mrityu



मृत्यु 

mrityu


मृत्यु तूं सत्य है, पर डरावनी नहीं
निडर है तुझसे मनुष्य , बना कोई कहानी नई
दो जहाँ के बीच की कड़ी  है तू
हर पल हर छण  सामने खड़ी है तू

विचलित करते ह्रदय को, तेरे विचार है
जर्जर ,बूढी, थकी  हड्डियों को तेरा इन्तजार है
कुछ तो विचार कर मानवता के दुश्मनो का
पापी ,अत्याचारी , रक्तपिपासु  और  भ्रष्टाचारी दुर्जनो का 
पर तुझको तो साधु और सज्जनो  से ही प्यार है
जिनका कारोबार ही परोपकार है 


अमर होने की चाह नहीं मुझको 

तुझसे मिलने की परवाह नहीं मुझको 
पता है  मिलूंगा तुझसे किसी दिन
ए  खुदा  जीवन के हर रंग दे मुझको 

तू छणिक है, पर सुन्दर नहीं 
तूं कही बाहर है ,पर  मेरे अंदर नहीं 
तू लेती है , मैं देता हूँ 
तू बेरंगी है ,मैं रंग बिरंगा हूँ 

तूं मैं को हरने वाली है 

मैं ,मैं में रहने वाला हूँ 


तूं अपनी करने वाली है 
मैं अपना करने वाला हूँ 
तूँ एक अंधेरी हवेली है 
मै उसमे दीप जलाने वाला हूँ 



 इन्हे भी पढ़े  - कलियुग 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस माह की १० सबसे लोकप्रिय रचनायें

SPECIAL POST

uff ye berojgaari

उफ्फ ये बेरोजगारी  - uff ye berojgari  कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमें...