indian political future

भारत के राजनीतिक भविष्य के बारे में आपके क्या विचार हैं?


"भारत का राजनीतिक भविष्य उज्जवल है" आप सोच रहे होंगे की वर्तमान समय के नेताओ को देखकर यह कैसा कथन है। परन्तु शायद आपने सिक्के का दूसरा पहलु अर्थात इस देश की जनता की बढ़ती राजनीतिक समझ की तरफ ध्यान नहीं दिया। आपने देखा होगा की कैसे इस देश की जनता ने अपने उज्जवल भविष्य हेतु एक राजनीतिक नौसिखिये (अरविन्द केजरीवाल ) को उम्मीद से बढ़कर समर्थन दिया, कैसे गठबंधन की सरकारों के दौर में देश को आगे ले जाने हेतू पूर्ण बहुमत की सरकार केंद्र में बनवाई , जोकि सर्वसमाज की एकता के बिना असंभव था। यह बात जरूर है की यह जनता इन्ही के द्वारा छल का भी शिकार हुई है, परन्तु इसने मौका मिलते ही छल का भी बदला लिया। सोशल मीडिया पर आम जनता द्वारा (पार्टियों की आईटी सेल द्वारा प्रायोजित टिप्पणियों को छोड़कर ) टिप्पणियों में उसकी बढ़ती राजनीतिक समझ को देखा जा सकता है। 

जब आप खुदके प्रति जागरूक होते है तब आप को कोई बहका नहीं सकता जैसा की भारतीय वोटरों के साथ होता आया है। और जनता की इसी राजनीतिक समझ के कारण धीरे - धीरे राजनीतिक पार्टियों को अपने चेहरे में बदलाव करना जरुरी हो जाता है। जो खुद को दुसरे से ज्यादा स्वच्छ और ईमानदार सिद्ध करता है ( नाकि बताता है ) जनता उसको जरूर आगे बढाती है। हाँ अभी जनता में जहाँ - जहाँ शिक्षा का अभाव है वहाँ थोड़ा समय अवश्य लगेगा।
आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति में जनता द्वारा ही बदलाव होंगे और आम आदमी के बीच से ही नए नेतृत्व निकलकर राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होंगे और इस देश को उन्नति के शिखर पर लेकर जायेंगे।

लेखक द्वारा हिंदी क्वोरा पर एक सवाल का जवाब से साभार -

hindi diwas kyo ?

हिंदी दिवस 


हिंदी तूं खतरे में है 
सुना है बाबू को तुझे जुबां पर लाने  में शर्म लगती है ,कल को तुझे अपनी मां बताने में शर्म लगेगी।  शाहरुख़ के डायलॉग से प्यार है पर तुझसे नहीं।  तेरी गीतों पर नाचेंगे , तन्हाई में उन्हें गुनगुनायेंगे , शायरियो में दिल का हाल बताएँगे पर बोलने से हिचकिचाएंगे।  

तेरा स्तर  वे गिराते चले जाते है जो तुझे अपना बताते थे , तेरा मान वे बढ़ाने चले आते है जिन पर तेरी ममता की छाँव नहीं। अंग्रेजी हो गए है हम हैलो , हाय , गुड मॉर्निंग से शुरुआत करते है पिता को डैड और दोस्त को डूड कहकर बात करते है।  माँ तो मोम हो गई मोबाइल भगवान हो गया वक़्त से पहले ही अंग्रेजी पढ़कर लड़का जवान हो गया। 

अंग्रेजो की अंग्रेजी हमें अंग्रेज बना रही है और हिंदी इस रिश्ते का मोल चुका रही है। हिंदी दिवस मनाना पड़ता है साल में एक दिन बेटे का फर्ज निभाते हुए अंग्रेजी में मुस्कुराना पड़ता है। 

tera intjaar

तेरा इन्तजार 

tera intjaar



बड़ी हसरत से तुझे देखे जा रहा था
वो बाजार में चूड़ियों को पहनते हुए तेरी खिलखिलाहट भरी हंसी
एक अजीब सी चुलबुली ख़ुशी मेरे दिल ने महसूस की
लगा की बस तू ही तू है इस जहाँ में मेरा सबकुछ

सोचा कदम बढ़ाऊ तो कैसे
मुहब्बत का पंछी उड़ाउँ तो कैसे
चारो और गिद्ध रूपी पहरेदार जो थे
पर साथ में मेरे कुछ वफादार भी थे

पैगाम पहुंचा जब मेरा  तुझतक
यकीन तो तेरी नजरो ने ही दिला दिया था
आता संदेशा तेरा जबतक
कभी तो अपने होंठो को हिला दिया होता
अपने लबो से भी कुछ फरमा दिया होता


हम तो तसल्ली कर लिए होते
कम से कम इस दिल को तो थोड़ा फुसला दिया होता
ये इश्क़  का रोग लाइलाज नहीं होता मेरी जान
बस तूने एक बार आवाज तो दिया होता

कुछ वक़्त बदला, कुछ बदले तेरे तेवर
कुछ हमने भी खुद को बदला
ना बदल सके तो इस दिल में तेरे कलेवर 


अभी भी इन्तजार तेरा करते है 

इश्क़ की गली में लोग ऐतबार मेरा करते है 
तू डरती है ज़माने से तो डरा कर 
अभी भी तेरे नाम पर पैमाने भरा करते है 

बड़ी कातिल थी तेरी निगाहें 
कम्बख्त दिल को भी ना छोड़ा 

तेरे इन्तजार में निकली दिल से आंहे 

दौड़ा न सका अपनी मुहब्बत का घोडा 



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Nota - Beginning Empty of Throne with the Pink Revolution



नोटा - गुलाबी  क्रांति से सिंहासन खाली करो की  शुरुआत -

Nota - Beginning Empty of Throne with the Pink Revolution

भारतीय राजनीति एक बार फिर अपने महत्वपूर्ण दौर से गुजर रही है जहाँ आम जनता का विश्वास मौजूदा राजनीतिक पार्टियों से उठता दिख रहा है। सवर्णो को अपना जन्मसिद्ध वोटर मानने वाली बीजेपी को उम्मीद नहीं थी की एससी / एसटी को खुश करने के चक्कर में सुप्रीम कोर्ट के जिस निर्णय को वह पलट चुकी है वही उसकी सत्ता पलटने की हैसियत रखती है।  सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट की खामी को दूर करते हुए  एफ़ आई आर के बाद बिना जाँच की गिरफ्तारी पर रोक लगा दिया था।  उसी पर  सरकार को लगा की नहीं गिरफ्तारी तो बिना जाँच के ही होनी चाहिए भले ही किसी निर्दोष को फंसाया जा रहा हो, जबतक अदालत उसे निरपराध घोषित करेगी तब तक बेचारा ऐसे  गुनाह की सजा काटकर आएगा जिसका उससे कोई वास्ता ही नहीं , बस उसकी गलती यही होगी की वह सवर्ण है। और उस भाजपा का पारम्परिक वोटर भी जिसकी सरकार  बनवाने में उसने मदद की थी वही भाजपा उसकी लुटिया डूबोने में लगी हुई है।

यह तो था सवर्णो का दुःख अब देश की बाकि गरीब जनता की भी सुन लीजिये वह भी सरकार से पूछ रही है की क्या नोटबंदी  में कड़कड़ाती ठण्ड में  2000 रूपये के लिए केवल उसे ही परेशान  क्यों किया गया।  इस देश के पूँजीपति से लेकर अधिकारी वर्ग तक और बड़े नेता से लेकर छुटभैया तक इन लाइनों  में क्यों नहीं दिखे। कुछ ईमानदार छवि और दिखावटी लोगो को छोड़कर केवल आम जनता मरती रही और सरकार दावा करती रही की इसके बाद देश के अंदर का कालाधन वापस आ जायेगा और एक नए भारत का निर्माण होगा। अभी भी नोटबंदी की सफलता और असफलता पर चर्चा जारी है।  अगर यह इतनी सफल ही होती तो चर्चा की कोई बात ही नहीं थी। 

कई गरीबो के घर बेटियों की शादिया टूट गई क्या किसी अमीर के घर ऐसा हुआ नहीं , बल्कि कई वीआईपी शादियों में पैसा पानी की तरह बहा।  गुजरात के एक कोआपरेटिव बैंक में अमित शाह के पैसो को सफ़ेद करने का मामला भी सामने आया जिसे प्रबंधित मीडिया ने ज्यादा टूल नहीं दिया। ऐसे ही कई बीजेपी नेता नए नोटों की गड्डियाँ  उड़ाते मिले। 50 से ज्यादा बार नोटबंदी  के दौरान आरबीआई ने अपने फैसलों और नियमो में बदलाव किया।  उत्तर प्रदेशो के चुनावों में इस नोटबंदी  ने अपना व्यापक असर दिखाया और अन्य पार्टिया इस कारण  अपना पॉलिटिकल  मनैजमेंट  नहीं कर पाई जिससे फायदा बीजेपी को हुआ इसी कारण नोटबंदी  का खेल खेला गया जिसमे आम आदमी ने अपनी जान और मान दोनों को ही गँवा दिया । मध्यम  और निचले तबके के व्यापारी वर्ग तो बुरी तरह टूट गए  और इसके बाद लागू  होने वाली जीएसटी ने तो मानो उसकी कमर ही तोड़ दी , कभी पुराना  माल को लेकर जीएसटी की संशय  कभी इसकी प्रणाली को समझने का फेर महीनो बिना व्यापार किये ही  निकल गए। और मिला क्या ? ये प्रश्न आज भी अनुत्तरित है।

नोटा फिल्म का एक पोस्टर 


देश के विकास के नाम पर जब आम आदमी घुन की तरह पिसा  रहा था तब भी विदेश यात्राओं में कुछ कमी नहीं आई, पेट्रोल के जिन दामों पर विपक्ष में रहते हुए साइकिल से चला गया आज अपनी सरकार  में सवाल पूछने पर मुंह फेर लिया जाता  है.  जब जनता पूछती है की ऐसा क्यों है की अंतराष्ट्रीय मार्केट  में 65 डॉलर प्रति बैरल होने के बाद भी पेट्रोल महंगा है जबकि पूरवर्ती  सरकार में १४४ डॉलर प्रति बैरल में  भी  दाम इतने ही थे।  रुपया क्यों भारतीय प्रधानमंत्री की उम्र पार करने के बाद भी नहीं रुक रहा

अर्थव्यवस्था इतनी व्यवस्था करने के बाद भी काबू में नहीं आ रही है तो आपमें और पिछली सरकारों में क्या अंतर था।  हिन्दू का कार्ड कबतक चलेगा ,खाली पेट तो बिलकुल नहीं , गाय  की रक्षा कबतक होगी जब बहु बेटियाँ  ही सुरक्षित नहीं है ।कब तक पाकिस्तान हमारी देश की बहुओ  को विधवा बनाता रहेगा  ? नेपाल का चीन के साथ सैन्य अभ्यास क्यों आखिर आप क्यों चार साल बीत जाने के बाद भी कांग्रेस को कोस रहे है ? जातिवाद का जहर घोलना था तो अन्य पार्टियों में क्या बुराई थी  ? 

विपक्ष में कमजोर नेतृत्व , तीसरे  मोर्चे  की नाजुक स्थिति तथा  लालची एकता  और भाजपा के विश्वासघात  को देखते हुए धीरे -  धीर आम आदमी अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए भारी संख्या में नोटा दबाने का मन बना चुका है इसकी संख्या को देखते हुए 2019  में अवश्य ही इसे एक बार फिर गुलाबी क्रांति की संज्ञा दी जाएगी क्योंकि नोटा के बटन का रंग गुलाबी है।



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biwi ki tarkari

biwi ki tarkari

बीवी की तरकारी -


हर दुसरे दिन करेले की सब्जी मत बनाया करो , बी पी लो हो जाता है 
और इसी चक्कर में वो हो जाता है 

चना खिलाके घोडा बना दिया 
माँगा था प्यार पूरा पर थोड़ा ही दिया 

डूब जाते तुम्हारी झील सी  आँखों में 
फिर ध्यान आया ठंड बहुत है  

आलू के कोफ्ता से तो कुफत हो गई 
पड़ोसन थोड़ा सा प्यार मुफ्त में ले गई 

आज खीर में चीनी कम है 
पर तुम्हारे प्यार में बड़ा दम है 

इन कजरारी आँखों से घूरा ना करो 
बड़ा मुश्किल होता है इन्हे देखकर मुस्कुराना  

रायता लौकी का अच्छा था 
बेलन जब मारा तो बचाव में वो चौकी भी अच्छा था 

कभी पालक पनीर भी बनाया करो 
हमें देखकर थोड़ा सा तो मुस्कुराया करो 

तुम सांभर हो तो मैं हूँ डोसा 
बस कायम रहे मुझ पर तुम्हारा भरोसा 
नहीं तो मुझे बना दोगी चटनी बिन समोसा 

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aashiq



आशिक़ 

aashiq


जबसे बगल वाली पर गाना बना
तबसे बगल में जाना हो गया मना
जहर तो तब कोई बो  गया
जब सामने वाली पर भी एक ठो हो  गया


अखियां चार कहा से करे अब
जब जमाना ही बेवफा हो गया
पड़ोसन को आँख मारी तो 
तो बुढऊ खफा हो गया 

नैना के नैनो से घायल हुए
काजल की अँखियो के कायल हुए
खुशबू की खुशबू जब तक आती
पूजा के पैरो के पायल हुए

किस्से बहुत हुए , कहानियाँ बहुत बनी

गलियों के आशिको से इस आशिकी में बहुत ठनी


कभी लोगो  ने बदनाम किया ,कभी अपने हुनर ने नाम किया

कभी किसी ने दिलफेंक आशिक कहा

कभी किसी ने बहता हुआ साहिल कहा
अब किस - किस को समझाते की, लोगो ने किस्सा क्यों आम किया

हमने तो इश्क़ को खुदा मानके, हर चेहरे से प्यार किया
तुमने मुहब्बत की तंग गलियों से, गुजरने से इंकार किया
और जब हम गुजरे तो कहते हो
गली में रहने वाले दिलो को बेकरार किया

हमने तो मुहब्बत का शहर बसा दिया 
इस नफरत भरी दुनियां को जीना सीखा दिया 
तभी तो इस दुनियां ने हमें आशिक़ बना दिया 


कभी आओ गली में हमारी ,और यकीं  करो हमारा 
बनालोगे आशियाना , देखके इस गली का नजारा 


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section 377 and gay



अनुच्छेद - 377  और समलैंगिगता -



विगत 6 सितम्बर को आई पी सी की धारा 377 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुचित ठहराते हुए कहा की हमें व्यक्ति की पसंद को आजादी देनी होगी तथा यह गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसले में आईपीसी की धारा-377 को समानता और संवैधानिक  अधिकार का उल्लंघन करार देते हुए आंशिक रूप से खारिज कर दिया है हालाँकि कुछ मसलो में ये प्रभावी रहेगा। 



section 377 and gay


फैसला आते ही बाहर खड़े हजारो समलैंगिको ने अपनी ख़ुशी का इजहार अपने तरीके से किया। अब एक बार फिर इस कानून पर नए सिरे से चर्चा होना स्वाभाविक है।  परन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की भारत जैसे परम्परागत देश में इस तरह के फैसले कितनी अहमियत रखते है। जहाँ आज भी इन मुद्दों पर खुलकर चर्चा करना भी समाज पसंद नहीं करता वहां अब कानूनन रूप से इसे मान्यता मिलना भारतीय समाज में नए बदलाव  का संकेत है।  इसके साथ ही कुछ नए सवाल सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो रहे है , जोकि इस कानून में दिलचस्पी को बढ़ाते ही है , इनके कुछ उदाहरण निम्न है। 

धारा 377 में कोई रेप केस आया तो न्यायधीश कैसे तय करेंगे कि किसका बलात्कार हुआ? 

बच्चो के जेंडर का निर्धारण कैसे होगा  ?

अब लड़को  को भी डर  है रेप होने का। 


हालाँकि सरकार  ने इस मुद्दे पर अपनी भूमिका नगण्य रखी है और सबकुछ  कोर्ट पर छोड़ दिया है , अभी भी धारा 377 आंशिक रूप से कुछ मसलो में प्रभावी रहेगी , परन्तु देखना यह है की  क्या भारतीय समाज इसे अपनी स्वीकार्यता देता है या नहीं  ? 





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