कानपुर वाले पांडेय जी kanpur wale pandey jee
आज सुबह सुबह उठते ही फोन आया
kanpur station
की कानपुर वाले पाण्डेय जी गुजर गये, अचानक से पाण्डेय जी के विषय मे अनेक यादे ताजा हो गई. पाण्डेय जी हमारे खास मित्रो मे से एक थे , वे वही यूनिवर्सिटी मे समाजशास्त्र के प्रोफेसर थे.हालांकि हम लोगो की उम्र मे एक पीढी का फासला था पर कोई ऐसी चीज थी जिसने हम दोनो को आपस मे बाँध रखा था. पाण्डेय जी एक खुशमिजाज और मजाकिया इंसान थे मुझे उदास देखकर वो अक्सर कहा करते थे ” यार तुम तो 61 साल के बुड्ढे हो गये मुझे देखो मैं तो अभी 16 साल का जवान हूँ “.
कभी कभी वो मुझसे कहा करते थे रायजी जिंदगी मे इंसान को वो सारी चीजे मिले जो इंसान चाहता है ये जरूरी नही जरूरी ये है की जो जिंदगी देती है उसका इस्तेमाल इंसान कैसे करता है. पाण्डेय जी की श्रीमती जी से कभी नही बनी सन्तान शायद किस्मत मे नही थी. पर पाण्डेय जी इस बारे मे कभी सोच नही करते थे . वे अक्सर सेमिनार मे दूर दूर तक जाया करते थे उनके बोलने की शैली लाजवाब थी. कॉलेज मे ज्ञान बांटने के बाद बचा खुछ ग्यान मुझे दे दिया करते थे. और में उनके एक आग्याकारी विद्यार्थी की तरह सारा ज्ञान चुपचाप ग्रहन कर लिया करता था.
शायद यह एक रोजमर्रा की आदत सी बन गई थी, मेरे कही बाहर जाने पर वी बेसब्री से मेरा इंतजार किया करते थे तथा वापस आने पर ढेर सारे उपहार दिया करते थे. जैसे मैं उनका कोई खास रिश्तेदार हूँ. उनकी आधी तनख्वाह केवल गरीब बच्चो की फीस भरने मे चली जाती थी वे कहते थे रायजी जिंदगी ने हमे बहुत कुछ दिया तो हमारा भी फ़र्ज़ है किसी और की जिंदगी को काबिल बनाया जाये. ध्यान से सोचिये तो हम क्या लेके जायेंगे आपनो के साथ जो जी लिया वही ज़िंदगी है दूसरो की सेवा ही ईश्वर की सेवा है. कानपुर से मेरे तबादले की खबर सुनकर मुझसे ज्यादा वो दुखी थे, उन्होने दो दिन से कॉलेज से अवकाश ले रखा था . विदा होते समय पहली बार मैने उनकी आंखो मे आंशु की धारा देखी .
वहा से आने के बाद भी वी अक्सर टेलीफोन पर हालचाल लिया करते थे. अभी कल ही उन्होने मुझसे टेलीफोन पर कहा था की रायजी अगले हफ्ते आपके शहर मे एक सेमिनार मे भाग लेने आना है कहिये तो आपके लिये कुछ लेते आऊ और मैने बस इतना कहा था की आपसे मुलाकात सारी मीठाइयो से बढ़कर है………
must read - जिंदगी की सार्थकता
कानपुर वाले पांडेय जी kanpur wale pandey jee
आज सुबह सुबह उठते ही फोन आया
kanpur station |
की कानपुर वाले पाण्डेय जी गुजर गये, अचानक से पाण्डेय जी के विषय मे अनेक यादे ताजा हो गई. पाण्डेय जी हमारे खास मित्रो मे से एक थे , वे वही यूनिवर्सिटी मे समाजशास्त्र के प्रोफेसर थे.हालांकि हम लोगो की उम्र मे एक पीढी का फासला था पर कोई ऐसी चीज थी जिसने हम दोनो को आपस मे बाँध रखा था. पाण्डेय जी एक खुशमिजाज और मजाकिया इंसान थे मुझे उदास देखकर वो अक्सर कहा करते थे ” यार तुम तो 61 साल के बुड्ढे हो गये मुझे देखो मैं तो अभी 16 साल का जवान हूँ “.
कभी कभी वो मुझसे कहा करते थे रायजी जिंदगी मे इंसान को वो सारी चीजे मिले जो इंसान चाहता है ये जरूरी नही जरूरी ये है की जो जिंदगी देती है उसका इस्तेमाल इंसान कैसे करता है. पाण्डेय जी की श्रीमती जी से कभी नही बनी सन्तान शायद किस्मत मे नही थी. पर पाण्डेय जी इस बारे मे कभी सोच नही करते थे . वे अक्सर सेमिनार मे दूर दूर तक जाया करते थे उनके बोलने की शैली लाजवाब थी. कॉलेज मे ज्ञान बांटने के बाद बचा खुछ ग्यान मुझे दे दिया करते थे. और में उनके एक आग्याकारी विद्यार्थी की तरह सारा ज्ञान चुपचाप ग्रहन कर लिया करता था.
शायद यह एक रोजमर्रा की आदत सी बन गई थी, मेरे कही बाहर जाने पर वी बेसब्री से मेरा इंतजार किया करते थे तथा वापस आने पर ढेर सारे उपहार दिया करते थे. जैसे मैं उनका कोई खास रिश्तेदार हूँ. उनकी आधी तनख्वाह केवल गरीब बच्चो की फीस भरने मे चली जाती थी वे कहते थे रायजी जिंदगी ने हमे बहुत कुछ दिया तो हमारा भी फ़र्ज़ है किसी और की जिंदगी को काबिल बनाया जाये. ध्यान से सोचिये तो हम क्या लेके जायेंगे आपनो के साथ जो जी लिया वही ज़िंदगी है दूसरो की सेवा ही ईश्वर की सेवा है. कानपुर से मेरे तबादले की खबर सुनकर मुझसे ज्यादा वो दुखी थे, उन्होने दो दिन से कॉलेज से अवकाश ले रखा था . विदा होते समय पहली बार मैने उनकी आंखो मे आंशु की धारा देखी .
वहा से आने के बाद भी वी अक्सर टेलीफोन पर हालचाल लिया करते थे. अभी कल ही उन्होने मुझसे टेलीफोन पर कहा था की रायजी अगले हफ्ते आपके शहर मे एक सेमिनार मे भाग लेने आना है कहिये तो आपके लिये कुछ लेते आऊ और मैने बस इतना कहा था की आपसे मुलाकात सारी मीठाइयो से बढ़कर है………
must read - जिंदगी की सार्थकता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें