कहानी
बहुत दिन हो गए थे कोई कहानी लिखे सोचा आज जरूर लिखूंगा आखिर कही ना कही मन में अपूर्वा की कही बातें घूम रही थी की आप कहानी बहुत अच्छा लिखते है मेरे बेटे के लिए एक लिख दीजिये न प्लीज।
अपूर्वा मेरी क्लास मेट थी स्नातक के प्रथम वर्ष से ही मैं उसे जानता था , कारण वह मेरे बड़े भाई साहब के दूर के रिश्ते की साली भी लगती थी लेकिन कभी उससे मुलाकात नहीं थी।
वो तो एक दिन उसकी माँ अपूर्वा के साथ भाई साहब से मिलने चली आई थी शायद कुछ काम था उनको। तभी बातों - बातों में पता चला की उसने भी स्टीफेंस कॉलेज में एडमिशन लिया है। भाई साहब ने मुझको आवाज लगाई " सुनील "
मैं उनकी आवाज सुनकर दौड़ा चला आया भाई साहब एकदम नपे तुले और अनुशासनवादी इंसान थे जिस वजह से उनका भय और सम्मान दोनों ही हमारे ह्रदय में रहता था।
" ये देखो ये अपूर्वा है तुम्हारे ही कॉलेज में पढ़ती है "
मैंने सहमति से सिर हिला दिया " जी भैया "
मैं वहा सर झुकाये खड़ा रहा जब तक की वे लोग चले ना गए
उसके बाद अक्सर ही अपूर्वा से कॉलेज में मुलाकात हो जाती थी धीरे - धीरे मुलाकात कब प्यार में बदल गया पता ही ना चला।
अब तो बिना उसके मन ही नहीं लगता था। जिस दिन वह कॉलेज नहीं आती ,उस दिन ऐसा लगता जैसे पूरा कॉलेज ही वीरान हो गया है। चाहे लड़कपन का प्यार कहिये या जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही होने वाला पहला प्यार। पर दीवानगी में कही कोई कमी नहीं थी ,
दोनों ने निश्चय किया की बात अब घर वालो को बता देनी चाहिए। वो बरसात की रात थी जब दोनों इस निश्चय से अपने घरो की ओर एक दूसरे से विदा हुए की जल्द ही घरवालों की मर्जी से एक हो जायेंगे और पूरा जीवन एक दुसरे के प्यार में बिता देंगे।
पर घर पहुँचते ही जो बम का गोला गिरा उसके तबाही के निशान आज भी मौजूद है , अपूर्वा की माँ ने उसकी शादी अमेरिका में रहने वाली उसकी सहेली के बेटे से तय कर दी थी और उसी रात उनकी फ्लाइट होने की वजह से मंगनी होनी थी । अपूर्वा ने लाख समझाने की कोशिश की पर किसी ने उसकी एक नहीं सुनी।
आता हूँ - दरवाजे की घंटी के साथ ही मेरी चेतना भूत से वर्तमान में आ जाती है।
" साहब आपका टेलीग्राम आया है " - कहते हुए डाकिया दो लिफाफे मेरे हाथ में थमा देता है।
एक में शायद कोई सरकारी पैगाम था - तो राज्य सरकार इस साल का श्रेष्ठ साहित्य पुरस्कार मुझे देने जा रही है , पढ़कर मन प्रसन्न हुआ और उसकी कही एक बात याद आ गई कॉलेज के दिनों से ही अपूर्वा मेरे लिखे पत्रों को देखकर कहती थी तुम एक दिन बड़े लेखक जरूर बनोगे जितनी गहराई तुम्हारे शब्दों में है मैंने उतनी बहुत ही कम लेखकों की कलम में देखी है तुम तो जिसको प्रेम पत्र लिखोगे वो तुम्हारी ही हो जाएगी तब लेखक जी मुझे भूल तो नहीं जाओगे।
काश तुम्हारी कही बाते सही हो जाती , ये लेखक का दिल ही तो था जिसने अपने दिल और जीवन में तुम्हारे सिवा किसी और को ना रखा सिवा तन्हाई के।
तुम्हारी मुस्कुराहट भरी तस्वीर देखकर ही दिल को तसल्ली मिल जाती थी , तुम्हारी खुशियों से ही ये दिल खुश हो जाता था। किन्तु जब तुम्हारे ऊपर प्रकृति ने दुखो का पहाड़ गिरा दिया तब से ये दिल आज तक रोता ही आया है , किसे पता की 15 दिन पहले तुम्हारी खुशियों की वो आखरी उड़ान होगी जिसमे तुमने अपने पति को मुस्कुराते हुए विदा किया था। और उसके बाद तुमने यहीं बसने की सोच ली ताकि अपने सास ससुर की सेवा कर सको।
इस दूसरे लिफाफे में क्या है शायद किसी की मेडिकल रिपोर्ट है , ये तो .......अपूर्वा के पति की रिपोर्ट है उन्हें क्या हो गया था
........ ....... इसमें तो लिखा है वे पिता बनने के लिए पूरी तरह फिट नहीं थे ......
फिर ये ........ अपूर्वा का ..... बेटा .... ...... . वो बरसात की रात .........
लेखक द्वारा क्वोरा पर लिखित एक जवाब से साभार-