discussion

बहस 


टीटी  - टिकट दिखाइए प्लीज। 

ऊपर की बर्थ  पर सोये हुए आदमी को जगाते हुए टीटी कहता है।  इसके साथ ही अन्य लोग बिना कहे ही अपने - अपने टिकटों को ऐसे ढूंढते है जैसे दो हजार की गड्डी छिपाकर रखी हो। 

गुवाहाटी से जम्मू जाने वाली ट्रेन में आज भीड़ कुछ ज्यादा ही थी।  कारण छठ की छुट्टियों के बाद लोगो की वापसी का सिलसिला जारी था। 

ट्रेन के अंदर चर्चाओ का बाजार राजनीति के प्रोडक्ट पर कुछ ज्यादा ही गर्म हो चुका था।  नीचे की सीट पर बैठे चार सज्जन अपने - अपने विचारो के साथ जंग जीतने की पूरी कोशिश कर रहे थे। 

मूंछ वाले एक भाई साहब देश में एक बार फिर वर्तमान सरकार चाहते थे  जबकि उनके सामने बैठे सज्जन जो की खैनी ठोकने के साथ ही चर्चा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे सरकार के  नोटबंदी  वाले फैसले से काफी दुखी थे और चाहते थे की इस बार विपक्षी दल की सरकार  बने।  हालांकि उनकी खैनी से दिक्कत तो सबको थी लेकिन विषय की महत्ता को देखते हुए  सब अनदेखा कर रहे थे। 

मूंछ वाले भाई साहब  - देखिये मैं आपसे कह देता हूँ  वर्तमान सरकार से ईमानदार सरकार आज तक देश में नहीं आई है। 

दूसरा व्यक्ति - ऐसा ना कहिये सरकार अपने किये कई वादों में असफल भी रही है। 

तीसरा -  आप ही बताइये इतने बड़े मुल्क की समस्या क्या कुछ सालो में हल की जा सकती है। कम से कम सरकार सही राह पर तो चल रही है पूर्वर्ती सरकारों की तरह देश को लूटा तो नहीं जा रहा है । 

खैनी वाले भाई साहब - 'ऐसा ना कहे ' सरकार जब सत्ता से हटती है तब उनकी पोल खुलती है।  बैंको में लाइन लगवा दिया , कई लोगो के ब्लड प्रेशर बढ़ गए और कई लोग ऊपर की ओर  रास्ता नाप लिए। 

मूंछ वाले - अरे तो जिनमे सामर्थ्य नहीं थी वे फिर लाइनों में लगे ही क्यों ?  उसके बाद के चुनावों में फिर जनता ने सरकार का समर्थन क्यों किया ? सब विपक्ष की चाल है वह सत्ता से ज्यादा दूरी बनाकर नहीं रह सकता। उसे बिना घोटालो के घोटाला दिखता है। 

दूसरा व्यक्ति  - परन्तु आजादी के बाद से हुआ विकास आपको नहीं दिखता।  कम्प्यूटर से लेकर शिक्षा संस्थान तक सब पूर्वर्ती सरकार की ही  तो देन है। 

मूंछ वाले भाई साहब   -  हां दिखता है , जातियों में जाति इतने सालो से बढ़ती गई वो दिखता है , अन्य देश कहा से कहा पहुँच गए और हम अभी प्राइमरी की पाठशाला तक नहीं पास कर सके। आईआईटी बने लेकिन उच्च कोटि के मानव जो बना सके ऐसे संस्थान क्यों नहीं बनाई आपकी सरकारों ने । गरीब तब भी थे गरीब अब भी है  शोषित तब भी थे शोषित  अब भी  है । 

कुछ देर सन्नाटे के बाद

खैनी वाले भाई साहब  -  सही कहा आपने भाई साहब  लड़ते तो हम है आपस में , वे तो परदे के पीछे हम पे हँसते है।  लाइन में तो हम लगते है , भरी गर्मी में पूरे  - पूरे  दिन बिजली गुल होने का दंश तो हमने झेला है। सब्जी महँगी हुई तो बाजार पैदल ही चल दिए , पेट्रोल महंगा हुआ तो ऑफिस बस से जाने लगे , कर्फ्यू लगा तो घरो में कैद हो गए  , सीमा पर हमने अपने बेटो की कुर्बानी दी , दंगो में हमारे भाई मारे गए। फिर भी हमे समझ नहीं आई की सब सत्ता का खेल है। 

दूसरा व्यक्ति - उनकी कोठियों की कीमते बढ़ते गई , हमारी ही जमीने हमसे ले ली गई , वे कहते है मुआवजा तो अच्छा दे रहे है , अब आप ही बताइये कौन अपनी माँ को बेचकर मुआवजा चाहेगा। 
बात बात पर कहते है की पकिस्तान को करारा जवाब देंगे।  कब देंगे ?, और इनके जवाब होते कैसे है जो नापाक को समझ में नहीं आता।  पूछिए उस माँ से जिसने अपने बुढ़ापे की लाठी खोई है , पूछिए उस लड़की से जिसका सुहाग चंद दिनों में ही उजड़ गया। कहते है करारा जवाब देंगे  ..... ...... .... ..  

ट्रेन पूरे रफ़्तार में थी और उसके अंदर चलने वाली बहस भी। 




  

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