बरसात
घर से निकले थे तभी रात हो गईकदम लड़खड़ाये अँधेरे में
संभलते ही उनसे मुलाकात हो गई
संभलना याद ना रहा
फिर से वही वारदात हो गई
भीगे सारी रात हम
इश्क़ के दरिया में
बरसात तो अब पुरानी बात हो गईबादलो से चाँद आज जमीं पर उतर आया था
पूर्णिमा की रात तो मेरी थी
ना जाने कितने घरो में अँधेरा छाया था
वो बेपनाह खूबसूरत सी इश्क़ की एक मूरत थी
और मेरी वीरान दुनिया की जरुरत थी
इश्क़ में आज फरमा बहुत रहे थे हम
पर चुपके से शरमा भी बहुत रहे थे हम
सावन और मुहब्बत दोनों की शुरुआत हो चुकी थी
उम्र भर साथ चलने की बात हो चुकी थी
सोचा कही ये ख्वाब तो नहीं
पर गालो पर सुर्ख गुलाबी मखमली अहसास हो चुकी थी
शायद ये निश्छल प्यार था मेरा
और उसको समझने वाला यार था मेरा
बारिश ने भी आज सारी रात जगा दिया
और दो प्यार करने वालो की कश्ती को किनारे लगा दिया .......
लेखक की स्टोरी मिरर पर प्रकाशित एक कविता -
https://storymirror.com/read/poem/hindi/4kafvoxj/brsaat
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