तुमसे
तुम कहते हो की सावन की रिमझिम बुँदे
मेरी याद दिलाती हैतुम कहते हो की घनघोर घटा
राग मल्हारी गाती है
तुम कहते हो की मेरी पैजनिया की आहट
तुम्हे प्रफ्फुलित कर जाती है
मैं कहती हूँ तुम सावन के इंद्र धनुष जैसे
जीवन में खुशियों के रंग भर जाते हो
तुम एक मधुर साज मैं जीवन गीत तुम्हारी प्रियतम
है साँस तुम्हारी इस धड़कन में
रहे साथ जीवन में हरदम
तुम कहते हो की दुःख की काली रातो में
मैं उजियारी सुबह लाती हूँ
मैं कहती हूँ इन स्याह रातों में
तुमसे मिलने चली आती हूँ
अपने बगियाँ में सावन के झूले
उस पर मंद - मंद बर्षा की बुँदे
मैं क्या झुलू सब कुछ भूलूँ
जब प्रतिक्षण साथ तुम्हारा हो
तुम ही बसंत तुम ही सावन
तुम प्रेम की सुगन्धित फुलवारी हो
सब कुछ तुमसे , तुममे सबकुछ
मैं कहती हो तुम मेरे कृष्ण मुरारी होइन्हे भी पढ़े - मेरी मुहब्बत
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