लाल मुसाफिर
दोपहर के तीन बजे मुंबई सेन्ट्रल स्टेशन पर उतरने के बाद एहसास होता है की की शायद यह सपना तो नहीं , क्योंकि देश और दुनिया के व्यस्ततम स्टेशनों में से एक मुंबई सेंट्रल पर सिवाय मोटे , बिल्ले जैसे चूहों के सिवा किसी एक प्राणी का नामोनिशान तक नहीं था ।
परन्तु कुछ ही देर में पता चल जाता है यह सपना नहीं हकीकत है। घबराहट के साथ डर भी लग रहा था , शायद ऐसी कल्पना हॉलीवुड की फिल्मो में की जाती होगी , परन्तु वीरान पड़ा स्टेशन शहर में किसी अनहोनी की पुष्टि कर रहा था। आखिर एकाएक सारे के सारे मनुष्य चले कहा गए । ट्रेन जिससे मैं उतरा था पिछले स्टेशन पर ही खाली हो गई थी और इंजन के पास जाने पर पैरो के नीचे की जमीन भी खिसक गई क्योंकि इसमें तो इंजन था ही नहीं ।
मेरी नई कहानी का एक छोटा सा अंश पूरी कहानी श्रृंखलाबद्ध जल्द ही आपके सामने होगी -
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