बीजेपी की राजनीति की नाव मे जनता द्वारा छेद bjp ki raajneeti ki naw me janta dwara chhed
बीजेपी की मौजूदा हार को अगर कोई मामूली हार समझता है तो वो बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार है . हार से पहले कम से कम इन दोनो लोकसभा के महत्व को समझना जरूरी है , एक फूलपुर लोकसभा से त्यागपत्र देकर उप मुख्यमंत्री बनने वाले केशव प्रसाद मौर्य और दूसरे लोकसभा से सांसद और प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ का संसदीय क्षेत्र गोरखपुर .
सबसे तेज़ झटका जिस संसदीय क्षेत्र का है वो है गोरखपुर , गोरखपुर एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहा की जनता योगी के सिवा किसी और के बारे मे सोच भी नही सकती जहां हर चुनावो मे योगी की जीत का प्रतिशत बढ़ता ही जाता था , ये वही गोरखपुर हैं जिसके दम पे योगी अपनी राजनीति की हुंकार भरते है , हार की बात तो सपने मे भी नही आती और जिस जातीय समीकरण की बात कही जा रही है वो इतनो दिनो तक योगी की जीत मे कही देखने को नही मिली फिर अचानक से ऐसा क्या हो गया जिससे की पूरी जमीन ही खिसक गई और योगी धड़ाम से गिर पड़े .
दरअसल बीजेपी की हार पहले से ही तय थी , क्योंकि देर ही सही पर जनता को वर्तमान बीजेपी सरकार की कथनी और करनी मे फर्क समझ मे आने लगा है गली - चौराहे पे आम जनता की बातो मे बीजेपी को लेकर वैसा ही गुस्सा शुरु हो चुका है जैसा कांग्रेस के अंतिम दिनो मे हुआ करता था बस मुद्दे को लेकर फर्क है कांग्रेस के समय जो सबसे प्रभावी मुद्दा था वो था भ्रष्टाचार और इस समय जुमलेबाजी .
कहते है ये पब्लिक है सब जानती है , पर कभी काल कुछ समय के लिये इसे भी अपनी अदाकारी और राजनीति के नये तरीको से से भ्रमित किया जा सकता है पर कोई भी राजनेता इस भ्रम मे ना रहे की जनता का भ्रम अधिक दिनो तक बरकरार रखा जा सकता है और अपनी सत्ता चलाई जा सकती है .योगी भी अपनी स्वभाविक राजनीति जिसके लिये वी गोरखपुर मे जाने जाते है को छोड़कर भाजपा के उसी ढर्रे पे चल निकले जिसपे केन्द्र सरकार चल र्ही है .
वर्तमान समय मे केन्द्र की नीतियो से जनता त्रस्त आ चुकी है भले ही सरकार इसे लेकर कोई भी तर्क दे दे लेकिन सरकार आधार , गाय , हिन्दू - मुस्लिम , दंगे , भगवा , वंदे मातरम , बैंक मे खाता खुलवाने से लेकर टैक्स लगाने और जुमले बाजी से आगे नही बढ सकी . योगी भी मोदी की तरह ही विकास की बात करते - करते एक साल निकाल चुके थे , यहाँ तक की गोरखपुर की जनता की जो अपेक्षाये थी उनको पूरा करना तो दूर उनपर कभी ध्यान भी नही दिया ,पहले विपक्ष मे रहने के नाते जनता इसको अनदेखा करती रही और उन्हे वोट देती रही .
लेकिन इस बार वे खुद तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचे और जनता बस इंतजार करती रही विकास का , लेकिन एक साल के इंतजार मे उसे समझ मे आ गया की केन्द्र और राज्य सरकार बस अच्छी बातें कर सकती है , लेकिन काम मे इनका मन नही लगता और धीरे - धीरे आक्रोश बढ़ता गया और उसका विस्फोट हुआ इन उप चुनावो मे .
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