atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


अटल बिहारी बाजपेयी की अस्थियाँ और मोदी सरकार 



atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


अटल बिहारी बाजपेयी भारतीय राजनीति का वो प्रथम चेहरा जिसने पहली बार बिना पूर्ण बहुमत के पांच साल गैर कांग्रेसी सरकार का संचालन किया।  दो सीटों से शुरू उनका सफर उनके मजबूत इरादों और वाकपटुता की  कौशल की बदौलत  केंद्र में सरकार बनाने तक एक ऐसा मुकाम तक पहुँच चुका  था जहाँ वे सीधे तौर पर   लोगो के दिलो में जगह बनाने में कामयाब हुए। यह बाजपेयी जी की स्वच्छ  और उदारवादी  छवि का ही  परिणाम है की जिस भारतीय जनता  पार्टी ने  राजनीति से सन्यास लेने के बाद उनकी कोई खबर नहीं ली आज उनकी अस्थियो से  भी राजनीतिक लाभ लेने से बाज नहीं आ रही है , वो भी ऐसे समय जब पार्टी द्वारा मोदी को पार्टी और देश का  सबसे लोकप्रिय नेता बताया जा रहा है।

atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


आखिर ऐसा कुछ तो हुआ होगा जिससे भारतीय जनता पार्टी और  उसकी पार्टी के सबसे बड़े और लोकप्रिय  नेता  भी आज एक मृत व्यक्ति की लोकप्रियता और उसके आचरण को भुनाने में लगे हुए है।

कारण जानने के लिए हमें दोनों का तुलनात्मक रूप से अध्ययन करना पड़ेगा।
माना जाता है की बाजपेयी पार्टी का वह उदारवादी चेहरा थे जिनकी देशभक्ति पर विपक्ष भी विश्वास करता था इसी कारण  नरसिम्हा राव की सरकार ने विश्व के मंच पे विपक्ष में रहते हुए भी बाजपेयी जी को भारत का पक्ष रखने को भेजा था।
जबकि मोदी को  खुद उनकी पार्टी के ही कई नेता  शक की नजरो से देखते है। इसका कारण यह है की  लालकृष्ण आडवाणी ,मुरली मनोहर जोशी  और यशवंत सिंह समेत तमाम ऐसे बड़े नेता है,  जिन्होंने पार्टी को इस मुकाम तक पहुँचाया की उसे संसद में विपक्ष का दर्जा मिल सके।  और बाजपेयी जी ने पहली बार गठबंधन की राजनीति में भाजपा  सरकार का पांच वर्षो का कार्यकाल पूरा किया।  आज वही नेता मोदी द्वारा किनारे लगा दिए गए।  कभी आडवाणी के ही कहने पर अटल जी ने मोदी को अभयदान दिया था , वही आडवाणी आज राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लायक भी नहीं समझे गए।
अटल जी ने हर चुनावी दौरों में जो सत्य था उसी को आधार बनाते हुए अपने भाषण दिए जबकि मोदी द्वारा दिए  आंकड़े ही गई बार गलत होते रहे है भाषण की तो बात अभी दूर है। 

अटल ने कभी सत्ता का मोह नहीं किया उनके लिए देशहित सर्वोपरि था।  इसलिए विपक्ष में रहते हुए भी उन्होंने सरकार की उन बातो का न केवल समर्थन किया बल्कि धन्यवाद भी दिया जो राष्ट्रहित में थी , यही वजह थी की सरकार भी उनसे अनेक मुद्दों पर सलाह लिया करती थी। अटल जी ने कभी देशभक्ति का दिखावा नहीं किया और नाहीं अपने हिन्दू होने का।


वहीं  वर्तमान सरकार सत्ता की चाहत में हिन्दू और मुसलमानो में वैमनस्य की भावना भरने में लगी हुई है।  अगर सरकार को देश की चिंता होती तो वह इन मुद्दों को हवा देने की बजाय इनको शान्त करने में अपना योगदान देती। सत्ता की चाह ने प्रेस को भी नहीं छोड़ा और उनपर भी नियंत्रण की कोशिशे  होती रही ।


atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


मोदी सरकार  यदि  गुजरात मॉडल के बलबूते सत्ता पर आई है तो उसे इन चार सालो में किये गए विकास कार्यो को जनता के सामने रखना चाहिए नाकि अटल जी जैसे महान इंसान की अस्थियो को , जिनको जनता एक नेता से ऊपर उठकर देखने लगी है। सरकार को अपने चुनावी घोषणापत्र को जो उसने 2014 के चुनावों में छपवाए थे उनका वितरण हर क्षेत्र में करना चाहिए  अटल जी की अस्थियों का। और अगर सरकार ऐसा नहीं कर पाती तो उसे अपने गिरेबां में जरूर एक बार झाकना चाहिए।



महान नेता और महान कवि श्री  अटल बिहारी बाजपेयी जी की कुछ अटल पंक्तियाँ आपसे जरूर साँझा करना चहूंगां। 



बाधाएँ आती हैं आएँ

घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,

पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।




इन्हे भी पढ़े - हिंदुत्व 

                         मोदी बनाम विपक्ष 




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