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ye kaise achhe din

ये कैसे अच्छे दिन -

ye kaise achhe din

अच्छे दिन लाते लाते तुमने
ये कैसे दिन है दिखलाया

तुम को खाके मजा आया तो सबसे पकौड़े क्यों बनवाया

खुद तो घुमा देश विदेश और
मेरे इस शहर - ए - अमन में दंगा क्यूँ है भड़काया

कहने को तुम आलम - ए - वजीर
फ़कीर हमको है क्यों बनवाया
एक - दो समझ में ना आया
पांच तरह की जीएसटी लगवाया
पप्पू से लड़ते लड़ते
जनता को उल्लू क्यों बनवाया

खुद सरकार बने फिरते हो

चौकीदार कुछ समझ में ना आया

खुली तिजोरी लुटते रहे वो
इल्जाम है किसपे लगवाया

राशन लेने गया फकीरा जिसको न ककहरा आता
आधार लिंक कहा से कराये कौन सी भाषा में उसे डिजिटल इंडिया समझाता
एक बार चमका था भारत एक बार बहका है भारत
अब और इसे न बहकाना
अच्छे दिन दिखला न सके तो
पोस्टर पर पैसे और ना लुटवाना

विकल्प विहीन है देश की जनता
कुछ भक्ति में लीन  है
शक्ति सारी जुबान में है
सत्ता कर्महीन है

बाते बड़ी बड़ी है यहाँ
भक्तो और चमचो  में मारा मारी है
इन सबसे बढ़के देखो उनकी अदाकारी है

कोई देश लूट रहा था  कोई देश फूंक  रहा है

जो समझा वो मौन खड़ा है
चुप रहने में होशियारी है

हुए आंदोलन बहुत यहाँ पे
सबपे सत्ता भारी है
बाबा पहने सलवार सूट
देख अचंभित नारी है

क्या सफ़ेद और क्या काला
जनता के धन को क्या बना डाला
क्या गरीब और क्या किसान
सबका बीमा करा डाला

जीते जी की बात नहीं की थी
मरने पे अच्छे दिन दिखलायेंगे

अभी तो बस शुरुआत की है

अच्छे दिन तो अब आएंगे



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जलता शहर 

kuchh baat dilo ki

कुछ बात दिलो की 



कुछ बात दिलो की पढ़ने को
ऐनक है हमने लगा डाली
पढ़ पाए न एक दिल को भी हम
दिल थे सारे खाली  - खाली

भरा न उनमे भाव मगर था
न थी दया की कोई प्याली
अजब गजब थी भाषा उनकी
थी गूढ़ रहस्य की गुफा काली

विस्मित थे ये  नैन देख के
छल प्रपंच की नई  परिभाषा
आशा की कोई ज्योति नहीं थी
जिससे ये जग -जीवन चल पाता 

रिश्तो का कोई मोल नहीं है
मुद्रा से ये तौली जाती 
मातृ और पितृ भक्ति भी
पुत्रो को 
धन लक्ष्मी है सिखलाती

पत्नी हुई प्रधान जग में 
अब  ये बतलाती 
भाई से कितना बोला जाये 
है विनम्र निवेदन अब तो बस ये
राखी को ना  तौला  जाये 

कुछ राज दिलो के छिपे रहे 
इनको ना ढूँढा जाये 
है बची कुछ अब भी मर्यादा 
घूंघट न खोला जाये 

कुछ बात दिलो की पढ़ने को
ऐनक है हमने लगा डाली
पढ़ पाए न एक दिल को भी हम
दिल थे सारे खाली  - खाली


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लिखता हूँ 





maa

माँ 



मेरी हर इन्तेहाँ में माँ की दुआ काम आती है
लाख चढ़ लू सीढ़ियां कामयाबी की मगर
थकने पर मां ही आँचल फैलाती है

उम्र बढ़ती है आँख धुंधलाती है 

पर मेरे चेहरे की शिकन माँ को साफ़ नजर आती है
गम में भी उसे देखकर मैं तो हंस लेता हूँ
पर माँ ही है जो चुपके - चुपके नीर बहाती है
इसीलिए तो वो माँ कहलाती है

सब कहते है की 

माँ की ममता का कोई मोल नहीं होता 

मै कहता हूँ माँ जैसा कोई और नहीं होता


गलतियों पे जो माफ़ करे वो माँ होती है
हर जख्म को जो साफ़ करे वो माँ होती है
अपने खून से सींचे वो माँ होती है 


माँ ना इस जैसी होती है माँ ना उस जैसी होती है
माँ तो बस माँ जैसी होती है


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likhta hun



लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नहीं आती 

कहने को तो पूरा दिन यूँ ही निकल जाता है 

पर माँ के आँचल में जो गुजरे 

अब वो रात नहीं आती

बहती है जब जब पुरवाई
मिटटी की सोंधी खुशबु तो आती है
पर एक लम्हा नहीं गुजरता
जब बीते लम्हे की याद नहीं आती

सब कुछ तो पा लिया
ए जिंदगी तुझसे
पर वो बचपन वाली बरसात नहीं आती
भीड़ में रहकर भी अब
अपनेपन की एहसास नहीं आती

मैंने देखा है तेरी आँखों में
नीर के दरिया को बहते हुए
पर ये बात जुबां तक नहीं आती 

पीर बहुत है सीने में मेरे भी 

पर शिकन चेहरे पर नजर नहीं आती

खड़ा हूँ साथ तेरा साया बनकर
तेरी नजर कैसे तुझे बतलाती
इसीलिए
लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नहीं आती

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life and me


जिंदगी  और हम 


हम बस भीड़ है और कुछ नहींसीधी सादी जिंदगी में, हाथ आया कुछ नहीं 

कुछ तो फितरत नहीं थी 
किसी से कोई नफरत नहीं थी 
ऐसे ही फ़साने बनते चले गए 
दिल की बात आई तो वो बोले कुछ नहीं 

तारीफों का समंदर था 
हाथ में पीछे खंजर था

चेहरे के पीछे चेहरे थे 
कुछ शतरंज के मोहरे थे 
शह और मात के इस खेल में 
प्यादो  की  बलिवेदी पर, जीत उन्होंने पाई थी 
हार थी  अपने हिस्से की 
उन्हें मिला जंहा सारा  अपने हिस्से तन्हाई थी 

रिश्ते अब सारे मतलब के 
प्यार के बोल ना अब लब  से 
नफरत की भाषा बोले सब 
वो दिल की बाते थे तब के 
मेरा मुझसे अब पूछो ना 
क्या खोया क्या पाया है 
तेरा तुझसे ना पूछूंगा 
किसको सिरमौर बनाया है 
ना लेके कुछ तू जायेगा 
खाली  हाथ ही आया है.....  .  


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खामोश लब 


ishq na karna


  इश्क़ ना करना 



यार बात ना  कर इश्क़ की अब
आदत पड़  गई है बेवफाई की अब  


यार दिल में अब कुछ होता नहीं 
जरुरत है सफाई की अब 

रुक सुन के जा आलम - ए - बेवफाई 
बात न करेगा फिर इश्क़ - ए - खुदाई की अब 

हम थे एक मुक्त पक्षी गगन में 
उड़ते थे सारे चमन में 

देखा उड़ते हुए उनको 
भूल गए उड़ना आ गए जमीं  पे 
वे हसने लगी ये  देख के 
शायद ध्यान न रही उनको हमारी ऊंचाई की अब 

हम खुश थे उनकी हंसी देखकर 
शायद तेरा वाला इश्क़ हो चला था हमें 
देखते रहे बेधड़क उन्हें 
अपने जख्मो का ख्याल न रहा 

वे आये करीब हमारे मरहम लेकर 
और मर हम गए घायल होकर नजरो के तीर से 
शायद तेरे वाले इश्क़ में जान गँवा बैठे थे हम 


                                                                                     आगे क्या सुनेगा दास्ताँ बेवफाई की 
                                                                                     जा और जाकर इश्क़ कर 


बेवफाई तो अपने आप हो जाएगी 



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बेवफाई


mandiro me bhagwan nahi milte ab


मंदिरो में भगवान् नहीं मिलते अब (कविता )


शंकर जी बसे  हिमालय  पर 
ना जाने दूध किसे पिलाते हो 
बछड़ा भी ना पी पाया जिसे 
उसे नाली  में क्यों बहाते हो 

जो जग के दाता  राम है 

अयोध्या जिनका धाम है 
उस धाम में क्यों आग लगाते हो 
अपनी सियासत चमकाते हो 

ब्रम्हा जी ने लिख दिया 
जनता ने तुमको भीख दिया 
उसपे इतना इतराते हो 
जाने कौन सी बेशर्मी के साबुन से नहाते हो 

है लिखा किसी संत ने, ना अपना आपा  खोए 
राजा हो या रंक सभी का अंत एक सा होए

बोले कन्हैया, सुन मेरी मइया 

देख धरा है मुझमे समाया देख  तीनो लोक है मेरे अंदर 
फिर भी अकड़े  क्यों सर्कस का बन्दर 

मैं ना मंदिर में मैं ना  मस्जिद में 
मुझको न ढूंढो तुम अपनी जिद में 
मैं तो हूँ हर उस दिल में समाया 
जिसमे ना  कोई मोह ना  कोईं माया 
जिसके दिल में हर प्राणी का  मर्म समाया । ........ 


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जलता शहर 






bewfai


बेवफाई 


मेंरे दिल के पन्नो पे तस्वीर तेरी है
जो मिट गई हथेली से
वो लकीर मेरी है

कभी तंग करते थे तुम हमको
कभी तंग करते थे हम तुमको
अब तंग करते हो तुम हमको
हम कह ना सके कुछ तुमको

वो फूल तेरे बगिया का
घर मेरे जो रखा है
उस फूल से मेरे घर का
हर कोना  महका है

पर मेरे दिल के कोने में 
तेरी ही खुशबू  है
उस रात की यादें है 
सारी मुलाकाते है 

वफ़ा मेरी तुझको 
एक बार बुलाती है 
तेरी बेवफाई के 
किस्से सुनाती है 

की होकर बेवफा यूँ 
दिल जो मेरा तोड़ा  है 
बर्बादी की राह पर मुझको ला छोड़ा है 

तूं बेवफा है तो क्या हुआ 
यूँ खंजर प्यार का चला दिया 
और प्यार करने वालो का नाम 
सारे जग में हंसा दिया। 




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जाने तू या जाने ना 




tu sabr to kar



तू सब्र तो कर 



ये रात भी कट जाएगी 
ये गम भी मिट जाएगा  
ये धुंध भी छट जाएगी 
ये अँधेरा भी हट  जायेगा 
                           तू सब्र तो कर 

ये दिल भी लग जायेगा 
ये धड़कने भी चल जाएँगी 
ये मौसम भी बदल जायेगा 
ये मन भी मुस्कुराएगा 
                         तू सब्र तो कर 

ये दुनिया भी देखेगी 
ये लोग भी देखेंगे 
तेरे अपने भी देखेंगे 
तेरे दुश्मन भी देखेंगे 
                               तू सब्र तो कर 

तेरे रब का साथ रहेगा 
किसी अपने का हाथ रहेगा 
ये किस्मत भी तेरी रहेगी 
ये तेरा खुद का विश्वास रहेगा 
                                     तू सब्र तो कर 


ऐसा ही एक दिन मेरा भी आएगा 

ऐसा ही एक दिन तेरा भी आएगा 

                              
                                            तू सब्र तो कर 

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खामोश लब 

game of politics

राजनीति  का खेल 



हिन्दू-  मुस्लिम ना कर बंदे
खेल है उनके सारे गन्दे
विकास की आस बस तेरे पास
तेरे खून से बुझेगी अब उनकी प्यास

उनके घर मंदिर मस्जिद
उनके घर मे सारी जात
तेरे लिये जतियो मे जात
तेरे लिये बस लव जेहाद

क्या कांग्रेस और क्या बीजेपी
क्या माया और क्या मुलायम
राज करेंगे सारे नेता
जबतक जाति और धर्म है कायम

तेरी समझ का खेल नही ये
जिसको कहते राजनीति है
मानवता का मेल नही ये
जिसको कहते राजनीति है

बातें करते ये बार - बार
काम ना करते एक भी बार

मुद्दे है इनके सारे बेकार
जनता से कहे ये हर बार

मौका दे हमको बस एक बार
अबकी बार मैं  कहूँ सारे बेकार
है बस अब उसका इंतजार
जो  मिटा दे नफरत करे सबसे प्यार
ना कराये विकास को लम्बा इंतजार



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जलता शहर



deshwa

देशवा  (भोजपुरी कविता )


साहब साहब कहके पुकार मत बाबू
जेके देहले रहले वोट उहे ना बा काबू
खेल बा सब सत्ता के और
नेता हो गईल बाड़े बेकाबू

बोली बोलला मे आगे बाड़े देश के ई नेता
माई के आंख मे आंशु बा और
खून से लथपथ बा बेटा
रोज तमाशा चलअता देश मे ई का होता

हिन्दू , मुस्लिम रहलें इंहा बनके देखअ भाई भाई
मरलें नेता बांट देहले देखअ पाई पाई
अ जतियो मे जात बटलें अब केहके समझाई


अरे बिजली भइल महन्गा देख , सड़क मे अब मछलि पलाई
गरीब रोअता खून के आंशु बढअता महंगाई
की सुनत हई अब हिन्दू कहला से पेट भर जाई

अरे का भइल जो लईका आपन पढके घूमतारें
अरे कुछ ना करिहें त चौराहे पे पकौड़ी त बेचाइ

अब का बोली , का कही और केकरा के समझाइ
खोज अ कौनो और रास्ता जेसे देश सुधर जाई
नेता पे भरोसा नईखे कुलहि बाड़े मौसेरा भाई
राम के जे ना भइल उ जनता के का मुंह दिखलाई










meri muhabbat


मेरी मुहब्बत 


तेरी मासूम मुहब्बत पे दिल  है मेरा ठहरा सा
बहुत सोचा तुझे भुलूँ
पर इश्क़ है गहरा सा

मुहब्बत में जो दिल टूटा
तो आवाज नहीं होती
जो होता है वो कह नहीं सकता
उसकी कहीं फ़रियाद नहीं होती
हमें मालूम था एक दिन ऐसा भी आएगा
जो था खुदा मेरा
वही   तडपायेगा

चाहत है तू मेरी
तुझे कैसे भला भूलूँ
की जी करता है एक बार,  तुझे जरा  छू लूँ

तुझ बिन रात नहीं गुजरती
दिन भी काट खाता है
अब तेरे बिना मुझको
कोई और न भाता है

पारो है तू मेरी, मैं तेरा देवदास हूँ
तेरे बिना  देखो , कितना उदास हूँ
तू मेरी हो जाये , बता वो लकीर कहाँ खींचू
तू कहे तो मुहब्बत के बगिया को
अपने खून से सींचू

तेरी गुस्ताख़ मुहब्बत में दिल ये मेरा ठहरा सा
जाने कौन सी है बंदिशे
है तुझपे कौन पहरा सा

है पहचान नहीं तुझको मेरी मुहब्बत की
जाने कौन सी है दुनिया तेरी जरुरत  की
इन्तजार है तेरा, जब तक जिंदगानी है
यही मेरी  मुहब्बत की, छोटी सी कहानी है .........



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ishq



इश्क़ 


इश्क़ के समंदर में डूबते  है  आशिक़ कई 

बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई 

इश्क़ के रोग  का इलाज नहीं 

फिर भी  इस रोग में  पड़ते है कई 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

ना रांझे को हीर मिली, ना शीरी को मिला फरहाद 

इस इश्क़ - मुश्क़ के चक्कर  में ,ना जाने कितने हुए बर्बाद 
ना जाने कितने हुए बर्बाद ,  देखो फिर भी ना  छूटी आशिकी 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

जख्म  मिलता है, मिलती है देखो रुसवाई 

बैरी हो जाते है अपने , और जमाना हो जाता है हरजाई 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

ना  जाने कौन सी दिल्लगी होती है इस इश्क़ में 

जाने  मिलता है कैसा सुकून 
नजरे ढूंढती है दीदार - ए - मुहब्बत 
हम नासमझ क्या जाने , होता है क्या इश्क़ - ए - जूनून 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

नैनो की भाषा है , इनायत है रब की 

दिल में चाहत है ,और है आशिकी
हँसते वे बहुत हैं,
हँसते वे बहुत हैं ,जिसे लगा ये रोग नहीं 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई


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तेरी मेरी कहानी 




lahu

 लहू 




लाल हूँ ,लहू हूँ , अछूत नहीं

lahuसड़को पर बहाते हो कभी आजमाते हो
खून हूँ , सुकून  हूँ ,ना बहुँ तो थम  जाते हो                       

बह जाऊ तो डर  जाते हो
बहाते हो तो क्या पाते हो
बहता हूँ पीढ़ी दर पीढ़ी
इसीलिए तो हर पीढ़ी को आजमाते  हो 

लाल हूँ , बवाल नहीं 
ये सबको क्यों नहीं बतलाते हो 
कभी तलवार से कभी बन्दूक से 
लाल के सिवा क्या पाते हो 

एक बून्द बनता हूँ कई लम्हो में एक ही लम्हे में मुझे बहा जाते हो 


हर नस्ल हर कौम में रंग लाल मेरा 
काश कभी आये ,वो भी सवेरा 
चली जाये जाति ,ना रहे तेरा मेरा 

सुर्ख लाल हूँ , सुर्खियों में रहता हूँ 
बंदिशे बहुत है, सबको सहता हूँ 
फिर भी हर बार, यही कहता हूँ 
बिना भेद के हर रगो में बहता हूँ 
लाल हूँ, लाल गुलाब की तरह
खुशबू  ए चमन की तरह
अमन से रहता हूँ 


लाल  हूँ  लहू  हूँ  अछूत  नहीं  .. ... .. .. 


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teri meri kahani

तेरी मेरी कहानी 




तेरी आवाज सुनकर मैं अब थोड़ा जी भी लेता हूँ 
की थोड़ा खा भी लेता हूँ ,थोड़ा पी भी लेता हूँ 

की आँखे थक गई थी ये, तेरा दीदार करने को 
की धड़कन रुक गई थी ये ,तेरा इन्तजार करने को 
मेरी खामोशियाँ अब तो, मेरी नजरे बताती है 
कभी तुझको बुलाती है, कभी मुझको सताती है 

मेरे साँसों में बसने वाले, एक बात  बताते जा 
की रह लेगा तू  मेरे बिन ,बस इतना समझाते जा 

कभी मै तेरा हो जाऊं, कभी तू मेरी बन जाये 
की एक दूजे में खो जाये, कभी वो दिन भी आ जाये 

जुदाई अब ये तुझसे ,सही जाये नहीं मुझसे 
की धड़कन कह रही हमसे, मर जायेंगे हम कसम से 

बंदिशे तोड़ के आ जा 
की तेरा आशिक बुलाता है 
गर रूठी हुई है तो , ये तुझको मनाता है 

बड़ी लम्बी  है ये जिंदगानी 
की बड़ी छोटी सी, अपनी कहानी 
की कहता है अब ये तुझसे, मेरी आँखों का ये पानी 
 राजा बन जाऊ मैं तेरा , बन जाये तू मेरी रानी 
की कहीं अधूरी न रह जाये, ये तेरी मेरी कहानी 


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the burning city

जलता शहर  - jalta shahar


ये तेरे शहर मे उठता धुंआ सा क्यो है
यहाँ हर शक्स को हुआ क्या है
बह रही है खून की नदियाँ यहाँ
जाने वो कहता खुद को खुदा कहा है

हर हाथ मे खंजर
और वो खौफनाक मंजर
दिलो को दिलो से जोड़े
ना जाने वो दुआ कहा है

ना तू हिन्दू ना में मुस्लिम
फर्क बता दे लहू मे जो
उन जालिमो का काफिला कहाँ है

सब खेल है सियासतदारो का
और उनके वफ़ादारो का
हम और तुम तो शतरंज के प्यादे है
अभी और खतरनाक उनके इरादे है

अभी तो शुरु हुआ खेल है देखो
आगे किस किस का होता मेल है देखो
गाँव से लेकर शहर तक दिलो मे पीर है देखो
कभी जाति कभी आरक्षण कभी मजहब और धर्म के चलते तीर है देखो

आज बहा लो खून है जितना चाहे
छीन लो सुकून तुम जितना
वही लहू निकलेगा एक दिन अश्क़ो से तुम्हारे
वही सुकून तुम भी चाहोगे
पर कोई ना होगा पास तुम्हारे
जब तक सियासतदारो को पहचानोगे
जब तक इस खेल को जानोगे .. जब तक इस खेल को जानोगे.

ये तेरे शहर मे उठता धुंआ सा क्यो है ..........



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राजनीति पे कविता

jane tu ya jane na

जाने तू या जाने ना  jane tu ya jane na  -


कब  मैंने  कहा था  की मुझे तुझपे ऐतबार नहीं 
इन छोटी छोटी बातों में प्यार नहीं 
कही अफसाना न बन जाये अपनी कहानी 
कही तू मत कह देना की तुझे मुझसे प्यार नहीं 

वो भीगते हुए  तेरे दीदार की चाहत 
वो  तेरी मुस्कुराहटो  में ढूंढती  हंसी अपनी 
वो  इन्तजार  में बैचेन निगाहें 
जाने तू या जाने ना 

काश कभी जिंदगी में वो मुकाम आता 
की बताते तुझे अपने दिल का हाल 
काश की तू इतना न भाता 
की बदली न होती अपनी चाल 


काश की इन धड़कनो में तू न  समाता 
की हर तरफ तू ही नजर आता 
इश्क़ हो गया है तुझसे 
माने  तू या माने  ना 
अधूरी सी लगती है जिंदगी अब तेरे बिन 
जाने तू या जाने ना 



 

mahfil a dilli

महफ़िल ए दिल्ली  mahfil a dilli   



आज महफ़िल में तूफ़ान मचाते है हम 
चलो जरा दिल्ली घूम कर आते है हम 

रंग बदली है और बदली है फिजा भी देखो 
चारो तरफ धुंध ही धुंध  है और हवा भी  देखो

रंग बदला है देखो  आज उस दिल्ली का 
आप के हाथ में आज कमल है  देखो    

जहां मुमताज महल लाल किले  का जिक्र हुआ करता है 
पता नहीं  उस पर भी कब धब्ब्बा  लग जाये देखो 

दिल्ली ने तो दिल्ली वालो  को ही लूट लिया 
जनता भी उसमे पिसती  है देखो 

जिन्हे वोट देकर जिताया सभी ने 
आज उन्ही को अपने बयान पर माफ़ी मांगकर रोते देखो 

क्या कहे बड़े लोगों  की बातो को  
इनसे तो सच्चा गरीब का बच्चा है देखो 

जहाँ बड़े लोग लुटाते है देश का धन अपने स्वार्थ में 
देश के लिए जो मर - मिटे
उनके अपनों के दुखों को बांटकर तो देखो 

महलो में तो सजती रही है महफिले लाखो 
कभी गरीबखानो में भी महफिले जमा कर देखो 


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राजनीति पे कविता 

ye dil

ये दिल 



ye dil


बहुत कुछ कहती है निगाहे तेरी
कह दे की तुझे मुझपे ऐतबार नहीं

तेरा मुड़ के यूँ देखना , उसपे इस दिल का धड़कना
कह दे की ये प्यार नहीं


मेरी गलियों से तेरा गुजरना कोई तो बात है

मुझे आज भी याद वो पहली मुलाकात है
वो खाली खत वो लाल गुलाब
कुछ तो जरूर होंगे  तेरे ख्वाब

 खत था खाली  पर  था उसमे  प्यार भरा
हसरतो भरा था संसार तेरा

कैद हो चूका था मैं तेरे प्यार में
गुजरती थी सुबह और शाम उन्ही गलियों में मेरी
सिर्फ और सिर्फ तेरे इन्तजार में


हर सांस पे लिख चुका था नाम तेरा

धड़कन करती थी ऐतबार  तेरा

रात कटती थी तन्हाई में मेरी 
और तेरी यादों के सहारे  ही हो जाता था सवेरा 

 बंद क्या हुआ तेरा मेरी गलियों से गुजरना 
धीमी पड़ी धड़कन 
शुरू हुआ आँखों का झरना 

ढूँढा तुझे सारे जहाँ में 
पर तू न जाने कहाँ खो गई 
पता चला की तू अब 
किसी और की हो गई। 

हम भी सुनकर मुस्कुराने लगे 
हंसने लगे और गाने लगे 

सोचा की गम में दर्द दिल में रहता  है
और उसी दिल में तू बसता  है....... ....... .... और उसी दिल में तू बसता  है   

                                                                             
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खामोश लब 
नया दौर 

khamosh lub



खामोश लब khmosh lub


खामोश लबो से बोलते क्यों नहीं  ?
दिलो के दरवाजे खोलते  क्यों नहीं  ? 


माना की डरते हो अब लहरों से भी तुम  
तो क्या हुआ , जो बारिशो में अब भींगते क्यों नहीं  ?


जलाते थे आँधियो में भी चिराग तुम 
फिर बैठे हुए अब थकते क्यों नहीं ?


तन्हाई से बेशक मुहब्बत है अब तुम्हे 
कभी ज़िन्दगी से मुहब्बत करते क्यों नहीं ?
देखते हो बैठ के लम्हो  को गुजरते हुए 
कभी इन पलो  में गुजरते क्यों नहीं ?

जिंदगी लेती है इम्तहान हर कदम पर 
फिर अपने कदमो को बढ़ाते क्यों नहीं  ?

कदम दर कदम मंजिल पास आती जाएगी तुम्हारे 
फिर  मंजिलो को पाकर भी मुस्कुराते क्यों नहीं ?

क्या राज है क्या  दर्द है तुम्हारा 
कभी इस जहाँ को बताते क्यों नहीं ?

खामोश ............  
                                                                                                                                                                                      रायजी 
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