आशिक़
जबसे बगल वाली पर गाना बना
तबसे बगल में जाना हो गया मना
जहर तो तब कोई बो गया
जब सामने वाली पर भी एक ठो हो गया
अखियां चार कहा से करे अब
जब जमाना ही बेवफा हो गया
पड़ोसन को आँख मारी तो
तो बुढऊ खफा हो गया
नैना के नैनो से घायल हुए
काजल की अँखियो के कायल हुए
खुशबू की खुशबू जब तक आती
पूजा के पैरो के पायल हुए
किस्से बहुत हुए , कहानियाँ बहुत बनी
गलियों के आशिको से इस आशिकी में बहुत ठनी
कभी लोगो ने बदनाम किया ,कभी अपने हुनर ने नाम किया
कभी किसी ने दिलफेंक आशिक कहा
कभी किसी ने बहता हुआ साहिल कहाअब किस - किस को समझाते की, लोगो ने किस्सा क्यों आम किया
हमने तो इश्क़ को खुदा मानके, हर चेहरे से प्यार किया
तुमने मुहब्बत की तंग गलियों से, गुजरने से इंकार किया
और जब हम गुजरे तो कहते हो
गली में रहने वाले दिलो को बेकरार किया
हमने तो मुहब्बत का शहर बसा दिया
इस नफरत भरी दुनियां को जीना सीखा दिया
तभी तो इस दुनियां ने हमें आशिक़ बना दिया
कभी आओ गली में हमारी ,और यकीं करो हमारा
बनालोगे आशियाना , देखके इस गली का नजारा
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निमंत्रण विशेष :
जवाब देंहटाएंहमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।
यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !
'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जी शुक्रिया -
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