लहू
लाल हूँ ,लहू हूँ , अछूत नहीं
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खून हूँ , सुकून हूँ ,ना बहुँ तो थम जाते हो
बह जाऊ तो डर जाते हो
बहाते हो तो क्या पाते हो
बहता हूँ पीढ़ी दर पीढ़ी
इसीलिए तो हर पीढ़ी को आजमाते हो
लाल हूँ , बवाल नहीं
ये सबको क्यों नहीं बतलाते हो
कभी तलवार से कभी बन्दूक से
लाल के सिवा क्या पाते हो
एक बून्द बनता हूँ कई लम्हो में एक ही लम्हे में मुझे बहा जाते हो
काश कभी आये ,वो भी सवेरा
चली जाये जाति ,ना रहे तेरा मेरा
सुर्ख लाल हूँ , सुर्खियों में रहता हूँ
बंदिशे बहुत है, सबको सहता हूँ
फिर भी हर बार, यही कहता हूँ
बिना भेद के हर रगो में बहता हूँ
लाल हूँ, लाल गुलाब की तरह
खुशबू ए चमन की तरह
अमन से रहता हूँ
लाल हूँ लहू हूँ अछूत नहीं .. ... .. ..
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