raajneeti aur hum


राजनीति और हम 



अभी क्या हमेशा पढता हूँ शेर अकेला आता है और भेड़िये झुण्ड में


अगर भारतीय राजनीति के सापेक्ष बात करू तो अब तक तो आप समझ ही गए होंगे की रजनीकांत द्वारा बोला गया यह डायलॉग किसके प्रशंसकों द्वारा कहा जाता है।

भारतीय राजनीत के बदलते चेहरे का एक स्वरुप आजकल सोशल मीडिया पर हावी होते जा रहा है।  जिसमे फोटो एडिटिंग से लेकर वीडियो एडिटिंग तक सब कुछ शामिल है। डायलॉग बाजी तो इसकी जान में बसती है।

नेताओ के नाम बदल कर अशोभनीय टिपण्णी करने वाला समाज , नेताओ से शिष्टाचार की उम्मीद कैसे कर सकता है। केजरुद्दीन , फेंकू , गोदी , पप्पू  जैसे शब्दों का प्रयोग  राजनीति की गिरती गरिमा को रसातल में पहुँचाने का काम करते है।

अनुयायियों का स्थान आजकल चमचो और भक्तो जैसे शब्दों ने ले लिया है। नेता लड़े या ना लड़े इनकी जंग जारी रहती है। फोटो एडिटिंग को देखकर तो कभी - कभी सच्ची तस्वीरों पर भी शक होने लगता है।

अब तो लगता है देश जैसे  पूर्ण रूप से विकसित हो चुका है , क्योंकि मुद्दों में कही विकास रहता ही नहीं।  हम बस जी रहे है भावनावो के साथ वही काफी है। चुनाव शुरू होते ही  भावनावो का बाजार  सजने लगता है।

गाय से श्रद्धा रखने वाले एक तरफ , सच्चे हिंदू एक तरफ , हनुमान जी वाले एक तरफ , देशभक्त कहलाने वाले एक तरफ  और दूसरी तरफ अपनी - अपनी जाति  वालो की लम्बी लिस्ट ,उसके बाद अल्पसंख्यकों के हितैषी एक तरफ, अब चुन लीजिये अपनी जाति  का नेता जो आपको अच्छे दिन दिखलायेगा। खामी उनसे ज्यादा कहीं ना कहीं हमारे अंदर ही है। जो विकास , बेरोजगारी , बढ़ती आबादी , कुपोषण , गरीबी , भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को छोड़कर ऐसे मुद्दों की तरफ भागते है जिनसे हमें तो कुछ नहीं मिलने वाला लेकिन इन मुद्दों को बनाने वाले सत्ता के शिखर पर पहुँच जाते है। 


समय है पहले खुद में सुधार लाने का , समय है खुद से जुड़े मुद्दों के साथ खड़े होने का , समय है मर्यादित आचरण का और समय है व्यर्थहीन मुद्दों से अपना मुख मोड़ने  का। 





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