गिरगिट की बेचैनी -girgit ki bachaini
मेर घर के छोटे से बगीचे मे पौधो के बीच अनेक गिरगिट है जो की पानी देते वक़्त या पौधे के पास जाने पर अचानक से प्रकट होते है तथा मुझे देखके भागने लगते है पौधो के बीच वे रंग बदलकर उन्ही मे घुलमिल जाते है .कल शाम को पौधो मे पानी देते वक़्त अचानक से एक गिरगिट बाहर निकल कर आया तथा भागने की बजाय मुझे देखने लगा वह कुछ व्यथित सा नजर आ रहा था , इतने दिन मेरे घर मे रहते हुए उसे पता चल गया था की मैं एक लेखक हूँ .इसलिये भागने की बजाय वो मुझसे कई सारे सवाल पूछने लगा .
उसका पहला प्रश्न अपनी पहचान को लेकर था उसको लग रहा था की जिस पहचान के कारण उसकी नस्ल संसार भर मे प्रसिद्ध है उसको उससे छीनने का प्रयास किया जा रहा है .
मैने अन्जान बनकर जानना चाहा की कौन उसकी पहचान छीन रहा है . वो भी बड़ा चतुर था उसने मेरी तरफ इशारा कर दिया .
मैने पूछा में उसकी पहचान कैसे छीन रहा हूँ .
अब वो गंभीर मुद्रा मे आ गया - बोला तुम कौन हो
अचानक ही मेरे मुंह से निकल गया आम आदमी
गिरगिट - इसी आम आदमी का उदाहरण दे दे कर तुम्हारे जैसा एक इंसान आज खास आदमी बन गया .
न जाने कितने रंग बदले उसने पिछ्ले ही दिनो पढ़ा था उसने एक नया रंग खोज निकाला जिससे कीचड़ भी सॉफ हो जाता है .
क्या नाम था उसका ........ हाँ माफीनामा , न जाने कितनो पे कीचड़ उछालने के बाद उसने इसका इस्तेमाल किया .
मैने भी उससे पूछ ही दिया - पर किसी से माफी मांगने मे क्या बुराई है .
गिरगिट - लो कर लो बात ऐसे तो हर कोई एक दूसरे पे कीचड़ उछालता रहे और तुम लोगो के चारो ओर दलदल ही दलदल हो जाये . क्या फिर तुम उसे माफीनामा से साफ कर पाओगे . बिल्कुल नही उसकी कीमत तो तुम्हे चुकानी पड़ेगी . कीचड़ उछालने से तुम्हारे हाथ भी गन्दे होंगे और सामने वाला भी तुम्हारी कुटाई को तैयार रहेगा . फिर चाहे कितना भी माफीनामा से सॉफ करते रहो ना तुम्हारा मैल सॉफ होगा ना उसका .
वो धीरे - धीरे अब अपने प्रमुख मुद्दे की ओर अग्रसर होने लगा था.
गिरगिट - जबसे तुम आम आदमी राजनीति मे आ जाते हो पता नही ऐसा क्या हो जाता है की लोग तुम्हारी कसमो , वादो पर भी ऐतबार नही करते . कभी तुम केसरिया रंग लेकर किसी इलाके मे मांसाहार का विरोध करते हो. तो कभी किसी इलाके मे चुनाव जीतने के लिये उसे भी जायज ठहराते हो . यार इतनी तेजी से तो हम रंग नही बदल पाते जितनी तेजी से तुम लोगो की पार्टिया बदलवाते हो . अभी तक तुम्हारे नाम फेंकू , पप्पू , जैसी कम उपाधिया थी जो अब हमसे हमारी पहचान छीनने मे लगे हो .
हमारे रंग बदलने से तो किसी का नुकसान नही होता पर तुम्हारे रंग बदलने से कितने लोगो की उम्मीदे टूटती है कुछ अंदाजा भी है तुम्हे , उस जनता के साथ - साथ तुम मानवता के साथ भी विश्वासघात करते हो .
इतने रंग बदलते हो की तुम्हारा कोई रंग ही नही रह जाता . कुछ दिनो मे मुहावरो मे से हमारा नाम हटाकर लोग कहेंगे क्या नेताओ की तरह रंग बदल रहे हो . और हम एक विलुप्त प्राणी बनकर रह जायेंगे.
अब में उसे कैसे समझाता जिस देश मे नेताओ द्वारा धर्म , रंग , शाकाहार - मांसाहार , वंदे मातरम , राष्ट्र - गान , तिरंगे तक का कापीराइट अपनी पार्टी के नाम करा लिया जाता है वहां ये तो बहुत ही तुच्छ जीव है जिसने अगर ज्यादा विरोध किया तो उसका अस्तित्व ही संकट मे पड़ सकता है .
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