चेतना (कविता )- chetna (poetry )
तू खड़ा है जहाँ है देख वहां
क्या जमीं है नीचे की आसमां है ऊपर
तू है कहा जरा तू पता लगा
तू सचेत नहीं तो अचेत क्यों
है चेतना कहा जरा ढूंढ के ला
भाग रहा जो ये वक़्त है
कहता खुद को सशक्त है
है धूल तू इसे चटा
कदम तू अब बढ़ा
सोच मत एक क्षण भी तू
मिल जायेगा एक दिन उस कण में तू
आँधिया है आ रही रोकने को तुझे
चट्टान बन तू अब रोकने को उन्हें
तू अंश है भगवान् का
महान तू बन के दिखा
छाया है अँधेरा इस संसार में
हर तरफ मशाल तू जला
कदम तू अब बढ़ा। . . . . . . . . . . . . .
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