hoshiyar ki talash


होशियार की तलाश 


शरीफ आदमी की तलाश करते - करते ना जाने कितने ही  शराफत वालो के असली रंग देखने को मिले।  शरीफ दिखना और शरीफ होना इस फर्क को समझने में दिमाग  की कई नसों ने काम करना बंद कर दिया । वास्तव में आज बेवकूफ कोई भी नहीं है , लेकिन फिर भी होशियार लोगो की कमी देखने को मिलती है ।  होशियारी की परिभाषा जानने के लिए जब बुजुर्गो का अनुभव लेने पहुंचे तो पता चला की , आज के युग में जो पैसा कमा रहा है ,चाहे माध्यम कोई भी और कैसा भी क्यों ना हो वो सबसे होशियार है।  हालांकि ऐसे अनुभव बांटने वाले खुद अपने बेटे - बहु पर आश्रित थे । कुछ के अनुसार दूसरो से चालाकी पूर्वक काम निकालने वाला भी आज के युग में होशियार की उपाधि धारण करता है। 


कुछ सज्जनो ने आपस में विचार विमर्श के फलस्वरूप  ऐसे लोगो को होशियार बताया जो सरकारी नौकरी करते हुए घर से दूर एकांत में परिवार ( धर्मपत्नी ) के साथ जीवन यापन कर रहे है । ना घर पर रहेंगे ना रिश्तेदारों से लेकर नातेदारों का कोई चक्कर रहेगा । 

महिलाओं की राय इतर थी।  उनके अनुसार वह बहु ज्यादा होशियार है जो शादी के बाद बेटे के साथ चली जाती है और घर पर सास - ससुर का हाल - चाल लेने के लिए हफ्ते में एक बार जिओ के मोबाईल से आमने - सामने बतिया लेती है , हाँ दिखावटी मिठास में कोई  कमी नहीं करती । 

इन तथ्यों से मुझे यह समझ में आ गया की होशियार वही है जिसने अपनापन , दया , मर्यादा , लज्जा , सेवा , मृदुता ,फर्ज और कर्तव्य जैसे अवगुणो का त्याग करते हुए अवसरवादिता , घमंड , लालच , निष्ठुरता , कटुता या कठोरता के साथ धोखा देने जैसे सद्गुणों को अपना लिया है। 

मैंने इतिहास को थोड़ा टटोलने की कोशिश की तो पता चला कबीर गरीब होते हुए भी होशियार थे और सिकंदर विश्व विजेता होने के बावजूद भी नासमझ था। 
अपना काम किसी भी सूरत में निकलने वाले को इतिहास ने मतलबी और और इसकी हद पार करने वाले जयचंद जैसो को गद्दार कहा है।
पारिवारिक  जीवन में ऐसी बहुओं को समाज में कोई इज्जत नहीं दी जाती थी जो अपने घर की मान मर्यादा के साथ बड़ो की सेवा ना करती हो।  इन बड़ो में चचेरे सास - ससुर से लेकर सम्पूर्ण कुटुंबवासी आते थे। 

इतिहास और वर्तमान की बदली हुई यह परिभाषा कहीं  ना कहीं समाज की उस बदलती सोच को दिखाती  है जिसमे जाने - अनजाने खुशियों की नई परिभाषा गढ़ी गई है। और हमरा  मन उसी को पाने की लालसा कर बैठता है।  समाज, परिवार से मिलकर बनता है और परिवार उसके सदस्यों से , सदस्यों को तोड़ कर परिवार का विघटन जारी है और इसी के साथ ही समाज का खोखलापन भी। 

मेरी होशियार की परिभाषा की तलाश जारी है क्योंकि समाज का जो अंश बचा हुआ है, वो निश्चित तौर पर किसी बेवकूफ के भरोसे तो नहीं चल रहा होगा। 




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