अध्यात्म और ज्ञान योग adhyatm aur gyan yog -
ज्ञानयोग सांसारिक माया और उसके भ्रम को समझने की उच्च अवस्था है। वास्तव में हमारे ध्यान , ज्ञान और वास्तविकता को समझने की चेतन अवस्था जिसमे हम सांसारिक दृश्यों और भौतिक अवस्था की सत्यता का चेतन मन से अवलोकन करते है ज्ञान योग कहलाता है।
ऐसा ज्ञान स्वयं के माध्यम से अर्जित किया जाता है इसके लिए भौतिकता के आवेश को स्वयं से दूर रखना आवश्यक है। माया ज्ञान योग के वास्तविक स्वरुप को समझने में बाधक है।
ज्ञान योग की पहली अवस्था गूढ़ अध्ययन की अवस्था होती है इसमें पुस्तकों यथा धार्मिक ग्रंथो का अध्ययन किया जाता है . अवस्था चिंतन और मनन की अवस्था होती है और अंत में ध्यान द्वारा आत्मा को सांसारिक तत्वों से अलग करना होता है।
ध्यान योग में मनुष्य को संसार की वास्तविकता का ज्ञान होता है उसे नश्वर और अमरत्व का ज्ञान होता है और इतने ज्ञान के पश्चात ह्रदय की पवित्रता आने पर ईश्वर का वास होता है। ज्ञान योग का रास्ता अत्यंत ही जटिल है इसके लिए संयम का होना आवश्यक है क्रोध और ईर्ष्या जैसे तमाम आसुरिक प्रवित्तियों के गुणों का त्याग करना पड़ता है मन को ईश्वर की प्रेरणा से पवित्र बनाना पड़ता है।