल्ले से लेकर रिश्तेदारों के मुख भी दीवाली की मिठाई खाने के अलावा किसी अन्य कार्य हेतु नहीं खुलेंगे।
फैसले के बाद कुछ छणो तक पुरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था , सिवाय भाभी के कमरे के।
भाभी के कमरे से सुरीले स्वर में गुनगुनाने की आवाज आ रही थी।
कौन तुझे यूँ प्यार करेगा........ जैसे मैं करती हूँ ........
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