politics of religion



धर्म की राजनीति 







यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥


भगवन श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है की जब जब धर्म की हानि होगी तब तब मैं धरती पर दुष्टो का संहार करने के लिए जन्म लेता रहूँगा। 

भारत के वर्तमान राजनीति परिदृश्य में आप धर्म और राजनीति को अलग करके नहीं देख सकते।  पहले धर्म सिर्फ उपासना का माध्यम हुआ करती थी परन्तु समय के साथ भारतीय इतिहास काल के मध्य से धर्म की राजनीति होने लगी , धर्म का प्रसार और धर्म की रक्षा ही प्रमुख मुद्दे रहे। 

अगर आपको किसी धर्म से लोगो की मानसिकता हटानी है तब आप उस धर्म के मूल पर प्रहार कर सकते है।  कांग्रेस ने अपने शासन काल में हिन्दुस्तान के प्रमुख हिन्दू धर्म के मूल पर प्रहार करना शुरू किया।  किस देश का शासक अपने राज्य के धर्म को कमजोर करता है ? यदि वह उस धर्म को नहीं मानता तभी ऐसा संभव है। 



राम सेतु 


कांग्रेस ने रामसेतु  को मानने से इंकार किया , उस राम सेतु को जिसकी प्रमाणिकता अंतरिक्ष से भी देखी जा सकती है। जिसके साथ ही रामायण के पात्रो पर संदेह नहीं किया जा सकता ,परन्तु कांग्रेस काल में उनपर भी संदेह किया गया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम खुद अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिया न्यायालय पहुंचे। 

हिन्दू धर्म के प्रमुख रंग को ही संदेह की दृष्टि दी गई और उसके लिए एक नए शब्द का अविष्कार कांग्रेस ने कर डाला भगवा आतंकवाद  इसके साथ ही निर्दोष हिन्दुओ को झूठे मुकदमो में फंसाकर जेल में डालने का कार्य शुरू हुआ ताकि इस शब्द की परिभाषा के साथ इसकी प्रयोगात्मक स्थिति को स्पष्ट किया जा सके। 

भगवान् राम के जिस मंदिर पर मुग़ल आक्रमणकारी बाबर ने मस्जिद का निर्माण करवाया था।  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में पुष्टि होने के बाद भी कांग्रेस ने इस सन्दर्भ में कोई कदम नहीं उठाया। 

हिन्दू और हिन्दू धर्म एक मानवतावादी धर्म रहा है इसने कभी किसी का विरोध नहीं किया।  परन्तु एक बहुसंख्य आबादी वाले धर्म को कांग्रेस द्वारा परदे के पीछे से उत्पीड़ित करने के बाद इस आबादी ने नए सिरे से विचार करना प्रारम्भ किया तथा  स्प्रिंग के सामान दबाये जाने के बाद इस बहुसंख्य आबादी ने धर्म की रक्षा हेतु छलांग लगाना शुरू किया और एक हिंदूवादी पार्टी भाजपा को इस देश की कमान सौंपी। 

समय के साथ ही केंद्र में स्थापित बीजेपी सरकार ने हिन्दू हितो को सुरक्षित किया जिससे हिन्दुओ की आस्था पार्टी के साथ बढ़ी। 

जाति की राजनीति से ऊपर उठकर शुरू हुई इस धर्म की राजनीति में कांग्रेस मौके की नजाकत को समझते हुए अपने ऊपर लगे धब्बे को छुड़ाने हेतु चोला बदलने के प्रयास में लग गई और इसके मुखिया कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर बैठे। इसके साथ ही मध्यप्रदेश के चुनावी पोस्टरों में शिव भक्त के रूप में देखे गए। भक्ति के नए नए आयामों द्वारा कांग्रेस को भी हिंदूवादी पार्टी बताने के प्रयास जारी है। आगामी चुनावों में भागवान के इस नए भक्त और उसकी पार्टी की कड़ी परीक्षा होने वाली  है। 

2019 के चुनावों में गर्माते राम मंदिर के मुद्दे के साथ ही एक बार फिर धर्म की राजनीति होने की संभावना है। जहाँ विजय श्री उसी को मिलनेवाली है जो राम और काम दोनों में स्वयं को सिद्ध कर सके। 







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