life and me


जिंदगी  और हम 


हम बस भीड़ है और कुछ नहींसीधी सादी जिंदगी में, हाथ आया कुछ नहीं 

कुछ तो फितरत नहीं थी 
किसी से कोई नफरत नहीं थी 
ऐसे ही फ़साने बनते चले गए 
दिल की बात आई तो वो बोले कुछ नहीं 

तारीफों का समंदर था 
हाथ में पीछे खंजर था

चेहरे के पीछे चेहरे थे 
कुछ शतरंज के मोहरे थे 
शह और मात के इस खेल में 
प्यादो  की  बलिवेदी पर, जीत उन्होंने पाई थी 
हार थी  अपने हिस्से की 
उन्हें मिला जंहा सारा  अपने हिस्से तन्हाई थी 

रिश्ते अब सारे मतलब के 
प्यार के बोल ना अब लब  से 
नफरत की भाषा बोले सब 
वो दिल की बाते थे तब के 
मेरा मुझसे अब पूछो ना 
क्या खोया क्या पाया है 
तेरा तुझसे ना पूछूंगा 
किसको सिरमौर बनाया है 
ना लेके कुछ तू जायेगा 
खाली  हाथ ही आया है.....  .  


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