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karnatka election

कर्नाटक चुनाव

karnatka election

आज की बात कर्नाटक के साथ शुरु करते है जहां सारे राजनीतिक दल अटक से गये है . जनता का विश्वास अगर सबसे ज्यादा चुनावो के बाद अगर किसी पर है तो वो है अमित शाह . हर तरह की राजनीति मे भाजपा के लिये क़िला फतह करके लाने वाले अमित शाह के दिमाग मे कर्नाटक चुनावो के बाद सरकार बनाने के लिये क्या चल रहा है अभी कोई नही जानता लेकिन सब इतना जरूर जानते है की इस खेल का उनसे बड़ा महारथी  कोई नही है . फिलहाल एक बात जो स्पष्ट है वो ये है की कर्नाटक चुनाव मे जनता ने किसी एक पार्टी को निस्चित तौर पर बहुमत नही दिया है भले ही अधूरे बहुमत मे कोई पार्टी सबसे ज्यादा सीटे लाई हो .


कहते है की प्यार और जंग मे सब जायज है शायद भाजपा ने अपने लिये ही इस फार्मूले का जन्म माना है . मौजूदा राजनीतिक हालत मे कांग्रेस और जेडीएस के सरकार बनाने के प्रबल आसर है . भाजपा को इसके लिये विपक्षी कुनबे मे तोड़फोड़ की आवश्यकता पड़ेगी इसके लिये विपक्षी खेमा सतर्क है की उसके सिपाही कही ज्यादा वेतन के लालच मे अपनी निष्ठा का त्याग करते हुए भाजपा के साथ ना चले जाये .

खैर देखना दिलचस्प होगा की कर्नाटक मे किसकी सरकार बनती है . क्योंकि गोआ की हार कांग्रेस अभी भूली नही है और इस बार मदर्स डे के अवसर पर कमान भी सोनिया गाँधी ने संभाल ली है .

वैसे   भाजपा की प्रत्येक जीत के पीछे राहुल गाँधी का हाथ जरूर है क्योंकि भाजपा का नारा ही यही है आप का हाथ हमारा विकास . आज बहुत सी बातें या बातों का तरीका कई लोगो को नागवार लग सकता है लेकिन यह इतना भी नही जितना चुनावो के दौरान एक दूसरे के लिये प्रयुक्त होनी वाली मधुर भाषा .
वैसे इन दिनो एक कहावत चलन मे ज्यादा ही है , चीते की चाल , बाज की नजर और अमित भई शाह पर शक नही करते .

game of politics

राजनीति  का खेल 



हिन्दू-  मुस्लिम ना कर बंदे
खेल है उनके सारे गन्दे
विकास की आस बस तेरे पास
तेरे खून से बुझेगी अब उनकी प्यास

उनके घर मंदिर मस्जिद
उनके घर मे सारी जात
तेरे लिये जतियो मे जात
तेरे लिये बस लव जेहाद

क्या कांग्रेस और क्या बीजेपी
क्या माया और क्या मुलायम
राज करेंगे सारे नेता
जबतक जाति और धर्म है कायम

तेरी समझ का खेल नही ये
जिसको कहते राजनीति है
मानवता का मेल नही ये
जिसको कहते राजनीति है

बातें करते ये बार - बार
काम ना करते एक भी बार

मुद्दे है इनके सारे बेकार
जनता से कहे ये हर बार

मौका दे हमको बस एक बार
अबकी बार मैं  कहूँ सारे बेकार
है बस अब उसका इंतजार
जो  मिटा दे नफरत करे सबसे प्यार
ना कराये विकास को लम्बा इंतजार



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jinna karenge des ka vikas

जिन्ना करेंगे देश का विकास -


जिन्ना करेंगे देश का विकास



भारतीय राजनीति आजकल विकासवादी ना होकर इतिहासवादी होते जा रही है . मुझे नही पता था भारतीय राजनेताओ का इतिहास ज्ञान ही उनके चुने जाने की काबिलियत है . वैसे कभी नेहरू कभी पटेल कभी श्यामा प्रसाद तो कभी गाँधी छाये रहते है . आजकल तो भई जिन्ना जी धूम मचा रहे है , एक इतिहासकर होने के नाते में इस विषय पर लम्बी चर्चा कर सकता हूँ . लेकिन असल मे मुद्दा यह  नही है की जिन्ना ने क्या किया मुद्दा तो यह  है की हमारे राजनेता क्या कर रहे है क्या जिन्ना पर चर्चा करके हम विलंब से चलने वाली ट्रेनो को नियत समय पर ला सकते है . क्या जिन्ना देश मे बढ़ती बेरोजगारी की प्रमुख वजह है ,आज जिन्ना कुछ नही है, जिन्ना थे और जो था उसके लिये तो में इतना कहना चाहूंगा की जब हम लाखो करोड़ो की संपत्ती छोड़कर जाने वाले अपने परदादा को नही याद करते तो जिन्ना को लेकर इतने ज्यादा चिंतित क्यो नजर आते है . 

हो सकता है जिन्ना की वजह से पाकिस्तान जैसे नापाक राष्ट्र का निर्माण हुआ हो पर क्या जिन्ना को याद करके हम इस बात का समर्थन नही करते की उन्होने जो किया वो सही था या गलत . अगर लोगो को इतिहास मे जाने का इतना ही शौक है तो कम से कम शुरुआत तो प्राचीन इतिहास मे हड़प्पा सभ्यता से करते की 5000 साल पहले हमारे पास इतनी विकसित और सुव्यवस्थित सभ्यता थी जितनी आज नही है . आज बस तकनीकीयो मे इजाफा हुआ है पर हम सभ्यता तो भूलते जा रहे है . उसके बाद वैदिक सभ्यता मे आते जहा वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा दी गई , जहा स्त्रियो को समान अधिकार दिये गये , जहा स्त्रिया निडर होकर आवगमन करती थी . जहा महान वेदो की रचना हुई . पूरे इतिहास मे घूम फिर के सीखने के लिये नेहरू और जिन्ना ही मिलते है .

 जिन्ना के जिन्‍न को बोतल से निकलने के पीछे इन राजनेताओ की मंशा समाज मे जहर घोलती राजनीति के सिवा कुछ नही है . अगर जिन्ना का जिन्‍न गड्ढा युक्त सडको को भर सकता है तो बेशक उसे बोतल से निकालिये . अगर जिन्ना का भूत भ्रष्टाचारियो को डरा  सकता है तो उसकी पूजा कीजिये . अगर जिन्ना की आत्मा समाज मे फैलती अशान्ति को शांत कर सकती है तो उसके लिये मोमबत्तियाँ जलाईये . हम इस पर चर्चा करके कुछ नही पा सकते सिवा खुराफाती दिमाग के सुकून के की भारत विभाजन के लिये जिम्मेदार कौन था . सदियाँ निकल जायेंगी परंतु हम सबको संतुष्ट नही कर पायेंगे . परंतु अगर हम आज एक अच्छी सरकार चुनकर लाते है तो आने वाली पीढियाँ अपनी जिंदगी सुकून से जी सकती है और हम पर गर्व कर सकती है . हमे जरूरत है अब सवाल करने की जब तक हम सवाल नही करते तब तक हमे ऐसे ही मुफ्त के बेमतलब वाले मुद्दो मे उलझाकर रखा जायेगा , जब हम सवाल करेंगे तब शुरुआत होगी बदलाव की तब मुद्दे होंगे बिजली, पानी , सड़क , स्वास्थ ,शिक्षा , नारी सुरक्षा ऐसे ही अनेक और मुद्दे जिनकी तकलीफ हमे और आपको अपनी छोटी सी जिंदगी मे उठानी पड़ती है ना की हमारे राजनेताओ को .

congress family and country

कांग्रेस, परिवारवाद और देश


congress family and country


देश की सबसे बड़ी राष्‍ट्रीय पार्टीयो मे से एक कांग्रेस आज एक बार फिर अपने बुरे दौर से गुजर रही है . कांग्रेस पार्टी और उसके आलाकमान को आवश्यकता है की एक बार फिर से अपनी सम्पूर्ण राजनीतिक गतिविधियो की निस्पक्ष रूप से समीक्षा करे और कुछ बेहतरीन चेहरो को महत्वपूर्ण जिम्मेदारिया देकर आगे करे .
कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या यह है की वह एक परिवार विशेष तक सिमट कर रह गई है और अपने राजनीतिक स्वार्थ हेतु पार्टी मे किसी के अंदर इतनी हिमाकत नही है की वह इस बात को स्वीकार करे और परिवार का बर्चस्व पार्टी से समाप्त करे . एक अच्छी सरकार के साथ एक मजबूत विपक्ष का होना भी आवश्यक है जिससे सरकार से संसद से लेकर सड़क तक मजबूती से सवाल किया जा सके . परंतु कहते है न सत्ता का नशा ऐसा है जिसके आगे सारे नशे फेल हो जाते है . वैसा ही नशा विदेश से आई एक महिला के अंदर भी समाहित हो चुका है जिसकी परिणिती आज कांग्रेस पार्टी भुगत रही है .
यदि आप वास्तव मे एक ऐसे देश का भला चाहते है जिसने आपको स्वीकार करते हुए देश को आगे ले जाने का मौका दिया है तो आप का फर्ज है की वास्तविकता को समझते हुए देशहित मे कार्य करे . अगर आप ऐसा नही करते तो कही ना कही आपकी महत्वाकांक्षा सामने आती है .पर्दे के पीछे से सत्ता नियंत्रण वही करते है जो जनता के प्रति जिम्मेदार नही होते और अपनी लूट खसोट की नीति को आगे बढ़ाते  है.  आज सरकार मे कुछ भी घटित होने पर जिस प्रकार मोदी को जिम्मेदार ठहराया जाता है संप्रग शासन काल मे पहला निशाना मनमोहन सिंह की चुप्पी होती थी परंतु उस चुप्पी के पीछे की वजह बताने कोई आगे नही आता था .

2014 का परिणाम उसी चुप्पी का नतीजा है जिसका खामियाजा आज भी कांग्रेस भुगत रही है . कांग्रेस आज केवल सरकार  की कमजोरी और सत्ता विरोधी लहर के सपने देख रही है जिसके बूते वो अपनी वापसी कर सके नाकी अपने नेतृत्व के भरोसे आज उसे छोटी - छोटी क्षेत्रीय पार्टीयो का पिछ्ल्गु बनने मे भी गुरेज नही है . सोनिया गाँधी ने सरकार को कठपुतली की तरह नचाया और सत्ता बरकरार रखने के लिये देश की साख से भी खिलवाड़ किया उसी का परिणाम है की जनता कांग्रेस को विपक्ष के रूप मे भी नही देखना चाहती . उपचुनावो मे भी कांग्रेस आज अपनी जमानत नही बचा पा रही है . आखिर बाप दादा के नाम पर देश कब तक कांग्रेस को ढोती रहेगी . कांग्रेस की चर्चा होने पर अक्सर ही इंदिरा से लेकर राजीव ,नेहरू का जिक्र होता है क्या भविष्य मे जनता सोनिया या राहुल का जिक्र भी उसी अनुसार करेगी .
कांग्रेस मे आज भी नेताओ की कमी नही है परंतु नेहरू काल से ही विकसित वफादारी की परम्परा आजतक कायम है . कांग्रेसी नेताओ को समझना चाहिये की वफादारी पार्टी से और देश की जनता के प्रति होनी चाहिये ना की परिवार से . आज अगर उन्होने थोड़ी सी भी वफादारी देश के प्रति दिखाई होती तो जनता एक बार उनके विषय मे अवश्य ही  चिंतन करती . परंतु आज यदि कांग्रेस अपने हर बात मे अतीत का जिक्र करना छोड़ दे और वर्तमान के मुद्दो को लेकर चले तो भ्रस्टाचार से लेकर तुष्टिकरण तक की नीति मे उसके पास कोई जवाब नही रह जाता . बांटो और राज करो की नीति से जिस पार्टी की शुरुआत हुई थी वह आज उसी को लेकर भाजपा पर इल्जाम लगाती दिख रही है आखिर कांग्रेस ने कुछ तो ऐसा जरूर किया होगा जिसकी वजह से विश्व के सबसे बड़े हिन्दू राष्ट्र का हिन्दू भी उससे कतराने लगा है . आज राहुल गाँधी मंदिरो के चक्कर लगाने पे मजबूर है आखिर किसी ना किसी प्रकार का सर्वे उनके पास जरूर आया होगा जिससे वे  ऐसा करने पर मजबूर है .


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choti see bat

भाजपा को  लेकर छोटी सी बात- 


 मुझे आजतक नही पता था की देश मे मोदी भक्त कितने है लेकिन अगर उनकी संख्या 18 करोड़ है तो में इस बात को लेकर आश्वस्त हूँ की 2019 मे ये 18 करोड़ देशभक्त सिर्फ अपनी श्रीमतीजी का वोट ही भाजपा को दिला दे तो सरकार एक बार फिर भक्तो की ही रहेगी . 

बोफोर्स घोटाले मे ही तोता(सीबीआई ) द्वारा लन्दन की अदालत मे कहा गया की क्वात्रोची के खिलाफ  कोई सबूत नही है कोर्ट द्वारा खाता सील किये जाने से पूर्व ही पूरा पैसा निकल लिया गया अब क्वात्रोची के बारे मे पूरी जानकारी कही भी मिल जायेगी. उस समय सीबीआइ प्रमुख जोगिन्दर सिंह ने अपने उपर पड़ने वाले दबाव का जिक्र विस्तार से अपनी किताब मे किया है क्वात्रोची को बचाने  के लिये ही राजीव गाँधी ने अपने प्रिय मित्र अमिताभ बच्चन को फंसाया था इसका भी खुलासा कुछ दिन पूर्व ही उस समय स्वीडिश जांच एजेन्सी के प्रमुख ने किया था . 2जी स्पेक्ट्रम यदि घोटाला नही रहता तो सुप्रीम कोर्ट ए राजा को इतने दिन तक जेल मे सब्जी उगाने का काम नही देती और नाही राजग के समय होने वाली  स्पेक्ट्रम आवंटन मे उतना पैसा मिलता जितना विनोद राय  द्वारा कहा गया . उस समय की जांच को कांग्रेस द्वारा ही प्रभावित किया गया और कॉल आवंटन से सम्बंधित कई फाईले आग के हवाले की गई .   


कर्नाटक चुनावो मे यदि जनता को लगता है की वहा से बीजेपी प्रत्याशी भ्रष्ट है तो उसका जवाब वो इन चुनावो मे जरूर देगी .रही बात कश्मीर समस्या की जोकि कांग्रेस के परदादा की देन  है  तो वहा जिससे भी गठबंधन हो परंतु अलगाववादियो और आतंकवादियो पर आई शामत और सेना को मिली छूट जो की पत्थरबाजो  को आज जीप की बोनट पर घुमा रही खुद ही इसकी गवाही देते है . म्यानामार  की सीमा मे हम घुस कर आतंकवादियो से बदला लेते है , त्रिपुरा मे इसी कांग्रेस ने अपनी देशभक्ति का सबूत देते हुए आजतक तिरंगा नही लहराने दिया वहा आज शान से हम इसे सलामी देते है . आज आम आदमी को 1 रुपया पर बीमा उपलब्ध है स्वास्थ के लिए सस्ती दर पर बीमा उपलब्ध है . किसानो का कर्ज़ माफ होता है  पहली बार किसी सरकार ने कम से कम उनकी आय दूनी करने के बारे मे सोची तो वर्ना कांग्रेस वाले सिर्फ जीजा जी की आय बढाने के बारे मे ही सोचते थे उन्ही जीजा जी पर भाजपा सरकार ने 18 मामलो मे सीबीआइ जांच बैठा रखी है थोड़ा तो इंतजार कीजिये नही तो जीजा जी जेल चले गये तो सासु मां की तबियत वैसे ही खराब चल रही है . इतने भी निर्दयी नही है भाजपा वाले .

modi bhakti

भक्त उसी के होते है जिसके कार्य महान होते है




एक होते  है प्रशंसक उसके बाद अनुयायी और सबसे बड़ा भक्त , भारतीय राजनीति मे शुरुआती दोनो प्रकार के लोग सदैव रहे है परंतु भक्त आजतक कोई राजनेता नही बना सका है . यह पहली बार है जब किसी नेता के अनुयायियो को भक्त कहा जाता है उसपर से अंधभक्त .


 कहा जाता है की भक्ति से ही शक्ति है यही कारण है की इन्ही भक्तो की भक्ति से प्राप्त शक्ति के कारण मोदी भारतीय राजनीति का वो चेहरा बन घुके है जिनपर लगने वाले आरोपो से उन्हे लाभ ही होता है . दशको बाद भारत को एक ऐसा नेता मिला जिसकी ईमानदारी पे किसी को कोई शक नही यह बात अलग है की पिछली सरकार अपने द्वारा किये गये भ्रष्टाचार का खामियाजा आजतक भुगत रही है और इस सरकार पर भी बेवजह आरोप लगाने से नही चुकती . 

लेकिन वो भूल जाती है की लोगो ने सरकार को भरपूर समर्थन दिया है और राज्यो मे होने वाले चुनाव यह बताते है की लोगो की भक्ति मे किसी तरह की कमी नही आई है . शासन के दौरान सुधार हेतु कुछ ऐसे निर्णय भी लेने पड़ते है जिनसे जनता मे नाराजगी उत्पन्न होती है इसी कारण कई राजनीतिक पार्टिया देश हित को त्याग कर वोट बैंक की राजनीति हेतु ऐसे निर्णय लेने से बचती है . मोजुदा सरकार ने इसकी परवाह ना करते हुए देशहित मे ऐसे अनेक निर्णय लिये जिनका लाभ भविष्य मे मिलना तय है परंतु इन्ही सब को लेकर विपक्ष द्वारा दुष्प्रचार की नीति जारी है .

 परंतु वे भी चाहे जितना प्रयास करले भक्तो के आगे सब विफल है . अगर उनमे काबिलियत है तो केवल अपने बिना लाभ वाले अनुयायी ही बनाकर दिखा दे भक्त तो दूर की बात है. फिलहाल विपक्ष भारतीय राजनीति मे खलनायक का वो चेहरा है जो हमे फिल्म नायक मे देखने को मिलता है जिसमे सारे विरोधी मिलकर भी एक नायक का कुछ नही कर पाते क्योंकि ये पब्लिक है ये सब जानती है .

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modi vs apposition

मोदी बनाम विपक्ष  modi banam wipaksh - 



लगभग साठ सालो तक देश की बागडोर संभालने वाली कांग्रेस आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड रही है , कारण 2014 से चलने वाली मोदी लहर .

modi vs apposition मोदी लहर के चलने के अनेक कारणो की समीक्षा की जा सकती है लेकिन अगर कहा जाये वर्तमान मे मोदी लहर कमजोर पड़ी है तो क्या आप बता सकते है की किस पार्टी या नेता की लहर मजबूत हो रही है , क्या मोदी का मुकाबला करने की थोड़ी सी भी हैसियत उस विपक्ष मे है जिसका संवाद जनता से टूट चुका है . विपक्ष के पास जब - जब सत्ता मिली है उसने देश को सिर्फ और सिर्फ लूटने का ही कार्य किया है क्या विपक्ष की सत्ता प्राप्ति का उद्देश्य और मोदी सरकार की सत्ता प्राप्ति का उद्देश्य एक ही है  जवाब आपको भी पता है .


यही वजह है की पूरा विपक्ष एकजुट होकर भी मोदी का मुकाबला नही कर सकता क्योंकि विपक्ष की नीयत जनता अच्छी तरह जानती है . भारत जैसे विशाल देश मे लोगो की अपेक्षाये भी विशाल ही होती है और अपेक्षाओ पर निस्चित समय मे खरा उतारना  ईश्वर के बस की ही बात है. लेकिन उसकी शुरुआत करना और इस बात का भरोसा लोगो मे  होना की देश विकास की ओर अग्रसर है सरकार की किसी उपलब्धि से कम नही है . विश्‍व मंच पर भारत जिस तरह अपनी उपस्थिति दर्ज कराते जा रहा है  उसका श्रेय निश्‍चित  ही मोदी सरकार के खाते मे जायेगा .


नोटबंदी जैसे मुद्दे को विपक्ष ने भुनाने की कोशिश  की पर कभी इसका जिक्र नही किया की  कैसे जाली नोट और आतंकवाद की कमर तोड़ने मे इसने अहम योगदान निभाया  . नोटबंदी से भारत मे एक ऐसी व्यवस्था ने ज्न्म लिया जिसमे करो की चोरी करने वाले  लोगो के मन मे दहशत  पैदा हुई .


आधार कार्ड का सबसे अधिक विरोध वे लोग ही ज्यादा करते दिखे जिनकी अनेक बेनामी संपत्तियाँ उजागर होते जा रही है आजतक के भारतीय इतिहास मे ऐसा पहली बार हुआ जब किसी सरकार ने  राम रहीम जैसे ढोंगी बाबाओ को सालांखो  के पीछे पहुचाया  जिसकी कल्पना किसी अन्य सरकार मे नही की जा सकती . लालू जैसे चारा चोर को जिस सीबीआइ  ने  आजतक राहत दे रखी थी वही आज उसके सारे मामलो को अदालत से जल्द फैसला दिलवाने मे लगी हुई है . पाकिस्तान  मे मोदी की दहशत इसी से समझी  जा सकती है की आज वहा मोदी  का विरोध करके पार्टियाँ अपनी राजनीति की दुकान चलाती है .


उसी राजनीति की दुकान को चलाने के लिये आज सारा विपक्ष एकजुट है जो आज मोदी की वजह से बंद हो चुकी है . 2019 को पास आता देख विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार का कार्य शुरु हो चुका है . और इसके लिये तमाम  तरह की तकनीको का भी भरपूर प्रयोग किया जा रहा है जिसमे हाल मे हुई फेसबूक और कैम्ब्रिज एनालिटिका द्वारा मिलकर  फेसबूक उपयोगकर्ताओ  की सूचनाओ  को चुराकर उनकी सौदेबाजी करना शामिल है .



वर्तमान भारतीय राजनीति मे कोई भी पार्टी  मोदी के दूर - दूर तक नही दिखाई देता विपक्ष चाहे जितना जोर लगा ले लेकिन जब तक मोदी स्वेच्छा से राजनीति का त्याग नही करते तब - तक भारतीय प्रधानमंत्री की कुर्सी की शोभा वे ही बढाएंगे .
   
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girgit ki bechaini

गिरगिट की बेचैनी  -girgit ki  bachaini 


मेर घर के छोटे से बगीचे मे पौधो के बीच अनेक गिरगिट है जो की पानी देते वक़्त या पौधे के पास जाने पर अचानक से प्रकट होते है तथा मुझे देखके भागने लगते है पौधो के बीच वे रंग बदलकर उन्ही मे घुलमिल जाते है .कल शाम को पौधो मे पानी देते वक़्त अचानक से एक गिरगिट बाहर निकल कर आया  तथा भागने की बजाय मुझे देखने लगा वह  कुछ व्यथित सा नजर आ रहा था , इतने दिन मेरे घर मे रहते हुए उसे पता चल गया था की मैं एक लेखक हूँ .इसलिये भागने की बजाय वो मुझसे कई सारे सवाल पूछने लगा .

girgit ki bechaini

  
उसका पहला प्रश्‍न अपनी पहचान को लेकर था उसको लग रहा था की जिस पहचान के कारण उसकी नस्ल संसार भर मे प्रसिद्ध है उसको उससे छीनने का प्रयास किया जा रहा है .
मैने अन्जान बनकर जानना चाहा की कौन उसकी पहचान छीन रहा है . वो भी बड़ा चतुर था उसने मेरी तरफ इशारा कर दिया .
मैने पूछा में उसकी पहचान कैसे छीन रहा हूँ . 
अब वो गंभीर मुद्रा मे आ गया - बोला तुम कौन हो 
 अचानक ही मेरे मुंह से निकल गया आम आदमी  
गिरगिट - इसी आम आदमी का उदाहरण दे दे कर तुम्हारे जैसा एक इंसान आज खास आदमी बन गया .
न जाने कितने रंग बदले उसने पिछ्ले ही दिनो पढ़ा था उसने एक नया रंग खोज निकाला जिससे कीचड़ भी सॉफ हो जाता है .
क्या नाम था उसका ........ हाँ  माफीनामा , न जाने कितनो पे कीचड़ उछालने के बाद उसने इसका इस्तेमाल किया .
मैने भी उससे पूछ ही दिया - पर किसी से माफी मांगने मे क्या बुराई है .
गिरगिट - लो कर लो बात ऐसे तो हर कोई एक दूसरे पे कीचड़ उछालता रहे और तुम लोगो के चारो ओर दलदल ही दलदल हो जाये . क्या फिर तुम उसे माफीनामा से साफ कर पाओगे . बिल्कुल नही उसकी कीमत तो तुम्हे चुकानी पड़ेगी . कीचड़ उछालने से तुम्हारे हाथ भी गन्दे होंगे और सामने वाला भी तुम्हारी कुटाई को तैयार रहेगा . फिर चाहे कितना भी माफीनामा से सॉफ करते रहो ना तुम्हारा मैल सॉफ होगा ना उसका .
वो धीरे - धीरे अब अपने प्रमुख मुद्दे की ओर अग्रसर होने लगा था. 
गिरगिट - जबसे तुम आम आदमी राजनीति मे आ जाते हो पता नही ऐसा क्या हो जाता है की लोग तुम्हारी कसमो , वादो पर भी ऐतबार नही करते . कभी तुम केसरिया रंग लेकर किसी इलाके मे मांसाहार का विरोध करते हो. तो कभी किसी इलाके मे चुनाव जीतने के लिये उसे भी जायज ठहराते हो . यार इतनी तेजी से तो हम रंग नही बदल पाते जितनी तेजी से तुम लोगो की पार्टिया बदलवाते हो . अभी तक तुम्हारे नाम फेंकू , पप्पू  , जैसी कम उपाधिया थी जो अब हमसे हमारी पहचान छीनने मे लगे हो . 
हमारे रंग बदलने से तो किसी का नुकसान नही होता पर तुम्हारे रंग बदलने से कितने लोगो की उम्मीदे  टूटती है कुछ अंदाजा भी है तुम्हे , उस जनता के साथ - साथ  तुम मानवता के साथ भी   विश्वासघात करते हो . 
इतने रंग बदलते हो की तुम्हारा कोई रंग ही नही रह जाता . कुछ दिनो मे मुहावरो मे से हमारा नाम हटाकर लोग कहेंगे क्या नेताओ की तरह रंग बदल रहे हो . और हम एक विलुप्त प्राणी बनकर रह जायेंगे.  

अब में उसे कैसे समझाता जिस देश मे नेताओ द्वारा धर्म , रंग , शाकाहार - मांसाहार , वंदे मातरम , राष्ट्र - गान , तिरंगे तक का कापीराइट अपनी पार्टी के नाम करा लिया जाता है वहां  ये तो बहुत ही तुच्छ जीव है जिसने अगर ज्यादा विरोध किया तो उसका अस्तित्व ही संकट मे पड़  सकता है . 


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hindutw


हिंदुत्व का मतलब समझा दो मुझे  hindutw ka matlab samjha do mujhe 

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आज अगर में हिन्दुत्व की बात करू तो मुझे किसी न किसी पार्टी से जरूर जोड़कर देखा जायेगा चाहे मेरी बात सकारात्मक हो या नकारात्मक . दरअसल आज हर धर्म अपने राजनीतिक रंग मे रंग चुका है ऐसा इसलिये संभव हुआ है क्योकी धर्म ही एक ऐसा माध्यम है  जो व्यक्ति की आस्था और अटूट विश्‍वास से जुड़ा हुआ है  जिसके फलस्वरूप वो अपना कीमती वोट भी धर्म के नाम पे अनुचित रुख अख्तियार करनेवाली पार्टीयो को दे सकता है . यही कारण है की  राजनीतिक पार्टीयो ने समाज को बरगलाने के लिये सर्वप्रथम धर्म को हथियार बनाया है उसके बाद जाति को . एक और बड़ी चीज जो पहले से विद्यमान थी और जो हमारी रग- रग  मे बसती है उस देशभक्ति और भारत मां का भी कापीराइट करा लिया गया है , यानी की अब धर्म से लेकर देशभक्ति तक सब मे  राजनीति समाहित हो चुकी है .


इन सब के साथ साथ रंग भी राजनीति की चासनी मे डूब चुके है और अलग - अलग पार्टीयो ने इसपर भी अधिकार जमा लिया है .

आप सोच रहे होंगे की हिन्दुत्व की बात करने से पहले इतनी भूमिका क्यो ? तो बात सॉफ है की हम भी पाक सॉफ है और साथ मे एक सच्चे हिन्दू भी जो की मानवतावादी है , जिसका धर्म उसे उन्माद फैलाने को नही कहता जिसके धर्म ने भारत माता  का कापीराइट नही कराया है और इस देश पे उतना ही सबका हक है जितना की मेरा .  देशभक्त होने के लिये मुझे अब इन राजनीतिक पार्टीयो के प्रमाणपत्र की जरूरत नही जिनका खुद का कोई ईमान नही होता जो अपनी भारत माँ  का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ अपने राजनीतिक हित  के लिये करते है बल्कि इनसे बड़ा देश द्रोही तो कोई और नही हो सकता जो अपनी माँ  का सौदा करते है जो  उस मां का दामन उसके  ही सपूतो को आपस मे लड़वा कर  खून से लाल करते हो  .

हिदुत्व हमे ये शिक्षा नही देता की हम उसमे राजनीति का मिश्रण करे , जिस हिन्दू धर्म के संस्कार का हम पालन करते है , हम उसकी विशेषताओ और सम्पूर्ण समाज के कल्याण की भावना से प्रेरित होकर कहते है की हमे ऐसे धर्म पे गर्व है जो की हमे शिक्षा देता है की संसार के कल्याण हेतु यदि प्राणो का न्योछावर भी करना पड़े तो हम हर्ष के साथ  उसका त्याग करदे जैसे की महर्षि दधीचि ने किया था . नाकी धर्म के नाम पर अपने ही भाई  - बन्धुओ  से बैर रखे . हिन्दू धर्म मे ही वसुधैव - कुटुम्बकम की अवधारणा दी गई है और इसी हिन्दू धर्म मे हमे सभी धर्मो का आदर करना भी सिखाया गया है . लेकिन अब हम अपने धार्मिक ग्रंथो को कहा पढ़ते है अब तो हमे जैसा दिखाया जाता है वैसा देखते है और जैसा सिखाया जाता है वैसा सीखते  है . अब तो बस हम हिन्दुत्व पे इसलिये गर्व करते है की हम बहुसंख्यक है , हम सरकार बनाते है वास्तविक गर्व का कारण  तो हमे पता ही नही है नही तो कई लोग हिन्दू कहलाने के लायक भी नही है . 


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aap ka mafinama



आप की कसम और आप का माफीनामा arvind kejriwal ka mafinama 

aap

बहुत दिन बाद भारतीय राजनीति में कुछ नया देखने को मिला , पहले तो अभिनेता राजनीति मे आते थे अब लोग राजनीति मे आने के बाद अभिनय करते है , इधर कुछ दिनो से तो भारतीय राजनीति मे अभिनय को लेकर भारी प्रतिस्पर्धा है और गिरगिट जैसे छोटे जीव के पास उतने रंग नही रह गये है जितने रंग राजनीति मे देखने को मिल रहे है . कुछ हद तक गलती आम जनता की भी है जो वास्तविकता और अभिनय मे अंतर नही कर पाती तभी तो अन्ना आन्दोलन मे राजनीति मे न आने की कसम खाने वाले अरविन्द केजरीवाल ने जब अपने बच्चो तक की कसमे खा ली तो जनता ने आँखमूंद कर विश्‍वास कर लिया.

इंडिया अगेन्स्ट करप्शन से शुरु हुई सेवा कब आम आदमी पार्टी मे बदल गई पता ही नही चला वहा भी हम उनकी राजनीति मे न आने की कसमो को भूल गये और 28 सीटे दे दी . इसी के साथ शुरु हुई बच्चो की कसमे की मर जायेंगे लेकिन कांग्रेस और भाजपा का साथ नही लेंगे , भगवान उनके बच्चो को अपने बाप की बुरी नीयत से बचाये लेकिन आखिर आप ने जिस कांग्रेस को पानी पी पी कर गरियाया था उसका साथ ले ही लिया . और जनता फिर एक बार आपके अभिनय की कायल हो गई अन्ना जैसे बुद्धजीवी ने भी आपके अभिनय की तारीफ बखूबी की .

आप की राजनीति शुरु ही आरोप लगाने से हुई आरोप ऐसे लगाये गये जैसा आजतक किसी ने सोचा न था जनता को कुछ नया देखने को मिला अब क्या कीजियेगा जनता को जब – जब कुछ नया या अलग हट कर अभिनय देखने को मिलता है तो वो उसकी ओर जरूर आकर्षित होती है और भूल जाती है की ये राजनीति है , तभी तो पहली बार किसी पार्टी के मुखिया ने उसी संसदीय क्षेत्र का चुनाव किया जहा से दूसरी पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी ने चुनाव लड़ने का एलान किया . आप की इसी अदाकारी ने आपसे वो करवा दिया जहा अभिनय के दम पर काम नही चलता सिर्फ और सिर्फ सबूत काम आते है . मीडिया मे बने रहने की जिस आदत की वजह से आप शीला दीक्षित से लेकर कपिल सिब्बल तक के खिलाफ सबूत होने की बात करते थे वो सारे सबूत आपके दुबारा मुख्यमन्त्री बनते ही गायब हो जाते है . लेकिन आप भूल जाते है की जनता छोड़ सकती है लेकिन अदालत सबूत मांगती है जो आप दे न पाये और अपनी हार होते देखते आप ने वो कर दिया जिससे आपकी पार्टी ही शर्मसार हो जाये . आपका माफीनामा भारतीय राजनीति मे कुछ हटकर है और आप भी। 


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न्यूज़ चैनलों पे इन दिनों होने वाले कॉन्क्लेव की बाढ़ सी आई हुई है। जिसमे हर जगह योगी जी उपस्थित है और उत्तर प्रदेश में होने वाली हार पे अपनी राय जाहिर करते हुए दिखते है।  अचानक से इन चैनलों पे इस तरह के प्रोग्राम और भाजपा की हिस्सेदारी साफ़ तौर  पे अपनी छवि सुधरने की कोशिश है।  गोरखपुर की हार कही न कही भाजपा में योगी का कद घटाने वाली ऐसी घटना है जिसकी चिंता खुद योगी के चेहरे पे साफ झलकती है। 

इस हार के पीछे भाजपा की अपनी करनी जो भी हो चाहे वो जनता के बीच अपनी पकड़ खोती  जा रही हो या योगी  के कद को बड़े नेताओ द्वारा छोटा करने की कोशिश हो जिसमे उम्मीदवार के चयन से लेकर मोदी का प्रचार न करना और भी तमाम बातें है लेकिन जो बात स्पष्ट है वो है सपा और बसपा की आपसी सांठ गाँठ। 

उत्तर - प्रदेश देश का एक ऐसा राज्य है जिसके बारे में कहा जाता है की दिल्ली का रास्ता यही से होकर गुजरता है इसीलिए 2014 के चुनावों में भाजपा ने यहाँ से गठबंधन के साथ 73 सीटों पे जीत हासिल की और केंद्र में सरकार बनाई। ऐसे में मुख्यमंत्री का अपनी ही सीट गवाना कही न कही बीजेपी के माथे पर भी शिकन लाता है। अगले ही साल केंद्र के लिए चुनाव होने वाले है और ऐसे में उत्तर प्रदेश की अहमियत एक बार फिर बढ़ जाती है। 

उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा दो प्रमुख क्षेत्रीय पार्टिया है जिनकी सरकार यहाँ बनती रही है पर 2017 के विधानसभा चुनावो में बीजेपी ने यहाँ भारी बहुमत से सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की।  पर कहते है माहौल बदलने में समय नहीं लगता।  अपने भारी भरकम फैसलों से सरकार के शुरूआती दिनों में ऐसा लगता था की जैसे काफी कुछ बदलने वाला है , लम्बे अर्से  से उत्तर प्रदेश में इन दोनों क्षेत्रीय पार्टियों ने विकास से अपना नाता तोड़ लिया था और उत्तर प्रदेश पिछड़ेपन का शिकार हो गया था। पर अपने शासन के अंतिम दिनों में  अखिलेश यादव इस बात को समझते हुए दिखे  की जातिय समीकरण के साथ चुनाव जितने के लिए विकास और प्रत्यक्ष रूप से जनता को लाभ पहुंचाने वाली योजनाए भी आवश्यक है इसलिए उन्होंने समाजवादी पेंशन से लेकर कन्या विद्याधन और लैपटॉप वितरण जैसी अनेक योजनाए चलाई परन्तु बीच में ही पारिवारिक कलह के चलते और परिवार द्वारा प्रदेश में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते उनके सरकार की छवि ख़राब हुई परन्तु एक बात जो स्पष्ट है  वो ये है की इन सब के बावजूद वे अपनी छवि जनता के दिमाग में गढ़ने में कामयाब हुए।  निश्चित तौर पे वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री  के रूप में विकास की इबारत लिखने में कामयाब हुए। 


इन्ही सब के बीच वे पार्टी से पारिवारिक हस्तक्षेप दूर करने में भी सफल भी हुए और खुद पार्टी के अध्यक्ष बन बैठे।  अब एक बार फिर भाजपा की सरकार जिस प्रकार आम जनमानस से दूर होती दिख रही है उनके लिए खुद को साबित करने का सुनहरा अवसर है जिसे वे खोना नहीं चाहते।  यही कारण  है की उप चुनावों में जनता ने विकल्प के रूप में समाजवादी पार्टी का ही चुनाव किया। और दूसरा अहम् समीकरण बसपा का साथ जिसकी कल्पना शायद बीजेपी ने भी नहीं की थी क्योंकि गेस्ट हॉउस कांड के बाद इन दोनों पार्टियों का भविष्य में एक साथ आना लगभग असंभव था।

 परन्तु अखिलेश यादव ने अपनी रणनीतिक कुशलता से इसमें भी कामयाबी ही पाई। और अगर यह गठबंधन आगे भी जारी रहता है तो इसमें संदेह नहीं है की भाजपा का मिशन 2019 भी खतरे में पड़  सकता है।  मायावती के शासन को लोग मजबूत क़ानून व्यवस्था के तौर पे जानते है और बसपा  का निचले तबके का मजबूत वोटबैंक बहन जी के लिए सदैव समर्पित रहता है उसी प्रकार  समाजवादी पार्टी का पिछड़ी जाति  का एक वर्ग। उत्तर प्रदेश में इन  दोनों ही वर्ग का वोट प्रतिशत यदि आपस में मिल जाये तो आगामी लोकसभा चुनावों में काफी सीटे इन दोनों पार्टियों की झोली में आ गिरेंगी और भाजपा के मिशन को तगड़ा झटका लग सकता है। इसलिए भाजपा का प्रयास रहेगा की इनका गठबंधन हर हाल में न होने पाए क्योंकि फूलपुर और गोरखपुर की हार उसके लिए उसके मिशन 2019 के लिए खतरे की घंटी है। 

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बीजेपी की राजनीति की नाव मे जनता द्वारा छेद  bjp ki raajneeti ki naw me janta dwara chhed 




     


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बीजेपी की मौजूदा हार को अगर कोई मामूली हार समझता है तो वो बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार है . हार से पहले कम से कम इन दोनो लोकसभा के महत्व को समझना जरूरी है , एक फूलपुर लोकसभा से त्यागपत्र देकर उप मुख्यमंत्री बनने वाले केशव प्रसाद मौर्य और दूसरे लोकसभा से सांसद और प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ का संसदीय क्षेत्र गोरखपुर .

सबसे तेज़ झटका जिस संसदीय क्षेत्र का है वो है गोरखपुर , गोरखपुर एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहा की जनता योगी के सिवा किसी और के बारे मे सोच भी नही सकती जहां हर चुनावो मे योगी की जीत का प्रतिशत बढ़ता ही जाता था , ये वही गोरखपुर हैं जिसके दम पे योगी अपनी राजनीति की हुंकार भरते है , हार की बात तो सपने मे भी नही आती और जिस जातीय समीकरण की बात कही जा रही है वो इतनो दिनो तक योगी की जीत मे कही देखने को नही मिली फिर अचानक से ऐसा क्या हो गया जिससे की पूरी जमीन ही खिसक गई और योगी धड़ाम से गिर पड़े .


दरअसल बीजेपी की हार पहले से ही तय थी , क्योंकि देर ही सही पर जनता को वर्तमान बीजेपी सरकार की कथनी और करनी मे फर्क समझ मे आने लगा है गली - चौराहे पे आम जनता की बातो मे बीजेपी को लेकर वैसा ही गुस्सा शुरु हो चुका है जैसा कांग्रेस के अंतिम दिनो मे हुआ करता था बस मुद्दे को लेकर फर्क है कांग्रेस के समय जो सबसे प्रभावी मुद्दा था वो था भ्रष्टाचार और इस समय जुमलेबाजी .

कहते है ये पब्लिक है सब जानती है , पर कभी काल कुछ समय के लिये इसे भी अपनी अदाकारी और राजनीति के नये तरीको से से भ्रमित किया जा सकता है पर कोई भी राजनेता इस भ्रम मे ना रहे की जनता का भ्रम अधिक दिनो तक बरकरार रखा जा सकता है और अपनी सत्ता चलाई जा सकती है .योगी भी अपनी स्वभाविक राजनीति जिसके लिये वी गोरखपुर मे जाने जाते है को छोड़कर भाजपा के उसी ढर्रे पे चल निकले जिसपे केन्द्र सरकार चल र्ही है .


वर्तमान समय मे केन्द्र की नीतियो से जनता त्रस्त आ चुकी है  भले ही सरकार  इसे लेकर कोई भी तर्क दे दे लेकिन सरकार आधार , गाय , हिन्दू - मुस्लिम , दंगे , भगवा , वंदे मातरम , बैंक मे खाता खुलवाने से लेकर टैक्स लगाने और जुमले बाजी से आगे नही बढ सकी . योगी भी मोदी की तरह ही विकास की बात करते - करते एक साल निकाल चुके थे , यहाँ तक की गोरखपुर की जनता की जो अपेक्षाये थी उनको पूरा करना तो दूर उनपर कभी ध्यान भी नही दिया ,पहले विपक्ष मे रहने के नाते जनता इसको अनदेखा करती रही और उन्हे वोट देती रही .

लेकिन इस बार वे खुद तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचे और जनता बस इंतजार करती रही विकास का ,  लेकिन एक साल के इंतजार मे उसे समझ मे आ गया की केन्द्र और राज्य सरकार बस अच्छी बातें कर सकती है , लेकिन काम मे इनका मन नही लगता और धीरे - धीरे आक्रोश बढ़ता गया और उसका विस्फोट हुआ इन उप चुनावो मे .

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महज दो सीटों की हार ऐसी हार है जिसने बीजेपी की नींद उड़ा दी है , हो भी क्यों नहीं बीजेपी जिस अति आत्मविशास की नौका पे सवार थी उसमे कही  न कही छेद होना शुरू हो चुका है।

पहले तो इन दो सीटों के महत्व को जानना भी जरुरी है जिनको लेकर बीजेपी के चेहरे पे इतनी शिकन आ चुकी है , इन दो सीटों में एक तो फूलपुर की सीट है जो की वर्तमान उप  मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य द्वारा खाली की गई है और दूसरी वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा खाली की गई गोरखपुर की वो प्रतिष्ठित सीट है जिसपे हर बार उनकी जीत का प्रतिशत बढ़ते ही जाता था। गोरखपुर में होने वाले चुनाव में मुद्द्दा बस यही रहता था की योगी इस बार पिछली बार की अपेक्षा कितने अधिक वोटो  से जीतते है , 29 साल से लगातार मंदिर का ही वर्चस्व इस सीट पर रहता था यहाँ ना जाति  काम आती थी न कोई और चेहरा। 


यही वजह है की बीजेपी इस सीट पर अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई और जनता के मन में सरकार की कार्यप्रणाली से होने वाली नाराजगी को  भाप नहीं पाई।  दरअसल अन्य राज्यों में भी केंद्र की सरकार को लेकर आक्रोश था इसका उदाहरण गुजरात चुनावों से बेहतर कोई और नहीं हो सकता यहाँ बीजेपी जीत  के बाद भी  हार गई। बस थोड़ी बहुत सहानुभूति मोदी का गृह राज्य होने की वजह से मिल पाई जिससे की वो अपनी इज्जत बचा सकी.

सरकार का प्राथमिक उद्देश्य जनता की भलाई होना चाहिए। भारत जैसे विशाल देश में जहा जनता अपनी रोजमर्रा की समस्याओ से जूझ  रही है. वहां उसे सिर्फ और सिर्फ विकास चाहिए इन्ही अच्छे दिनों की आस में उसने भारी बहुमत केंद्र की सरकार को दिया था परन्तु केंद्र की सरकार गाय ,हिन्दू , मंदिर , मुस्लिम  और ध्रुवीकरण की राजनीति से आगे नहीं बढ़ सकी. उसी ढर्रे पे मौजूदा राज्य सरकार भी चलने लगी और प्रदेश में बेरोजगारी , गरीबी और आम जनता करो के बोझ के नीचे  दबती चली गई।  विकास के ही नाम पे जनता ने नोटबंदी जैसे निर्णयों में सरकार का साथ दिया परन्तु धीरे धीरे उसे समझ में आने लगा की इतना साथ देने के बाद भी इन चार सालो में उसे कुछ  हासिल नहीं हुआ।  नौकरी के नाम पे केवल जाँच कराइ जाती रही और उसका कीमती समय जाया किया गया। बेरोजगारी के नाम पे उसे पकौड़े तलने को कहा गया ,  विकास के नाम पे उसे आपस में ही लड़ाया जाता रहा , हिन्दूत्व के नाम पे बस वोट लिया जाता रहा और उसके बाद फिर उसे उम्मीद ही लगाए रहने को कहा गया। 

सरकार तब तक ही जनता को भ्रमित कर सकती है जब तक की वो वास्तविकता को न समझे।  अगर ईमानदार होना ही सरकार बनाये रखने का गुण  है तो मनमोहन सिंह से बेहतर कोई और नहीं हो सकता था। 

भारत की अधिकांश जनता गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है और दूसरा वर्ग जो किसी तरह अपनी जीविका चलाता है वो मध्यम वर्ग के अंतर्गत आता है इन्ही दो वर्गो ने बीजेपी को बहुमत से सरकार बनवाने में 
खुलकर समर्थन दिया था , परन्तु सरकार ने न इनके लिए उचित रोजगार की व्यवस्था की न ही मध्यम वर्ग का बोझ ही हल्का किया बदले में देशहित के नाम पर इनका बखूबी इस्तेमाल किया गया और लाभ उस उच्च वर्ग को पहुंचाया गया जिनके वोट से एक संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधि तक न चुना जा सके। जुमलेबाजी भी कुछ ही दिनों तक अच्छी लगती है उसके बाद बिना विकास के सारी  बाते जनता के लिए निरर्थक है। 

इन सीटों पर बीजेपी की हार इसी आक्रोश का नतीजा है अगर अभी भी सरकार किसी ग़लतफ़हमी में है तो आने वाले दिनों में उसे इसका भारी  खामियाजा उठाना पड़  सकता है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार ने जनता की इसी नब्ज को समझ कर अनेक लोककल्याणकारी कार्यो की शुरुआत की थी परन्तु जाति  विशेष को बढ़ावा देने और लचर कानून व्यवस्था  के कारण जनता ने समाजवादी सरकार को नकार दिया था अगर अखिलेश सरकार इन कमियों को वक़्त रहते दुरुस्त कर लेती  तो उसे उत्तर प्रदेश में हराना मुश्किल था , यही वजह है की आम आदमी ने इन उप चुनावों में एक बार फिर सपा को ही मौका दिया , जाति फैक्टर तभी काम आती है जब विकास का मुद्दा ढीला पड़  जाता है , इसका 2014 के लोकसभा चुनावों से बड़ा उदाहरण कोई और नहीं हो सकता जहा केवल वोट मोदी की विकासवादी छवि पर पड़ा था आज वही छवि कही पीछे छूट चुकी है और भाजपा की  कथनी और करनी में एक बहुत बड़ा अंतर आ चूका है। 

मौजूदा सरकारों को समझना चाहिए की जनता भी अब अपनी बात तर्क के माध्यम से रखना जानती है उसे और उसके साथ होने वाले  विश्वासघात पर वो चुप नहीं बैठ सकती।  चुनाव ही एक ऐसा माध्यम है जिनके जरिये वो इन राजनेताओ को आइना दिखाती है।  




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rahul gabdhi and singapur's truth


राहुल गाँधी और सिंगापुर का सच  rahul gandhi aur singapur ka sach - 




राहुल गाँधी कब कहा पहुँच जाते है ये किसी को नहीं पता रहता , फिलहाल उन्होंने इस बार सिंगापुर से बीजेपी पे हमला किया है। 
राहुल गाँधी सिंगापुर के ली कुआन यिवु स्कूल की परिचर्चा में भाग ले रहे थे , यह सिंगापुर के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है जिसकी परिचर्चा में उन्हें आमंत्रित किया गया था , कार्यक्रम का संचालन प्रतिष्ठित लेखक प्रसेनजित के बसु कर रहे थे। परिचर्चा में  राहुल गाँधी कहते है की भारत में इस समय एक अलग तरह की राजनीति हो रही है। जिसमे लोगो को बांटा जा रहा है और उनके अंदर गुस्सा पैदा किया जा रहा है ताकि यह गुस्सा वोट बैंक  में बदल सके।  हालांकि वे ये भी कहते है की इस तरह की राजनीति विश्व के कई अन्य देशो में भी हो रही है। 

राहुल इससे पहले अमेरिका में भी एक प्रेस कांफ्रेंस में नए अवतार में दिखाई दिए थे , पता नहीं इनको अपने देश की मीडिया से क्या दिक्कत है जो हमेशा विदेशी मीडिया में जाकर विपक्ष पर अत्यधिक हमलावर हो जाते है। 
या उन्हें लगता है इस देश की मीडिया हर बात पे उनकी गलत छवि पेश करती है। 

राहुल गाँधी ने इस परिचर्चा में उच्चतम न्यायलय के चार वरिष्ठ न्यायधीशों का भी जिक्र किया, उन्होंने जस्टिस लोया मामले में सीधे - सीधे अमित शाह का नाम लिया राहुल गांधी ने यह भी  कहा की भारत में इस समय एक तरह के  डर का माहौल है , आज अगर महात्मा गाँधी जीवित होते तो वे भी दुखी होते। 

प्रसेनजीत बसु ने कांग्रेस के  वीडियो  को फर्जी करार दिया -  



इस वीडियो को कांग्रेस के ट्विटर हैंडलर पे डाला गया है। जिसको देखने के बाद लेखक प्रसेनजीत बसु ने ही इसमें  गलत तरीके से एडिटिंग करने का आरोप लगाया है , उनके अनुसार सवालों और जवाबो की इस कड़ी में काफी कांट - छांट की गई है , जिससे की मूल वीडियो ही बदल गया है।  कांग्रेस पार्टी पर इस तरह का यह कोई पहला आरोप  नहीं है इससे पहले भी इस तरह के कई आरोप  लगते आये है , पर जिसने सवाल पूछा वही अगर इस विडियो  पर सवालिया निशान  लगाता है तो प्रश्न कांग्रेस की सुचिता और राजनीति के गिरते स्तर पर आना स्वाभाविक है। प्रसेनजीत बसु ने इस वीडियो  को कांग्रेस द्वारा जल्द से जल्द अपने ट्विटर हैंडलर से हटाने को कहा है। अगर कांग्रेस ऐसा नहीं करती है तो उसे सिंगापुर की अदालत  में आने के लिया तैयार रहना होगा। 

महत्वपूर्ण सवाल - 


प्रसेनजीत के जो सबसे महत्वपूर्ण सवाल राहुल गाँधी से थे उनमे वंशवाद को लेकर सीधा प्रश्न यह था  की उनकी पार्टी  भारत में 62 साल सत्ता में रही और इतने दिनों में जब परिवार से कोई प्रधानमंत्री रहा तब - तब  भारत में आम आदमी की औसत आमदनी विश्व की अपेक्षा कम  रही यानि आम आदमी गरीब ही रहा जबकि  परिवार अमीर  होते गया , वही जब सत्ता परिवार से इतर कांग्रेस में ही या अन्य दलों में  दुसरे व्यक्ति के हाथ में रही जैसे नरसिम्हा राव, अटल बिहारी बाजपेयी  तो आम आदमी की जीडीपी संसार के अन्य देशो की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ी। नेहरू के समय तो जीडीपी स्वाभाविक रूप से जितनी बढ़नी चाहिए उससे भी कम रही। इसका अर्थ यह है की परिवार  भारत को एक गरीब देश बनाकर रखना चाहता  था । 
कांग्रेस इन 62 सालो में भारत को गरीबी से मुक्ति क्यों नहीं दिला पाई जबकि वर्तमान सरकार के केवल चार साल पुरे होने पर उससे हिसाब माँगा जाता है। 

ऐसे ही कई सवालों के जवाब जो उस समय राहुल गांधी नहीं दे पाए उनको इस वीडियो में एडिटिंग के जरिये दर्शाया या हटाया  गया है। 
एक सवाल मेरा भी कांग्रेस से था जो मैं बार -  बार पूछता हूँ की अगर परिवारवाद न होता तो क्या राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद के सबसे योग्य  उम्मीदवार है , और क्या इतनी नाकामियों के बाद भी  वे इस कुर्सी और कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी पर टिके  रह पाते  ?

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congress mukt bharat ki or
मोदी रैली 
                   


त्रिपुरा ,मेघालय और नागालैंड एक बार फिर से बीजेपी इन तीन  राज्यों में भी सरकार  बनाने में कामयाब हुई। 
इन तीनो राज्यों में मेघालय में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भी कांग्रेस सरकार बनाने में चूक गई।  वैसे इसमें कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि  कांग्रेस पार्टी इस समय कमजोर नेतृत्व के दौर से गुजर रही  है.राहुल गाँधी  एक बार फिर अपनी नानी से मिलने इटली जा चुके है वैसे उन्हें अपनी नानी को ही इंडिया बुला लेना चाहिए था , मुझे लगता है पार्टी से ज्यादा उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने में सहजता महसूस होती है , सोनिया गांधी को भी समझ लेना चाहिए की किसी को भी उसके रूचि के अनुसार ही काम देना चाहिए नहीं तो वो उस काम का पूरा बंटाधार कर सकता है।  

इन तीन राज्यों में बीजेपी को उम्मीद  से बढ़कर समर्थन मिला है  जोकि साबित करता है की बीजेपी और मोदी का जलवा कायम है और वे कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ते दिख रहे है। वर्तमान समय में 21 राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों  की सरकार  है जिनमे से 15 राज्यों में बीजेपी के मुख्यमंत्री है ,कांग्रेस केवल 3 राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश में  सिमट के रह गई है जिनमे से पंजाब और कर्नाटका बड़े  राज्य है बाकि मिजोरम और  एक केंद्र शासित प्रदेश पॉन्डिचेरी है। 


यह कहना कबीले तारीफ़ होगा की बीजेपी ने इन राज्यों के लिए विशेष रणनीति बनाई थी इन राज्यों में चर्च का प्रभाव भी रहता है जिसके लिए बीजेपी ने अपना हिंदुत्व वादी चेहरा छोड़कर नई रणनीति बनाई और आम आदमी का विश्वास जितने में कामयाबी हासिल की। कांग्रेस अपनी आपसी गुटबाजी का शिकार हुई और आलाकमान उस पर कोई नियंत्रण नहीं कर पाया अब तो लगता है बीजेपी को कांग्रेस मुक्त भारत बनाने में खुद कांग्रेस और उसका कमजोर नेतृत्व ही एक सहायक के तौर  पे काम कर रहे है।क्योंकि कांग्रेस के पास मुद्दे होते हुए भी वो उनका इस्तेमाल नहीं कर पाती , संघठन में भी निराशा घर करते जा रही है जो की कमजोर नायकवाद या  यू  कहे की परिवारवाद  को आगे बढ़ाने  का ही फल है , नहीं तो कांग्रेस पार्टी में अभी कई ऐसे नेता है जो एक कुशल नेतृत्व देने में सक्षम है परन्तु उनके आगे आने पर पार्टी से परिवार का नियंत्रण क्षीण हो जायेगा। इसीलिए बीजेपी को वर्तमान में कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को पूरा करने से रोकने  वाला कोई दिखाई नहीं देता। 

मोदी लहर  इसलिए और बढ़ती जा रही है की किसी  भी पार्टी में नरेंद्र  मोदी  जैसा विश्वसनीय चेहरा नहीं है यही कारण है की अगले चुनाव नरेन्द्र मोदी बनाम ब्रांड मोदी  के बीच होंगे जहा इतने सालो में मोदी के समक्ष चुनौती उनके द्वारा किये गए वादे ही होंगे।  फिलहाल इन चुनावों के नतीजे बीजेपी  के लिए 2019  की  पृष्ठभुमि तैयार करने में काफी हद तक सहायता प्रदान करेंगे। 


मौजूदा समय में कांग्रेस को अपना अस्तित्व बचाने  के लिए संघर्ष करना पड़ेगा क्योंकि बीजेपी ने जो कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखा था वो कही न कही पूरा होते दिख रहा है , हर राज्य में होने वाले चुनाव में प्रमुख चेहरा मोदी का ही होता है  इसीलिए जीत का सेहरा भी किंग मोदी के सर ही बंधता है। 




subramanyam swami

सुब्रमण्यम स्वामी वन मैन आर्मी subramanyamswami one man army - 

subramanyam swami
स्वामी 



सुब्रमण्यम स्वामी भारतीय राजनीति का वो चेहरा है जो अपनी बात बेबाक तरीके से रखने और उन्हें सिद्ध करने के लिए  कोर्ट का दरवाजा खटखाना भी नहीं चूकते। यहाँ तक की उनकी अपनी पार्टी बीजेपी भी उनके सवालो से परेशान  हो जाती है और बगले झाकने लगती है। सरकार के शुरूआती दौर में ही उन्होंने अरुण जेटली को वित्त मंत्री बनाये जाने पर सवालिया निशान लगाए थे और एक वकील को इतने बड़े देश की अर्थव्यवस्था तहस - नहस  करने का कारण बताया था। उनके बाद यशवंत सिन्हा ने भी वित्त मंत्री की काबिलियत पर प्रश्न चिन्ह लगाए थे। जो की स्वामी  की बातो का समर्थन था। इसका एक कारण ये भी है की स्वामी खुद एक अर्थशास्त्री है , उन्होंने हॉवर्ड यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है और  विश्व के  नामी अर्थशास्त्रियों के साथ शोध कार्य भी किया है।   हमने भी देखा की सरकार कैसे देश की अर्थव्यवस्था के नाम पर आम आदमी पर करो का बोझ बढाती जा रही है। और उसके कई फैसले गलत सिद्ध हुए है। स्वामी 1990  -  1991 तक भारत के वाणिज्य ,न्याय और विधि मंत्री रह चुके है और साथ में अंतराष्ट्रीय व्यापार आयोग के अध्यक्ष भी।


सुब्रमणयम  स्वामी के परेशां करने वाले सवालो से राहुल गाँधी भी अछूते नहीं रहे है पिछले साल उन्होंने राहुल गाँधी से उनकी जाति को लेकर ही सवाल पूछ लिया था की वे हिन्दू है या ईसाई , सुनंदा पुष्कर केस में उन्होंने शशि थरूर पर ही अपने बाण चला दिए थे। नेशनल हेराल्ड को लेकर स्वामी अभी भी सोनिया  गांधी के पीछे पड़े हुए है। 


स्वामी के पिता जी भारतीय सांख्यिकीय सेवा के अधिकारी थे और इसके निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे इसलिए स्वामी ने भी अर्थशास्त्र से अपनी पढाई शुरू की। स्वामी आईआईटी में प्रोफ़ेसर भी रह चुके है और अपनी विचारधारा के कारण इंदिरा गाँधी की आँखों की किरकिरी भी इंदिरा गाँधी के कारण ही उन्हें अपनी नौकरी गवानी  पड़ी और तभी से स्वामी राजनीति में सक्रिय भी हुए। आपातकाल के दौरान स्वामी अपनी गिरफ़्तारी के पूर्व ही भूमिगत हो गए थे।  उन्होंने उस दौरान भी निर्भीकता से संसद में पहुंच कर अपनी बात रखने का साहस दिखाया था जब कोई इंदिरा गाँधी के विषय में बात करने से भी कतराता था। 

वैसे तो स्वामी के विषय में पूरी जीवनी कही भी मिल जाएगी। पर जरुरी है स्वामी की विचारधारा और सच के प्रति उनकी निष्ठां और निडरता को समझने की । इसी विचारधारा को लेकर स्वामी ने अपनी पार्टी भी बनाई थी पर लोकसभा चुनावों से पूर्व उसे भारतीय जनता पार्टी में विलय करा दिया था जिससे की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक सर्वजनहितकारी सरकार का गठन हो सके। स्वामी आज भी उन मुद्दों पे खुलकर बोलते है जिनपे आम नेता बात करने से भी कतराते है। स्वामी की छवि कुछ हद तक हिंदुत्व वादी की भी है इसलिए रामसेतु से लेकर राम मंदिर के निर्माण में भी स्वामी का लगाव देखने को मिलता है। राम मंदिर के निर्माण को लेकर स्वामी बीजेपी से भी सवाल पूछते नजर आ जाते है ये स्वामी ही है जिन्हे वन मैन आर्मी का दर्जा दिया जा सकता है। इसलिए आजकी युवा पीढ़ी में भी स्वामी के चाहने वालो की अच्छी संख्या है। जो इस देश के राजनीति  और समाज में होने वाले घटनाक्रम पे अपनी बात रखने और उसको सही साबित करने के लिए प्रयासरत है। ताकि देश की भ्रष्ट और संवेदनहीन व्यवस्था को सुधारा जा सके।  


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amitabh aur raajneeti

                                              

अमिताभ बच्चन और राजनीति  - amitabh bachhan aur rajneeti 



amitabh aur raajneeti
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अमिताभ बच्चन एक ऐसी शख्सियत है जिनकी प्रसिद्धि अपने से सामानांतर अन्य कलाकारों से काफी ज्यादा है। 

ट्विटर से लेकर फेसबुक तक अनुयायियों की संख्या सर्वाधिक और  अदाकारी लाजवाब। मोदी सरकार में गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर  और प्रधानमंत्री  मोदी के चहेते ।  

पिछले कुछ दिनों से ट्विटर पर राहुल गाँधी से लेकर कांग्रेस के अन्य नेताओ को अचानक से अनुसरण करने लगते है।  कांग्रेस पार्टी से अमिताभ बच्चन का पुराना  नाता रहा है राजीव गाँधी और अमिताभ की दोस्ती जग जाहिर थी। 

इसी दोस्ती के वास्ते उन्होंने सन 1984 में इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और उस दौर के कद्दावर नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा को बुरी तरह से हराया था. इलाहबाद संसदीय क्षेत्र का वह अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था अमिताभ ने चुनाव में 68.2 प्रतिशत के अंतर से जीत हासिल की। पर अमिताभ का राजनीतिक कॅरियर बहुत लम्बा नहीं चला बोफोर्स घोटाले में अखबारों में अपने परिवार का नाम आने पर अमिताभ ने 3 साल बाद ही सांसदी से अपना त्याग पात्र दे दिया। इसी साल अमिताभ की फिल्म शहंशाह  सिनेमाहाल में आई थी।  मुंबई में शिवसेना ने इसका काफी विरोध किया था। बोफोर्स का जिन्न  एक ऐसा जिन्न  है जो  सन  1989 में में कांग्रेस को ही  ले डूबा। 

हालांकि सन 2012 में स्वीडन की जांचकर्ता टीम ने अमिताभ बच्चन को क्लीन चिट  दे दिया था।पर इतने सालो तक उन्हें बोफोर्स से बदनामी ही मिली , बोफोर्स का दर्द अमिताभ ने अपने ब्लॉग  में भी किया था।उन्होंने लिखा की 25 साल तक  वो और उनका परिवार एक साजिश का शिकार रहा जिस वजह से उनको मानसिक यातना झेलनी पड़ी। 

अमिताभ बच्चन की ज़िन्दगी में एक दौर ऐसा आया जब  90 के दशक के बाद वे अपनी फिल्मो में कोई विशेष प्रदर्शन नहीं कर पा  रहे थे उसी समय उन्होंने abcl(अमिताभ बच्चन कार्पोरेशन लिमिटेड ) की स्थापना की कंपनी ने तेरे मेरे सपने नाम से अपनी पहली फिल्म  भी बनाई थी पर फिल्म  कुछ खास नहीं कर पाई  , कुछ और फिल्मो का भी निर्माण हुआ जिनमे अमिताभ बच्चन अभिनीत मृत्युदाता भी थी यह फिल्म भी कुछ ख़ास नहीं कर पाई इस तरह धीरे - धीरे अमिताभ बच्चन की कम्पनी भारी घाटे में जाने लगी.

बहुत कम  लोगो को पता होगा की  उनकी कंपनी ने मिस वर्ल्ड का भी प्रयोजन किया था जिसमे ख़राब प्रबंधन के कारण उन्हें काफी क्षति उठानी पड़ी और धीरे - धीरे इन्ही घाटों के चलते   बात उनके घर की नीलामी तक आ पहुंची पर अमिताभ का साथ एक बार फिर उनके मित्र अमर सिंह ने दिया बदले में अमिताभ ने उत्तर प्रदेश में उनकी समाजवादी पार्टी का प्रचार प्रसार किया , और उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाया। समाजवादी पार्टी से ही जया  बच्चन को राज्य सभा भेजा गया। और अब तक वे हर बार समाजवादी पार्टी से ही राज्यसभा पहुँचती आ रही है। 

कौन बनेगा करोड़पति से अमिताभ बच्चन की किस्मत ने एक बार फिर चमकना चालू किया उनकी शैली लोगो को भाने  लगी और धीरे - धीरे घर - घर में अमिताभ बच्चन ने फिर अपनी पहुँच और  प्रशंषको की संख्या में इजाफा करना प्रारम्भ  किया। उसी समय शाहरुख़ खान और अमिताभ बच्चन के बीच टकराव की पृष्ठभूमि पर आधारित मुहब्बतें प्रदर्शित हुई जो की सुपर - हिट साबित हुई और एक बार फिर अमिताभ का फिल्मी कॅरियर भी वापस पटरी  पर आने लगा। 

समाजवादी पार्टी की सरकार में ही अमिताभ पर बाराबंकी जिले में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर दलित किसानो की जमीन अपने नाम करने का आरोप लगा और अमिताभ को कोर्ट का सामना भी करना पड़ा इसी जमीन पर उन्होंने अपनी बहु के नाम से ऐश्वर्या राय  बच्चन महाविद्यालय बनाने की घोषणा भी की थी। ऐसा ही एक और फर्जी मामला महाराष्ट्र के पुणे में भी उजागर हुआ। 


ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड टैक्स हैवन देशो में से एक माना  जाता है  . इन्ही टैक्स हैवन देशो में जमा पूंजी को पनामा पेपर्स ने उनके जमाकर्ताओं के नाम के साथ उजागर किया है , पनामा पेपर्स समूह खोजी पत्रकारिता का एक समूह है जो इस तरह के मामलो को उजागर करता है उसकी लिस्ट में ऐसे 500 भारतीयों के नाम थे जिनमे से ३०० की पहचान कर ली गई है। 


इन्ही में से एक नाम अमिताभ बच्चन का था। इन देशो में फर्जी कंपनियों का निर्माण करके कला धन का निवेश किया जाता है। इन्ही कंपनियों के डाइरेक्टर में अमिताभ बच्चन का भी नाम था। प्रेस और जाँच एजेंसियो  द्वारा पूछे जाने पर उन्होंने इसमें अपनी संलिप्तता से इंकार कर दिया और इसे अपने नाम का दुरूपयोग बताया। इन्ही वजहों के चलते  एक बार फिर उनका झुकाव समाजवादी पार्टी से भाजपा की और होने लगा हालाँकि वे पूर्व में उत्तर - प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के बाद गुजरात के भी ब्रांड एम्बेसडर बने जहा मोदी मुख्यमंत्री थे। 

पनामा पेपर में नाम आने के समय ही भाजपा सरकार के एक समारोह में उनके होस्ट को लेकर कांग्रेस ने सवाल खड़े किया जिसमे की प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल  थे। कांग्रेस ने कहा की अमिताभ बच्चन के खिलाफ केंद्र की जाँच एजेन्सिया जाँच कर रही है ऐसे में प्रधानमंत्री का उनके साथ दिखना इन जाँच एजेंसियो को गलत सन्देश जायेगा । 

हालांकि बाद में अमिताभ बच्चन ने समारोह में अपनी मौजूदगी से इंकार कर दिया। पनामा पेपर की जाँच में शामिल अंतराष्ट्रीय टीम का हिस्सा भारत भी है। 

पनामा के बाद एक और पेपर लीक मामला ऐसा आया जिसमे अमिताभ का नाम शामिल था ये था पैराडाइज़ पेपर्स लीक। पैराडाइज़ पेपर्स लीक  एक फर्जी कम्पनी बरमूडा  के माध्यम से कला धन को ठिकाने लगाने की व्यवस्था थी जिसमे अमिताभ बच्चन सिलिकॉन वैली  के नवीन चड्ढा के साथ शेयर  होल्डर थे।

इतने सारे विवादों और अमिताभ बच्चन की बदलती राजनीतिक निष्ठां कही न कही उनकी नियति पे संदेह जाहिर करती है। सत्ता के बदलते रुख के साथ उनकी निष्ठां भी बदलती रही है। आज वही अमर सिंह जो अमिताभ बच्चन को अपना बड़ा भाई मानते थे और अमिताभ बच्चन उन्हें अपना छोटा भाई राजनीतिक हाशिये का शिकार है और अमिताभ उनके आसपास कही खड़े नहीं दिखाई देते।  जिस कांग्रेस से उन्हें बोफोर्स जैसा दाग मिला और राजीव गाँधी के बाद जिससे उन्होंने अपना रिश्ता ख़त्म कर लिया उन्ही राजीव गाँधी के पुत्र को वे अर्से बाद ट्विटर पर फालो करते है। शायद कही उन्हें 2019 की हवा बदलते हुए तो नहीं दिख रही है जिसमे उनका राजनीतिक हित सुरक्षित रह सके। 

वर्तमान समय में अमिताभ बच्चन के प्रशंसकों की संख्या अच्छी खासी है ,लेकिन इतने सारे प्रशंसकों के होने के बावजूद अमिताभ बच्चन का अक्षय कुमार और सलमान खान की तरह कोई बड़ा सामाजिक सरोकार नहीं है , इस उम्र में भी अनेक तरह के विज्ञापनों को करना पैसे के प्रति उनकी  लालसा साफ़ तौर  पे इंगित करती है हालांकि उनके प्रशंसकों को ये बात बुरी लग सकती  है पर उन्हें भी इन सितारों की चमक के पीछे की वास्तविकता को समझना चाहिए। और उनकी बदलती नियति को लेकर समीक्षा अवश्य करनी चाहिए। 

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