जब पोते ने राम बोला, क्या आदिपुरुष के मेकर्स समझेंगे यह

घर के मंदिर में भगवान श्रीराम की भक्ति भाव से भरे दादा जी ने श्री रामचरितमानस खोलते हुए अपने ७ साल के पोते से पूछा, '' पोते, बताओ तो तुलसी दास जी के बचपन का नाम क्या था ?''

नित प्रतिदिन दादा जी के आस-पास प्रसाद में चढ़ने वाले किस्म-किस्म के भोग की लालसा में मंडरा रहे पोते ने खुद श्री रामचरितमानस भले ही न पढ़ी हो, लेकिन बुक स्टैंड पर रखी श्री रामचरितमानस के रचयिता के विषय और इस दुनिया के सबसे लोकप्रिय और सदियों से करोड़ों लोगों की आस्था को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करती इस महाकाव्य को लिखने के पीछे उन्हें मिली प्रेरणा की कहानी अक्सर ही वह अपने दादा के मुख से सुनता आया था।
उसकी बाल स्मृति में हर साल दशहरे पर भगवान श्रीराम के एक धनुष से विशालकाय रावण के पुतले का किसी शानदार आतिशबाजी में तब्दील हो जाना था तो उसे घर के बड़े-बुजुर्गों द्वारा दीपावली पर घर-मुहल्ले का दीपों और लड़ियों से रोशन होने के पीछे की वजह भी पता थी।

आखिर पोते ने बता ही डाला

''रामबोला, यही नाम था न दादा जी उनका, क्योंकि उन्होंने पैदा होते ही भगवान श्रीराम का नाम लिया था,'' अपने 75 साल के दादा जी की तरफ विजयी भाव से पोते ने जब जवाब दिया तो दादा भी यह सोचकर मुस्कुरा बैठे कि जिस लोक व्यवहार और आस्था के बीज का अंकुरण उनके दादा जी करके गए थे आज उसके लिए उन्होंने भी नई जमीन तैयार कर ली है. वे भी एक ऐसी विरासत अपनी आने वाली पीढ़ी को देकर जाएंगे जो उसके जीवन के तमाम उतार चढ़ाव में उसका सहारा बनेगी।

रामानंद सागर के राम 


छोटे पर्दे पर रामानंद सागर कृत रामायण ने सदियों से चली आ रही उसी आस्था को सदृश्य रूप से उतारा था. उसके एक-एक किरदार को लोग सच मान बैठे थे. अभिनय करने वाले खुद राम रस में ऐसे डूबे की किसी ने आजीवन शाकाहार अपना लिया तो कोई आध्यात्म जगत में पूरी तरह उतर आया. जिसने भी श्री रामचरितमानस पढ़ी थी उन्होंने रामायण सीरियल में पूर्ण रूप से उसे सजीव होते देखा। धारावाहिक के प्रसारण काल में बिजली विभाग की हिम्मत नहीं होती की वह चंद सेकेंड के लिए भी विद्युत की कटौती कर सके. प्रसारण काल में जहाँ सड़कों पर सन्नाटा छा जाता तो मुहल्ले में किसी एक घर में टेलीविजन होने पर किसी सिनेमाहाल सा अहसास होता। उस वक्त की जीवटता केवल उस दौर के लोग ही समझ सकते हैं. बाकी भगवान् श्रीराम तो छोड़िये मात्र रामानंद कृत धारावाहिक 'रामायण' की आस्था से जुड़े इतने रोचक प्रसंग हैं की उनपर कई किताबें लिखी जा सकती हैं.

वहीं आज आदिपुरुष जैसी फिल्म के निर्माण के पीछे नई पीढ़ी को किस दिशा में ले जाने की कोशिश की जा रही थी वह समझ से परे है. लेखक, निर्माता और निर्देशक भले ही फिल्म निर्माण में नई तकनीक का उपयोग कर लें, लेकिन आस्था के साथ किसी भी तरह के प्रयोग से दूर रहें, वर्ना बाद में उनकी लंका लगना तय है.

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