कलियुग
कलियुग शुरू हो गया है क्या ?
लोगो की मति तो मारी ही जा रही है
भीड़ भी बढ़ते ही जा रही है
बेटा बाप को काट रहा है
और बीवी के तलवे चाट रहा है
रिश्तो की जगह कब धन ने ले ली पता ही ना चला
हकीकत की जगह कब दिखावे ने ले ली पता ही ना चला
राह चलते छोटी बात बड़ी बन जाती है
अब तो यूरिया से भी रबड़ी बन जाती है
दिमाग में भूसा और गुस्सा दोनों ही ज्यादा है
आम आदमी मार - काट पे आमदा है
कंक्रीट के जाल बिछते जा रहे है
पेड़ और पहाड़ कटते जा रहे है
विकास यही है क्या ?
आज का सभ्य समाज यही है क्या ?राजा खुद को भगवान कहने लगा है
अब तो सुना है पहरेदारो के साथ , महलों में रहने लगा है
खाली पेट बच्चे बड़े हो रहे है
और वे करोडो खर्च करके चुनाव में खड़े हो रहे है
बाप नौकरी की तलाश में भटक रहे है
नए लड़के ढाढ़ी और बाल बढ़ा के मटक रहे है
संत व्यापार और व्यभिचार में लिप्त है
यह देख के जनता विक्षिप्त है
स्त्री अपने अस्तित्व की लड़ाई में हार रही है
और सफेदपोशो के कपडे फाड़ रही है
रोज घट रही हजारो दुर्घटना है
जान हुई सस्ती अब, गुलामो की तरह रोज खटना है
सुना है इंसानो ने भी, आपस में नस्लों का बंटवारा कर लिया है
खून तो एक ही है सबमे , शायद जमीर से किनारा कर लिया है
अब क्या बचा है दाता के इस संसार में
शायद वही प्रकट हो इस कलियुग में, अपने नए अवतार मेंइन्हे भी पढ़े -कुछ बात दिलो की
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