बरेली का पेड़ा - 3 bareli ka peda
कहते है की इंसान की अच्छाई उसके कार्यो से परिलक्षित होती है और अच्छे इंसानो मांग हर जगह रहती है।
बुजुर्ग व्यक्ति द्वारा भर पेट भोजन हो जाने के बाद विजय उसे लेकर अपने साथ बाहर निकलता है वह सोचने लगता है की अभी तो मैंने इसकी मदद कर दी परन्तु इनका प्रतिदिन का गुजारा कैसे होगा विजय को विचारमग्न देख त्रिशा उससे पूछ बैठती है :
त्रिशा - "क्या सोच रहे है मैनेजर साहब "
विजय -जी कुछ नहीं मैडम
त्रिशा ( बुजुर्ग की तरफ इशारा करके बोलती है की) - मैं सोच रही थी क्यों न इनकी काबिलियत के अनुसार इनको अपनी कोल्हापुर वाली फ़ैक्ट्री में कुछ हल्का सा काम दे दिया जाये जिससे की इनके दैनिक दिनचर्या का काम पूरा हो सके।
विजय जिस बात को लेकर चिंता कर रहा था उसका समाधान इतनी आसानी से मिल जायेगा उसने सोचा भी नहीं था। उसने मैडम का शुक्रिया अदा किया और बुजुर्ग से इस सिलसिले में बात करने को मुखातिब हुआ बुजुर्ग भी उनकी बाते सुन रहा था और उसके मन में कही न कही उन दोनों के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई थी इसलिए वो उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गया।
विजय - मैडम मुझे तो मालूम भी नहीं था की आपका ह्रदय इतना विशाल है सत्य ही है आप अठावले जी जैसे महान इंसान की संस्कारवान पुत्री है।
त्रिशा - नहीं मैनेजर साहब, गुण तो आपके अंदर भरे हुए है मुझे लगा आप भी आज की पीढ़ी की तरह ही व्यावसायिक रुख अख्तियार करते होंगे परन्तु आप के अंदर मानवता जैसे गुणों का समावेश भी है ये आज जानने को मिला।
विजय - नहीं मैडम मैं तो एक अदना सा इंसान हूँ जिसे आपके पिता जी ने तराश के इस काबिल बनाया की वो भी समाज के लिए कुछ कर सके।
त्रिशा , विजय की शैली से काफी प्रभावित होती है और फिर वापस गाड़ी में बैठकर सभी सफर के लिए निकल पड़ते है .
विजय सोचता है की विदेश में रहकर भी इस लड़की के अंदर भारतीय संस्कार इस कदर भरे हुए है और एक वे लड़किया है जो भारत में रहकर भी विदेशी संस्कृति को अपनाने में विशेष रूचि दिखाती है। भारतीय संस्कृति आज भारत से निकलकर विदेशो तक में फ़ैल रही है और लोगो को एक सुव्यवस्थित जीवनशैली प्रदान कर रही है वही पाश्चात्य संस्कृति अपनों से ही अपनों को दूर करने में लगी है स्त्रियों के लिए परिवार का अर्थ स्वयं के पति तक रह गया है। रिश्तो की डोर कही न कही टूट रही है और नए स्वार्थवादी रिश्तो का जन्म हो रहा है। जिससे मनुष्य सबकुछ होने के बावजूद अंदर से खोखला होते जा रहा है।
ठण्ड के मौसम में गाड़ी अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ती है रास्ते में ही विजय बुजुर्ग से उनका नाम और पता पूछता है उसे ताज्जुब होता है ये जानकर की ये मामूली सा दिखने वाला आदमी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रह चुका है जिसके दोनों लड़को ने उसे घर से निकाल दिया और सारे पैसे तथा संपत्ति पर अपना अधिकार कर बैठे।सरकार की तरफ से मिलने वाली पेंशन भी अभी कार्यालयों के चक्कर काट रही है। अभी वह और कुछ जानता तब तक त्रिशा उसे बहार का मनोहारी दृश्य देखने को कहती है सूरज भी अब ढलने ही वाला था की वे कोल्हापुर में प्रवेश करते है। गाड़ी एक शानदार होटल में जाकर रूकती है जहा पहले से ही सबके कमरे आरक्षित रहते है।
ड्राइवर और भीकू सामान उतारते है और बाकि लोग रिसेप्शन की ओर आगे बढ़ते है।सबके कमरे तो आरक्षित थे सिवा उन बुजुर्ग के इसलिए विजय उनको अपने कमरे में साथ ले गया।त्रिशा रात में भोजन साथ में करने की बात कहकर अपने कमरे में विश्राम करने चली गई। क्योंकि अभी तो वो रात बाकि थी जहाँ से कहानी एक नया मोड़ लेने वाली थी।
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