mandir and ram



मंदिर और राम 



mandir and ram

रामलला  मंदिर  में कब बैठेंगे, वो भी ना जाने
पूछ रहे है हम से अब वे 
बोलो किसको हितैषी माने

है बारिश में चूता  त्रिपाल
देखके रोये है महाकाल
लक्ष्मण दुखी देख भाई का हाल
बीत गए ना जाने कितने साल  

सीता बोली सर पे जब छत नहीं
जीता लंका पर कौनो गत के नहीं
बोलो भरी गर्मी में क्या ,लू  को सह  पाओगे
तब भटके थे वन - वन  में इधर - उधर
इस कलियुग में भी क्या, अच्छे दिन ना दिखलाओगे

थे  वे भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम
बोले बात नहीं ये आम
रावण के दस मुख थे बाहर
अंदर यहाँ सबके लालच के जाम
कुछ  धैर्य  धरो  देखो इस जग को
अभी कितना मुझे सतायेंगे
पूछो तो कहते है अब  ये , रामलला हम आएंगे

मुझसे चलता ये जग सारा , फिर भी फिरू मारा - मारा
तकदीर ऐसी खुद ही  लिखवाई है
ठंडी शुरू हुई सीते  ,देखो घर में कहीं रजाई है
ब्रम्हा जी तो बोल रहे थे , कलियुग में प्रभु बस पत्थर की मूरत है
अयोध्या को  राम की नहीं, राजनीति की जरुरत है


तुम रक्षक पर रक्षा को तुम्हारी
पूरी मानव की फौज खड़ी
जय - जय - जय बजरंग बलि
अब ना तोड़ोगे दुश्मन की नली
लंका नहीं जो आग लगा दो
गोवर्धन को तुम हिला दो
कलियुग के सब रावण सारे 
अपनी पूंछ बचाओ प्यारे 

मंदिर - मंदिर , भक्त कहे 
मन के मंदिर में बस छल रहे 
है प्रपंच ये बड़ा निराला 
मंदिर बनवाने चले है आला 
खुद राजा खुद ही फरियादी 
हँसे भगवन, हुए अब आदि 

अपना छत सारा आकाश 
सरयु  से बुझती अब प्यास 
मंदिर की अब  किनसे  आस 
मंदिर  जब  सत्ता की साँस 

ना बने तो मत बनवाओ 
नाम पे मेरे  मत रबड़ी  खावो 
है आना तुमको मेरे पास  
पूछूंगा तुमसे, क्यों की इतनी बकवास 

दुखी भाव से रायजी, अब तो बस ये कह चले 
ना हो हिंसा उनके नाम पे , मर्यादा में ये जग चले



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