खामोश लब khmosh lub
खामोश लबो से बोलते क्यों नहीं ?
दिलो के दरवाजे खोलते क्यों नहीं ?
माना की डरते हो अब लहरों से भी तुम
तो क्या हुआ , जो बारिशो में अब भींगते क्यों नहीं ?
जलाते थे आँधियो में भी चिराग तुम
फिर बैठे हुए अब थकते क्यों नहीं ?
तन्हाई से बेशक मुहब्बत है अब तुम्हे
कभी ज़िन्दगी से मुहब्बत करते क्यों नहीं ?
देखते हो बैठ के लम्हो को गुजरते हुए
कभी इन पलो में गुजरते क्यों नहीं ?
जिंदगी लेती है इम्तहान हर कदम पर
फिर अपने कदमो को बढ़ाते क्यों नहीं ?
कदम दर कदम मंजिल पास आती जाएगी तुम्हारे
फिर मंजिलो को पाकर भी मुस्कुराते क्यों नहीं ?
क्या राज है क्या दर्द है तुम्हारा
कभी इस जहाँ को बताते क्यों नहीं ?
खामोश ............
रायजी
इन्हे भी पढ़े -
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें