इंकलाब जरुरी है
मर रहा किसान है देखो
कैसी उसकी मजबूरी है
कहता है रोम - रोम मेरा अब तो
इंकलाब जरुरी हैतब देश उन्होंने लूटा
अब देश इन्होने लूटा
कैसी जनता की मजबूरी है
अब तो इंकलाब जरुरी है
वे गोरे थे ये क्या काले है
दोनों ही देश को लूटने वाले है
तब लाठी का जोर यहाँ था
अब लालच का शोर यहाँ है
तब भी दंगे यहाँ हुए थे
अब भी दंगे कहाँ रुके है
कहने को है देश के बेटा
पर भरे स्विस बैंक की तिजोरी हैअब तो इंकलाब जरुरी है
ना गई अपनी गरीबी देखो
हुए अमीर इनके करीबी देखो
वे विदेशी थे ये देशी है
पर नीयत एक जैसी है
भगत और चंद्रशेखर को खोकर जो आजादी पाई थी
लगता है शायद उसकी ज्यादा कीमत चुकाई थी
चेहरे शायद बदले है , जालिमो की नई जमात आई है
है तरीका अलग पर आपस में मौसेरे भाई है
कितना रोकेंगे खुद को हम
छलियो और लुटेरों से
है देशभक्ति का खून भरा
रुकेगा ना ये रोके सेभगत सिंह और चंद्रशेखर बनना
हालात की मजबूरी हैवो क्रांति तब भी जरुरी थी
एक क्रांति अब भी जरुरी है
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