नारी व्यथा - गंभीर समस्या naari wyatha ek gambhir samasya
"अजी सुनते हो " - शब्द कानो में पड़ते ही दिमाग में हलचल होने लगती है की पता नहीं अब कौन सी मुसीबत आने वाली है। वैसी ही अनुभूति " ब्रेकिंग न्यूज़" सुनते समय होती है।
शादी के कुछ समय बाद कानो को ये नया स्वर सुहाना जरूर लगता है परन्तु कुछ समय व्यतीत हो जाने के बाद आने वाले खतरे की आशंका से मन ग्रसित हो उठता है. अभी कुछ दिन पहले ही पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष जी से हुई बातचीत में उन्होंने विषय से सम्बंधित गंभीरता का विस्तार से वर्णन किया था वे बताने लगे की कैसे - कैसे लोग अपनी समस्या लेकर उनके पास आते है , उनमे इसका कोई फर्क नहीं पड़ता की वे किस ओहदे पर है घर पर वे सभी एक नितांत भय के वातावरण में जीवन व्यतीत कर रहे है। अभी कल ही एक प्रख्यात चिकित्सक अपनी समस्या लेकर आये थे की उनकी धर्मपत्नी जो की चिकित्सक नहीं है इतनी शंकालु प्रवृत्ति की महिला है जो की सदैव उनके साथ चिपकी रहती है यहाँ तक की रोगियों को देखते वक़्त भी उनके बगल में कुर्सी पर विराजमान रहती है इस कारण चिकित्सक महोदय की खिल्ली उड़नी लाजमी है . मैंने भी अध्यक्ष जी की चुटकी ली की उनमे इस तरह का संघ बनाने की हिम्मत तभी आई जब वे कुंवारे है वर्ना एक शादीशुदा पुरुष के ख्यालो में भी इस तरह के विचार नहीं आ सकते। मुझे चिकित्सक महोदय की धर्मपत्नी की तरह ही उन समाचार चैनलों का ध्यान आया जो अक्सर ही सेलिब्रिटीयो की निजी ज़िन्दगी में तांका - झांकि करते है।
मेरे बगल के शर्मा जी उपजिलाधिकारी के पद पर आसीन है परन्तु घर में प्रवेश से पूर्व मेरे यंहा आकर इस बात की जानकारी अवश्य लेते है की आज उनकी श्रीमती जी की मनोदशा कैसी है। उसके पश्चात पूरी तैयारी के साथ घर में प्रवेश करते है। अभी कल ही उनका शाम का भोजन मेरे ही घर पर हुआ था कारण जो उन्होंने बताया उसको सार्वजनिक करने में लोगो का प्रशासन पर से विश्वास उठ सकता है।
घर में यदि आपकी धर्मपत्नी की सास है तब तो आपके लिए कुछ आस है क्योंकि युद्ध के मैदान में शत्रु का ध्यान दोनों ही तरफ लगा रहता है। अगर किसी के पूर्वजन्मों में किये गए पुण्यस्वरूप एक सुशील धर्मपत्नी मिलती है तो उनसे अनुरोध है की घर में टेलीविजन का प्रवेश वर्जित करदे नहीं तो पूर्वजन्मों का पुण्य कब टेलीविजन की धारा में प्रवाहित हो जायेगा आप की सोच से परे है।
जबसे टेलीविजन के विभिन्न चैनलों पर सास - बहु प्रकार के धारावाहिको की टीआरपी में बढ़ोत्तरी हुई है तबसे आम आदमी के घर की सुख शांति में बेतहाशा गिरावट दर्ज की गई है , क्योंकि सास भी कभी बहु थी जैसे धारावाहिको ने बहुओ के अंदर सास बनने की ऐसी जिज्ञासा जगाई की देखके लगता नहीं की कौन सास है और कौन बहु। जितना छल - प्रपंच इन धारावाहिको में दिखाया जाता है उसकी कल्पना कभी आम आदमी भी नहीं कर सकता , परन्तु हमारे और आपके घर की गृहणियों के लघु मन मष्तिस्क में संदेह रूपी ज्वार - भाटा अवश्य ही उठ जाता है जो की समुन्द्र मंथन के बाद ही शांत होता है जिसमे विष का प्याला शंकर जी की ही तरह हमेशा ही हमें गटकना पड़ता है।
निश्चित रूप से इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की वर्तमान समय में ये समस्या एक गंभीर रूप धारण करते जा रही है , महिला - मित्र से जब इसका रूपांतरण पत्नी में होता है तो इस समस्या की गंभीरता का पता चलता है। अनेक शोधार्थियों द्वारा इस क्षेत्र में शोधकार्य जारी है परन्तु अभी तक किसी भी नारी के मष्तिस्क का १/१० से ज्यादा हिस्सा नहीं पढ़ा जा सका है . सरकार से अनुरोध है की देश की अन्य समस्याओ की तरफ इस पर भी ध्यान दिया जाये। जिससे की प्रत्येक कार्यकारी पुरुष बिना भय और दुखी मन के अपने कार्य में अपनी क्षमता का १०० प्रतिशत योगदान दे सके जिससे देश के विकास का पहिया तेजी से आगे बढ़ते हुए संसार के अन्य देशो को पीछे छोड़ सके।
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